यह तथ्य कि 'लव जिहाद' शब्द काफी बाद में प्रचलन में आयाए इंगित करता है कि इस नामकरण के पीछे के उद्धेश्य पवित्र नहीं हैं। जिहाद शब्द को मीडिया ने लोकप्रियता दी है। सामान्य तौर पर सिमी, इंडियन मुजाहिदीन व ऐसे ही अन्य संगठनों द्वारा, कथित रूप से किए जाने वाले आतंकी हमलों को जिहाद कहा जाता है। किसी चतुर हिन्दुत्ववादी ने इस शब्द का इस्तेमाल, अंतर्धार्मिक विवाहों . विशेषकर मुस्लिम पुरूषों व हिन्दू महिलाओं के बीच . को कलंकित करने के लिए करना शुरू किया। कई इस्लामिक विद्वानों का मत है कि जिहाद का अर्थ है कोशिश या संघर्ष करना और यह संघर्ष अपने अहं, इच्छाओं, लालच और ईर्ष्या व भय जैसे नकारात्मक भावों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.ऐसे भावों को जो व्यक्ति को ईश्वर की राह से विमुख करते हैं। परंतु मध्यकालीन मुस्लिम शासकों और ऐसे राजनैतिक संगठनों, जो इस्लाम के नाम का दुरूपयोग करते हैं,के कारण जिहाद का अर्थ, गैर.मुसलमानों के खिलाफ युद्ध, जिनमें आतंकी हमले शामिल हैं, बन गया है। अंतर्धार्मिक विवाहों को कलंकित करने के लिए जिहाद शब्द का उपयोग, सबसे पहलेए कुछ वर्ष पूर्व केरल में किया गया था। सन् 2009 में इसका निर्यात पड़ोसी कर्नाटक में हुआ, जहां हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों ने मुस्लिम लड़कों व हिन्दू लड़कियों के बीच दोस्ती के विरूद्ध अभियान चलाया। पुलिस ने इन संगठनों के इस आरोप में कोई दम नहीं पाया कि मुस्लिम युवक, केवल उनका धर्मपरिवर्तन करवाने के उद्धेश्य से,हिन्दू लड़कियों से दोस्ती कर रहे हैं। पुलिस ने नवम्बर 2009 में इस मसले की जांच बंद कर दी। सन् 2012 में केरल पुलिस ने भी लव जिहाद की जांच की और यह पाया कि 'ऐसा कोई अभियान अस्तित्व में नहीं है'।
परंतु हिन्दू संगठन अपनी बात पर अड़े रहे। उनके अनुसार, सन् 2006 से लेकर अब तक, केरल में मुस्लिम लड़कों और हिन्दू लड़कियों के बीच 25 हजार विवाह हुए हैं। उनके इस आरोप की पुष्टि के लिए उनके पास कोई प्रमाण नहीं है परंतु वे इसे लगातार दुहराते जा रहे हैं। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में एक हजार पुरूषों पर 931 महिलाएं थीं। उत्तरप्रदेश में लिंगानुपात और कम.898.था। परिवार बेटियां नहीं चाहते परंतु पुरूष, महिलाएं चाहते हैं और अपने समुदाय की महिलाओं को अपनी संपत्ति मानते हैं। जाहिर है कि इस तरह के दावों के कारण,समुदाय के पुरूषों को लगता है कि उनकी 'संपत्ति' तेजी से घट रही है और वे उस संपत्ति को लूटने वाले दुश्मन के खिलाफ लामबंद हो जाते हैं। यही कारण है कि'बहू.बेटी बचाओ महापंचायत'में एक लाख हथियारबंद लोग इकट्ठा हो गए थे। मुसलमानों में लिंगानुपात थोड़ा बेहतर.936.था। अगर मुस्लिम युवक लव जिहाद में जुट जाएंगे तो मुस्लिम नवयुवतियों का क्या होगा?जाहिर है,उन्हें हिन्दू पुरूषों से विवाह करना पड़ेगा और तब तो यह मैच ड्रा हो जाएगा।
उत्तरप्रदेश में हालिया उपचुनावों में भाजपा का अभियान इसी तरह के बेसिरपैर के आरोपों पर आधारित था। यद्यपि पार्टी ने अपने आधिकारिक वक्तव्यों और दस्तावेजों में कहीं भी लव जिहाद शब्द का प्रयोग नहीं किया परंतु भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ और उत्तरप्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉक्टर लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने अपने भड़काऊ भाषणों में लव जिहादियों को जमकर कोसा। उमा भारती ने इस मुद्दे पर बहस की जरूरत बताई। शायद ये नेता जनता का ध्यान उन 'अच्छे दिनों' से हटाना चाहते हैं, जिनका कहीं अतापता नहीं है।
भाजपा को अपनी भलाई इसमें ही नजर आती है कि आम आदमी लगातार बांटने वाले मुद्दों को लेकर लड़ता.भिड़ता रहे। जहां एक ओर आम लोग धर्म, जाति आदि से जुड़े गैर.जरूरी व महत्वहीन मुद्दों में उलझे हुए हैं वहीं कारपोरेट जगत, अपना खजाना भरने में जुटा हुआ है। हाल में श्रम कानूनों में किए गए बदलावों पर देश में बहुत कम चर्चा हुई। इन बदलावों ने मजदूरों को संगठित करना बहुत कठिन बना दिया है। भू.अधिग्रहण कानूनों में ऐसे परिवर्तन किए जाने प्रस्तावित हैं जिनसे पूंजीपति उद्योगपतियों को मिट्टी के मोल जमीन मिल सकेगी।
उत्तरप्रदेश चुनाव
भाजपा को उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी थी। पार्टी को यह भान था कि अगर 16वीं लोकसभा के चुनाव के बाद उसे सत्ता में आना है तो उसे उत्तरप्रदेश में जबरदस्त प्रदर्शन करना होगा। बाबरी मस्जिद का मुद्दा मृतप्रायः था। ऐसे में, हिन्दू संगठनों को लगा कि युवाओं के बीच अंतर्धार्मिक संबंधों को लेकर तूफान खड़ा किया जा सकता है। इस अभियान का फोकस पश्चिमी उत्तरप्रदेश पर था जहां के विभिन्न समुदाय, महिलाओं के 'सम्मान' के प्रति अतिसंवेदनशील हैं और जहां खाप पंचायतों का बोलबाला है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जाटों और मुसलमानों के बीच मधुर संबंध थे। सन् 1857 के विद्रोह में मुसलमानों और जाटों ने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। परंतु भाजपा और उसके साथी संगठनों ने अपने लव जिहाद अभियान के जरिए कुछ ही वर्षों में इन मधुर संबंधों को शत्रुता में बदल दिया और दोनों समुदायों को ध्रुवीकृत करने में सफलता हासिल कर ली। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले,भाजपा ने मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने के लिए अत्यंत आक्रामक अभियान चलाया। मुसलमानों के खिलाफ भावनाएं भड़काने में जो हथियार सबसे कारगर सिद्ध हुआ वह था मुस्लिम लड़कों और हिन्दू लड़कियों के बीच दोस्ती या मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ छेड़छाड़ को मुद्दा बनाना। तथ्य यह है कि सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के लड़के, लड़कियों पर फब्तियां कसते हैं और उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं।
मुजफ्फरनगर,उत्तरप्रदेश के सर्वाधिक विकसित और समृद्ध जिलों में से एक है। वहां के शक्कर, स्टील व कागज उद्योग के कारण, जिले का औद्योगिक विकासए राज्य के अन्य इलाकों की तुलना में बहुत तेजी से हुआ है। संपन्नता बढ़ने के साथ.साथ शिक्षा का प्रसार भी हुआ। जाहिर है कि शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न धर्मों व जातियों के लड़के.लड़कियों के बीच मेलजोल बढ़ा। इससे पुरानी सांस्कृतिक परंपराओं और नए विचारों के बीच टकराव अवश्यंभावी था। विभिन्न जातियों की खाप पंचायतों द्वारा युवाओं, विशेषकर लड़कियों, पर तरह.तरह के प्रतिबंध लगाने की कोशिशए इसी टकराव का नतीजा थी। ऐसे वातावरण में, लव जिहाद का मुद्दा उछाला गया और जाट समुदाय के बुजुर्ग वर्ग में इसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई। मुद्दे को महिलाओं के सम्मान से जोड़कर उसका राजनीतिकरण कर दिया गया। अनवरत प्रचार के कारण मुस्लिम.विरोधी भावनाओं में तेजी से उबाल आया और अंततः, सितंबर 2013 में जाट.मुस्लिम दंगे भड़क उठे। इससे धार्मिक ध्रुवीकरण और बढ़ा। भाजपा को लोकसभा चुनाव में इस ध्रुवीकरण से जबरदस्त लाभ हुआ।
जाति, लिंग व हिन्दू संगठनों का लव जिहाद अभियान
हिन्दू संगठनों का लव जिहाद अभियान, मुसलमानों द्वारा हिन्दू लड़कियों के अपहरण,उनके साथ बलात्कार अथवा उनको बहलाने.फुसलाने के विरोध तक सीमित नहीं है। यहए दरअसल, दोनों समुदायों और विभिन्न जातियों के बीच खून के रिश्ते बनने का विरोध है। जाति व्यवस्थाए अंतर्जातीय विवाहों को इसलिए प्रतिबंधित करती है क्योंकि उनसे जन्म पर आधारित सामाजिक भेदभाव के किले के ढ़ह जाने की आशंका होती है।
यद्यपि सतही तौर पर ऐसा लग सकता है कि लव जिहाद अभियानए बुरी नजर रखने वाले 'शत्रु समुदाय' के विरूद्ध है। परंतु असल में, यह हिन्दू महिलाओं पर अधिक कड़ा नियंत्रण स्थापित करने का अभियान है। किसी लड़की को किससे शादी करनी चाहिए, इसका निर्णय उसकी जाति और परिवार करते हैं और इसमें दोनों परिवारों के गोत्र,उनकी आर्थिक हैसियत, दहेज देने की क्षमता आदि जैसे मुद्दे निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। खाप पंचायतें इन सामाजिक नियमों को लागू करती हैं और जो लोग इनका पालन नहीं करते, उनको घोर अनैतिक व हिंसक सजाएं दी जाती हैं, जिनमें यौन हिंसा और यहां तक किए संबंधित महिला की हत्या तक शामिल है। विडंबना यह है कि इन हत्याओं को 'आनर किलिंग' कहा जाता है। खाप पंचायतें महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा का निर्धारण करती हैं।। उनका कहना है कि अविवाहित महिलाओं को मोबाईल फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और दिन ढ़लने के बाद केवल किसी पुरूष रिश्तेदार के साथ ही घर से बाहर निकलना चाहिए। खाप पंचायतें, लड़कियों के इंटरनेट इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबंध लगाना चाहती हैं। वे यह भी तय करना चाहती हैं कि लड़कियां कैसे कपड़े पहनें और किन स्थानों पर जाएं या न जाएं। मुस्लिम समुदाय और उसकी खाप पंचायतें भी अपनी महिलाओं पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाती हैं।
हिन्दू संगठन, अंतर्धार्मिक प्रेम के विरूद्ध आक्रामक अभियान चलाते हैंए उनका अतिश्योक्तिपूर्ण विवरण पेश करते हैं और यह आरोप भी लगाते हैं कि हिन्दू लड़कियों से दोस्ती करने के पीछे मुस्लिम युवकों के विशिष्ट उद्धेश्य होते हैं। परंतु असल में उनके निशाने पर महिलाओं की स्वतंत्रता है, विशेषकर उनके अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता। वे तो लड़कों और लड़कियों के मेलमिलाप के भी खिलाफ हैं और उनकी दृष्टि में आदर्श पुत्र या पुत्री वह है जो आंख मूंदकर अपने माता.पिता की आज्ञा माने और उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार दे। आश्चर्य नहीं कि प्रेम विवाह के खिलाफ इस अभियान को सभी समुदायों के अभिभावकों में भारी लोकप्रियता मिली। लव जिहाद अभियान की सफलता इस तथ्य से आंकी जा सकती है कि कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले युवा, जिनसे स्वाभाविकतः विद्रोही होने की उम्मीद की जाती है,भी अंतर्धार्मिक विवाहों के खिलाफ हो गए। हमारे संगठन सीएसएसएस ने हाल में एक नए विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए कार्यशाला का आयोजन किया। इन पंक्तियों के लेखक को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि युवा छात्र.छात्राओं में भी अंतर्धार्मिक विवाह के प्रति जबरदस्त प्रतिरोध है।
हिन्दू संगठनों के लव जिहाद अभियान का असली उद्धेश्य यह है कि हिन्दू महिलाएं, स्वमेव, पुरूषों द्वारा उन पर थोपे जा रहे प्रतिबंधों को स्वीकार कर लें और उन्हें अपना रक्षक मान लें। जबकि तथ्य यह है कि हिन्दू महिलाओं को हिन्दू पुरूषों से सुरक्षा की उतनी ही जरूरत है जितनी कि मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पुरूषों से। कन्या भ्रूड हत्याए दहेज हत्याए परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों द्वारा बलात्कार व घरेलू हिंसा आदि आखिरकार पुरूषों द्वारा अपने ही समुदाय की महिलाओं के विरूद्ध किए जाने वाले अपराध हैं। महिलाओं को उस संपत्ति से वंचित करना,जो उत्तराधिकार में उन्हें मिलनी चाहिए भी ऐसा ही एक उदाहरण है। हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन कभी लैंगिक न्याय की बात नहीं करते और ना ही वे कभी महिलाओं को उनके परिवारों के पुरूषों से सुरक्षा दिलवाने के मसले पर कुछ बोलते हैं।
भारतीय प्रजातंत्र और अंतर्धार्मिक विवाह
हिन्दू संगठन चाहते हैं कि हम यह स्वीकार कर लें कि युवाओं का एक.दूसरे के प्रति आकर्षित होना, उनके बीच मित्रता होना व उनके द्वारा अपने जीवनसाथी का स्वयं चुनाव करना शैतानी वृति है। क्या जिन सौ 'स्मार्ट सिटी' का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विकास करना चाहते हैंए उनमें अलग.अलग लिंगों और धर्मों के लोगों को अलग.अलग रखा जाएगा?जब दो समुदायों के लोग एक साथ रहते हैं तो वे एक.दूसरे से मिलते.जुलते हैं और ऐसे में युवाओं का एक.दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाना स्वाभाविक और सामान्य है। विभिन्न धार्मिक समुदायों और अलग.अलग सांस्कृतिक परंपराओं के लोगों के आपसी संव्यवहार से वे स्वयं को और दूसरों को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं और एक.दूसरे से अच्छी बातें सीखते हैं। आपसी मेलजोल न सिर्फ सभी संस्कृतियों को समृद्ध बनाता है वरन वह सांस्कृतिक विविधता को भी जन्म देता है। शहरों में इस तरह के मेलजोल के लिए कई स्थान होते हैं जिनमें मोहल्ले, बाजार, शैक्षणिक संस्थाएं, मनोरंजन के स्थल,कार्यस्थल,सार्वजनिक परिवहन व नागरिक सुविधाएं हासिल करने के लिए एक साथ मिलकर किए जाने वाले संघर्ष शामिल हैं। जब तक ये स्थान रहेंगे तब तक विभिन्न समुदायों और लिंगों के लोगों को एक.दूसरे से पृथक रखना असंभव नहीं तो बहुत कठिन अवश्य होगा।
भारतीय संविधान अपने सभी नागरिकों को उनकी पसंद के धर्म में आस्था रखने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का हक देता है। कानून की हदों के भीतर रहते हुए हर व्यक्ति को अपने जीवन के बारे में स्वयं निर्णय लेने का पूरा अधिकार और स्वतंत्रता है। ब्रिटिश राज से मुक्ति के बाद हमने एक ऐसे भारत के निर्माण का संकल्प लिया था जो प्रजातांत्रिक होगा, जिसमें सामाजिक न्याय होगा और जो विविधता और बहुवाद को सम्मान देगा। खाप और अन्य साम्प्रदायिक संगठनों की सोच के विरूद्ध, हमारा संविधान हर वयस्क को उसका जीवनसाथी चुनने का हक देता है। यही कारण है कि सन् 1954 में विशेष विवाह अधिनियम लागू किया गया। इसके अंतर्गत, विपरीत लिंग के कोई भी दो व्यक्ति, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या नस्ल के होंए बिना किसी धार्मिक या पारंपरिक रीतिरिवाज के, एक.दूसरे से विवाह कर सकते हैं। उन्हें केवल यह शपथ लेनी होती है कि वे एक.दूसरे को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करते हैं। इस विवाह के लिए केवल एक माह के नोटिस और तीन गवाहों की आवश्यकता होती है। जाहिर है कि विवाह की प्रक्रिया का यह सरलीकरण,अंतर्धामिक व अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने के लिए ही किया गया था।
हिन्दू राष्ट्रवादियों व अन्य धर्मों के साम्प्रदायिक व जातिवादी श्रेष्ठि वर्ग की इच्छा यह है कि लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगा,जाएं और ऐसे संगठनोंए संस्थाओं व प्रक्रियाओं की स्थापना की जाए जिनसे युवाओं पर उनका समुदाय व परिवार अपनी इच्छाएं थोप सके। गुजरात मॉडल में राजस्व अधिकारियों को यह अधिकार दिया गया है कि वे यह निर्णय करें कि किसी के लिए उसकी पसंद का व्यक्ति उपयुक्त जीवनसाथी होगा या नहीं। जब तक हम वयस्कों को उनके जीवन के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार नहीं देंगे तब तक भारत एक मजबूत प्रजातंत्र नहीं बन सकेगा।
इस उद्धेश्य की पूर्ति के लिए हमें सबसे पहले ऐसी शैक्षणिक संस्थाओं की आवश्यकता है जो विद्यार्थियों में आलोचनात्मक दृष्टि का विकास करें। लोगों को शिक्षित और जागरूक बनाने का काम केवल शैक्षणिक संस्थाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि यह हर उस क्षेत्र में होना चाहिए जहां सामंती शक्तियां,धार्मिक और जातिगत पहचान को मजबूती देने की कोशिश कर रही हैं। हमें युवाओं से यह पूछना ही होगा कि वे क्या चाहते हैं। तभी हम सच्चे प्रजातंत्र की स्थापना की ओर बढ़ सकेंगे और समाज के दबे.कुचले वर्ग को स्वर दे सकेंगे। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि आज का महत्वाकांक्षी युवावर्ग किसी को यह इजाजत नहीं देगा कि वह उस पर हुक्म चलाए।
-इरफान इंजीनियर
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