हमारी सांसो को छूकर के देखो ---------------------- |
फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' पेशवा बाजीराव जो शुद्ध चितपावन ब्राह्मण हैं और नागपुरी कुनबे का पूर्वज भी है उसने मस्तानी नाम की लड़की से प्रेम किया और उसके बाद उसने उससे शादी कर ली जिससे शमशेर नाम का पुत्र पैदा हुआ था. नागपुरी मुख्यालय को सबसे ज्यादा दिक्कत इस चलचित्र से है कि उनकी जातीय शुद्धता की पोल खुल रही है और जो हिंदुवत्व का महान नायक की छवि गढ़ी गयी थी वह इस फिल्म के बाद टूट रही है इसीलिए विरोध किया जा रहा है.
बाजीराव पेशवा का पूरा नाम श्रीमंत बाजीराव बल्लाळ भट था। शिवाजी महाराज के निधन के पश्चात मराठो में चितपावन
ब्राह्मण वंश के पेशवाओ का प्रभाव बढ़ा और उन्होंने सत्ता संभाली। ऐसे ही एक शासक बालाजी विश्वनाथ के यहाँ बाजीराव पेशवा का जन्म 18 अगस्त 1700
ई. को हुआ था जो अपने पिता के सबसे बड़े पुत्र थे। इससे पहले भी कई पेशवाओ
ने शासन किया और उनके बाद भी कई पेशवा राज्य करते रहे पर सबसे अधिक
प्रसिद्ध बाजीराव पेशवा रहे थे
अगर यह बातें बाजीराव पेशवा से सम्बंधित सही हैं तो मनुस्मृति आधारित शासन कहा जा सकता है. पूना के ब्राह्मण शासक बाजीराव पेशवा का राज्य मनुस्मृति के आधार पर चलता था। उनके राज्य में शूद्रों को अपने पीछे झाड़ू बांधकर चलना पड़ता था, ताकि उनके पैरों के निशान से कोई ब्राह्मण अपवित्र न हो सके। उनके राज्य में शूद्रों को सिर्फ दोपहर जब सूर्य सिर के ऊपर हो और शरीर की परछांई न बनती हो तब ही मार्ग पर चलने की अनुमति थी, ताकि उनकी छाया से ब्राह्मण अपवित्र न हो सकें। शूद्रों को मार्ग पर थुंकने की मनाही थी अपने थूंक को रखने के लिए उन्हें गले में हांड़ी बांधकर चलना पड़ता था, ताकि उनके थूंक पर पैर पड़ जाने से मोई ब्राह्मण अपवित्र न हो सके।उन्हें किसी भी सार्वजनिक स्थल पर जाने का अधिकार नहीं था। उन्हें सार्वजनिक तालाबों से पानी नहीं लेने दिया जाता था। उनको मंदिरों में जाने की मनाही थी। उनको किसी भी तरह के मानवीय अधिकार नहीं थे कोई भी कभी भी उनके साथ मारपीट कर सकता था, हत्या कर सकता था, महिलाओं से बलात्कार कर सकता था। उनकी कोई सुरक्षा नहीं थी.
यह बातें क्या हिंदुवत्व वादी लागू करना चाहते हैं अगर नहीं तो बाजीराव पेशवा को अपना नायक बनाना छोड़ दें. फिल्म एतिहासिक है तो भी राजा को इंसान की तरह से ही दिखाया जायेगा लेकिन हमारे देश में नायक या महानायक की छद्म छवि गढ़कर इंसान से ऊपर माना जाने लगता है और जब उस महानायक को इंसान के रूप में प्रदर्शित किया जाता है तो भावनाओं में जी रहे लोग जब जमीनी हकीकत पर आते हैं तो उन्हें गहरा धक्का लगता है. नागपुरमुख्यालय ने बाजीराव पेशवा को हिंदुवत्व का महानायक बना रखा है वचः छवि टूट रही है इसलिए विरोध लाजमी है लेकिन बाजीराव को अगर इंसानी नजरिये से देखा जाए, मोहब्बत की, शादी कर ली कोई गुनाह नहीं किया.
सुमन
अगर यह बातें बाजीराव पेशवा से सम्बंधित सही हैं तो मनुस्मृति आधारित शासन कहा जा सकता है. पूना के ब्राह्मण शासक बाजीराव पेशवा का राज्य मनुस्मृति के आधार पर चलता था। उनके राज्य में शूद्रों को अपने पीछे झाड़ू बांधकर चलना पड़ता था, ताकि उनके पैरों के निशान से कोई ब्राह्मण अपवित्र न हो सके। उनके राज्य में शूद्रों को सिर्फ दोपहर जब सूर्य सिर के ऊपर हो और शरीर की परछांई न बनती हो तब ही मार्ग पर चलने की अनुमति थी, ताकि उनकी छाया से ब्राह्मण अपवित्र न हो सकें। शूद्रों को मार्ग पर थुंकने की मनाही थी अपने थूंक को रखने के लिए उन्हें गले में हांड़ी बांधकर चलना पड़ता था, ताकि उनके थूंक पर पैर पड़ जाने से मोई ब्राह्मण अपवित्र न हो सके।उन्हें किसी भी सार्वजनिक स्थल पर जाने का अधिकार नहीं था। उन्हें सार्वजनिक तालाबों से पानी नहीं लेने दिया जाता था। उनको मंदिरों में जाने की मनाही थी। उनको किसी भी तरह के मानवीय अधिकार नहीं थे कोई भी कभी भी उनके साथ मारपीट कर सकता था, हत्या कर सकता था, महिलाओं से बलात्कार कर सकता था। उनकी कोई सुरक्षा नहीं थी.
यह बातें क्या हिंदुवत्व वादी लागू करना चाहते हैं अगर नहीं तो बाजीराव पेशवा को अपना नायक बनाना छोड़ दें. फिल्म एतिहासिक है तो भी राजा को इंसान की तरह से ही दिखाया जायेगा लेकिन हमारे देश में नायक या महानायक की छद्म छवि गढ़कर इंसान से ऊपर माना जाने लगता है और जब उस महानायक को इंसान के रूप में प्रदर्शित किया जाता है तो भावनाओं में जी रहे लोग जब जमीनी हकीकत पर आते हैं तो उन्हें गहरा धक्का लगता है. नागपुरमुख्यालय ने बाजीराव पेशवा को हिंदुवत्व का महानायक बना रखा है वचः छवि टूट रही है इसलिए विरोध लाजमी है लेकिन बाजीराव को अगर इंसानी नजरिये से देखा जाए, मोहब्बत की, शादी कर ली कोई गुनाह नहीं किया.
सुमन
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