भारत की जनता पर ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर इंग्लैंड सरकार ने जो अत्याचार किये थे. वह मानवजाति के लिए कलंक है और उसमें नर पिशाचों की आश्चर्यजनक भूमिका दिखाई देती है. दुनिया में अपने को उच्च समझने वाले यूरोपीय लोगों ने मानव जाति के ऊपर कैसे-कैसे अत्याचार किये.
ईराक में सद्दाम हुसैन को फांसी व जनता का नरसंहार इंग्लैंड, अमेरिका और उसकें दोस्त देशों ने किया और 6 लाख से अधिक लोगों को मार डाला था लेकिन जब चिलकॉट जांच समिति की रिपोर्ट आई है तो जिन आधारों के ऊपर ईराक में नरसंहार किया था. वह सब गलत पाए गए. आज भी लाखों विधवाएं बेसहारा हैं.
इराक़ युद्ध में शामिल होने के फ़ैसले की जांच के लिए गठित चिलकॉट जांच
समिति अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार ने सद्दाम हुसैन की तरफ से दिख रहे
ख़तरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और अप्रशिक्षित सैनिकों को युद्ध में भेजा
दिया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि युद्ध में शामिल होने के फ़ैसले का एक कारण
यह बताया गया कि इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक
विनाश के अस्त्र है, जिनके चलते वह बड़ा खतरा पैदा कर सकते है लेकिन यह
अनुमान पूरी तरह अतिरंजित था।
समिति की रिपोर्ट आने के बाद टोनी ब्लेयर के खिलाफ इंग्लैंड में जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हो गए हैं तो वहीँ ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी
ब्लेयर ने 2003 के इराक़ युद्ध में मारे गए लोगों के परिवार से माफी मांगी
है हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि वो परिवार उन्हें न कभी भूलेंगे
और न माफ़ करेंगे. उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि खुफिया सूचनाएं ग़लत थीं और युद्ध के बाद की योजना खराब थी. इसी के बाद से दुनिया के अन्दर आतंकवाद की एक लहर आई जिसने भी इंसानी खून को बहा रहे हैं लेकिन इसकी शुरुवात अमेरिकी साम्राज्यवाद ने शुरू की थी और पूरी दुनिया में आतंकवादी और नर पिशाच की भूमिका में पहले इंग्लैंड और अब अमेरिका और इंग्लैंड दोनों के चेहरे दिखाई देते हैं.इन देशों की खुशहाली का राज मानव रक्त की नदियाँ बहा देने में छिपा हुआ है. साम्राज्यवाद का असली चेहरा एक खूनो दैत्य का चेहरा होता है जो पूरी दुनिया के अन्दर मानव जाति का रक्त पीने के लिए हमेशा लालायित रहता है और आज भी साम्राज्यवाद मानव रक्त को बहाकर मुनाफे को बढ़ा रहा है. दुनिया में आतंकवाद समाप्त करने के लिए ईराक युद्ध व सद्दाम हुसैन की फांसी के जिम्मेदार राष्ट्राध्यक्षों को पकड़ कर युद्ध अपराधी की तरह मुकदमा चला कर सजा-ए-मौत देनी चाहिए जिससे दुनिया के अन्दर शांति कायम हो सके नहीं तो विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष जो हथियार सौदागरों के एजेंट की भूमिका में हैं वह अपने हतियारों का प्रदर्शन करने के लिए इसी तरह नरसंहार करते रहेंगे और उसके प्रतिशोध में आतंकवाद जारी रहेगा.
सुमन
लो क सं घ र्ष !
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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