दूसरी महत्वपूर्ण बात जो षिंदे ने कही वह है धमाके को अंजाम देकर अल्पसंख्यकों के सिर आरोप मढ़ने की। नया इसमें भी कुछ नहीं है। अब यह बात पूरी तरह स्थापित हो चुकी है। मालेगाँव, अजमेर, हैदराबाद और समझौता एक्सप्रेस धमाकों में इस साजिष का परदा फाष हो चुका है। जो कुछ बचा है वह सिर्फ इतना कि और कितनी आतंकी वारदातों में यह खेल खेला गया है। जमीनी वास्तविकता और निमेष आयोग की रिपोर्ट से उत्तर प्रदेष की कचहरियों में होने वाले सिलसिलेवार धमाकों में ऐसे ही षड्यंत्र की प्रबल आषंका बनती है। कचहरी धमाकोें के बाद प्रदेष के उच्च पुलिस अधिकारियों ने भी कहा था कि इन धमाकों और मक्का मस्जिद की वारदात में काफी समानताएँ हैं। कानपुर में बम बनाते समय होने वाले विस्फोट में विष्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के मारे जाने और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद होने से यह साबित भी हो गया था कि ऐसे तत्व प्रदेष में मौजूद हैं। फिर भी तत्कालीन मायावती सरकार ने साम्प्रदायिक शक्तियों से साँठ-गाँठ करके इतने बड़े मामले पर फाइनल रिपोर्ट लगवा कर दफन करवा दिया। यही खेल कांग्रेस शासित महाराष्ट्र के नान्देड़ में किया गया था। यदि साम्प्रदायिकता और मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह अपनी भूमिका न अदा करता तो कोई कारण नहीं था कि नान्देड़ में बम बनाते समय संघ और उसके द्वारा संचालित अन्य संगठनों के सदस्यों के मारे जाने और घायल होने की घटना के बाद ही असली षड्यन्त्रकारियों के चेहरे से नकाब न उतर जाती। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 5,अपैल 2006 के नान्देड़ धमाके के जिम्मेदार अपने अंजाम को पहुँचे होते तो उसके बाद उसी वर्ष 8, सितंबर को मालेगाँव घटना और सन् 2007 में 19, फरवरी को समझौता एक्सप्रेस, 18, मई को मक्का मस्जिद और 11, अक्तूबर को अजमेर दरगाह की आतंकी वारदातों को होने से रोका जा सकता था। लेकिन उस समय नान्देड़ की घटना को पहले पटाखा धमाका बता कर बन्द करने का प्रयास किया गया बाद में जिंदा बम बरामद होने पर यह थ्योरी खारिज हो गई। परन्तु जिंदा बम के साथ आमतौर पर मुसलमानों के वेषभूषा की सामग्री कुर्ता पाजामा, टोपी, नकली दाढ़ी आदि का बरामद होना इस बात का साफ संकेत था कि
धमाके करने के साथ साथ मुसलमानों के सिर आरोप मढ़ने की योजना भी उनके षड्यंत्र का हिस्सा थी। इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह सब एक बडे़ षड्यंत्र का हिस्सा था और षड्यंत्रकारियों का संघ से अहम रिष्ता भी। इन तत्वों द्वारा अंजाम दी गईं वारदातें देष के जितने बड़े भूभाग में फैली हुई हैं और इतने बड़े धमाकों के लिए जिस ताने बाने की आवष्यक्ता होगी उससे तय है कि यह काम मात्र दस बारह लोगों का ही नहीं था जिन्हें अब तक आरोपी बनाया गया है और न ही इस षड्यंत्र को उन्हीं वारदातों तक सीमित समझा जा सकता है जो अब तक सामने आ चुकी हैं। कम से कम 2006 और 2007 में देष में होने वाले अन्य धमाकों की भी इस दृष्टिकोण से जाँच होनी चाहिए थी। परन्तु ऐसा होना तो बहुत दूर स्वयं नान्देड़ की घटना की जाँच पहले ए0टी0एस0 उसके बाद सी0बी0आई0 ने ठंडे बसते में डाल दिया। ऐसा भी अकारण नहीं हुआ है। यदि संघ परिवार के पास सांगठनिक ताकत और भा0ज0पा0 के रूप में राजनैतिक शक्ति न होती और कांग्रेस के पास इच्छा शक्ति का अभाव न होता तो इतने बड़े-बड़े मामलों को बहुत आसानी के साथ दफन नहीं किया जा सकता था। अब गृहमंत्री श्री षिंदे ने नान्देड़ की घटना के साथ जालना, पूरना और प्रभनी की मस्जिदों में होने वाले विस्फोटों की जाँच एन0आई0ए0 को सौंप दी है। इस जाँच का अंजाम क्या होगा यह तो कहना मुष्किल है लेकिन जब तक इन घटनाओं की पिछली जाँचों में राजनैतिक दखलअंदाजी और उन्हें बन्द कर दिए जाने के कारणों को जाँच में शामिल नहीं किया जाता इसे पूर्ण नहीं माना जा सकता।
-मसीहुद्दीन संजरी
धमाके करने के साथ साथ मुसलमानों के सिर आरोप मढ़ने की योजना भी उनके षड्यंत्र का हिस्सा थी। इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह सब एक बडे़ षड्यंत्र का हिस्सा था और षड्यंत्रकारियों का संघ से अहम रिष्ता भी। इन तत्वों द्वारा अंजाम दी गईं वारदातें देष के जितने बड़े भूभाग में फैली हुई हैं और इतने बड़े धमाकों के लिए जिस ताने बाने की आवष्यक्ता होगी उससे तय है कि यह काम मात्र दस बारह लोगों का ही नहीं था जिन्हें अब तक आरोपी बनाया गया है और न ही इस षड्यंत्र को उन्हीं वारदातों तक सीमित समझा जा सकता है जो अब तक सामने आ चुकी हैं। कम से कम 2006 और 2007 में देष में होने वाले अन्य धमाकों की भी इस दृष्टिकोण से जाँच होनी चाहिए थी। परन्तु ऐसा होना तो बहुत दूर स्वयं नान्देड़ की घटना की जाँच पहले ए0टी0एस0 उसके बाद सी0बी0आई0 ने ठंडे बसते में डाल दिया। ऐसा भी अकारण नहीं हुआ है। यदि संघ परिवार के पास सांगठनिक ताकत और भा0ज0पा0 के रूप में राजनैतिक शक्ति न होती और कांग्रेस के पास इच्छा शक्ति का अभाव न होता तो इतने बड़े-बड़े मामलों को बहुत आसानी के साथ दफन नहीं किया जा सकता था। अब गृहमंत्री श्री षिंदे ने नान्देड़ की घटना के साथ जालना, पूरना और प्रभनी की मस्जिदों में होने वाले विस्फोटों की जाँच एन0आई0ए0 को सौंप दी है। इस जाँच का अंजाम क्या होगा यह तो कहना मुष्किल है लेकिन जब तक इन घटनाओं की पिछली जाँचों में राजनैतिक दखलअंदाजी और उन्हें बन्द कर दिए जाने के कारणों को जाँच में शामिल नहीं किया जाता इसे पूर्ण नहीं माना जा सकता।
-मसीहुद्दीन संजरी
1 टिप्पणी:
हर चीज़ की कामयाबी अपने मक़सद को पूरा करने के साथ वाबस्ता है। दुनिया की हर चीज़ वही काम कर रही है, जिसके लिए वह बनी है सिवाय इंसान के। आप इंसान से पूछिये कि उसे दुनिया में क्यों भेजा गया है ?
हरेक इंसान अलग जवाब देगा। वे नहीं जानते कि उनके जीवन का असली मक़सद क्या है ?
मक़सद भूलने के बाद हर इंसान अलग रास्ते पर चल पड़ा। राजनीतिक स्वार्थ ने इन्हें नफ़रत और हिंसा के रास्ते पर धकेल दिया। मुसलमानों में भी ऐसी अवाम और ऐसे लीडर हैं। हर तरफ़ राजनीति के तवे पर स्वार्थ की रोटी सेकी जा रही है और अवाम मर रही है। उसे बताया जाता है कि उनका यह बलिदान धर्म के रास्ते में है। धर्म परोपकार है। यह सब जानते हैं। धर्म जानकर भी अधर्म जो अधर्म करें तो वे सज़ा तो भुगतेंगे ही। हिन्दू मुसलमान के हाथ सज़ा भुगत रहे हैं और मुसलमान हिन्दुओं के हाथों। लोग अपने मालिक की राह से हट जाएं तो आपस में दंड देने के लिए वही एक दूसरे के लिए काफ़ी हो जाते हैं।
सब तौबा करें, सब पश्चात्ताप और प्रायश्चित करें। सब अपने बीच मौजूद शैतान और राक्षसों को पहचानें और उनसे बचें। इसके सिवा हल दूसरा नहीं है।
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