भारत के क्रांतिकारियों में विनायक दामोदर सावरकर सबसे ज्यादा विवादस्पद व्यक्ति रहे हैं . इनके जीवन के दो पक्ष हैं एक पक्ष यह है कि वह बहुत बड़े क्रांतिकारी थे दूसरा पक्ष यह है की उनका माफीनामा ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा स्वीकार कर लेने के बाद अंडमान जेल से निकलने के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद की सेवा में लग गए थे . एक पक्ष क्रांतिकारी तो दूसरा पक्ष अंग्रेजों का सेवक दर्शाता है :
लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। १ जुलाई, १९०९ को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। १३ मई, १९१० को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु ८ जुलाई, १९१० को एस०एस० मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। २४ दिसंबर, १९१० को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद ३१ जनवरी, १९११ को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया।
१९०४ में उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक संगठन की स्थापना की .नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें ७ अप्रैल, १९११ को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल
भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना
पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था।
साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का
तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों
को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर
उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें
भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर ४ जुलाई, १९११ से २१ मई, १९२१ तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। विकिपीडिया से
दूसरा पक्ष अंग्रेजों की भक्ति का है
४ जुलाई १९११ में सेल्युलर जेल में लाए जाने के बाद उन्होंने माफ़ी
मांगते हुए कै अर्जियां दीं । धीरे-धीरे वे जेल अधिकारियों के चहते बन गये
और उन्हें जेल में पहले मुंशी का काम फिर जेल के तेल डीपो के फोरमैन का
काम सौंपा गया। काला पानी से रिहा होने के बाद उन पर कहने को रत्नागिरी न
छोड़ने और ’राजनैतिक’ गतिविधियों पर रोक रहे परंतु पालतू बन चुके शेर को
हिन्दू महासभा का संगठन करने की छूट रही।रिहाई के बाद उन्होंने अंग्रेजों
के खिलाफ किसी आन्दोलन को न चलाया और न ही भाग लिया। अधिकांश लोगों को इस
बात की जानकारी नहीं है कि १९६६ में उनकी मृत्यु हुई । २७ फरवरी , १९४८ को
सरदार पटेल ने गांधी की हत्या की बाबत नेहरू को लिखे अपने पत्र में लिखा ,
’यह हिन्दू महासभा के सावरकर के नेतृत्व में चलने वाले मतान्ध खेमे
द्वारा गढ़ी गई साजिश और उसके क्रियान्वयन का परिणाम थी ’।http://books.google.co.in/books?id=JkoznZcASfsC&pg=PA74&dq=सावरकर&hl=en&ei=547vTfALkcytB6uh7MwF&sa=X&oi=book_result&ct=result&sqi=2&redir_esc=y#v
पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे का नाम,सेल्युलर जेल के सामने बने शहीद-उद्यान में उनकी मूर्तीऔर संसद की दीर्घा में उनका तैल चित्र लगा कर भाजपा सरकार ने सावरकर की
गद्दारी के प्रति जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की।
नोट : अभिनव भारत व Savarkar: Mithak Aur Sach का लिंक दिया गया है . आप पढ़ कर निर्णय करें कि कौन सा पक्ष आपको मानना है .
सुमन