सीदी मौला एक ऐसा चरित्र जो भारत के मध्यकाल में ठगी , चोरी और डकैती करके भी पूरे उत्तर भारत में अपने को संत कहलवाता था | ऐसे लोगो के कारण किसी भी धर्म या समाज की मान्यताये टूटकर बिखरती है |
भारत का शायद ही कोई गाँव या शहर होगा जिस में किसी साधू , संत , पीर या फकीर ने अपना डेरा न
जमा रखा हो , धन यश खाने के लिए तर -- माल , वासनापूर्ति के लिए युवती चेलिया तो मिलती ही है | उस पर मजे की बात यह है कि लोग '' महाराज जी ' '' गुरु जी '' कहते हुए पैरो में झुकते चले जाते है |
साधू संत बनने के लिए किसी योग्यता की भी आवश्यकता नही , केवल सिर मुडाने , या जटा बढाने और भगवे कपडे रंगने के जरूरत है , ऐसे लाखो रंगे सियार मध्यकाल में भी थे और आज भी है |
संभव है इन लाखो संत , फकीरों में दो चार सत्पुरुष विद्वान् भी हो , पर निश्चय ही ज्यादा भीड़ तो मुर्ख , नशेबाज , पाखण्डियो की ही होती है | मध्ययुग में तो इन का खूब प्रभाव था -- सुलतान और उसके आमिर तक इनका आदर करते थे , फिर जनसाधारण का तो कहना ही क्या ?
कभी -- कभी ये धूर्त रंगे सियार ऐसे अपराध भी कर बैठते या रासलीला फैलाते की आम जनता लुटी सी बस
देखती रह जाती | आये दिन ये पाखंडी लोग कोई ना कोई गुल जरुर खिलाते रहते थे सीदी मौला उसी जमाने का एक भारी मक्कार धूर्त और रंगा सियार था , जिसकी मान्यता उस समय सारे उत्तर भारत में फैली हुई थी | लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी |
दिल्ली और उस के आसपास के इलाको में सीदी की ऋद्दी सिद्दि और चमत्कारों की बड़ी धूम थी , मौला उत्तर पश्चिमी सीमाप्रांत का निवासी था और सुलतान बलबन के समय दिल्ली में आ बसा था , उसने अपने लम्बे जीवन में बलबन और उस के उत्तराधिकारियों का शासन देखा था और अब खिलजी वंश के सुलतान
जलालुद्दीन खिलजी के शासन काल में भी उसकी प्रतिष्ठा पूर्ववत बनी हुई थी |
गुलाम वंश के ध्वसावशेषो पर अब जलालुद्दीन ने खिलजी वंश की नीव रखी तो बलबनी
दरबार के कितने आमिर , जागीरदार और सरदार बेघर -- बार हो गये थे | इस क्रान्ति की आंधी ने बड़े -- बड़े सुदृढ़ स्तम्भ गिरा दिए थे | पर इस सीदी मौला के वैभव में कोई अंतर नही आया था | सीदी मौला के वैभव और ऐश्वर्य का कोई अंत नही था | उसके निवास स्थान पर हर समय लोगो की भीड़ लगी रहती थी , भिन्न --
भिन्न कामनाओं को लेकर लोग वह आते थे | आम लोगो का विश्वास था की इस महान संत की वाणी सिद्द है , वह अपने मुख से जो कुछ कह देता वह सत्य उतरता था |दुनिया भेड़ -- चाल पर चलती है , जल्दी ही सीदी मौला के चमत्कारों की कहानी चारो ओर फ़ैल गयी | लाखो लोग उस पर श्रद्दा रखते थे , एक बात तो प्रत्यक्ष थी | सीदी मौला हजारो रूपये खर्च कर के लोगो को खूब अच्छा खिलाता - पिलाता था | जल अथवा स्थल मार्ग से जो यात्री उसके खानगाह पर पहुच जाता वह बिना कुछ खर्च किये उत्तम भोजन प्राप्त करता था | उसके दस्तरखान पर नाना प्रकार के वे व्यंजन चुने जाते थे जो बड़े बड़े खान और अमीरों को भी सुलभ न थे | यह भी एक कारण था की उसके दरवाजे पर हर समय भीड़ लगी रहती थी | हर महीने हजारो मन मैदा 500 जानवरों का मांस 200 या 300 मन खांड 100 या 200 मन मिसरी खरीदी जाती थी | आटा , दाल , घी , सागभाजी , ईधन की कोई गिनती न थी | सीदी मौला का स्थान बेकार , आलसी , पेटू , निक्कमे और जाहिल लोगो का स्वर्ग बन गया था |
दिन में दो -- दो बार उत्तम प्रदार्थ लोगो में बाटे जाते थे | लोगो को इस बात पर बड़ा आश्चर्य होता था की सीदी मौला के पास इतना धन कहा से आता है , रोज हजारो सिक्को का खर्च था , वह मुफ्त भोजन ही नही बाटता था बल्कि अमीर गरीब सभी को कभी -- कभी मौज में आकर शुद्द चांदी के सिक्के भी बाटता था |
यहाँ सोने चांदी की कीमत ईट- पत्थरों से अधिक नही थी | किसी व्यापारी अथवा जरूरतमंद आदमी को उसका धन चुकाने का तरीका भी बहुत अजीब था | वह अक्सर उनसे कह देता था , '' जाओ , फला पत्थर या पेड़ के नीचे इतने रूपये दबे हुए है '' |
सचमुच वह उन्हें उतने रूपये मिल जाते , इस तरह से उसकी ख्याति और ज्यादा फ़ैल जाती | सच्चाई यह थी की मौला या उस का कोई चेला वहा पहले ही धन दबा आता था , इस पर भी तुर्रा यह की उसने कभी किसी से कुछ स्वीकार नही किया | सुलतान के बड़े बड़े अमीर उसके सामने थैलिया लिए खड़े रहते , उसके धनी व्यापारी शिष्य अपनी तिजोरिया खोले रहते पर सीदी मौला ने कभी किसी से कुछ भी स्वीकार नही किया | दिल्ली के सुलतान से लेकर साधारण भिखारी तक सभी लोग उसके वैभव और शाही
खर्च पर चकित थे | जनसाधारण का विश्वास था की सीदी को कीमियागिरी ( सोना बनाने की विधा ) का ज्ञान है , वह हर रात अथाह सोना बना लेता है |यह बात सच भी थी | सीदी मौला हर रात लाखो रुपयों का सोना चांदी बना लेता था , लेकिन कीमियागिरी से नही बल्कि ठगी , चोरी और डकैती से , वह सीमाप्रांत का धूर्त और पक्का ठग था , उसने दिल्ली में अपने पाखंड का ऐसा जाल फैला रखा था की उसकी ठगी , चोरी और धूर्तता का कुछ पता ही नही चलता , वह चोरो और ठगों का गुरु या सरदार था | उसके सभी साथी ठग , चोर डाकू इतने कुशल और घुटे थे की पकड़ में ही नही आते थे | यदि उसके गिरोह में से कभी कोई पकड़ भी लिया जाता तो सीदी मौला अपने प्रभाव से उसे छुडवा लेता | कयोकी दिल्ली का सबसे बड़ा काजी जलाल काशनी उसका अपना साथी और अव्वल दर्जे का बदमाश था | वह काजी इस गिरोह के फसने वाले आदमियों को कोई न कोई तिकड़म भिडाकर सजा से बचा लेता था | इस तरह सीदी मौला ने अपनी ठगी का ऐसा अटूट जाल फैलाया हुआ था की उसके फकीरी लिबास , पाखंड और सब को मुफ्त भोजन बाटने के ढोंग के पीछे उसके सारे कुकर्म छिपे रहते इस शक्तिशाली गिरोह में केवल चुने और परखे हुए ठग , चोर और डाकू ही भर्ती किये जाते थे | ये लोग चोरी का माल अपने महान गुरु के चरणों में अर्पित कर देते थे | इस गिरोह की एक रात और एक दिन की कमाई एक लाख रूपये से कम न थी |
मौला ठगी और चोरी के माल में से कुछ अंश इन साथियो को बाट देता था और शेष को अपने खजाने में दाल लेता | इस गिरोह ने सारे उत्तर भारत में तहलका मचा रखा था | पाप की सारी कमाई खिंच -- खिंच कर सीदीमौला के पास जमा होने लगी थी |
इन लोगो पर किसी कानून की छाया भी न पड़ती थी धर पकड़ के भय से मुक्त ये लोग निर्भय होकर अपनी '' कला '' का चमत्कार दिखाकर प्रजा को लुटते रहते थे | मौला के आश्रम में दिल्ली के सुलतान की भी एक न चलती थी | जनसाधारण इस रंगे सियार और मक्कार ठग के असली रूप से परिचित न था | उसकी ख्याति एक सच्चे फकीर के साथ -- साथ महादानी के रूप में फ़ैल रही थी |
यह धूर्त व्यक्ति दिन में साधारण वस्त्र पहने कुरान के पाठ , नमाज , रोजा आदि में लींन रहता था | लेकिन रात आते ही उसकी जिन्दगी शाही ठाठ बाट आनंद भोग , बिलास सुरा सुंदरी की संगती में बीतती थी | यही उसकी असली जिन्दगी थी | यही उसका असली रूप था , लेकिन इस रूप से उसके कुछ विश्वस्त चेले ही परिचित थे |
भारतीय जनता का सबसे बड़ा दोष है -- उसका अन्धविश्वास , यहाँ का जनसाधारण तर्क से काम न लेकर अंधश्रद्दा व भावना से प्रेरित होकर चलता है , वास्तविकता से आँखे बंद करने के कारण जब तब ठोकर खाकर गिर भी पड़ता है \
ये धूर्त साधू दान दक्षिणा के रूप में इनकी अंधश्रद्दा के बल पर खूब गुलछर्रे उड़ाते है | यहाँ तक की लोग अपने बच्चो को दूध , दही , फल आदि न देकर इन वैरागी संतो को चढा आते है |
यह घृणित रीति मध्यकाल में और बुरी तरह प्रचलित थी | सीदी मौला की तरह के धूर्त इनके भरोसे खूब मौज करते थे | मौला के पाखंड का अड्डा जमने से कुछ वर्ष पहले की बात है , एक बार जब वह सीमा प्रान्त की ओर से दिल्ली आ रहा था तो अजोधन में अपने समय के प्रसिद्द सूफी संत शेख फरीद के दर्शनों के गया | मौला ने अपना सिर भक्तिभाव से इस महान तपस्वी के चरणों में रख दिया |
उसकी ओर ध्यान से देखते हुए शेख फरीद ने उसे अमूल्य शिक्षा दी थी , ऐ सीदी , तू उस दिल्ली में जा रहा है जो हिन्दुस्तान के सुल्तानों और अमीरों की राजधानी है , यह नगरी राजनितिक कपटजाल , उखाड़ पछाड़ , षड्यंत्र और हत्याओं से भरी हुई जगह है | इसमें तू साधना करना चाहता है , तेरी मर्जी , लेकिन एक बात याद रखना , दिल्ली जाकर वह की आम जनता का दिल जीतना , पर खबरदार यहाँ के शहजादों अमीरों , खानों मलिकों और शाही मुलाजिमो से हेलमेल मत रखना , जहा तक तुझ से हो सके इनके दरवाजे पर मत जाना और इन्हें अपने दरवाजे पर मत फटकने देना | नही तू भारी मुसीबत में पड़ जाएगा , यदि ये लोग तेरे पास आने जाने लगे तो भी इनसे बातचीत हरगिज मत करना , यदि तू बातचीत भी करे तो राजनितिक मामलो पर तो भूल कर भी चर्चा , इनके साथ किसी षड्यंत्र में हिस्सा मत लेना |
'' एक बात और याद रखना , फकीर तो बस फकीर ही होता है , उसके लिए सोने चांदी के टुकड़ो पर गिरना शोभा नही देता है , ऐ सीदी , याद रख , जब पास में जरूरत से ज्यादा धन इकट्ठा हो जाता है तो दिमाग में घुन लगा देता है | यदि तूने फकीरी लिबास ओढ़ कर सोना चांदी जमा किया तो तू बर्बाद हो जाएगा , यदि तूने मेरी सीख मान ली तो तेरी प्रतिष्ठा बढ़ेगी | यदि तूने दिल्ली के राजनितिक दलदल में कदम भी रखा तो उमे फंस कर तडप -- तडप कर मरेगा तेरी हड्डी तक का पता न लगेगा , फकीरों और दरवेशो को राजपाट के इन झंझटो से जहा तक हो सके दूर ही रहना चाहिए | इसी में उनकी शान है , इसी में उनकी इज्जत है |
सीदी मौला ने सूफी संत का उपदेश सूना और उस पर अमल करने का आश्वासन दिया | वह दो तीन दिन शेख फरीद के आश्रम में रहा | फिर दिल्ली आ पंहुचा | इस माया नगरी के ऐश्वर्य की चकाचौध ने उसे पागल बना दिया | लूट खसोट के दबे संस्कार भड़क उठे और धीरे -- धीरे उसने बड़ी सावधानी से अपना पाखंड जाल पूरी तरह फैला दिया | एक सिद्ध फकीर और महान दानी के रूप में उसकी ख्याति फैलने लगी अर्थात उसके छ्टे हुए चेलो ने फैला दी |
उसके दरवाजे पर बलबनी और खिलजी अमीर हाथ -- बांधे खड़े रहते थे , जब तक बलबन जीवित रहा तब तक उसके दबदबे , आतंक , कुशल प्रशासन मजबूत जासूस व्यवस्था से सहम कर सीदीमौला ने अपने पंख नही निकाले थे | वह फूंक फूंक कर कदम रखता था , लेकिन बलबन के मरने के बाद दयालु सुलतान जलालुद्दीन के शिथिल शासन में उसने अपना खूब रंग जमाया |
बलबन के दरबारी अमीरों को कभी उसने पचास -- पचास हजार तक चांदी के सिक्के भेट किये थे | पर फिर भी वे अपने सशक्त स्वामी के भय से उसकी ओर आँखे उठा कर भी नही देखते थे | लौह पुरुष बलबन का शासन बड़ा दृढ था | उसने चोर डाकू और ठगों को जड़ से मिटा दिया था | लेकिन यह रंगा सियार सीदी मौला फकीरी वेश के कारण उसकी नजर में चढने से बच गया था | बलबन के मरते ही दुर्बल सुलतानो के समय उसका धंधा खूब चमका | वह अनाप -- शनाप खर्च करता था | चोर डाकुओ का सबसे बड़ा सरदार ख़ास राजधानी में सुलतान की नाक के नीचे एक दरवेश के वेश में पूजा जाता था | उसके साथी निडर होकर प्रजा को लुटते रहते थे |
जलालुद्दीन के शासन काल ( 1290 -- 96 )
में सीदी मौला की प्रसिद्दी अपनी चरम सीमा तक पहुच चुकी थी | उसके प्रभाव में अत्यधिक वृद्दि हुई | सुलतान का बड़ा पुत्र खानखाना मौला का बहुत बड़ा भक्त और प्रशंसक था | सीदी उसे अपना पुत्र कहा करता था , सुलतान जलालुद्दीन खिलजी के बड़े -- बड़े मलिक और अमीर वहा आया जाया करते थे | दिल्ली का प्रधान
काजी जलाल काशानी मौला का विश्वस्त साथी था | यह काजी काफी रात गये तक मौला के साथ एकान्त में गुपचुप बाते किया करता था |
सीदी मौला के चेलो द्वारा ठगी , चोरी और डकैती के कारण उसके गुप्त खजाने में सैकड़ो मन सोना चांदी , करोड़ो रूपये और मनो हीरे , मोती जवाहरात इकठ्ठे हो गये थे | यह खजाना सुलतान के शाही खजाने से टक्कर ले रहा था , धीरे -- धीरे इस अथाह खजाने की गर्मी उसके दिल और दिमाग पर असर करने लगी , उसके मन में दिल्ली का खलीफा बनने का विचार आया , वह अपने वैभव से बगदाद के खलीफा को भी पछाड़ देना चाहता था | इस महत्वाकाक्षा की पूर्ति के लिए उसने योजना बनानी आरम्भ कर दी , उसने अपने विश्वस्त साथियो से विचार -- विमर्श किया योजना आगे बढने लगी |
जब सुलतान जलालुद्दीन खिलजी ने जून १1290 ई. में दिल्ली के सिहासन को हस्तगत किया और खिलजी वंश की नीव रखी तो बलबन के समय के बहुत से अमीर , मलिक , जागीरदार इस नये राज्य में दरिद्र हो गये थे | नये सुलतान ने उन के सारे इलाके और जागीरे छीन कर अपने विश्वस्त और वफादार साथियो को बाट दी |
अब बलबनी अमीरों के पास कोई इलाका नही बचा था |, वे दर - दर के भिखारी बन गये थे और सीदी मौला के खानगाह से भोजन पाकर किसी तरह अपने दिन काट रहे थे |
सीदी मौला के लिए इन पदच्युत आमिर और मलिकों से बढ़कर अच्छे सहायक और कहा मिल सकते थे , कयोकी अपनी जागीरे छीन जाने से इन के मन में खिलजियो के प्रति घृणा थी और बदला लेने की ताक में थे | वे सहज में ही सुलतान के खिलाफ षड्यंत्र में फंस गये |
दिल्ली का कोतवाल विरजतन और हतिया पायक बलबनी शासन में बहुत बड़े पहलवान माने जाते थे और इन को लाखो जीतल वेतन मिलता था , लेकिन खिलजियो के राज्य में वे दाने -- दाने को मोहताज हो गये थे | ये लोग सीदी मौला के पास आने -- जाने लगे | पदच्युत अमीर और बहिष्कृत जागीरदार व मलिक तो यहाँ पहले से आते जाते थे | ये लोग और ठिकाना न होने से रात को वही सो जाते थे | सामान्य लोग यही समझते थे की संत के प्रति श्रद्दाभाव वश ये लोग दर्शन करने आते जाते है |
दयालु सुलतान जलालुद्दीन खिलजी के विरुद्द अब बड़ी तेजी से षड्यंत्र शुरू हो गया | सीदी मौला के नेतृत्व में बलबनी मलिक और अमीर , प्रधान काजी जलाल काशानी , दिल्ली का कोतवाल विरजतन और हतिया पायक जैसे लोग सारी -- सारी रात बैठकर सुलतान की हत्या करने की योजना बनाने लगे |
बहुत विचार - विमर्श के बाद योजना का अंतिम रूप इस प्रकार स्थिर हुआ ---
जुमे के दिन जब सुलतान खिलजी घोड़े पर सवार होकर निकले तो फसादियो की तरह उस पर हमला करके उसकी हत्या कर दी जाए | और फिर सीदी मौला को राजगद्दी पर बैठा कर दिल्ली व पूरे हिन्दुस्तान का खलीफा घोषित कर दिया जाए | साथ ही दिवगंत सुलतान नासिरुद्दीन की बेटी से उसकी शादी कर दी जाए | काजी जलाल काशानी को '' काजिखान '' की उपाधि देकर मुलतान की सुबेदारी देना निश्चित हुआ | बलबनी
दरबार के दूसरे अमीर और मलिकों को भी जहा तहा सूबे और इलाके जागीर में देने निश्चित हुए |
इस षड्यंत्र में एक बहुत बकवादी और लालची आदमी भी शामिल था | जब मौला अपने चेलो को हिन्दुस्तान के सूबे बाट रहा था तो इस आदमी को जागीर में अपनी मनपसन्द का इलाका न मिला जिससे वह नाराज हो गया | उसने सुलतान जलालुद्दीन के पास जाकर इस सारे षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर दिया |
सुलतान के कानो में इस आशय की खबरे जासूसों द्वारा पहले पहुच गयी थी की सीदी मौला का निवास स्थान बलबनी दरबार के मलिक और अमीरों का अड्डा बना हुआ है | और कई कुख्यात डाकू वहा आते -- जाते देखे गये है , वह मामले को समझ नही पाया था पर अब सारी बात उसके दिमाग में बैठ गयी |
एक दिन सुलतान जलालुद्दीन स्वंय वेश बदलकर उसके निवास स्थान पर गया वह उसने स्वंय अपनी आँखों से इन षड्यंतकारियों को संदेहजनक स्थिति में घूमते और सीदी मौला से गुपचुप बाते करते देखा था | दूसरे दिन उसने अपने सैनिको को भेजकर इन सब धूर्तो और षड्यंत्रकारियों के साथ सीदी मौला को कैद कर लिया | मौला की गिरफ्तारी से सारी दिल्ली में सनसनी फ़ैल गयी , मौला पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया | अगले दिन दरबार में इन सब षड्यंत्रकारियों की पेशी हुई | जब सुलतान ने अपनी हत्या का षड्यंत्र रचने और विद्रोह करने के विषय में पूछा तो उन्होंने इन आरोपों से साफ़ मना कर दिया | उन दिनों मार मारपीट कर अपराध स्वीकृत कराने का कोई कानून न था | इसीलिए सुलतान उससे सत्य न उगलवा सका |
सब कुछ जानते हुए भी वह उन्हें कानून के अनुसार दंड नही दे सका | ये भयंकर षड्यंत्रकारी और राजद्रोही किसी प्रबल प्रमाण के अभाव में यो ही बेदाग छूटे जा रहे थे |
सुलतान बड़े चक्कर में पड़ गया , वह चाह कर भी इन दुष्टों को कोई दंड नही दे पा रहा था उसे परेशान देखकर कुछ वजीरो ने कहा , '' यदि ये व्यक्ति सचमुच निर्दोष है तो इनकी अग्नि परीक्षा ली जाए ''|
सुलतान को यह सुझाव बहुत पसंद आया , सीदी मौला तथा दूसरे धूर्तो की अग्नि परीक्षा के लिए अगले दिन प्रात: काल का समय निश्चित हुआ |
दिल्ली में यदि सबसे सरल कोई काम है तो भीड़ इकठ्ठा करना | यदि कोई चूहा ही कुचल कर मर जाए या कोई यो ही मौज में आकर चीख पड़े तो एक मिनट में सौ दो सौ आदमी उसके आसपास इकठ्ठे हो जायेगे | फिर यदि किसी साधू -- सन्यासी की करामात की बात हो तो कहना ही क्या लाखो लोग तमाशा देखने के लिए टूट पड़ेगे |
दिल्ली की तरह भारत के अन्य नगरो में भी यह मनोवृति देखने को मिलती है | मजमा लगाने वाले इसी भीड़ की बदौलत पेट पालते रहे है | सीदी मौला के मित्र और शत्रु सभी उसकी अग्नि परीक्षा का द्रश्य देखने के लिए आतुर हो उठे , कुछ लोग कहते थे की '' आग मौला का कुछ नही बिगाड़ सकती , दूसरे कहते थे जरा सुबह
होने दीजिये देखते है क्या होता है |
अग्नि परीक्षा का मसाचार आंधी की तरह दिल्ली तथा आसपास के इलाको में फ़ैल गया , हजारो लोग इस दुर्लभ दृश्य को देखने के लिए भारपुर के मैदान की ओर उमड़ पड़े , जहा बहुत बड़ा अलाव जलाया जा रहा था , मैदान में एक ओर शाही शामियाना लगाया गया , सुलतान , उसके खान , मलिक , अमीर तथा दूसरे दरबारियों के लिए उपयुक्त स्थान बनाये गये |
सुलतान यथा समय अपने दरबारियों के साथ मैदान में पंहुचा , लाखो लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देखने के लिए जमा हो गये थे | सेना का पूरा प्रबन्ध वातावरण में सन्नाटा और बेचैनी थी | बहुत बड़े अलाव से आग की लपटे निकल रही थी कोयले दहक रहे थे , सीदी मौला और उसके चेले जंजीरों से जकड़े हुए एक ओर खड़े धडकते दिल से आग के शोलो की ओर देख रहे थे , सुलतान ने अपराधियों की सच्चाई परखने के लिए
उन्हें आग में डालने के सम्बन्ध में वह बैठे हुए आलिमो , उलेमाओं से फतवा माँगा | अब अग्नि परीक्षा के लिए फतवा देने के सम्बन्ध में आलिमो में विचार विमर्श हुआ और सभी ने सर्वसम्मति से सुलतान को अपना यह निर्णय दिया , '' अग्नि परीक्षा शरा ( मुस्लिम कानून ) के विरुद्द है , अग्नि का गुण जलाना है और जिस प्रदार्थ का गुण जलाना हो , उसके द्वारा झूठ और सच की पहचान नही हो सकती है , फिर इतने लोगो के षड्यंत्र का हाल केवल एक व्यक्ति जानता है , इतने बड़े अपराध में केवल एक व्यक्ति की गवाही शरा की दृष्टि में विशेष महत्व नही रखती है '' |
आलिमो के इस निर्णय को सुलतान ने स्वीकार कर लिया , उसने अग्नि परीक्षा का विचार त्याग दिया | इस षड्यंत्र के नेता काजी काशानी का तबादला बदायु में कर दिया बलबनी खानजादो और मलिकजादो को खोज खोज कर देश के दूर दूर के हिस्सों में इधर -- उधर भिजवा दिया | सुलतान की हत्या के लिए नियुक्त कोतवाल विरजतन और हतियापायक को कठोर दंड दिया , इन सब दुष्टों को दिल्ली से दूर भेजकर सुलतान ने उनके नेता महा धूर्त सीदी मौला की ओर ध्यान दिया |सुलतान जलालुद्दीन ने कुपित दृष्टि से इस धूर्त की और देखा |जो अब तक संत के रूप में उत्तर भारत के लाखो लोगो की श्रद्दा का पात्र बन बैठा था | लेकिन खास दिल्ली में डेरा जमाकर हिन्दुस्तान के सुलतान की हत्या करके स्वंय दिल्ली का खलीफा बनने का सपना देख रहा था | सुलतान ने इस पाखंडी को खूब आड़े हाथो लिया और अंत में दुखी होकर अपने पास बैठे अबुबकर सूफी हैदरी तथा उसके साथियो की ओर देखकर बोला "" ऐ दरवेशो , मेरा और इस मौला का न्याय कर दो ''
अबुबकर हैदरी स्वतंत्र और उग्र विचारों का सूफी था और उसके सब साथी भी ऐसे ही थे | सुलतान की बात सुनकर हैदरी का एक शिष्य बहरी बड़ी निडरता से आगे बढ़ा और मौला के पास पंहुचकर उस्तरे था सुए से उसके शरीर को छेद -- छेद कर छलनी कर दिया |
मौला दर्द के मारे तड़प गया , वह बुरी तरह तड़प रहा था पर उस के प्राण नही निकल रहे थे | यह देखकर सुलतान के पुत्र और अमीर अरकलीखान ने अपने महावत को इशारा किया , महावत हाथी को लेकर आगे बढ़ा , महावत का संकेत पाकर उस सधे हुए जंगी हाथी ने खून से लथपथ बुरी तरह घायल मौला को अपनी सूड में उठा लिया , उसे एक बार उपर हवा में में उछाला , जब वह अधमरा देह नीचे गिरा तो हाथी ने अपने भारी भरकम पैर उस पर टिका दिया और फिर उसे बुरी तरह रौद डाला | सबके सब देखते देखते मौला की हड्डिया चकनाचूर हो गयी , मांस के चीथड़े चीथड़े उड़ गये | धरती खून से रंग गयी , दिल्ली का खलीफा बनने के उसके सपने मिटटी में मिल गये | उस दिन सांयकाल दिल्ली में कालीपीली आंधी आई , उत्तर भारत में गर्मियों के
मौसम में ऐसी काली पीली आंधिया प्राय: आती ही रहती है | लेकिन मौला के चेलो ने सुलतान को बदनाम करने के लिए यह बात फैलानी शुरू कर दी कि मौला की हत्या के कारण यह आंधी आई है |
इस वर्ष पूरी बरसात न होने से अकाल की स्थिति पैदा हो गयी थी , लेकिन दयालु सुलतान ने सरकारी अन्न गोदामों के दरवाजे खोल दिए थे |सुलतान ने सरकारी अन्न गोदामों के दरवाजे खोल दी थे कुटिल लोगो ने इस अकाल की स्थिति को सीदी मौला की हत्या के साथ जोड़कर सुलतान की स्थिति कमजोर करने की कोशिश की लेकिन सुलतान की उदारता , दया और करुणा के सामने सब के मुंह बंद हो गये | सारे राज्य में सुलतान और उसके अमीरों की ओर से स्थान -- स्थान पर भोजनालय खोल दिए गये जहा अकाल पीड़ित निर्धनों को मुफ्त भोजन दिया जाताथा | अगले वर्ष खूब अच्छी वर्षा हुई , इतनी अधिक फसल की संभाले न संभली , लोग अकाल और सीदी मौला की मौत को भूल गये |
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व विचारक
- आभार स . विश्वनाथ
3 टिप्पणियां:
अति उत्तम
आपका शुक्रिया 🙏🙏
शानदार प्रस्तुति
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