भारत को खतरा चीन से है या पकिस्तान से है या दोनों से है या किसी से नही है. यह बात अभी तक तय नहीं हो पायी है लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री अमेरिकी लड्डू खाने के लिए बेताब हैं जिसे पाकिस्तानी सरकारें बहुत पहले से खा रही हैं. लड्डू खाने का परिणाम पाकिस्तान को देखने के बाद हमारा शासक वर्ग या मोदी सरकार नहीं समझ रही है और मनोहर परिर्कर व एश्टन कार्टर ने ‘लॉजिस्टिक्स
एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. जिसके तहत भारत के सैनिक अड्डे, सामरिक सामान व अन्य रक्षा क्षेत्रों का प्रयोग अमेरिका कर सकेगा और अमेरिकी सैनिक अड्डों, सामरिक सामान व अन्य रक्षा क्षेत्र का उपयोग कर सकेंगे. एशिया में जगह-जगह अमेरिकी सैनिक अड्डे हैं और जगह-जगह उसके युद्ध सम्बन्धी हथियार मौजूद हैं. फिर ऐसी क्या जरूरत पड़ी कि भारत के साथ उसको इस तरह की संधि करने की जरूरत है.
1947 में देश विभाजन के बाद धर्म पर आधारित पकिस्तान बना और धर्मनिरपेक्षता को आधार बना कर भारत का निर्माण हुआ और पाकिस्तान अपनी आजादी के बाद अमेरिका जैसी महाशक्ति के गोद में चला गया और उसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान में अपने कठपुतली सरकारें बनाने का काम शुरू कर दिया था और 1971 में उसका अमेरिकी महाशक्ति के साथ होने के बावजूद उसका विभाजन हो गया था और अमेरिकी महाशक्ति का सातवाँ बेडा अमेरिका से चलते-चलते बांग्लादेश के निर्माण तक नहीं पहुंचा. चीन या पकिस्तान से कोई युद्ध का मामला मुद्दा नहीं बनता है किन्तु हमारे देश के शासक वर्ग के लोग चीन के साथ छाया युद्ध या मीडिया युद्ध में लगे रहते हैं और तमाम सारी घटनाओं का विश्लेषण कर युद्ध की संभावनाओं या संभावित खतरों के नाम पर लाखों-लाख करोड़ रुपये की कबाड़ युद्ध सामग्री खरीद कर इकठ्ठा करते रहते हैं. अमेरिका के साथ हो रहे समझौते अभी तक देश की विदेश नीति पलट कर एक नयी नीति अमेरिकी साम्राज्यवाद के समर्थन में बनायीं जा रही है.
अमेरिका के साथ दुनिया के जो भी देश रहे हैं वह सभी मुल्क गृह युद्ध में फंसे हैं और उनके वहां अमेरिका ने हमेशा कभी सैनिक विद्रोह या कभी जन विद्रोह करा कर अपनी कठपुतली सरकारें बनायीं हैं. अमेरिका को सैनिक अड्डे इस्तेमाल करने का और तमाम सारा रक्षा सहयोग देश मे कठपुतली सरकारें बनाने का प्रयोग प्रारंभ नहीं करेगा ?
वर्तमान सत्तारूढ़ दल प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के समय में अमेरिकी विमानों को ईधन देने के सवाल पर अत्यधिक नाराज़ था और इसके नेतागण इसी मुद्दे पर सरकार का विरोध कर रहे थे और उसी अमेरिका से समझौता करना आम जनता की समझ से परे है.
अमेरिका अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और आर्थिक मंदी से निपटने के लिए इस तरह की तैयारियां देश को करा कर भारतीय उपमहाद्वीप के आसपास युद्ध जोन तो नहीं निर्मित कर रहा है जिसकी सबसे ज्यादा आशंका है. अमेरिका
और भारत के बीच साजो-सामान से जुड़ा सैन्य समझौता होने के बाद ओबामा
प्रशासन ने कहा है कि चीन को इन दोनों देशों के बीच के मजबूत संबंधों से
डरने की कोई जरूरत नहीं है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें