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गुरुवार, 29 मई 2014

सावरकर : क्रांतिकारी भी हैं और अंग्रेज भक्त भी

भारत के क्रांतिकारियों में विनायक दामोदर सावरकर सबसे ज्यादा विवादस्पद व्यक्ति रहे हैं . इनके जीवन के दो पक्ष हैं एक पक्ष यह है कि वह बहुत बड़े क्रांतिकारी  थे दूसरा पक्ष यह है की उनका माफीनामा ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा स्वीकार कर लेने के बाद अंडमान जेल से निकलने के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद की सेवा में लग गए थे . एक पक्ष क्रांतिकारी तो दूसरा पक्ष अंग्रेजों का सेवक दर्शाता है :
लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। १ जुलाई, १९०९ को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। १३ मई, १९१० को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु ८ जुलाई, १९१० को एस०एस० मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। २४ दिसंबर, १९१० को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद ३१ जनवरी, १९११ को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया।

 १९०४ में उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक  संगठन की स्थापना की .नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें ७ अप्रैल, १९११ को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर ४ जुलाई, १९११ से २१ मई, १९२१ तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। विकिपीडिया से

 दूसरा पक्ष अंग्रेजों की भक्ति का है 

 ४ जुलाई १९११ में सेल्युलर जेल में लाए जाने के बाद उन्होंने माफ़ी मांगते हुए कै अर्जियां दीं । धीरे-धीरे वे जेल अधिकारियों के चहते बन गये और उन्हें जेल में पहले मुंशी का काम फिर जेल के तेल डीपो के फोरमैन का काम सौंपा गया। काला पानी से रिहा होने के बाद उन पर कहने को रत्नागिरी न छोड़ने और ’राजनैतिक’ गतिविधियों पर रोक रहे परंतु पालतू बन चुके शेर को हिन्दू महासभा का संगठन करने की छूट रही।रिहाई के बाद उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ किसी आन्दोलन को न चलाया और न ही भाग लिया। अधिकांश लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि १९६६ में उनकी मृत्यु हुई । २७ फरवरी , १९४८ को सरदार पटेल ने गांधी की हत्या की बाबत नेहरू को लिखे अपने पत्र में लिखा , ’यह हिन्दू महासभा के सावरकर के नेतृत्व में चलने वाले मतान्ध खेमे द्वारा गढ़ी गई साजिश और उसके क्रियान्वयन का परिणाम थी ’।http://books.google.co.in/books?id=JkoznZcASfsC&pg=PA74&dq=सावरकर&hl=en&ei=547vTfALkcytB6uh7MwF&sa=X&oi=book_result&ct=result&sqi=2&redir_esc=y#v
पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे का नाम,सेल्युलर जेल के सामने बने शहीद-उद्यान में उनकी मूर्तीऔर संसद की दीर्घा में उनका तैल चित्र लगा कर भाजपा सरकार ने सावरकर की गद्दारी के प्रति जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की।

नोट : अभिनव भारत व Savarkar: Mithak Aur Sach का लिंक दिया गया है . आप पढ़ कर निर्णय करें कि कौन सा पक्ष आपको मानना है . 

सुमन 

सोमवार, 3 मार्च 2014

संघी विचारधारा और पीएम की कुर्सी के बीच झूलते मोदी

सन् 1999 से 2004 तक स्वघोषित रूप से प्रतिबद्ध स्वयंसेवकों के नेतृत्ववाली वाली एनडीए सरकार का दुस्साहस एक समय इतना बढ़ गया था कि उसने भारतीय संविधान की समीक्षा के लिए एक आयोग का ही गठन कर दिया था ताकि, उसमें से स्वतंत्रता, समानता और न्याय (जो वस्तुतः फ्रांसीसी क्रांति की देन हैं), जैसे विदेशी मूल्यों को निकाला जा सके। उस समय संघ परिवार की ही एक शाखा विश्व हिंदू परिषद के नेता आर्चाय धर्मेद्र और गिरिराज किशोर ने तो एक कदम आगे बढ़कर संविधान में किये जाने वाले परिवर्तनों को भी सुझा दिया था परन्तु आयोग के सदस्यों को लगा कि अगला चुनाव जीतने के बाद ही संविधान बदला जाए। लेकिन भाजपा नेतृत्व का संविधान बदलने का मुंगेरीलाल का यह सपना पूरा नहीं हो सका क्योंकि वह आम चुनाव के बाद सत्ता से बेदखल हो गयी थी।
                                                     कहा जाता है कि इतिहास के पास पुराने सवालों का जवाब देने का एक तरीका यह भी होता है कि वह नित नए सवाल उठाता रहे। जिस तरह आज देश की मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों की जमातें नमो-नमो का दिन रात जाप कर रही हैं, इन पुराने सवालों के जवाब में नए सवालों का उठाया जाना बहुत ही जरूरी हैं। आज जब प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए मोदी की छटपटाहट लगातार बढ़ रही है,
मोदी को इन सवालों से दो चार होना ही पड़ेगा कि वह स्वाधीनता, समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय जैसे आधारभूत सामाजिक मूल्यों में कोई विश्वास करते हैं अथवा नहीं? वस्तुतः उनके वैचारिक राजनैतिक पूर्वज, संघ परिवार के दार्शनिक और मार्गदर्शक बी.डी सावरकर ने मनुस्मृति को ही नियमों और कानूनों का आधार माना था। जैसा कि खुद सावरकर ने अपनी एक पुस्तक के अध्याय ‘मनुस्मृति और महिलाएं’ में लिखा है ‘मनुस्मृति वह ग्रंथ है जो वेदों के पश्चात हमारे हिंदू राष्ट्र के लिए अत्यंत पूजनीय है तथा प्राचीनकाल से हमारी संस्कृति, आचार, विचार और व्यवहार की आधारशिला बन गयी है। यह ग्रंथ सदियों से हमारे राष्ट्र के एहिक एंव पारलौकिक यात्रा का नियमन करता आया है। आज भी करोड़ों हिंदू जिन नियमों के अनुसार जीवन
यापन तथा व्यवहार-आचरण कर रहे हैं वे नियम तत्वतः मनुस्मृति पर ही आधारितहै। आज भी मनुस्मृति हिंदू नियम है’ (सावरकार समग्र, खंड 4 पृष्ठ संख्या 415)
                                                            बहरहाल, हम सभी इससे वाकिफ हैं कि मनुस्मृति में शुद्रों और महिलाओं के लिए क्या प्रावधान हैं। मनुस्मृति में कहा गया है कि यदि शुद्र किसी ब्राह्मण को धर्मोपदेश देने का दुस्साहस करे तो राजा को उसके कान और मुंह में गरम तेल डाल देना चाहिए (आठ/272 मनुस्मृति)। यह तो मात्र एक नमूना मात्र है जिसे मोदी के वैचारिक प्रतिनिधि और संघ के स्वयंसेवक कानून का आधार मानते हैं। आज मोदी अपनी सभाओं में खुद को चाय वाला या पिछड़ा कह कर वोट मांग रहे हैं, और पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से वे खुद को राजनीतिक अछूत बता कर वोटरों से वोट मांग रहे हैं, क्या मोदी को पता भी है कि
मनुस्मृति के अनुसार शुद्रों के साथ क्या व्यवहार किया जाता है?
                                                                        एक बात और, मोदी लगातार राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रवाद की बातें करते हैं। अपनी सभाओं में तिरंगे के खातिर जान देने की बातें तक करते हैं। परंतु, जिस राजनीतिक धारा से मोदी आते हैं उसका इतिहास इन सारी धारणाओं के एकदम ही विपरीत रहा है। संघ परिवार के बहुत सारे लोगों का मानना था कि आजाद के बाद भारत का विलय नेपाल में हो जाना चाहिए, क्योंकि नेपाल दुनिया का एक मात्र हिंदू राष्ट्र है। खुद सावरकर ने नेपाल नरेश को स्वतंत्र भारत का ‘भावी सम्राट’ घोषित किया था। (ए.एस भिंडे-बिनायक दामोदर सावरकर, व्हीर्लस विंड प्रोपोगेंडा 1940, पृष्ठ संख्या 24)। मोदी जिस तिरंगे को
भारत की शान कहते हैं उस तिरंगे को संघ परिवार ने कभी स्वीकार ही नहीं किया। आजादी के पहले तो संघ के स्वयंसेवकों ने तिरंगे को कई बार फाड़ा और जलाया भी था। जाने माने समाजवादी नेता एन.जी गोरे 1938 में घटित ऐसी ही शर्मनाक घटना के गवाह रहे हैं जब हिंदुत्ववादियों ने तिरंगे को फाड़ा और जलाया था। क्या मोदी जैसे कथित राष्ट्रवादी को ऐसी घटनाओं पर दुख नहीं पहंुचता है? क्या संघ के इस शर्मनाक कृत्य के लिए मोदी को माफी नहीं मांगनी चाहिए?

                                             गुजरात में मोदी के ही शासन में इतना बड़ा जनसंहार हुआ जिसमें मुसलमानों
को जानवरों की तरह मारा और काटा गया। परंतु चुनाव आते ही मोदी धर्मनिरपेक्ष हो गए। अभी हाल ही में अहमदाबाद में साबरमती के पास ‘बिजनेस विद हारमोनी’ नाम के एक मुस्लिम बिजनेस कांक्लेव का उद्घाटन करते हुए मोदी ने कहा कि समाज के विकास के लिए एकता जरूरी है और हिंदू तथा मुस्लिम
विकास की गाड़ी के पहिए हैं। खुद मोदी और संघ परिवार का कृत्य और विचार इस बयान के हमेशा विपरीत रहा है। हिंदु राष्ट्र में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक ही माना गया। जिस तरह से मुस्लिम शासकों ने शासित हिंदुओं की रक्षा के लिए जजिया कर का प्रावधान किया ठीक उसी तर्ज पर संघी विचारधारा में, मुस्लिम आबादी को हिंदु राष्ट्र में उसके द्वारा दिए गए कर पर ही सुविधा मुहैया करवाने का प्रावधान है। आज भी मोदी के साथी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हिंदू युवा वाहिनी के नेता योगी आदित्यनाथ खुले मंच से ऐसी ही बातें करते है
                                                वस्तुतः मोदी आज दो राहे पर खड़े हैं जहां एक रास्ता सावरकर के दर्शन पर आधारित राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का है तो दूसरा पीएम की कुर्सी का। खैर मोदी ने इतिहास की जानकारी के लिए विष्णु पांड्या और रिजवान कादरी को अपना सिपहसालार बनाया है। मोदी को चाहिए कि वे संघ के इन काले कारनामों को जानें और संघ से अपना नाता तोड़ लें। तभी पीएम की कुर्सी वाला रास्ता उनके लिए आसान होगा नही ंतो संघ से नाता नहीं तोड़ने वाले आडवाणी की तरह पीएम का उनका टिकट भी कभी कंफर्म नहीं हो पाएगा।
-अनिल यादव
क.न. 55 मुस्लिम बोर्डिग हाउस
इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद
मो .न.09454292339
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