गत 26 दिसंबर 2013 को गुजरात की एक मेट्रोपोलिटन अदालत ने नरेन्द्र मोदी और 59 अन्य आरोपियों को गुजरात कत्लेआम में उनकी भूमिका के आरोप से मुक्त कर दिया। अदालत ने एसआईटी की रिपोर्ट को पूर्णतः स्वीकार कर लिया और मोदी और उनकी सरकार की कत्लेआम में किसी भी प्रकार की भूमिका से इंकार किया। अदालत ने नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध सन् 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के मामले मे मुकदमा चलाए जाने की मांग करने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया। इस निर्णय पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं हुईं। श्रीमती जाफरी स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सकीं और रो दीं परंतु उन्होंने अपनी कानूनी लड़ाई आगे भी जारी रखने का संकल्प दोहराया। उनका आरोप है कि मोदी ने मंत्रियों, अधिकारियों व पुलिस के साथ मिलीभगत कर, गुजरात में देश को हिला देने वाली हिंसा को भड़काया और उसे जानबूझकर नियंत्रित नहीं किया। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उन्हें इस निर्णय से राहत मिली है। उन्होंने अपने ब्लाग पर लिखा कि हिंसा ने उन्हें गहरे तक हिला दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि दंगों से उन्हें ‘व्यथा, दुःख, कष्ट, विषाद, वेदना व पीड़ा’ हुई। गुजरात की सामाजिक कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई ने राज्य की न्याय व्यवस्था की बदहाली का जिक्र करते हुए कहा कि ‘‘गुजरात की किसी भी अदालत से मोदी को क्लीन चिट के अलावा कुछ भी मिलेगा, ऐसी अपेक्षा करना मूर्खतापूर्ण है’’। उनके अनुसार, ‘‘गुजरात में हर व्यक्ति मोदी के प्रतिशोध से डरता है’’।
गुजरात में जो भयावह सांप्रदायिक हिंसा हुई, उसमें राज्यतंत्र और हिंसा करने वालों के बीच मिलीभगत स्पष्ट देखी जा सकती थी। दंगों के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए पूरी कर्मठता और प्रतिबद्धता से काम किया। नतीजे में कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई गुजरात से बाहर की अदालतों में करवाई गई क्योंकि गुजरात में व्याप्त आतंक के माहौल में न्याय पाना मुश्किल था। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर एसआईटी का गठन किया गया और इसने न्यायालय की निगरानी में अपना काम किया। परंतु एसआईटी की जांच पूर्णतः निष्पक्ष व ईमानदार प्रतीत नहीं होती। यह दिलचस्प है कि जहां एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दे दी वहीं न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमित्र राजू रामचन्द्रन ने कहा कि रपट में कई ऐसे तथ्यों का जिक्र है जिनके आधार पर मोदी पर विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज किए जा सकते हैं। निर्णय के सार्वजनिक होने के तुरंत बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़े और मोदी ने ट्वीट किया ‘‘सत्यमेव जयते’’। ऐसा लगता है कि सत्य भी कई हैं और आपका सत्य क्या है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप लाईन के किस ओर हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कम से कम अभी के लिए, ‘मोदी का सच’ जीत गया है और जकिया जाफरी व उनके जैसे गुजरात दंगांे के हजारों पीडि़तों का सच हार गया है।
एक ही घटना के विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग अर्थ होते हैं। भाजपा के प्रवक्ता निर्णय का जमकर बचाव कर रहे हैं। तीस्ता सीतलवाड़ (सिटीजन फाॅर जस्टिस फाॅर पीस) द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में याचिका का विस्तृत विवरण दिया गया है। सीतलवाड़ लंबे समय से जकिया जाफरी की मदद कर रही हैं। श्रीमती जाफरी के वकीलों ने अदालत में जोर देकर कहा कि राज्य सरकार ने जानबूझकर उन संकेतों को नजरअंदाज किया, जिनसे यह जाहिर होता था कि राज्य में बड़े पैमाने पर दंगे करवाने की तैयारी हो रही है। उन्होंने फैक्स संदेशों और टेलीफोन काल्स के रिकार्ड प्रस्तुत किए जिनसे यह पता लगता है कि सरकार को यह ज्ञात था कि अयोध्या से लौट रहे कारसेवक गंुडागर्दी और अभद्र व्यवहार कर रहे हैं और उत्तेजक नारे लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री, जो अब हिंसा से ‘दुःखी व व्यथित’ होने की बात कर रहे हैं, का उस समय एक अलग ही रूप था। वे ट्रेन में आग लगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों, पाकिस्तान की आईएसआई और स्थानीय मुसलमानों को दोषी ठहरा रहे थे। उन्होंने इस घटनाक्रम में विहिप को शामिल कर आग को और हवा दी। कारसेवकों के जले हुए शवों का पोस्टमार्टम खुले में किया गया और इस दौरान आरएसएस व विहिप के कार्यकर्ता उपस्थित थे।
मोदी ने स्वयं भी ‘हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है’ जैसे भड़काऊ बयान देकर हालात और बिगाड़े। अब राजनैतिक कारणों से यह दावा किया जा रहा है कि मोदी ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था। शीर्ष अधिकारियों की एक बैठक में मोदी ने उन्हें यह निर्देश दिया कि यदि गोधरा पर हिंदुओं की प्रतिक्रिया होती है तो उसे रोकने का प्रयास न करें। हरेन्द्र पण्ड्या, जिन्होंने यह बात एक जनन्यायाधिकरण के समक्ष कही थी, की बाद में हत्या हो गई। एक पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने भी यही बात कही। सेना की तैनाती देरी से की गई और उचित तरीके से नहीं हुई। कई गंभीर रूप से दंगाग्रस्त इलाकों में सेना भेजी ही नहीं गई। मोदी ने यह कहा कि ‘मुसलमानों को सबक सिखाया जा रहा है।’
विभिन्न स्टिंग आपरेशनांे से भी साम्प्रदायिक ताकतों की भूमिका और राज्यतंत्र की मिलीभगत सामने आई। मोदी सरकार में मंत्री डाक्टर माया कोडनानी और विहिप के बाबू बजरंगी इन दिनों अपने अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा भोग रहे हैं। पुनर्वास के काम में भी लेतलाली हुई और राज्य सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए बेतुके तर्क दिए जिनमें से एक यह था कि राहत शिविर बच्चे पैदा करने की फैक्ट्रियां बन गए हैं। गोधरा ट्रेन आगजनी को तो आतंकवाद बताया गया परंतु उसके बाद हुए कत्लेआम को मात्र सामान्य हिंसा करार दिया गया। आज भी जुहापुरा जैसे इलाकों में हिंसा पीडि़त नारकीय परिस्थितियों मंे जी रहे हैं। अनवरत प्रचार के जरिए गुजरात के इन अप्रिय सत्यों को छुपाने की कोशिश हो रही है। सरकार की नीतियों की किसी भी आलोचना को गुजरात की अस्मिता पर आक्रमण बताया जा रहा है। बहुसंख्यक समुदाय को यह विश्वास दिला दिया गया है कि मुट्ठीभर अल्पसंख्यक, उसके लिए बड़ा खतरा हैं।
कई अन्य आरोपियों को भी निचली अदालतों से बरी कर दिया गया था परंतु ऊंची अदालतों ने उन्हें उनके किए की सजा दी। ऐसा ही माया कोडनानी के मामले में भी हुआ। गुजरात में इशरत जहां और उनके जैसे कई अन्य लोगों को फर्जी मुठभेड़ांे में मार गिराया गया। मोदी के एजेण्डे को कार्यरूप में परिणित करने के लिए राज्य के कई शीर्ष पुलिस अधिकारी सलाखों के पीछे हैं। इनमें बंजारा व अन्य कई शामिल हैं। साराभाई ने गुजरात में न्याय पाने की संभावना के बारे में जो कुछ कहा है वह सच प्रतीत होता है। गुजरात में दरअसल दो सत्यों के बीच युद्ध चल रहा है। एक ओर है मोदी का सत्य और दूसरी ओर जकिया जाफरी का। मोदी को इस पूरी त्रासदी से बहुत लाभ मिला और डगमगा रही भाजपा राज्य मंे मजबूती से खड़ी हो गई। अत्यंत होशियारी से तैयार किए गए एक प्रचार अभियान के जरिए मोदी को विकास पुरूष का दर्जा देने की कोशिश हुई और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। जकिया जाफरी और उनके जैसे सैंकड़ों पीडि़तों ने अपने प्रियजन खोये, अपने घरबार खोए और अब भी वे उन भयावाह दिनों की काली छाया से मुक्त नहीं हो सके हैं।
सच की जीत होगी। यह न्याय के लिए युद्ध की शुरूआत है। श्रीमती जाफरी और सामाजिक कार्यकर्ता केवल व्यक्तिगत दुःख के कारण नहीं लड़ रहे। वे न्याय के लिए लड़ रहे हैं। निःसंदेह सच की जीत होगी।
-राम पुनियानी
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