अन्ना हजारे का जब जनलोकपाल बनाने का आन्दोलन चल रहा था तभी हमारी पत्रिका लोक संघर्ष में छपा था कि यह पूँजीवाद को बचाने का सबसे बड़ा आन्दोलन है। यह डॉ . प्रेम सिंह के आलेख भ्रष्टाचार विरोध, विभ्रम और यथार्थ, में भी प्रकाशित हुआ था। अन्ना का आन्दोलन कारपोरेट, एन.जी.ओ. व मीडिया द्वारा प्रोपोगेट (समर्थित) आन्दोलन था। भ्रष्टाचार, पूँजीवाद का आवश्यक उत्पाद है। लोकपाल बन जाने या न बनने से भ्रष्टाचार के ऊपर कोई असर नहीं होने वाला है। जिस तरह से भारतीय संविधान में समाजवाद शब्द जोड़ देने के बाद भी देश समाजवादी नहीं हो गया। टीम अन्ना का आन्दोलन चलाने में मुखौटा लगाकर आर.एस.एस. के लोग एक उन्माद जनता में पैदा कर रहे थे कि लोकपाल बन जाने के बाद भ्रष्टाचार छू मंतर हो जाएगा और सारे भ्रष्टाचारी दण्डित हो जाएँगे। टीम अन्ना के कई सदस्य भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार भी होने जा रहे हैं। टीम अन्ना के अधिकांश सदस्य कहीं न कहीं उग्र हिन्दुत्व के पैरोकार, आर.एस.एस. के समर्थक हैं। अन्ना जब बोलते हैं तो कहीं न कहीं आर.एस.एस. के या एन.डी.ए. के घटक दलों की पैरोकारी करते हुए दिखाई देते हैं। उसी टीम अन्ना के सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी पार्टी का गठन किया और देश भर के एन.जी.ओ. संचालकों की मदद से कारपोरेट, आर.एन.आई. और मीडिया की मदद से एक छद्म भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम द्वारा जनता को सम्मोहित कर 28 विधायक दिल्ली विधानसभा में जिता लिए और फिर सम्मोहन का दूसरा दौर चला, जनता का जनादेश प्राप्त हुआ और बहुत चालाकी से अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए। मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनने के लिए सदन में बहुमत की जरूरत होती है लेकिन बहुमत की तरफ ध्यान न देकर सहयोगी पार्टी कांग्रेस के ऊपर ही आरोप प्रत्योराप शुरू कर दिए क्योंकि कांग्रेस ने इनके झूठे वादों की पोल खोलने के लिए दिल्ली के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर को बिना शर्त समर्थन पत्र देकर सरकार बनवा दी थी। फिर पोल खुलनी शुरू हुई। सुरक्षा नहीं लेंगे, सुरक्षा ली। मकान नहीं लेंगे, मकान लिया। गाड़ी नहीं लेंगे, गाड़ी लिया। फिर 6 महीने में चुनाव घोषणा पत्र को लागू करने के लिए दिल्ली की निजी बिजली कम्पनियों को 326 करोड़ रुपये दे दिए और फिर छुपी हुई शर्तों का खेल शुरू हुआ। जिससे दिल्ली की जनता को न बिजली में राहत मिली, न पानी में और जब कलई खुलने लगी तो जन लोकपाल विधेयक के सवाल पर बगैर संवैधानिक प्रक्रिया अपनाए विधानसभा में बिल पेश करने लगे और मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर 49वें दिन भाग खड़े हुए।
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है, इसलिए बहुत सारे बिल विधानसभा में पेश करने से पहले लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के पास स्वीकृत के लिए भेजने की जरूरत होती है। यह बात अरविन्द केजरीवाल भली भाँति जानते थे। इसीलिए दिल्ली का वित्त विधेयक पेश करने का मामला हो या मुख्य सचिव को हटाने का, दोनों मामलों में लेफ्टीनेंट गवर्नर की अनुमति ली थी और जब जन लोकपाल विधेयक पेश करने की बात आई तो वे टी0वी0 चैनल से कह रहे थे कि ले0 गवर्नर की स्वीकृत की आवश्यकता नहीं है। झूठ के सहारे ज्यादा दिन तक बात बनाई नहीं जा सकती है।
केजरीवाल व उनकी टीम आरक्षण विरोधी, दलित पिछड़ा, अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता वाले लोगों का एक जमावड़ा है और कारपोरेट सेक्टर की नई उपज है। फिक्की के सम्मेलन में केजरीवाल ने कहा कि सरकारी नौकरियाँ सीमित हैं। नौकरी तो आप उद्योगपति लोग देते हैं, हम ईमानदार उद्योगपतियों का हमेशा साथ देंगे, वामपंथी पार्टियों ने टाटा, बिरला, बजाज जैसे औद्योगिक घरानों को खलनायक के रूप में प्रस्तुत कर जनता को गुमराह किया है जिसका नतीजा यह हुआ है कि हड़ताल, हड़ताल, हड़ताल और हड़ताल। जिससे बंगाल से उद्योग बाहर चले गए। बंगाल की बदहाली के लिए वाम का, औद्योगिक घराना विरोधी रुख जिम्मेदार है। देखिए किस तरह से कारपोरेट सेक्टर को एक नया सेवक मिला।
अरविन्द केजरीवाल व यूरोपीय देशों की संस्था पनोश और राकफेलर ब्रदर्स की फण्डिंग की उपज हैं। राकफेलर ब्रदर्स नामक संस्था रेमन से पुरस्कार के लिए फोर्ड फाउण्डेशन के साथ फण्डिग भी करती है। सी.एन.एन., आई.बी.एन. व आई.बी.एन.-7 के प्रधान सम्पादक राजदीप देसाई पापुलेशन काउंसिल नामक संस्था के सदस्य हैं। जिसकी फण्डिग भी राकफेलर ब्रदर्स की संस्था ही करती है। इन्हीं लोगों ने, अरविन्द केजरीवाल ईमानदार बाकी सब बेईमान की, प्रतिमा गढ़ी। 21 दिसम्बर 2013 को इण्डियन आॅफ द ईयर का पुरस्कार भी अरविन्द केजरीवाल को दिया गया है। यह पुरस्कार जी.एम.आर. कम्पनी की ओर से था। जी.एम.आर. के स्वामित्व वाली कम्पनी डायल ने दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय इंदिरा गांधी हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यू.पी.ए. सरकार से 100 रुपये प्रतिएकड़ जमीन हासिल किया था। भारत के सी.ए.जी. ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश रिपोर्ट में कहा कि उक्त कम्पनी को सस्ते दर पर जमीन देने के कारण सरकारी खजाने को 1.63 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। अमरीकी-यूरोपीय फण्डिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता, अमरीकी व सी.आई.ए.की नीति को कल्चर कोल्ड वार कहा जाता है। इसी कल्चर कोल्डवार के नायक हैं अरविन्द केजरीवाल।
कुछ वाम ब्लाक के लोग भी अपने जीवन के अंतिम समय में अरविन्द केजरीवाल के फैन हो गए, उनको लगता है कि केजरीवाल जनता का नायक हो सकता है असलियत इसके विपरीत है। इसीलिए इस्तीफा देने के पूर्व एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने का ड्रामा भी हुआ। जिससे लोग दिग्भ्रमित रहें कि कारपोरेट मसीहाओं के खिलाफ कारपोरेट सेक्टर से ही एक क्रान्तिकारी व्यक्तित्व पैदा हुआ है। आर.एन.आई. अपने लाभ के लिए आम आदमी पार्टी को चंदा देकर मजबूत करते हैं। इसलिए समय की आवश्यकता है कि छद्म क्रान्तिकारियों और झूठ के सौदागरों से सावधान रहें। इनसे जनता का कोई भी भला नहीं होने वाला है। एन.जी.ओ. विहीन जनता के संघर्ष ही जनता का भलाकर सकते हैं। एन.जी.ओ. के जन संघर्ष अंततोगत्वा साम्राज्यवाद की गुलामी की तरफ ही बढ़ा सकते हैं। एन.जी.ओ. के लोगों द्वारा जब भी कोई विचार या कोई राय व्यक्त करने की बात आएगी तो उसमें वामपंथ विरोध अवश्य शामिल होगा, चाहे वहाँ पर इसकी आवश्यकता हो या न हो। बी.जे.पी. व आम आदमी पार्टी की जो बयानबाजियाँ आपस में होती हैं वे सिर्फ लोगों का ध्यान हटाने के लिए हैं। अन्यथा वैचारिक स्तर पर दोनो पार्टियाँ बड़े भाई व छोटे भाई की भूमिका में हंै। अंत में इतना ही कहना काफी है कि हम ईमानदार बाकी सब बेईमान यह सिद्ध करता है कि अपने मुँह मिया मिट्ठू बनने पर कोई टैक्स नहीं लगता है।
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है, इसलिए बहुत सारे बिल विधानसभा में पेश करने से पहले लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के पास स्वीकृत के लिए भेजने की जरूरत होती है। यह बात अरविन्द केजरीवाल भली भाँति जानते थे। इसीलिए दिल्ली का वित्त विधेयक पेश करने का मामला हो या मुख्य सचिव को हटाने का, दोनों मामलों में लेफ्टीनेंट गवर्नर की अनुमति ली थी और जब जन लोकपाल विधेयक पेश करने की बात आई तो वे टी0वी0 चैनल से कह रहे थे कि ले0 गवर्नर की स्वीकृत की आवश्यकता नहीं है। झूठ के सहारे ज्यादा दिन तक बात बनाई नहीं जा सकती है।
केजरीवाल व उनकी टीम आरक्षण विरोधी, दलित पिछड़ा, अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता वाले लोगों का एक जमावड़ा है और कारपोरेट सेक्टर की नई उपज है। फिक्की के सम्मेलन में केजरीवाल ने कहा कि सरकारी नौकरियाँ सीमित हैं। नौकरी तो आप उद्योगपति लोग देते हैं, हम ईमानदार उद्योगपतियों का हमेशा साथ देंगे, वामपंथी पार्टियों ने टाटा, बिरला, बजाज जैसे औद्योगिक घरानों को खलनायक के रूप में प्रस्तुत कर जनता को गुमराह किया है जिसका नतीजा यह हुआ है कि हड़ताल, हड़ताल, हड़ताल और हड़ताल। जिससे बंगाल से उद्योग बाहर चले गए। बंगाल की बदहाली के लिए वाम का, औद्योगिक घराना विरोधी रुख जिम्मेदार है। देखिए किस तरह से कारपोरेट सेक्टर को एक नया सेवक मिला।
अरविन्द केजरीवाल व यूरोपीय देशों की संस्था पनोश और राकफेलर ब्रदर्स की फण्डिंग की उपज हैं। राकफेलर ब्रदर्स नामक संस्था रेमन से पुरस्कार के लिए फोर्ड फाउण्डेशन के साथ फण्डिग भी करती है। सी.एन.एन., आई.बी.एन. व आई.बी.एन.-7 के प्रधान सम्पादक राजदीप देसाई पापुलेशन काउंसिल नामक संस्था के सदस्य हैं। जिसकी फण्डिग भी राकफेलर ब्रदर्स की संस्था ही करती है। इन्हीं लोगों ने, अरविन्द केजरीवाल ईमानदार बाकी सब बेईमान की, प्रतिमा गढ़ी। 21 दिसम्बर 2013 को इण्डियन आॅफ द ईयर का पुरस्कार भी अरविन्द केजरीवाल को दिया गया है। यह पुरस्कार जी.एम.आर. कम्पनी की ओर से था। जी.एम.आर. के स्वामित्व वाली कम्पनी डायल ने दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय इंदिरा गांधी हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यू.पी.ए. सरकार से 100 रुपये प्रतिएकड़ जमीन हासिल किया था। भारत के सी.ए.जी. ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश रिपोर्ट में कहा कि उक्त कम्पनी को सस्ते दर पर जमीन देने के कारण सरकारी खजाने को 1.63 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। अमरीकी-यूरोपीय फण्डिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता, अमरीकी व सी.आई.ए.की नीति को कल्चर कोल्ड वार कहा जाता है। इसी कल्चर कोल्डवार के नायक हैं अरविन्द केजरीवाल।
कुछ वाम ब्लाक के लोग भी अपने जीवन के अंतिम समय में अरविन्द केजरीवाल के फैन हो गए, उनको लगता है कि केजरीवाल जनता का नायक हो सकता है असलियत इसके विपरीत है। इसीलिए इस्तीफा देने के पूर्व एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने का ड्रामा भी हुआ। जिससे लोग दिग्भ्रमित रहें कि कारपोरेट मसीहाओं के खिलाफ कारपोरेट सेक्टर से ही एक क्रान्तिकारी व्यक्तित्व पैदा हुआ है। आर.एन.आई. अपने लाभ के लिए आम आदमी पार्टी को चंदा देकर मजबूत करते हैं। इसलिए समय की आवश्यकता है कि छद्म क्रान्तिकारियों और झूठ के सौदागरों से सावधान रहें। इनसे जनता का कोई भी भला नहीं होने वाला है। एन.जी.ओ. विहीन जनता के संघर्ष ही जनता का भलाकर सकते हैं। एन.जी.ओ. के जन संघर्ष अंततोगत्वा साम्राज्यवाद की गुलामी की तरफ ही बढ़ा सकते हैं। एन.जी.ओ. के लोगों द्वारा जब भी कोई विचार या कोई राय व्यक्त करने की बात आएगी तो उसमें वामपंथ विरोध अवश्य शामिल होगा, चाहे वहाँ पर इसकी आवश्यकता हो या न हो। बी.जे.पी. व आम आदमी पार्टी की जो बयानबाजियाँ आपस में होती हैं वे सिर्फ लोगों का ध्यान हटाने के लिए हैं। अन्यथा वैचारिक स्तर पर दोनो पार्टियाँ बड़े भाई व छोटे भाई की भूमिका में हंै। अंत में इतना ही कहना काफी है कि हम ईमानदार बाकी सब बेईमान यह सिद्ध करता है कि अपने मुँह मिया मिट्ठू बनने पर कोई टैक्स नहीं लगता है।
-मुहम्मद शुऐब
-रणधीर सिंह ‘सुमन’
लोकसंघर्ष पत्रिका के मार्च २०१४ में प्रकाशित
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (16-03-2014) को "रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1553) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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