बुधवार, 11 सितंबर 2013

आखें खुली तो हैरान हो गए

कई  चुनावों से अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय समाजवादी पार्टी को धर्मनिरपेक्ष दल समझ कर वोट और सपोर्ट करता रहा है लेकिन सपा प्रमुख व उसके नीति नियंतागण उसको पिटवाने व आंसू पोछने का काम करते रहे हैं। समाजवादी पार्टी के गठन से ही रमा शंकर कौशिक जैसे अनेको जिम्मेदार नेता व उनके परिवार के लोग शिलापूजन कराते रहे और धर्म निरपेक्षता का मुखौटा भी लगाये रहे। जातिवादी ताकतें कभी धर्मनिरपेक्ष हो ही नही सकती और आरएसएस ने नियोजित तरीके से अब तो समाजवादी पार्टी के ऊपर कब्ज़ा जमा लिया है।  बकौल बेनी प्रसाद वर्मा की बाबरी मस्जिद को ढहाने की भी जिम्मेदारी मुलायम सिंह के ऊपर थी और उस काम को अपनी सत्ता को मजबूती देने के लिए बखूबी अंजाम दिया।  
      और आज जब आँखें खुली हैं तो यह संगठन हैरान हो गये हैं। जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी, ऑल मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य डॉ. क्यू इलयास, जमात ए इस्लामी हिंद के महासचिव मौलाना नुसरत अली, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत के अध्यक्ष डा. जफरूल इस्लाम, मिली पॉलिटिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. तस्लीम रहमानी समेत कई मुस्लिम नेताओं ने अखिलेश यादव का यह दावा खारिज कर दिया कि दंगे विपक्ष की साजिश हैं और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में विपक्ष सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़कर और कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी कर सरकार को अस्थिर करने का प्रयास करता है लेकिन सत्तारूढ़ दल का यह कर्तव्य है कि वह कानून व्यवस्था बनाए रखे.
                      उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार को बख्रास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा पर काबू पाने में विफल रहे।  
अखिलेश सरकार के आने के बाद उत्तर प्रदेश में लगभग 104 सांप्रदायिक झडपें हो चुकी हैं और जगह-जगह सांप्रदायिक उन्माद के मामले बढ़ गए हैं।  फैजाबाद से लेकर मुजफ्फरनगर तक दंगो में समाजवादी पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं का हाथ साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है।  प्रशासन समाजवादी पार्टी के नेताओं का नाम आते ही चुप्पी साध लेता है।  जिससे स्तिथि बद से बदतर होती जा रही है। 

सुमन 
लो क सं घ र्ष !
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