रविवार, 6 दिसंबर 2015

नफरत का दौर : बाबरी मस्जिद का ध्वंस


 ध्वंस के समय उमा भारती- तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के साथ
अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राम की जन्मस्थली के बहाने बाबरी मस्जिद को नागपुरी हत्यारों ने 6 दिसम्बर 1992 को सुनियोजित षड्यंत्र के तहत नष्ट कर दिया था इस के पीछे मुख्य मंशा समाज में नफरत फैलाने की थी. 

भारतीय समाज में नफरत की राजनीति का कोई स्थान नही रहा है लेकिन एक छोटा समूह हर दौर में मौजूद रहा है. बौद्धों का विनाश पुष्पमित्र शुंग
के समय में एक छोटे आतंकी समूह ने राज्य की ताकत के बल पर किया था लेकिन उसके बाद भी भारतीय समाज में नफरत को अस्थायी स्वरूप नहीं मिला और वो आतंकी समूह जब सत्ता से बेदखल हुआ तो फिर पुन: सत्ता नहीं प्राप्त कर पाया. गाँधी की हत्या के बाद बाबरी मस्जिद का ध्वंस हिंदुवत्व वादियों की बड़ी आतंकी घटना थी. इस दिन भारतीय लोकतंत्र संविधान सब कुछ हारा था, जीता सिर्फ कट्टरवाद था. समय के मलहम ने बहुत सारे जख्मों को भर दिया. बाबरी मस्जिद का ध्वंस हरा भरा इस वजह से लगता है कि उन आतंकियों को हमारा न्यायतंत्र अभी तक सजा नहीं दे पाया है. ये हमारी मुख्य विफलता है.
जिस दिन हम उन आतंकियों को सजा दिलाने में सफल होंगे उस दिन भारतीय लोकतंत्र न्याय व्यवस्था का सर और ऊँचा होगा लेकिन वस्तुस्तिथियाँ इसके विपरीत हैं. इसी कारण कथित आतंकी हिंदुवत्व वादियों के हौसले बुलंद हैं. देश की बहुसंख्यक जनता नफरत की राजनीति में यकीन नहीं करती है लेकिन पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद से ओत प्रोत हिंदुवत्व वादी आतंकी समूह अब अमेरिकी साम्राज्यवाद से संचालित हो रहा है. इसी कारण इस आतंकी समूह के हौसले बुलंद हैं. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई की परस्पर एकता ही नफरत की राजनीति को बेनकाब कर समाप्त कर सकती है. इसके अलावा कोई विकल्प नही है. नफरत की राजनीति समाप्त होने का अर्थ है कि साम्राज्यवादी मंसूबों का फ़ैल होना. हिन्दू मुसलमानों के बीच में जो नफरत की खाई ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा पैदा की गयी थी उस खाई को हिंदुवत्व वादी शक्तियां और गहरा कर रही हैं.

सुमन 

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