यह अत्यधिक दुःखद है कि नरेन्द्र मोदी यह दावा कर रहे हैं कि जवाहरलाल नेहरू के स्थान पर यदि सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो देश की तस्वीर अलग ही होती। वैसे तो मोदी अपने तर्कों के समर्थन में प्रायः झूठ का सहारा लेते हैं। झूठ बोलने की श्रृंखला में उन्होंने अभी हाल में यह तक कह डाला था कि नेहरू, पटेल की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए थे। पलक झपकते ही मोदी के इस झूठ की पोल खुल गई।
दिनांक 29 अक्टूबर को अहमदाबाद में आयोजित एक समारोह में मोदी ने दावा किया कि यदि पटेल प्रधानमंत्री बनते तो देश की तस्वीर और होती। वैसे तो इतिहास की किसी भी घटना के बारे में किसी भी प्रकार का तर्क दिया जा सकता है। इतिहास में घटित घटनाओं की मीमांसा अनेक प्रकार से हो सकती है। यदि ऐसा होता तो क्या होता, यदि वैसा होता तो क्या होता यह मूलतः व्यर्थ की वैचारिक जुगाली के अतिरिक्त कुछ नहीं है। परन्तु जहां तक नेहरू-पटेल की तुलना का सवाल है, कुछ बुनियादी तथ्यों को याद रखा जाना आवश्यक है।
एक बार महात्मा गांधी से पूछा गया था कि वे किसे आजाद भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहेंगे। इस पर उनका उत्तर था कि मेरे साथियों में दर्जनों ऐसे लोग हैं जिनमें प्रधानमंत्री बनने की काबलियत है परन्तु प्रधानमंत्री पद के लिए मेरी पहली पसंद नेहरू हैं। महात्मा गांधी के अतिरिक्त, देश के करोड़ों नागरिक भी नेहरू को ही प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी के बहुत बड़े हिस्से की पसंद भी नेहरू थे। इसके साथ ही, नेहरू, आजाद भारत के उन नेताओं में से थे जिन्होंने आजादी के आंदोलन के दौरान ही भविष्य का भारत कैसा होगा, इसकी परिकल्पना की थी। आजादी के आंदोलन के दौरान, कांग्रेस ने एक योजना समिति की स्थापना की थी जिसके अध्यक्ष नेहरू थे। इस समिति ने भविष्य के भारत का एक विस्तृत खाका तैयार किया था। इस योजना के अन्र्तगत यह तय किया गया था कि आजाद भारत का स्वरूप समाजवादी होगा। आजाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को विकसित किया जाएगा, जिसके अंतर्गत बुनियादीश्उद्योगों में सार्वजनिक क्षेत्र के अतिरिक्त, निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों की देश के विकास में निर्णायक भूमिका रहेगी। आजाद भारत में नेहरू के प्रयासो के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के प्रथम स्टील प्लांट की स्थापना भिलाई में हुई। इसी तरह, हैवी इलेक्ट्रिकल कारखाना भोपाल में स्थापित हुआ। यह फैसला किया गया कि बिजली उत्पादन के कारखाने, सार्वजनिक क्षेत्र में होंगे। इसके साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र में अनेक बुनियादी उद्योग खोले गए। इससे एक औद्योगिक भारत के विकास के दरवाजे खुल गए।
औद्योगिक क्षेत्र के अलावा, कृषि के विकास के प्रति भी ध्यान दिया गया। बिना सिंचाई साधनों के, कृषि उत्पादन नहीं बढ़ सकता। इस उद्देश्य से बड़े-बड़े बांधों की नींव डाली गई। आजाद देश का प्रथम बड़ा भाखड़ा नंगल बांध पंजाब में सतलुज नदी पर बना। नेहरू जी ने स्वयं उसका उद्घाटन किया। आधुनिक भारत के बड़े कारखानों और बांधों को नेहरू ने आधुनिक मंदिर बताया। देश के औद्योगिकरण के लिये प्रतिभावान वैज्ञानिकों की जरूरत पड़ना स्वाभाविक है। वैज्ञानिक तैयार हो सकें, इस उद्देश्य से आई. आई. टी. की स्थापना की गई।
राजनीतिक दृष्टि से भी भारत एक आधुनिक देश बने इसलिए देश के सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया गया। उस समय देश में साक्षरता का प्रतिशत शायद दस ही था। परन्तु अशिक्षितों को भी सरकार चुनने का अधिकार मिला। नेहरू जी के प्रयासों से ही ऐसा संविधान बना जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों को मूलभूत अधिकार मिले। मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका की नींव डाली गई। सर्वशक्तिमान संसद की स्थापना की गई। पांच वर्ष में आवश्यक रूप से चुनाव होंगे, इसकी संवैधानिक व्यवस्था की गई।
नेहरू जी को इतिहास का गहरा ज्ञान था। उनकी किताबें ‘विश्व इतिहास की झलक’, ‘भारत एक खोज’ आदि इसका प्रतीक हैं। उन्होंने भारतीय इतिहास का गहन अध्ययन किया था। राजनीति में प्रवेश के पहले, लंदन में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों की यात्रा की और देश की जनता की समस्याओं से रूबरू हुए। देश के अतिरिक्त, उन्होंने अनेक बार विदेशों की यात्राएं भी कीं थीं। विश्व के अन्य देशों के आजादी के आंदोलनों का समर्थन, उन देशों में जाकर किया। उन्होंने अनेक बार दुनिया के प्रथम समाजवादी देश सोवियत रूस की यात्रा की। वे सोवियत संघ के प्रशंसकों में से थे। सोवियत क्रांति ने उनके चिंतन को काफी प्रभावित किया। उन्होंने यूरोप में फासीवाद और नाजीवाद के बढ़ते खतरे से भारत के अलावा पूरे विश्व को आगाह किया था। एक बार रोम से गुजरते हुए उन्होंने मुसोलनी से मिलने से इंकार कर दिया था।
आजाद भारत के अलावा, उन्होंने एशियाई देशों की एकता की आवश्यकता प्रतिपादित की थी। इस उद्देश्य से 1946 में उन्होंने दिल्ली में एशियाई देशों का सम्मेलन आयोजित किया था। इस सम्मेलन में शामिल राष्ट्रों में से बहुसंख्यक ऐसे थे जो उस समय आजादी के लिये संघर्षरत थे। इस सम्मेलन का उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था। भारत के आजाद होने के बाद, एशियाई देशों का एक विशाल सम्मेलन इंडोनेशिया के शहर बांडुंग मंे आयोजित हुआ। इस सम्मेलन के आयोजन में नेहरू जी की प्रमुख भूमिका थी। इस सम्मेलन में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई भी शामिल हुए थे। इस सम्मेलन में एशियाई देशों के आपसी संबंधों के लिए जो सिद्धांत तय किए गए थे उन्हें पंचशील का नाम दिया गया था।
कुछ समय बाद, इन देशों को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास नेहरू जी ने किया। इस प्रयास को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नाम दिया गया। इस आंदोलन का मूल उद्देश्य भारत को पूंजीवादी और समाजवादी गुटों से दूर रखना था।
इसके अतिरिक्त, नेहरू जी के कारण ही भारत एक सेक्यूलर देश बन सका। अनेक लोगों का प्रयास था कि भारत हिन्दू राष्ट्र बने। मोदी शायद सोचते हैं कि यदि पटेल प्रधानमंत्री बनते तो भारत हिन्दू राष्ट्र बन जाता। मेरी राय में मोदी की यह सोच गलत है। नेहरू जी की तरह, पटेल की भी सेक्यूलर आदर्शों में अगाध आस्था थी।
अंत मंे यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि पटेल के समर्थन से ही नेहरू प्रधानमंत्री बने थे। पटेल इतने बड़े संगठनकर्ता थे और कांग्रेस पर उनकी इतनी पकड़ थी कि वे कभी भी नेहरू का तख्ता पलट सकते थे। सच पूछा जाए तो पटेल ने नेहरू जी को हमेशा अपना छोटा भाई माना और उन्होंने जीवनभर उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया। मोदी के अलावा, संघ परिवार की ओर से पहले भी ऐसी बातंे की गई हैं कि यदि पटेल प्रधानमंत्री बनते तो देश की शक्ल और होती। पटेल ने देश की सीमाओं को बढ़ाया। भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाया वहीं नेहरू ने भारत को आधुनिक राष्ट्र बनाया। नेहरू-पटेल दोनों ही आज के भारत के महान नेता थे। सबसे बड़ी बात है कि दोनों महात्मा गांधी के चेले थे। मोदी को दोनों की तुलना करने से बाज आना चाहिए। मोदी में बांटने की बड़ी ताकत है। वे देश को बांट रहे हैं, उसके साथ ही वे नेहरू-पटेल के बीच भी विभाजन की रेखा खींच रहे हैं।
एक बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि तथाकथित लौहपुरूष आडवाणी ने 2002 के दंगों के बाद मोदी की सरकार को बर्खास्त नहीं किया। परन्तु यदि उस समय पटेल देश के गृहमंत्री होते तो वे मोदी की सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देते।
-एल.एस. हरदेनिया
दिनांक 29 अक्टूबर को अहमदाबाद में आयोजित एक समारोह में मोदी ने दावा किया कि यदि पटेल प्रधानमंत्री बनते तो देश की तस्वीर और होती। वैसे तो इतिहास की किसी भी घटना के बारे में किसी भी प्रकार का तर्क दिया जा सकता है। इतिहास में घटित घटनाओं की मीमांसा अनेक प्रकार से हो सकती है। यदि ऐसा होता तो क्या होता, यदि वैसा होता तो क्या होता यह मूलतः व्यर्थ की वैचारिक जुगाली के अतिरिक्त कुछ नहीं है। परन्तु जहां तक नेहरू-पटेल की तुलना का सवाल है, कुछ बुनियादी तथ्यों को याद रखा जाना आवश्यक है।
एक बार महात्मा गांधी से पूछा गया था कि वे किसे आजाद भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहेंगे। इस पर उनका उत्तर था कि मेरे साथियों में दर्जनों ऐसे लोग हैं जिनमें प्रधानमंत्री बनने की काबलियत है परन्तु प्रधानमंत्री पद के लिए मेरी पहली पसंद नेहरू हैं। महात्मा गांधी के अतिरिक्त, देश के करोड़ों नागरिक भी नेहरू को ही प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी के बहुत बड़े हिस्से की पसंद भी नेहरू थे। इसके साथ ही, नेहरू, आजाद भारत के उन नेताओं में से थे जिन्होंने आजादी के आंदोलन के दौरान ही भविष्य का भारत कैसा होगा, इसकी परिकल्पना की थी। आजादी के आंदोलन के दौरान, कांग्रेस ने एक योजना समिति की स्थापना की थी जिसके अध्यक्ष नेहरू थे। इस समिति ने भविष्य के भारत का एक विस्तृत खाका तैयार किया था। इस योजना के अन्र्तगत यह तय किया गया था कि आजाद भारत का स्वरूप समाजवादी होगा। आजाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को विकसित किया जाएगा, जिसके अंतर्गत बुनियादीश्उद्योगों में सार्वजनिक क्षेत्र के अतिरिक्त, निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों की देश के विकास में निर्णायक भूमिका रहेगी। आजाद भारत में नेहरू के प्रयासो के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के प्रथम स्टील प्लांट की स्थापना भिलाई में हुई। इसी तरह, हैवी इलेक्ट्रिकल कारखाना भोपाल में स्थापित हुआ। यह फैसला किया गया कि बिजली उत्पादन के कारखाने, सार्वजनिक क्षेत्र में होंगे। इसके साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र में अनेक बुनियादी उद्योग खोले गए। इससे एक औद्योगिक भारत के विकास के दरवाजे खुल गए।
औद्योगिक क्षेत्र के अलावा, कृषि के विकास के प्रति भी ध्यान दिया गया। बिना सिंचाई साधनों के, कृषि उत्पादन नहीं बढ़ सकता। इस उद्देश्य से बड़े-बड़े बांधों की नींव डाली गई। आजाद देश का प्रथम बड़ा भाखड़ा नंगल बांध पंजाब में सतलुज नदी पर बना। नेहरू जी ने स्वयं उसका उद्घाटन किया। आधुनिक भारत के बड़े कारखानों और बांधों को नेहरू ने आधुनिक मंदिर बताया। देश के औद्योगिकरण के लिये प्रतिभावान वैज्ञानिकों की जरूरत पड़ना स्वाभाविक है। वैज्ञानिक तैयार हो सकें, इस उद्देश्य से आई. आई. टी. की स्थापना की गई।
राजनीतिक दृष्टि से भी भारत एक आधुनिक देश बने इसलिए देश के सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया गया। उस समय देश में साक्षरता का प्रतिशत शायद दस ही था। परन्तु अशिक्षितों को भी सरकार चुनने का अधिकार मिला। नेहरू जी के प्रयासों से ही ऐसा संविधान बना जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों को मूलभूत अधिकार मिले। मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका की नींव डाली गई। सर्वशक्तिमान संसद की स्थापना की गई। पांच वर्ष में आवश्यक रूप से चुनाव होंगे, इसकी संवैधानिक व्यवस्था की गई।
नेहरू जी को इतिहास का गहरा ज्ञान था। उनकी किताबें ‘विश्व इतिहास की झलक’, ‘भारत एक खोज’ आदि इसका प्रतीक हैं। उन्होंने भारतीय इतिहास का गहन अध्ययन किया था। राजनीति में प्रवेश के पहले, लंदन में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों की यात्रा की और देश की जनता की समस्याओं से रूबरू हुए। देश के अतिरिक्त, उन्होंने अनेक बार विदेशों की यात्राएं भी कीं थीं। विश्व के अन्य देशों के आजादी के आंदोलनों का समर्थन, उन देशों में जाकर किया। उन्होंने अनेक बार दुनिया के प्रथम समाजवादी देश सोवियत रूस की यात्रा की। वे सोवियत संघ के प्रशंसकों में से थे। सोवियत क्रांति ने उनके चिंतन को काफी प्रभावित किया। उन्होंने यूरोप में फासीवाद और नाजीवाद के बढ़ते खतरे से भारत के अलावा पूरे विश्व को आगाह किया था। एक बार रोम से गुजरते हुए उन्होंने मुसोलनी से मिलने से इंकार कर दिया था।
आजाद भारत के अलावा, उन्होंने एशियाई देशों की एकता की आवश्यकता प्रतिपादित की थी। इस उद्देश्य से 1946 में उन्होंने दिल्ली में एशियाई देशों का सम्मेलन आयोजित किया था। इस सम्मेलन में शामिल राष्ट्रों में से बहुसंख्यक ऐसे थे जो उस समय आजादी के लिये संघर्षरत थे। इस सम्मेलन का उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था। भारत के आजाद होने के बाद, एशियाई देशों का एक विशाल सम्मेलन इंडोनेशिया के शहर बांडुंग मंे आयोजित हुआ। इस सम्मेलन के आयोजन में नेहरू जी की प्रमुख भूमिका थी। इस सम्मेलन में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई भी शामिल हुए थे। इस सम्मेलन में एशियाई देशों के आपसी संबंधों के लिए जो सिद्धांत तय किए गए थे उन्हें पंचशील का नाम दिया गया था।
कुछ समय बाद, इन देशों को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास नेहरू जी ने किया। इस प्रयास को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नाम दिया गया। इस आंदोलन का मूल उद्देश्य भारत को पूंजीवादी और समाजवादी गुटों से दूर रखना था।
इसके अतिरिक्त, नेहरू जी के कारण ही भारत एक सेक्यूलर देश बन सका। अनेक लोगों का प्रयास था कि भारत हिन्दू राष्ट्र बने। मोदी शायद सोचते हैं कि यदि पटेल प्रधानमंत्री बनते तो भारत हिन्दू राष्ट्र बन जाता। मेरी राय में मोदी की यह सोच गलत है। नेहरू जी की तरह, पटेल की भी सेक्यूलर आदर्शों में अगाध आस्था थी।
अंत मंे यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि पटेल के समर्थन से ही नेहरू प्रधानमंत्री बने थे। पटेल इतने बड़े संगठनकर्ता थे और कांग्रेस पर उनकी इतनी पकड़ थी कि वे कभी भी नेहरू का तख्ता पलट सकते थे। सच पूछा जाए तो पटेल ने नेहरू जी को हमेशा अपना छोटा भाई माना और उन्होंने जीवनभर उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया। मोदी के अलावा, संघ परिवार की ओर से पहले भी ऐसी बातंे की गई हैं कि यदि पटेल प्रधानमंत्री बनते तो देश की शक्ल और होती। पटेल ने देश की सीमाओं को बढ़ाया। भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाया वहीं नेहरू ने भारत को आधुनिक राष्ट्र बनाया। नेहरू-पटेल दोनों ही आज के भारत के महान नेता थे। सबसे बड़ी बात है कि दोनों महात्मा गांधी के चेले थे। मोदी को दोनों की तुलना करने से बाज आना चाहिए। मोदी में बांटने की बड़ी ताकत है। वे देश को बांट रहे हैं, उसके साथ ही वे नेहरू-पटेल के बीच भी विभाजन की रेखा खींच रहे हैं।
एक बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि तथाकथित लौहपुरूष आडवाणी ने 2002 के दंगों के बाद मोदी की सरकार को बर्खास्त नहीं किया। परन्तु यदि उस समय पटेल देश के गृहमंत्री होते तो वे मोदी की सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देते।
-एल.एस. हरदेनिया
3 टिप्पणियां:
पटेल देश के गृहमंत्री होते तो वे मोदी की सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देते। ,,,
दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ ।।
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RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
पटेल देश के गृहमंत्री होते तो वे मोदी की सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देते। ,,,
दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ ।।
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RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
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