संघ परिवार के बारे में
यह जगजाहिर है कि वह अपने उद्देश्यों को हासिल करने के लिए किसी भी
झूठ-फरेब और विषैले प्रचार का सहारा ले सकता है। इस बार वह जाति का कार्ड
सिद्धांत नहीं, सुविधा और अवसर के अनुसार खेल रहा है। बहुत समय नहीं गुजरा,
जब भाजपा ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने के लिए वी.पी. सिंह की
सरकार गिरा दी थी। इसका कारण यह था कि सवर्ण मानसिकता वाले बंधु सदियों से
पिछड़े वर्गों के साथ न्याय नहीं चाहते थे। एक संपूर्ण-समग्र हिंदू समाज के
नाम पर वह पिछड़ी जातियों को यथास्थिति के दलदल में रखना चाहते थे।
विभिन्न पिछड़े वर्गों के साथ सामाजिक न्याय की प्रक्रिया अनपलट संगठन हो गई, तो मजबूरी में भाजपा को खामोश रहना पड़ा।
लेकिन उनके दिल नहीं बदले। जैसे आर.एस.एस. के वरिष्ठ पदाधिकारी, सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, ‘‘जाति के नाम पर वोट की ताकत हासिल करने वाले नेता इस बार सत्ता में आए तो हिंदुओं को और दीनहीन और उत्पीड़न का शिकार बना कर छोड़ेंगे। इनको वोट का मतलब है, देशद्रोहियों को समर्थन।’’ अर्थात, जाति के नाम पर वोट माँगना देशद्रोह की श्रेणी में आता है।
जब फ्री स्टाइल कुश्ती की तरह चुनाव लड़ा जा रहा हो और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, नरेंद्र मोदी को फ्री स्टाइल में बोलने की आदत हो, तो देखिए क्या अनर्थ हो जाता है। कृष्ण गोपाल ने जिसे वर्जित बताया, मोदी ने वही काम कर डाला। कांग्रेस ने और खुद राहुल गांधी ने स्पष्ट किया कि पार्टी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार क्यों नहीं घोषित कर रही। लेकिन मोदी ने कुछ और कारण ढूँढ निकाला, क्योंकि उन्हें जाति का कार्ड खेलना था। उन्होंने कहा, ‘‘राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं बने क्योंकि उन्हें समाज के एक निम्न वर्ग से आए व्यक्ति के हाथों पराजित होना पसंद नहीं था। कांग्रेस मानती है कि निम्न जाति के जिस व्यक्ति ने चाय बेची हो, जिसकी माँ घरेलू नौकरानी रही हो, उससे लड़ना ठीक नहीं।’’
जिस संगठन का देश की आजादी की लड़ाई से ही दूर-दराज का वास्ता न रहा हो, उसके नेता कांग्रेस की गौरवशाली परंपरा के ज्ञान से वंचित हैं तो इसमें उनका दोष नहीं। कांग्रेस में रह कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए तथाकथित निम्न जाति के लोगों की सूची बहुत लंबी है। उनकी जाति का उल्लेख उन महापुरुषों का अनादर होगा। ऐसे लोगों की भी सूची बहुत लंबी है, जिन्होंने अपना सब कुछ त्याग कर आजादी की लड़ाई का रास्ता चुना। इन्हीं में से एक था नेहरू परिवार। अपने समय के सबसे
धनी वकीलों में एक, मोतीलाल नेहरू ने वकालत छोड़ दी थी। जवाहर लाल नेहरू ने आनंद भवन के आनंद को त्याग कर गरीबी में संघर्ष का मार्ग चुना था। रोटी चलाने के लिए आनंद भवन के बर्तन-भाड़े तक बेचे गए थे। नेहरू के निधन के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी दिल्ली में बेघर हो गई थीं। तब कांग्रेस के बड़े नेताओं ने लाल बहादुर शास्त्री से कह कर शोक संतप्त इंदिरा को मंत्री बनवाया था, ताकि रहने का ठिकाना हो जाए। बाद में इंदिरा गांधी ने आनंद भवन ही राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इसलिए नरेंद्र मोदी के मुँह से अपनी जाति और गरीबी का उल्लेख शोभा नहीं देता, और भी अशोभनीय है कि मोदी राजनैतिक लाभ के लिए अपनी माँ का जिक्र कर रहे हैं। नारी पूज्य होती है। किसी व्यक्ति की माँ उसके लिए विशेष पूज्य होती है। माँ तो बहुत प्रतिकूल स्थितियों में भी बच्चे के मुँह में निवाला डालती है। मोदी की माँ की भी कुछ प्रतिकूल स्थितियाँ रहीं होंगी। उन्होंने माँ के धर्म का निर्वाह किया। अब चुनावी मंच से बार-बार उस परम पुनीत धर्म का उल्लेख करने वालों के बारे में क्या कहा जाए!
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
लेकिन उनके दिल नहीं बदले। जैसे आर.एस.एस. के वरिष्ठ पदाधिकारी, सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, ‘‘जाति के नाम पर वोट की ताकत हासिल करने वाले नेता इस बार सत्ता में आए तो हिंदुओं को और दीनहीन और उत्पीड़न का शिकार बना कर छोड़ेंगे। इनको वोट का मतलब है, देशद्रोहियों को समर्थन।’’ अर्थात, जाति के नाम पर वोट माँगना देशद्रोह की श्रेणी में आता है।
जब फ्री स्टाइल कुश्ती की तरह चुनाव लड़ा जा रहा हो और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, नरेंद्र मोदी को फ्री स्टाइल में बोलने की आदत हो, तो देखिए क्या अनर्थ हो जाता है। कृष्ण गोपाल ने जिसे वर्जित बताया, मोदी ने वही काम कर डाला। कांग्रेस ने और खुद राहुल गांधी ने स्पष्ट किया कि पार्टी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार क्यों नहीं घोषित कर रही। लेकिन मोदी ने कुछ और कारण ढूँढ निकाला, क्योंकि उन्हें जाति का कार्ड खेलना था। उन्होंने कहा, ‘‘राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं बने क्योंकि उन्हें समाज के एक निम्न वर्ग से आए व्यक्ति के हाथों पराजित होना पसंद नहीं था। कांग्रेस मानती है कि निम्न जाति के जिस व्यक्ति ने चाय बेची हो, जिसकी माँ घरेलू नौकरानी रही हो, उससे लड़ना ठीक नहीं।’’
जिस संगठन का देश की आजादी की लड़ाई से ही दूर-दराज का वास्ता न रहा हो, उसके नेता कांग्रेस की गौरवशाली परंपरा के ज्ञान से वंचित हैं तो इसमें उनका दोष नहीं। कांग्रेस में रह कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए तथाकथित निम्न जाति के लोगों की सूची बहुत लंबी है। उनकी जाति का उल्लेख उन महापुरुषों का अनादर होगा। ऐसे लोगों की भी सूची बहुत लंबी है, जिन्होंने अपना सब कुछ त्याग कर आजादी की लड़ाई का रास्ता चुना। इन्हीं में से एक था नेहरू परिवार। अपने समय के सबसे
धनी वकीलों में एक, मोतीलाल नेहरू ने वकालत छोड़ दी थी। जवाहर लाल नेहरू ने आनंद भवन के आनंद को त्याग कर गरीबी में संघर्ष का मार्ग चुना था। रोटी चलाने के लिए आनंद भवन के बर्तन-भाड़े तक बेचे गए थे। नेहरू के निधन के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी दिल्ली में बेघर हो गई थीं। तब कांग्रेस के बड़े नेताओं ने लाल बहादुर शास्त्री से कह कर शोक संतप्त इंदिरा को मंत्री बनवाया था, ताकि रहने का ठिकाना हो जाए। बाद में इंदिरा गांधी ने आनंद भवन ही राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इसलिए नरेंद्र मोदी के मुँह से अपनी जाति और गरीबी का उल्लेख शोभा नहीं देता, और भी अशोभनीय है कि मोदी राजनैतिक लाभ के लिए अपनी माँ का जिक्र कर रहे हैं। नारी पूज्य होती है। किसी व्यक्ति की माँ उसके लिए विशेष पूज्य होती है। माँ तो बहुत प्रतिकूल स्थितियों में भी बच्चे के मुँह में निवाला डालती है। मोदी की माँ की भी कुछ प्रतिकूल स्थितियाँ रहीं होंगी। उन्होंने माँ के धर्म का निर्वाह किया। अब चुनावी मंच से बार-बार उस परम पुनीत धर्म का उल्लेख करने वालों के बारे में क्या कहा जाए!
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
1 टिप्पणी:
papi to pap hi kareg chahe woh dharma hi kyo na ho. dharma ko enhone sasan ka aastra bana liya hai.nyaya karna enka karma nahi anyaya karna dhrama hai.jeen manyatao ke sath yeh jeete hai(cast system)jab aarakshan ki baat usme aayee to enhone kahna suru kiya ki hum aarthik aadhar par isko lagoo karenge. mai poochta hoon ki teri smritiyon(manusmriti) ka kya hua jise tumne sasan karne ke liye banaya tha?
ak prasad
e-mail ID: keotalia@rediffmail.com
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