अब असली कहानी १० मई 1999 से शुरू होती है जब वह अपने बीमार पिता से मिलने के लिए १५ दिनों के टूरिस्ट वीजा पर भारत आते है | और यहाँ से गलतिया होना शुरू होती है | सबसे पहली गलती इदरीस की रही कि उन्होंने अपने कानपुर आने की सूचना न तो L.I.U Office में दी और न ही किसी पुलिस स्टेशन में | ( जबकि यह नियम / कानून के खिलाफ है | ) इसके बाद २४ मई को उनके अब्बू जान का देहांत हो गया और उनके वीजा की तारीख भी समाप्त हो गयी | अब परिस्तिथी ऐसी है कि शोक में डूबा हुआ व्यक्ति अपने पिता के अंतिम क्रियाक्रम में शामिल हो या फिर अपने वीजा को लेकर L.I.U ऑफिस में रिपोर्ट करे | वास्तव में यह निर्णय बहुत कठिन था | पर अब इसे इदरीस की गलती कहे या फिर उनके भाग्य की, कि वह दो-तीन दिन तक अपने पिता के गम में ही डूबे रहे और उन्होंने L.I.U ऑफिस में रिपोर्ट नहीं किया | ( पर L.I.U के अधिकारी कहते है कि उन्होंने कानपुर आने के २-३ महीने के बाद भी L.I.U में कोई सूचना नहीं दी और उन्हें किसी की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया | ) जबकि इदरीस का कहना है कि पारिवारिक स्तिथी सामान्य होने पर, वह खुद अपना वीजा लेकर L.I.U ऑफिस में गए थे जहाँ पर उन्हें संदिग्ध दिखाकर कोतवाली में बंद कर दिया गया | ( यहाँ पर यह बात ध्यान देने की है कि यह १९९९ का वह दौर था जब भारत -पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध छिड़ा था ) १० दिन कोतवाली में रहने के बाद उनकी जमानत हो गयी और उन पर विदेशी अधिनियम की धारा १४ के तहत over stay को लेकर कानपुर न्यायलय में मुकदमा चलने लगा | इस बीच इदरीस कभी L.I.U. की निगरानी में रहे तो कुछ समय के लिए उन्हें एक गेस्ट हाउस में रखा गया , तो कुछ समय के लिए मुसाफिर खाने में | इसके साथ ही इस दौरान उन्होंने अपने चमड़े के कारोबार को फिर से शुरू किया और उसी की मदद से अपना मुकदमा लड़ा और कुछ धन एकत्रित किया जिसे उन्होंने अपने पत्नी और बच्चो के पास खर्च के लिए भी भेजा | आखिरकार न्यायलय की धीमी चाल और भ्रस्टाचार के आंगे इदरीस को अपने हथियार डालने पड़े और उन्होंने कोर्ट के सामने अपनी गलती को कबूल किया ( L.I.U. के कहने पर ) जिसके बाद 6 अगस्त २००९ को न्यायलय ने उनपर ५०० रु का जुर्माना और उनके द्वारा पूर्व में काटी गयी सजा लगाते हुए उन्हें वापस अटारी बोर्डर पर छोड़ने का आदेश L.I.U. को दिया | 16 अगस्त २००९ को इदरीस अपने वतन वापस लौटने की ख़ुशी में सरोबोर होकर L.I.U. officers के साथ अटारी बोर्डर पर गए पर उनकी ख़ुशी में उस समय ग्रहण लग गया जब अटारी बोर्डर पर मौजूद सैन्य अधिकारियो ने उन्हें बोर्डर क्रास कराने से मना कर दिया और पाक दूतावास से N.O.C. लाने को कहा | जिसके बाद L.I.U. उन्हें वापस कानपुर ले आयी और उन्हें यह समझाते हुए वापस कानपुर के मुसाफिर खाने में रख दिया गया कि वे N.O.C. के लिए पाक दूतावास से संपर्क करेंगे | तब से अब तक इदरीस लगातार D.M. , S.D.M. , or L.I.U. कार्यालयों के चक्कर काट रहे है लेकिन अब तक उन्हें N.O.C. का कागज नहीं मिल पाया जबकि इस बीच उन्हें मुसाफिर खाने से भी निकाल दिया गया और जिसके बाद से वे सड़को पर पागलो की तरह फिर रहे है | इसी बीच में उनकी दिमागी हालत भी ख़राब हो गयी थी जिसके लिए उन्हें हैलेट हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा था | जहाँ पर वे काफी समय तक शेल्टर होम में समय काटते रहे पर शायद उनकी किस्मत में शेल्टर होम की छत भी नसीब नहीं थी इसलिए उन्हें वहाँ से भी भगा दिया गया | अब न तो उनके पास कोई स्थायी रहने का ठिकाना है और नहीं खाने का कोई ठिकाना है | बस बेसहारो की तरह कभी किसी के दर पर मदद मांगने को चले जाते है तो कभी किसी स्टेशन या चौराहे पर पड़े रहते है | भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अनुसार ऐसे पाक राष्ट्रिको , जिनका मामला अभी विचाराधीन है या जब तक उनके वापस पाकिस्तान जाने के सभी दस्तावेज पूरे नहीं हो जाते , के रहने, खाने, स्वास्थ एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी सम्बंधित राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की है | पर स्थानीय प्रशासन के अनुसार उनके पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है और न ही इसके के लिए उनके पास कोई FUND है , तो ऐसे मामलो की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होनी चाहिए | केंद्र और राज्य सरकार के इस झगड़े के बीच बेचारे इदरीस की जिंदगी पिस रही है | उसका परिवार उससे दूर होता जा रहा है |
कहते है उम्मीद पर दुनिया टिकी है , तो देखते है यह उम्मीद नाम की चीज इदरीस जी को वापस उनके वतन पहुंचाती है कि नहीं |आशा है उनकी सभी उम्मीदे जल्दी पूरी होंगी |
-के.एम्. भाई
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