
टीपू की शहादत के बाद अंग्रेज़ श्रीरंगपट्टनम से दो रॉकेट ब्रिटेन के 'वूलविच संग्रहालय' की आर्टिलरी गैलरी में प्रदर्शनी के लिए ले गए। सुल्तान ने 1782 में अपने पिता के निधन के बाद मैसूर की कमान संभाली थी और अपने अल्प समय के शासनकाल में ही विकास कार्यों की झड़ी लगा दी थी। उसने जल भंडारण के लिए कावेरी नदी
के उस स्थान पर एक बाँध की नींव रखी, जहाँ आज 'कृष्णराज सागर बाँध' मौजूद
है। टीपू ने अपने पिता द्वारा शुरू की गई 'लाल बाग़ परियोजना' को
सफलतापूर्वक पूरा किया। टीपू निःसन्देह एक कुशल प्रशासक एवं योग्य सेनापति
था। उसने 'आधुनिक कैलेण्डर' की शुरुआत की और सिक्का ढुलाई तथा नाप-तोप की
नई प्रणाली का प्रयोग किया। उसने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में 'स्वतन्त्रता का वृक्ष' लगवाया.
समय रहते हुए यदि जागरूक लोग नहीं चेते तो निश्चित रूप से इस देश के इतिहास को संघी प्रयोगशाला हिन्दू और मुसलमान के आधार पर विभक्त कर देगी और मुस्लिम शासकों द्वारा किये गए अच्छे कार्यों को वह हिन्दू विरोध में बदल देगी. मुख्य कारण यह है कि संघी प्रयोगशाला के लोगों का चेहरा भारतीय इतिहास में ईस्ट इंडिया कंपनी या अंग्रेजों की चापलूसी करने का ही रहा है. इनके पास कोई नायक नहीं है इसलिए भारतीय इतिहास के महानायकों को यह लोग खलनायक की भूमिका में बदल देना चाहते हैं. इसके लिए इतिहास इन्हें माफ़ नहीं करेगा. कर्नाटक सरकार जब टीपू सुलतान का जन्मदिन मना रही है तो तथाकथित हिन्दुवत्व वादी इतिहास के इस महानायक की चरित्र हत्या कर रहे हैं. इन मुखौटाधारियों की पोल खुल चुकी है इसीलिए दिल्ली, बिहार में बुरी तरह पराजित होने के बावजूद कोई सबक नहीं ले रहे हैं.
सुमन
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