
अगर शासन और प्रशासन निष्पक्ष व विधि सम्मत तरीके से काम कर रहा होता तो कोई भी बवाल या हिंसा होने का प्रश्न नही उठता है जब प्रशासन के अधिकारीगण समुदाय विशेष की तरफ से उनका उत्साह बढ़ाते हैं तभी सांप्रदायिक हिंसा उनके सहयोग से होती है। इस मामले में प्रदेश की पिछली सरकार का रिकॉर्ड बेहतर था क्यूंकि दंगों के लिए जिला प्रशासन को जिम्मेदार मानने की व्यवस्था थी। जब जिला मजिस्ट्रेट को यह मालूम होता है कि अगर दंगा हुआ तो मेरे खिलाफ कड़ी कार्यवाई होगी तो दंगे नहीं होते हैं। भाजपा उकसाती है और फिर सामान्य जनता में धार्मिक आधार पर उत्तेजना फैलती है। सरकार अगर चाहे तो अपनी सूझ बूझ से उत्तेजना को अपने कार्यों से निष्फल कर भाजपा की समस्त रणनीति को विफल कर सकती है लेकिन ताबड़तोड़ घटनाओ से यह सन्देश जा रहा है कि सरकार व सरकार के अधिकारीयों को उनका संरक्षण प्राप्त है।
यदि अखिलेश सरकार वास्तव में दंगे रोकना चाहती है तो अविलम्ब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था अरुण कुमार तथा डीजीपी देवराज नागर के खिलाफ सख्त करवाई कर प्रशसन को सख्त सन्देश देना चाहिए लेकिन यह दम अखिलेश सरकार में नहीं है। 84 कोसी परिक्रमा के मामले में भी सरकार की मंशा ध्रुवीकरण को ही लेकर थी। अखिलेश सरकार नहीं चाहती है कि प्रदेश में कांग्रेस या धर्म निरपेक्ष दलों का उदय हो और उनकी पकड़ प्रदेश में हो, इसके लिए जातिवादी व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण आवश्यक है जो सपा के सरकार में आने के बाद किया जा रहा है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
सुमन
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