बी.जे.पी. के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय विकास के लिए काम करते हैं या कुनबाई विकास के लिए? विकास कार्य में वह कितनी पारदर्शिता बरतते हैं? वह कितने विश्वसनीय हैं? यह सारे सवाल सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक फैसले के संदर्भ में उठ रहे हैं।
मोदी की नजदीकी, राजस्व मंत्री आनंदी बेन पटेल ने एक कंपनी, इंडीगोल्ड रिफाइनरी को कच्छ में प्लांट लगाने के लिए 40 एकड़ जमीन अलाट कर दी। यह कंपनी प्लांट नहीं लगा पाई, तो उसे 1.20 करोड़ रुपये में यह जमीन अलुमीना रिफाइनरी प्रा. लि. के हाथ बेचने की इजाजत दे दी गई। नियमों के तहत यह नहीं हो सकता था। संबंधित अधिकारियों ने एतराज भी किया। लेकिन उनकी सुनी नहीं गई।
एक स्थानीय कांग्रेसी नेता ने इस सौदे के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की। वहाँ याचिका रद्द हो जाने पर वह सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए फैसले में कहा कि यह डील पूर्णतया मनमाने ढंग से हुई ,राज्य या सार्वजनिक प्राधिकरण के पास संपत्ति जनता के ट्रस्टी के नाते होती है, उसे न्यायपूर्ण और तर्कसंगत ढंग से काम करना चाहिए। सार्वजनिक पद पर विराजमान व्यक्ति अंततोगत्वा जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं, क्योंकि संप्रभु वही हैं। फैसले में कहा गया कि इस सौदे से संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हुआ। नियम यह कहता था कि प्लांट लगाने में इंडीगोल्ड की असमर्थता के बाद यह जमीन राज्य सरकार के पास वापस आ जाती, क्योंकि यह कृषि भूमि थी। औद्योगिक इस्तेमाल के लिए किसी और कंपनी को देने का उसे अधिकार नहीं था। इस पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है, ‘‘भूमि के हस्तांतरण की इजाजत दी गई, क्योंकि इंडीगोल्ड ने सीधे मुख्यमंत्री और उसके बाद राजस्व मंत्री से संपर्क किया। विशेष रियायत में मनमानेपन की बू आ रही है। राजस्व मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि इसे एक विशेष केस के रूप में लिया जाए, लेकिन इसका आधार उन्होंने नहीं बताया।’’
जस्टिस एचएल गोखले और जस्टिस चेलामेश्वर की यह टिप्प्णी बड़ी सारगर्भित है, ‘‘स्पष्ट है, इस मामले में कलेक्टर ने कर्तव्य अपरायणता और मंत्री ने अधिनायकवाद दिखाया, जिससे सिर्फ सत्ता का अहंकार दिखता है।’’ सत्ता का अहंकार ! अगर उसमें 56 इंची सीने का अहंकार मिल जाए तो क्या होगा!
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
मोदी की नजदीकी, राजस्व मंत्री आनंदी बेन पटेल ने एक कंपनी, इंडीगोल्ड रिफाइनरी को कच्छ में प्लांट लगाने के लिए 40 एकड़ जमीन अलाट कर दी। यह कंपनी प्लांट नहीं लगा पाई, तो उसे 1.20 करोड़ रुपये में यह जमीन अलुमीना रिफाइनरी प्रा. लि. के हाथ बेचने की इजाजत दे दी गई। नियमों के तहत यह नहीं हो सकता था। संबंधित अधिकारियों ने एतराज भी किया। लेकिन उनकी सुनी नहीं गई।
एक स्थानीय कांग्रेसी नेता ने इस सौदे के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की। वहाँ याचिका रद्द हो जाने पर वह सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए फैसले में कहा कि यह डील पूर्णतया मनमाने ढंग से हुई ,राज्य या सार्वजनिक प्राधिकरण के पास संपत्ति जनता के ट्रस्टी के नाते होती है, उसे न्यायपूर्ण और तर्कसंगत ढंग से काम करना चाहिए। सार्वजनिक पद पर विराजमान व्यक्ति अंततोगत्वा जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं, क्योंकि संप्रभु वही हैं। फैसले में कहा गया कि इस सौदे से संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हुआ। नियम यह कहता था कि प्लांट लगाने में इंडीगोल्ड की असमर्थता के बाद यह जमीन राज्य सरकार के पास वापस आ जाती, क्योंकि यह कृषि भूमि थी। औद्योगिक इस्तेमाल के लिए किसी और कंपनी को देने का उसे अधिकार नहीं था। इस पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है, ‘‘भूमि के हस्तांतरण की इजाजत दी गई, क्योंकि इंडीगोल्ड ने सीधे मुख्यमंत्री और उसके बाद राजस्व मंत्री से संपर्क किया। विशेष रियायत में मनमानेपन की बू आ रही है। राजस्व मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि इसे एक विशेष केस के रूप में लिया जाए, लेकिन इसका आधार उन्होंने नहीं बताया।’’
जस्टिस एचएल गोखले और जस्टिस चेलामेश्वर की यह टिप्प्णी बड़ी सारगर्भित है, ‘‘स्पष्ट है, इस मामले में कलेक्टर ने कर्तव्य अपरायणता और मंत्री ने अधिनायकवाद दिखाया, जिससे सिर्फ सत्ता का अहंकार दिखता है।’’ सत्ता का अहंकार ! अगर उसमें 56 इंची सीने का अहंकार मिल जाए तो क्या होगा!
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
1 टिप्पणी:
लेफ्टीयों के रक्त रंगी हाथ आजकल बिलकुल खाली हैं ,
चलो उनके हाथ कुछ तो आया।
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