गिरती हुई अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारत द्वारा हथियारों की खरीद से नया जीवन मिलने की आशा है. भारत अब सऊदी अरबिया को भी पीछे छोड़ कर अमेरिकी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है. इससे पहले भारत सोवियत यूनियन से हथियारों की खरीद करता था और उनसे टेक्नोलॉजी लेकर फिर अपने वहां अपनी जरूरतों के अनुसार सुधार कर उत्पादन करता था. जिसका सबसे बढ़िया उदहारण ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल को भारत और रुस ने मिलकर उत्पादित किया, इस बात के लिए अमेरिका तैयार नहीं होता है.
भारत के जो भी युद्ध हुए हैं वह मुख्यत: पाकिस्तान से ही हुए हैं. पाकिस्तान को अमेरिका हथियारों की सप्लाई करता रहा है और उसके हथियार बिकते रहे हैं किन्तु अब्दुल हमीद ने मात्र अपनी "गन माउन्टेड जीप" से उस समय अजेय समझे जाने वाले अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दिए "पैटन टैंकों" को नष्ट कर दिया था।
बुधवार से शुरु हो रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से
पहले भारत ने अमेरिका से हथियार सौदे को मंजूरी दे दी है। अमेरिकी एविएशन कंपनी बोइंग से करीब 15800 करोड़ रुपए के सौदे के तहत भारत 22 अपाचे और 15 शिनूक हेलिकॉप्टर खरीदेगा। कैबिनेट
कमेटी ऑन सिक्युरिटी ने इस सौदे को मंजूरी दे दी है . अमेरिका का कोई भी वादा नहीं है की वह पाकिस्तान को हथियार नहीं बेचेगा. एक तरफ वह पाकिस्तान को हथियार भी बेचेगा और युद्ध के समय उसका राजनैतिक समर्थन भी करेगा.
नागपुर की प्रयोगशाला से निकले देश के प्रधानमंत्री बनने तक नरेन्द्र दामोदर मोदी की राजनीति, विदेश नीति का यह कौन सा प्रयोग है की दोनों पडोसी मुल्कों के पास युद्ध के हथियार एक ही मुल्क द्वारा निर्मित होंगे. एक तरफ तो पाकिस्तान से ही निपटने की बात संघ की राजनीती करती है तो दूसरी तरफ वह पकिस्तान के आका अमेरिका को फायदा पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. स्तिथि यहाँ तक पहुँच चुकी है की प्रधानमंत्री मोदी व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उसी आका के इशारे पर कार्य करने के लिए तत्पर रहते हैं और अमेरिका यात्रा के बहाने दोनों देशों के प्रधानमंत्री अपनी-अपनी निष्ठा अमेरिका में प्रदर्शित करेंगे.
जहाँ तक हथियारों की बात है अमरीकी अस्त्र रूसी अस्त्रों से बेहतर नहीं हैं इसीलिए वियतनाम युद्ध में अमेरिकी हारे थे और विएतनाम के पास रुसी हथियार उसके जीतने का मुख्य कारक था. यह भी याद रखा जाना चाहिए कि अमरीकी अस्त्रों पर आश्रित पाकिस्तान ने कभी रूसी अस्त्रों से लैस भारत के खिलाफ युद्ध नहीं जीता है लेकिन यह बात अमेरिकी समर्थक संघ के नियंतागणों को समझ में नहीं आती है क्यूंकि देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र स्वत: उन्होंने जारी करने का अधिकार ले रखा है.
देश की अर्थव्यवस्था हथियारों की खरीद से मजबूत नहीं होगी और अमेरिका के इशारे पर भारत पाकिस्तान का छाया युद्ध दोनों देशों को हथियार खरीदने के लिए मजबूर करता है. अगर अमेरिका हमारा वास्तविक शुभ चिन्तक है तो वह पाकिस्तान को मदद रोककर छाया युद्ध को समाप्त कर सकता है दोनों अपने-अपने देश की जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. लेकिन हथियारों की बिक्री नहीं हो पायेगी और अमेरिका की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी. उस अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए तथा उसकी दादागिरी को दुनिया में कायम रखने के लिए यह हथियारों की खरीद उसको नया जीवन देगी.
सुमन
1 टिप्पणी:
बहुत शानदार
कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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