आंदोलन के साझा खेल में बुरी फंसी कांग्रेस!जो सरकार संविधान और संसद की परवाह नहीं करती, राष्ट्र के प्रति उसके इस संबोधन का असली तात्पर्य क्या है
स्वराज के सपनों को लेकर लंबी लड़ाई के बाद आधीरात को जो सूर्योदय हुआ, उसमें इतना अन्धकार भरा ङुआ है कि अब इस अन्धेरे से मुक्ति की कोई राह नहीं। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है और इसके शासकीय अध्यक्ष को असंवैधानिक कारपोरेट राज चलानेए मुक्त बाजार के लिए जनसंहार की नीतियां लागू करने में किसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता। पर राजधानी में हुए एक बलात्कार के विरोध में राजपथ पर जनविद्रोह से निपटने के लिए राष्ट्र को संबोधित करना पड़ता है।जो सरकार संविधान और संसद की परवाह नहीं करतीए राष्ट्र के प्रति उसके इस संबोधन का असली तात्पर्य क्या है अस्सी के दशक में नवउदारवादी युग शुरु होने की तैयारी के दौरान उत्तरप्रदेश में पत्रकारिता का हमारा अनुभव है। मेरठ के दंगों में सत्ता राजनीति और कारपोरेट हितों पर मेरी लंबी कहानी उनका मिशन पाठकों को याद होगी। अंडे सेंते लोग भी लोगों के ध्यान में होगा। उस दरम्यान न जाने कितने मारे गये, तीन तीन चार चार बैनरवाली पत्रकारिता का नया अवतार टीवी पर अंधाधुंध बाइट्स, संकल्प और शपथ के मध्य अवतरित हो रहा है। पहले दौर के आर्थिक सुधारों के लिए जो धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का माहौल गढ़ने में देशभर में जघन्यतम सांप्रदायिक दंगों और आतंकी वारदातों का खेल शुरु किया गयाए उसके हमारी पीढ़ी के पत्रकार चश्मदीद गवाह हैं। दंगों का खेल अब बेनकाब हो गया है उत्तरभारत में समाजिक उथल पुथल की वजह से।
इसलिेए सिविल सोसाइटी, राजनीति और कारपोरेट गठजोड़ से जो नया खेल खेला जा रहा हैए उससे सावधान होने और मुद्दों के भटकाव से सजग होना वक्त का तकाजा है।
आठ दिन पहले चलती बस में गैंगरेप पर मचे कोहराम के बीच दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर का ऐलान किया है। महिलाएं या लड़कियां शहर में किसी तरह के खतरे की आशंका पर 181 नंबर पर कॉल कर सकती हैं। पहले खबर आ रही थी कि यह नंबर 167 होगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को राष्ट्र के नाम संदेश दिया। संदेश अंग्रेजी में था। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी किए गए वीडियो संदेश में डॉ. मनमोहन सिंह अपने संदेश के बाद कहते हैंए श्ठीक हैश्। संदेश को सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे पीएम कैमरामैन से पूछ रहे हों कि संदेश ठीक रिकॉर्ड हुआ है या नहीं। दिल्ली गैंग रेप मामले में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और नितिन गडकरी राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे हैं।दूसरी ओर बीते दो दिनों से हो रहे प्रदर्शन को देखते हुए आज भारत आ रहे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच मुलाकात का वैन्यू बदला गया है। अब ये दोनों प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री आवास स्थित रेसकोर्स में मिलेंगे। पहले यह मुलाकात हैदराबाद हाउस में होने वाली थी जो इंडियागेट के समीप है।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पुतिन के बीच बातचीत में रक्षा सौदों पर जोर रहेगा। इसके अलावा व्यापारएनिवेशए विज्ञान व प्रौद्योगिकी पर भी समझौते होने की उम्मीद है। बीजेपी नेता संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं।दिल्ली के उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना ने सोमवार को पहली बार चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने कहा है कि प्रदर्शनकारियों का गुस्सा जायज है। उन्होंने कहा कि लापरवाही बरतने के आरोप में एसीपी ;ट्रैफिकद्ध और एसीपी ;पीसीआरद्ध को सस्पेंड कर दिया गया है। दो डीसीपी को जवाब देने को कहा गया है।इस मामले को लेकर देशभर में हो रहे आंदोलन के आगे सरकार झुक गई है। सरकार की ओर से कहा गया है कि जनवरी के पहले हफ्ते से इस केस की सुनवाई रोजाना की जाएगी। सुनवाई में शामिल सभी तीन जज महिलाएं होंगी। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित की दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मुलाकात हुई। सरकार ने तय किया है कि दिल्ली गैंगरेप मामले की सुनवाई तीन जनवरी से शुरू होगी और यह रोजाना होगी।
सूत्रों के मुताबिक रेप जैसे मामले जल्द निपटाने के लिए और फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किए जाएंगे। शिंदे ने चीफ जस्टिस से मुलाकात के बाद कहाए श्मैंने स्टूडेंट्स से कल भी कहा था कि मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन होगा। यह आयोग 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट भी दे देगा। हम इस मामले में पहले दिन से ही लगे हैं।श् उन्होंने सवालिया लहजे में कहाए श्हम लगातार स्टूडेंट्स से मिल रहे हैं। आंदोलनकारियों की मांगें मान ली गई हैंए ऐसे में अब आंदोलन क्यों हो रहे हैं केंद्र सरकार ने पूर्व चीफ जस्टिस जे एस वर्मा की अगुवाई में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है जो सेक्सुअल असॉल्ट से जुड़े मामलों में त्वरित फैसले और कठोर से कठोर सजा सुनाने के मकसद से मौजूदा क़ानून की समीक्षा करेगा। इस आयोग ने अपना काम शुरू कर भी कर दिया है।उधरए इंडिया गेट से प्रदर्शनकारियों के साथ मीडिया को भी यहां से हटाया जा रहा है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि पूरे इलाके में धारा 144 लागू है। ऐसे में मीडियाकर्मी भी यहां नहीं रह सकते हैं। इंडिया गेट से अधिकांश ओबी वैन को हटाया जा रहा है। इस वजह से पुलिस और पत्रकारों में भी झड़प हो रही है। इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन के बीच पूरे राजपथ पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। अराजनीतिक असंगठित आंदोलन के राजनीतिक समीकरण स्पष्ट होने लगे हैं और उसकी राजनीति भी बेनकाब होने लगी है। रणनीति तो सत्तावर्ग की साझा तैयारी की फसल है। मीडिया कवरेज के तौर तरीके भी यहीं बताते हैं। सरकार दूसरे चरण के आर्थिक सुधार कारपोरेट संचालितए प्रायोजित निर्देशित राजनीतिक सर्वसम्मति से धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के उन्मक्त सर्वव्यापी वातावरण बेरहमी से लागू कर रही है। जनता को अपराध की सुर्खियों के बीच नीति निर्धारण की कोई सूचना ही नहीं होती। संसद में अल्पमत सरकार को दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के लिए बेहद जरूरी विधेयकों को पारित कराने में सहयोग करना संघ परिवार के लिए कारपोरेट जायनवादी साम्राज्यवाद के हितों के प्रति प्रतिबद्धता और सत्तावर्ग के कुलीन हितों के रक्षार्थ बाध्यता है। राजनीति चलाने के लिए बाजार और कारपोरेट को साधना उतना ही जरुरी है जितना वोट बैंक और राजनीतिक समीकरण साधना। फिर संघ परिवार के भावी प्रधानमंत्रित्व के दावेदार और खुला बाजार के विकासपुरुष हैं जिन्हें पश्चिम की उपभोक्तावादी संस्कृति का कुला समर्थन है। देश में कांग्रेस और यूपीए ने भी संघ परिवार से एक कदम आगे बढ़कर उग्रतम हिंदुत्व का विकल्प चुना हुआ है। जाहिर है कि उग्रतम हिंदुत्व का इतिहास भी संघ परिवार के विरुद्ध है।सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के खेल में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस की दक्षता कहीं ज्यादा है। अस्सी के दशक में सिख विरोधी धर्मोन्माद भड़काने में संघ परिवार की मुख्य भूमिका थीए लेकिन आपरेशन ब्लू स्टार, उसके परिमाम स्वरुप इंदिरा गांधी की हत्या और तदोपुरान्त उत्पन्न उन्मादी हिंदू राष्ट्रवाद की जय जयकार के मध्य सिखों का देश भर में नरसंहार के बाद जो परिस्थ्तियां बनींए उसमें संघ परिवार न केवल किनारे हो गयीए बल्कि उसे हिंदू हितों के नाम कांग्रेस और राजीव गांधी को बिना शर्त समर्थन करना पड़ा। इसी तरह रामजन्मभूमि आंदोलन और बाबरी विध्वंस से तात्कालिक रुप से हिंदुत्व के पुनरूत्थान हो जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नरम हिंदुत्व के सहारे केंद्र में रसत्तासुख भोगने के बाद अंततः बाजारए कारपोरेट वा जायनवादी ताकतों के अटूट समर्थन और इससे भी महत्वपूर्ण हिंदुत्व के तमाम शक्तियों के ग्लोबल हिंदुत्व के जायनवादी हितों के अनुरुप कांग्रेस ताकतों के कारपोरेट बाजारु कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हो जाने से सत्ता के तिलिस्म को तोड़ने लायक मंत्र से अभीतक संघ परिवार अनभिज्ञ है। गुजरात नरसंहार के जरिये हिंदुत्व का प्रयोगशाला जरूर तैयार हुआ और अनुसूचित, दलित व आदिवासी भी हिंदुत्व की पैदलसेना में तब्दील होने लगे, पर नरेंद्र मोदी की कामयाबी को हिंदुत्व की फसल मानने के लिए संघ परिवार भी तैयार नहीं है। वरना अब तक लालकृष्म आडवानी की तरह वे भी प्रधानमंत्रित्व के संघी प्रत्याशी घोषित हो गये होते। मोदी का हिन्दुत्व स्वदेशी हिन्दुत्व है ही नहीं।इसमें जबरदस्त कारपोरेट तड़का है। गुजरात की जीत के बाद मोदी बाजार और कारपोरेट विकास के सबसे बड़े सिपाहसालार बनकर उभरे हैं और चुनावी हैट्रिक भी उन्होंने हिंदुत्व के बजाय गुजरात की क्षेत्रीय अस्मिता और कारपोरेट विकास के नारे उछालकर जीते हैं। जाहिर है कि नागपुर मुख्यालय चाहे या न चाहेए संघ परिवार के तारणहार अलीबाबा नरेंद्र मोदी ही हैं। इसलिए मनुस्मृति के संविधान को लागू करने के एजंडे के साथ साथ कारपोरेट एजंडे को पूरा करने में संघ परिवार की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है। लेकिन आर्थिक सुधारों को लागू करने की सर्वदलीय सहमति के लिए समाजवादी मुलायम सिंह यादव और अबंडकरवादी मायावती जैसे दो कठिन क्षत्रपों को निपटाने के लिए कांग्रेस भाजपा गठजोड़ और मिलीभगत कारपोरेट हितों के लिए सबसे ज्यादा जरुरी जरुरी थी। इसके मुताबिक मंडल के खिलाफ कमंडल लाने वाले संघ परिवार और विश्वनाथ को सत्ता पर काबिज कराने में पहल करने वाले जिस संघ परिवार को उन्हींके खिलाफ आरक्षण विरोध के ब्रह्मास्त्र का उपयोग करना पड़ाए उसी संघ परिवार को मायावती और मुलायम दोनों को चकमा देने के लिए राज्यसभा में अनुसूचितों को पदोन्नति में आरक्षण हेतु विधेयक को सवर्ण वोट के नाराज होने का जोखिम उठाकर भी समर्थन देना पड़ा। लेकिन चूंकि आरक्षण की व्यवस्ता और समता सामाजिक न्याय का कोई भी कदम उग्रतम हिंदुत्व के खिलाफ हैए कारपोरेट हितो के भी खिलाफए इसलिए इसे लोकसभा में पारित होकर कानून बन दजाने से रोकने का जुगाड़ भी जरुरी था। बलात्कार, यौन उत्पीड़न, महिलाओं की तस्करी , भ्रूण हत्याएकारपोरेट उपभोक्ता संस्कृति और देह व्यवसाय की राजधानी नयी दिल्ली में हुए एक बलात्कार कांड ने इतना तुल पकड़ा कि संसदीय हंगामे में आरक्षण विधेयक हवा हवाई हो गया। मायावती भी खुश और मुलायम भी खुश। वोटबैंक और सत्ता समीकरण साधकर सत्ता की मलाई जातीय अस्मिता भुनाते हुए चाटते रहने का भी चाक चौबंद इंतजाम हो गया।पर अब बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल और संघी तत्वों के चेहरे शुरु से अराजनीतिक और असंगठित आंदोलन में इतने हावी होने लगे कि कांग्रेस के लिए खतरा हो गया है। सड़कों पर उमड़ने वाले युवा हुजूम को देश के कोने कोने में हो रहे नरसंहार और गृहयुद्ध की खबर तक नहीं है। उन्हें अर्थ व्यवस्था की बारीकियां नहीं मालूम।डिजिटल और बायोमेट्रिक नागरिकता के जरिए अबाध पूंजी निवेश और अबाध बेदखली की साजिश से भी वे अनजान हैं। पर उनकी रायसीना हिल्स तक पहुंच और राजपथ पर इसाफ की जंग की निरतंरता में मध्यपूर्व के लोकतंत्र आंदोलन और यूरोप अमेरिका के वाल स्ट्रीट आंदोलन की गूंज और आहट सुनायी पड़ने लगी है कारपोरेट सरकार को। यह तय है कि इस देश में कानून का राज सबके लिए समान नहीं है। सत्तावर्ग के विशिष्टजल जो आम नागरिकों और खासतौर पर महिलाओं के विरुद्द मानवाधिकार हनन और नागरिक अधिकारों के हनन के दोषी हैं,अभियुक्त होने के बाद भी वे ही देश के भाग्य विधाता बने रहेंगे। सिख नरसंहार, भोपाल गैस त्रासदीए गुजरात नरसंहार, बाबरी विध्वंस के सबक ये ही हैं। राजनीति, सत्ता और पूंजी के केंद्रों में आपराधिक साम्राज्य, बिल्डर प्रोमोटर राजए महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार येही कहते हैं। अगर बलात्कारियों को फांसी की सजा मिल भी जाये, दो चार मामलों में न्याय मिल भी जायेए तो आतंक निरोधक कानूनों की तरह इस कानून का दुरुपयोग रोकने लायक कानून का राज और न्याय प्रणाली हमारे पास नहीं है।तो इस आंदोलन से इसके फौरी एजंडे के भी पूरे होने के आसार कम ही है।कारपोरेट एजंडा पूरा होना तय है। पर सत्ता समीकरण तो आंदोलन के नियंत्रण पर निर्भर है। फिलहाल आंदोलन पर नियंत्रण संघी तत्वों का लगातार बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रपति भवन में हिंदू राष्ट्रवाद के धर्माधिकारी का निवास है और संसदीय बदलाव को रोकने में वे इंदिरा जमाने से मजबूतदीवार बने हुए हैं।विपक्ष और जनता कुछ भी करें , कांग्रेस को कोई खतरा नहीं है। लेकिन अगर यही आंदोलन अप्रतिबद्ध असंगठित अराजनीतिक युवाओं को देश में कारपोरेट राज, जनसंहार की संस्कृति- जनता के खिलाफ राष्ट्र के युद्ध, कश्मीर और पूर्वोत्तर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून और आदिवासी इलाकों में रंग बिरंगे सलवा जुड़ुम अभियानों के तहत मानवाधिकार हनन और नागरिक अधिकारोंए जल जंगल जमीन आजीविका से बेदखली विस्तृत हो जाये और वे इरोम शर्मिला के समर्थन में खड़े हो जाये, तो कारपोरेट राज के अस्तित्व और खुला बाजार की जनसंहार नीतियों की निरंतरता के लिए निर्मम गंभीर खतरा बन जायेगा। राष्ट्रपति, सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री के जनसरोकार का असली तात्पर्य यही है।
-पलाश विश्वास
स्वराज के सपनों को लेकर लंबी लड़ाई के बाद आधीरात को जो सूर्योदय हुआ, उसमें इतना अन्धकार भरा ङुआ है कि अब इस अन्धेरे से मुक्ति की कोई राह नहीं। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है और इसके शासकीय अध्यक्ष को असंवैधानिक कारपोरेट राज चलानेए मुक्त बाजार के लिए जनसंहार की नीतियां लागू करने में किसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता। पर राजधानी में हुए एक बलात्कार के विरोध में राजपथ पर जनविद्रोह से निपटने के लिए राष्ट्र को संबोधित करना पड़ता है।जो सरकार संविधान और संसद की परवाह नहीं करतीए राष्ट्र के प्रति उसके इस संबोधन का असली तात्पर्य क्या है अस्सी के दशक में नवउदारवादी युग शुरु होने की तैयारी के दौरान उत्तरप्रदेश में पत्रकारिता का हमारा अनुभव है। मेरठ के दंगों में सत्ता राजनीति और कारपोरेट हितों पर मेरी लंबी कहानी उनका मिशन पाठकों को याद होगी। अंडे सेंते लोग भी लोगों के ध्यान में होगा। उस दरम्यान न जाने कितने मारे गये, तीन तीन चार चार बैनरवाली पत्रकारिता का नया अवतार टीवी पर अंधाधुंध बाइट्स, संकल्प और शपथ के मध्य अवतरित हो रहा है। पहले दौर के आर्थिक सुधारों के लिए जो धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का माहौल गढ़ने में देशभर में जघन्यतम सांप्रदायिक दंगों और आतंकी वारदातों का खेल शुरु किया गयाए उसके हमारी पीढ़ी के पत्रकार चश्मदीद गवाह हैं। दंगों का खेल अब बेनकाब हो गया है उत्तरभारत में समाजिक उथल पुथल की वजह से।
इसलिेए सिविल सोसाइटी, राजनीति और कारपोरेट गठजोड़ से जो नया खेल खेला जा रहा हैए उससे सावधान होने और मुद्दों के भटकाव से सजग होना वक्त का तकाजा है।
आठ दिन पहले चलती बस में गैंगरेप पर मचे कोहराम के बीच दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर का ऐलान किया है। महिलाएं या लड़कियां शहर में किसी तरह के खतरे की आशंका पर 181 नंबर पर कॉल कर सकती हैं। पहले खबर आ रही थी कि यह नंबर 167 होगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को राष्ट्र के नाम संदेश दिया। संदेश अंग्रेजी में था। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी किए गए वीडियो संदेश में डॉ. मनमोहन सिंह अपने संदेश के बाद कहते हैंए श्ठीक हैश्। संदेश को सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे पीएम कैमरामैन से पूछ रहे हों कि संदेश ठीक रिकॉर्ड हुआ है या नहीं। दिल्ली गैंग रेप मामले में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और नितिन गडकरी राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे हैं।दूसरी ओर बीते दो दिनों से हो रहे प्रदर्शन को देखते हुए आज भारत आ रहे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच मुलाकात का वैन्यू बदला गया है। अब ये दोनों प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री आवास स्थित रेसकोर्स में मिलेंगे। पहले यह मुलाकात हैदराबाद हाउस में होने वाली थी जो इंडियागेट के समीप है।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पुतिन के बीच बातचीत में रक्षा सौदों पर जोर रहेगा। इसके अलावा व्यापारएनिवेशए विज्ञान व प्रौद्योगिकी पर भी समझौते होने की उम्मीद है। बीजेपी नेता संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं।दिल्ली के उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना ने सोमवार को पहली बार चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने कहा है कि प्रदर्शनकारियों का गुस्सा जायज है। उन्होंने कहा कि लापरवाही बरतने के आरोप में एसीपी ;ट्रैफिकद्ध और एसीपी ;पीसीआरद्ध को सस्पेंड कर दिया गया है। दो डीसीपी को जवाब देने को कहा गया है।इस मामले को लेकर देशभर में हो रहे आंदोलन के आगे सरकार झुक गई है। सरकार की ओर से कहा गया है कि जनवरी के पहले हफ्ते से इस केस की सुनवाई रोजाना की जाएगी। सुनवाई में शामिल सभी तीन जज महिलाएं होंगी। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित की दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मुलाकात हुई। सरकार ने तय किया है कि दिल्ली गैंगरेप मामले की सुनवाई तीन जनवरी से शुरू होगी और यह रोजाना होगी।
सूत्रों के मुताबिक रेप जैसे मामले जल्द निपटाने के लिए और फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किए जाएंगे। शिंदे ने चीफ जस्टिस से मुलाकात के बाद कहाए श्मैंने स्टूडेंट्स से कल भी कहा था कि मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन होगा। यह आयोग 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट भी दे देगा। हम इस मामले में पहले दिन से ही लगे हैं।श् उन्होंने सवालिया लहजे में कहाए श्हम लगातार स्टूडेंट्स से मिल रहे हैं। आंदोलनकारियों की मांगें मान ली गई हैंए ऐसे में अब आंदोलन क्यों हो रहे हैं केंद्र सरकार ने पूर्व चीफ जस्टिस जे एस वर्मा की अगुवाई में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है जो सेक्सुअल असॉल्ट से जुड़े मामलों में त्वरित फैसले और कठोर से कठोर सजा सुनाने के मकसद से मौजूदा क़ानून की समीक्षा करेगा। इस आयोग ने अपना काम शुरू कर भी कर दिया है।उधरए इंडिया गेट से प्रदर्शनकारियों के साथ मीडिया को भी यहां से हटाया जा रहा है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि पूरे इलाके में धारा 144 लागू है। ऐसे में मीडियाकर्मी भी यहां नहीं रह सकते हैं। इंडिया गेट से अधिकांश ओबी वैन को हटाया जा रहा है। इस वजह से पुलिस और पत्रकारों में भी झड़प हो रही है। इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन के बीच पूरे राजपथ पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। अराजनीतिक असंगठित आंदोलन के राजनीतिक समीकरण स्पष्ट होने लगे हैं और उसकी राजनीति भी बेनकाब होने लगी है। रणनीति तो सत्तावर्ग की साझा तैयारी की फसल है। मीडिया कवरेज के तौर तरीके भी यहीं बताते हैं। सरकार दूसरे चरण के आर्थिक सुधार कारपोरेट संचालितए प्रायोजित निर्देशित राजनीतिक सर्वसम्मति से धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के उन्मक्त सर्वव्यापी वातावरण बेरहमी से लागू कर रही है। जनता को अपराध की सुर्खियों के बीच नीति निर्धारण की कोई सूचना ही नहीं होती। संसद में अल्पमत सरकार को दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के लिए बेहद जरूरी विधेयकों को पारित कराने में सहयोग करना संघ परिवार के लिए कारपोरेट जायनवादी साम्राज्यवाद के हितों के प्रति प्रतिबद्धता और सत्तावर्ग के कुलीन हितों के रक्षार्थ बाध्यता है। राजनीति चलाने के लिए बाजार और कारपोरेट को साधना उतना ही जरुरी है जितना वोट बैंक और राजनीतिक समीकरण साधना। फिर संघ परिवार के भावी प्रधानमंत्रित्व के दावेदार और खुला बाजार के विकासपुरुष हैं जिन्हें पश्चिम की उपभोक्तावादी संस्कृति का कुला समर्थन है। देश में कांग्रेस और यूपीए ने भी संघ परिवार से एक कदम आगे बढ़कर उग्रतम हिंदुत्व का विकल्प चुना हुआ है। जाहिर है कि उग्रतम हिंदुत्व का इतिहास भी संघ परिवार के विरुद्ध है।सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के खेल में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस की दक्षता कहीं ज्यादा है। अस्सी के दशक में सिख विरोधी धर्मोन्माद भड़काने में संघ परिवार की मुख्य भूमिका थीए लेकिन आपरेशन ब्लू स्टार, उसके परिमाम स्वरुप इंदिरा गांधी की हत्या और तदोपुरान्त उत्पन्न उन्मादी हिंदू राष्ट्रवाद की जय जयकार के मध्य सिखों का देश भर में नरसंहार के बाद जो परिस्थ्तियां बनींए उसमें संघ परिवार न केवल किनारे हो गयीए बल्कि उसे हिंदू हितों के नाम कांग्रेस और राजीव गांधी को बिना शर्त समर्थन करना पड़ा। इसी तरह रामजन्मभूमि आंदोलन और बाबरी विध्वंस से तात्कालिक रुप से हिंदुत्व के पुनरूत्थान हो जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नरम हिंदुत्व के सहारे केंद्र में रसत्तासुख भोगने के बाद अंततः बाजारए कारपोरेट वा जायनवादी ताकतों के अटूट समर्थन और इससे भी महत्वपूर्ण हिंदुत्व के तमाम शक्तियों के ग्लोबल हिंदुत्व के जायनवादी हितों के अनुरुप कांग्रेस ताकतों के कारपोरेट बाजारु कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हो जाने से सत्ता के तिलिस्म को तोड़ने लायक मंत्र से अभीतक संघ परिवार अनभिज्ञ है। गुजरात नरसंहार के जरिये हिंदुत्व का प्रयोगशाला जरूर तैयार हुआ और अनुसूचित, दलित व आदिवासी भी हिंदुत्व की पैदलसेना में तब्दील होने लगे, पर नरेंद्र मोदी की कामयाबी को हिंदुत्व की फसल मानने के लिए संघ परिवार भी तैयार नहीं है। वरना अब तक लालकृष्म आडवानी की तरह वे भी प्रधानमंत्रित्व के संघी प्रत्याशी घोषित हो गये होते। मोदी का हिन्दुत्व स्वदेशी हिन्दुत्व है ही नहीं।इसमें जबरदस्त कारपोरेट तड़का है। गुजरात की जीत के बाद मोदी बाजार और कारपोरेट विकास के सबसे बड़े सिपाहसालार बनकर उभरे हैं और चुनावी हैट्रिक भी उन्होंने हिंदुत्व के बजाय गुजरात की क्षेत्रीय अस्मिता और कारपोरेट विकास के नारे उछालकर जीते हैं। जाहिर है कि नागपुर मुख्यालय चाहे या न चाहेए संघ परिवार के तारणहार अलीबाबा नरेंद्र मोदी ही हैं। इसलिए मनुस्मृति के संविधान को लागू करने के एजंडे के साथ साथ कारपोरेट एजंडे को पूरा करने में संघ परिवार की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है। लेकिन आर्थिक सुधारों को लागू करने की सर्वदलीय सहमति के लिए समाजवादी मुलायम सिंह यादव और अबंडकरवादी मायावती जैसे दो कठिन क्षत्रपों को निपटाने के लिए कांग्रेस भाजपा गठजोड़ और मिलीभगत कारपोरेट हितों के लिए सबसे ज्यादा जरुरी जरुरी थी। इसके मुताबिक मंडल के खिलाफ कमंडल लाने वाले संघ परिवार और विश्वनाथ को सत्ता पर काबिज कराने में पहल करने वाले जिस संघ परिवार को उन्हींके खिलाफ आरक्षण विरोध के ब्रह्मास्त्र का उपयोग करना पड़ाए उसी संघ परिवार को मायावती और मुलायम दोनों को चकमा देने के लिए राज्यसभा में अनुसूचितों को पदोन्नति में आरक्षण हेतु विधेयक को सवर्ण वोट के नाराज होने का जोखिम उठाकर भी समर्थन देना पड़ा। लेकिन चूंकि आरक्षण की व्यवस्ता और समता सामाजिक न्याय का कोई भी कदम उग्रतम हिंदुत्व के खिलाफ हैए कारपोरेट हितो के भी खिलाफए इसलिए इसे लोकसभा में पारित होकर कानून बन दजाने से रोकने का जुगाड़ भी जरुरी था। बलात्कार, यौन उत्पीड़न, महिलाओं की तस्करी , भ्रूण हत्याएकारपोरेट उपभोक्ता संस्कृति और देह व्यवसाय की राजधानी नयी दिल्ली में हुए एक बलात्कार कांड ने इतना तुल पकड़ा कि संसदीय हंगामे में आरक्षण विधेयक हवा हवाई हो गया। मायावती भी खुश और मुलायम भी खुश। वोटबैंक और सत्ता समीकरण साधकर सत्ता की मलाई जातीय अस्मिता भुनाते हुए चाटते रहने का भी चाक चौबंद इंतजाम हो गया।पर अब बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल और संघी तत्वों के चेहरे शुरु से अराजनीतिक और असंगठित आंदोलन में इतने हावी होने लगे कि कांग्रेस के लिए खतरा हो गया है। सड़कों पर उमड़ने वाले युवा हुजूम को देश के कोने कोने में हो रहे नरसंहार और गृहयुद्ध की खबर तक नहीं है। उन्हें अर्थ व्यवस्था की बारीकियां नहीं मालूम।डिजिटल और बायोमेट्रिक नागरिकता के जरिए अबाध पूंजी निवेश और अबाध बेदखली की साजिश से भी वे अनजान हैं। पर उनकी रायसीना हिल्स तक पहुंच और राजपथ पर इसाफ की जंग की निरतंरता में मध्यपूर्व के लोकतंत्र आंदोलन और यूरोप अमेरिका के वाल स्ट्रीट आंदोलन की गूंज और आहट सुनायी पड़ने लगी है कारपोरेट सरकार को। यह तय है कि इस देश में कानून का राज सबके लिए समान नहीं है। सत्तावर्ग के विशिष्टजल जो आम नागरिकों और खासतौर पर महिलाओं के विरुद्द मानवाधिकार हनन और नागरिक अधिकारों के हनन के दोषी हैं,अभियुक्त होने के बाद भी वे ही देश के भाग्य विधाता बने रहेंगे। सिख नरसंहार, भोपाल गैस त्रासदीए गुजरात नरसंहार, बाबरी विध्वंस के सबक ये ही हैं। राजनीति, सत्ता और पूंजी के केंद्रों में आपराधिक साम्राज्य, बिल्डर प्रोमोटर राजए महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार येही कहते हैं। अगर बलात्कारियों को फांसी की सजा मिल भी जाये, दो चार मामलों में न्याय मिल भी जायेए तो आतंक निरोधक कानूनों की तरह इस कानून का दुरुपयोग रोकने लायक कानून का राज और न्याय प्रणाली हमारे पास नहीं है।तो इस आंदोलन से इसके फौरी एजंडे के भी पूरे होने के आसार कम ही है।कारपोरेट एजंडा पूरा होना तय है। पर सत्ता समीकरण तो आंदोलन के नियंत्रण पर निर्भर है। फिलहाल आंदोलन पर नियंत्रण संघी तत्वों का लगातार बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रपति भवन में हिंदू राष्ट्रवाद के धर्माधिकारी का निवास है और संसदीय बदलाव को रोकने में वे इंदिरा जमाने से मजबूतदीवार बने हुए हैं।विपक्ष और जनता कुछ भी करें , कांग्रेस को कोई खतरा नहीं है। लेकिन अगर यही आंदोलन अप्रतिबद्ध असंगठित अराजनीतिक युवाओं को देश में कारपोरेट राज, जनसंहार की संस्कृति- जनता के खिलाफ राष्ट्र के युद्ध, कश्मीर और पूर्वोत्तर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून और आदिवासी इलाकों में रंग बिरंगे सलवा जुड़ुम अभियानों के तहत मानवाधिकार हनन और नागरिक अधिकारोंए जल जंगल जमीन आजीविका से बेदखली विस्तृत हो जाये और वे इरोम शर्मिला के समर्थन में खड़े हो जाये, तो कारपोरेट राज के अस्तित्व और खुला बाजार की जनसंहार नीतियों की निरंतरता के लिए निर्मम गंभीर खतरा बन जायेगा। राष्ट्रपति, सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री के जनसरोकार का असली तात्पर्य यही है।
-पलाश विश्वास
2 टिप्पणियां:
विद्यमान समय में हमारे राष्ट्र में भ्रष्टाचार की ज्वाला इतना विकराल स्वरूप
धारण कर चुकी है कि आप किसी भी एक घोटाले की 'काली-राशि' के चौथाई
भाग से राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य आसंदी से लेकर उच्च न्यायालयों
से होते हुवे अधिनस्थ न्यायालयों के अति निम्न कर्मचारी का भी विक्रय कर
सकतें हैं, ऐसी स्थिति में कठोर से कठोर दण्डारोपण के पश्चात भी अपराधों
पर अंकुश कर नियंत्रित करना कठिन है कारण कि यहाँ निर्धन को तो 'फांसी'
मिल जाएगी किन्तु 'मायाराम' को एक तोला दण्ड से भी दण्डित नहीं होगा.....
एवं
ससम्मान पुष्प मालाओं के सह मुक्त घोषित किया जाएगा.....
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