शनिवार, 2 जनवरी 2016

फिर कही कंधार न हो !

पंजाब के पठानकोट में भारतीय वायुसेना की छावनी पर हुए आतंकी हमले में अब तक चार आतंकियों के मारे जा चुके हैं. इस मुठभेड़ में सेना के छह जवान शहीद हो चुके है। इस हमले में 12 लोगों के घायल होने की खबर है। उधर, वायुसेना की छावनी के पास फिर से एक बार जोरदार धमाके की आवाज सुनाई दी। इस वक्त, आतंकियों के खिलाफ सेना और पुलिस का साझा अभियान जारी है। भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों के जरिए वहां पर छिपे हुए आतंकियों पर लगातार फायरिंग की जा रही है। वहीँ, पूर्व की भांति गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 'किसी भी तरह के हमले का हमारी तरफ से मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा'. पंजाब में यह दूसरा हमला है इससे पूर्व गुरुदास पुर में आतंकी हमला हुआ था जिसमें 13 आतंकी तथा पुलिस अधीक्षक समेत 11 की मौत हुई थी. भाजपा व उसके नीति निर्धारक मुंह तोड़ जवाब देने की बात करते हैं लेकिन अगर सरकार यूपीए की होती तो निश्चित रूप से पूरे देश के अन्दर पुतला दहन कार्यक्रम शुरू हो गया होता. प्रधानमत्री मोदी अभी-अभी पाकिस्तान की यात्रा करके वापस लौटे हैं इसके पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हरी साडी पहन कर पाकिस्तान यात्रा करके आई थी. उस समय देश को यह सन्देश देने की कोशिश की गयी थी कि मोदी की कूटनीति का कोई जवाब वैसे तो उधमपुर ,गुरदासपुर  फिर अब पठानकोट 6 महीने में तीसरा हमला है हमारे लफ्फाजगण सेब का जूस या मीट  का जूस पीकर  सिर्फ लफ्फाजी करते है                  
                         
1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जब पकिस्तान यात्रा कर के लौटे तो कारगिल लेकर आये थे.कंधार यात्रा  भी हुई थी .इसी सन्दर्भ में अहमद पटेल का यह बयान महत्वपूर्ण हो जाता है कि मोदी की नवाज शरीफ से मुलाकात के हफ्ते बाद इस तरह का हमला एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि भाजपा की वार्ता व आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी की पकिस्तान यात्रा के बाद पकिस्तान सरकार के सलाहकार सरताज का बयान महत्वपूर्ण है कि यह यात्रा अमेरिका के इशारे पर हुई है तो वहीँ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि आतंकवाद का मुख्य श्रोत्र अमेरिका है और उसी के इशारे पर आतंकवादी संगठन उसके निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए बनते और बिगड़ते रहते हैं. इस बात को सरकार को समझना चहिये की पाकिस्तानी सेना, आतंकी व आई एस आई अमेरिकी नियंत्रित हैं और उनके इशारों के बगैर वह कुछ नहीं करते हैं. 
                   आतंकवाद से निपटना बहुत मुश्किल काम नहीं है. इसके लिए मुख्य श्रोत्र को चिन्हित करना होगा और उसी के अनुरूप हमको अपनी विदेश नीति व कूटनीति निर्धारित करनी होगी. आतंकवाद के उद्गम स्थलों को मदद करने वाली शक्तियों को भी चिन्हित करना होगा और उनसे किसी तरह के सम्बन्ध नहीं रखने होगे लेकिन हमारे देश में एक बड़ा वर्ग पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद का समर्थक था और आज वही तबका अमेरिकी साम्राज्यवाद का समर्थक है. शांति साम्राज्यवाद की मौत है, युद्ध उसका जीवन है. उसी जीवन को पाने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियां इस तरह के कार्यों को बढ़ावा देती हैं. 

सुमन 

1 टिप्पणी:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बेहतरीन.... आप को नववर्ष की शुभकामनाएं....

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