शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

बनारस विस्फोट 2010 और मीडिया ट्रायल, भाग 1


देश में जब भी कोई विस्फोट या आतंकी वारदात होती है तो भय और आक्रोश का माहौल पैदा हो जाता है। खास तौर पर उस भाग में जहाँ उग्रवाद या आतंकवाद की कोई समस्या नहीं है। घटना जिस शहर में होती है विशेष रूप से उस इलाके की भावनाएँ भड़की हुई होती हैं घटना के बाद खुफिया तन्त्र और सुरक्षा एजेन्सियों की विफलता पर जनता मंे रोष होता है, सरकार की जवाबदेही और आतंकवाद से निबटने में उसकी इच्छा शक्ति पर सवाल उठने लगते हैं। देश की जनता घटना को अंजाम देने वाले आतंकियों और उनके संगठन के बारे में जानना चाहती है, जाहिर सी बात है कि अपनी इस जिज्ञासा की पूर्ति के लिए वह लोकतंत्र के चैथे स्तम्भ मीडिया की ओर आकृष्ट होती है। इलेक्ट्रानिक चैनलों पर सनसनीख़ेज़ जानकारियाँ तुरन्त मिलने लगती हैं परन्तु ग्रामीण अंचलों में जहाँ दो तिहाई भारत बसता है, के लोग शायद इतने खुश किस्मत नहीं हैं। आकाशवाणी समाचारों में ऐसी घटनाओं की विस्तृत या यूँ कहा जाए कि अपुष्ट सूत्रों के हवालों से जन उपयोग की खबरों का प्रायः अभाव ही रहता है। इसी वजह से इस क्षेत्र के लोगों की समाचार पत्रों पर निर्भरता बढ़ जाती है। निजी सूत्रों के अतिरिक्त विश्वस्त सूत्रों, विशेषज्ञों, जानकारों, खुफिया एवं सुरक्षा
अधिकारियों को उद्धृत करते हुए उत्तेजनात्मक खबरों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह दैनिक समाचार पत्रों का बेसब्री से इन्तजार रहता है। परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि लोकतंत्र के चैथे स्तम्भ के इस महत्वपूर्ण अंग में कई बार जनता तक सच्ची और रचनात्मक खबरें पहुँचाने के दायित्व के निर्वाह से ज्यादा बाजारवाद के तकाजों को पूरा करने की चेष्टा और पूरे घटनाक्रम को एक खास दिशा देने की कवायद नजर आती है। इसी के चलते तथ्यात्मक समाचारों में स्पष्ट भिन्नता और अनुमानित समाचारों में अद्भुत समानता देखने को मिलती है।
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर शीतला माता मन्दिर के सामने 7 दिसम्बर सन् 2010 की शाम कपूर आरती आरम्भ होने से ठीक पहले होने वाले धमाके ने मासूम स्वस्तिका की जान ले ली और बाद में गम्भीर रूप से घायल इतालवी नागरिक की भी अस्पताल में मृत्यु हो गईं। इस घटना के बाद वाराणसी से प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्रों के अगले संस्करणों में इस घटना से सम्बन्धित समाचारों पर एक नजर डाली जाय तो उक्त कथन की पुष्टि होती है। विस्फोट में जान गँवाने वाली एक साल से भी छोटी बच्ची को आने वाली चोटों के समाचार कुछ इस प्रकार
थे:-.........धमाकों मे एक वर्षीय बच्ची तारिका शर्मा की मृत्यु हो गई। (हिन्दुस्तान 8 दिसम्बर पृष्ठ नं0 1)....... इसमें एक साल की स्वस्तिका की मौत हो गई उसकी कमर से नीचे का पूरा हिस्सा उड़ गया था।
(अमर उजाला 8 दिसम्बर पृष्ठ नं0 1).......... एक पत्थर का टुकड़ा तेजी से स्वस्तिका के सिर पर लगा, खून का फौव्वारा फूट पड़ा, भगदड़ मच गई। माँ जब तक उसे लेकर पार्क पहुँचती उसकी मृत्यु हो गई। (दैनिक जागरण, 9 दिसम्बर पृष्ठ नं0 7)..... इसी प्रकार घटना स्थल पर सी0सी0 कैमरा था अथवा नहीं, दो अलग-अलग अधिकारियों के हवाले से परस्पर विरोधी समाचार प्रकाशित हुए तो घटनास्थल पर पाए जाने वाले अवशेषों को लेकर भी समाचारों मंे समानता देखने को नहीं मिलती। ए0डी0एम0 अटल कुमार राय ने बताया कि अधिकारी घटनास्थल के सी0सी0, पी0डी0 फुटेज की जाँच कर रहे हैं। (अमर उजाला 9 दिसम्बर पृष्ठ 10)......... शुक्रवार को उन्होंने (ए0डी0जी0 कानून व्यवस्था वृजलाल) पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि शीतला घाट पर सी0सी0 कैमरे नहीं थे। इस लिए घटना से पहले और बाद के फुटेज जुटा कर छान बीन की जा रही है (दैनिक जागरण 11 दिसम्बर पृष्ठ नं0 9) घटनास्थल पर पाए जाने वाले अवशेषों के सम्बन्ध में श्री अटल कुमार राय के हवाले से अमर उजाला लिखता है........ राय ने बताया कि आगरा से फोरेन्सिक विशेषज्ञों के एक दल ने घटना स्थल के नमूने लिए है। इस बार मौके से छोटे से वायर और प्लास्टिक के टुकड़े के अलावा कोई भी अवशेष नहीं मिला जिसके आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके। (दैनिक जागरण 9 दिसम्बर पृष्ठ नं0 1)....... आतंकी विस्फोट की जाँच के दौरान तार के एक टुकड़े से सुराग की तलाश की जा रही है.........। एजेन्सियाँ इस विस्फोट के बाद मौके पर अवशेष न मिलने पर हैरत में हैं (हिन्दुस्तान 9 दिसम्बर पृष्ठ नं0 7)।
वाराणसी विस्फोट के बाद संजरपुर लगातार सुर्खियों में रहा। 19 दिसम्बर 2008 की बटाला हाउस घटना के बाद से ही यहाँ के लोग हर आतंकी वारदात के बाद संजरपुर और आजमगढ़ को घसीटे जाने को लेकर आशंकित रहते हैं। यह आशंका स्वाभाविक भी है क्योंकि पूना जर्मन बैकरी धमाके के पश्चात जनपद के कुछ लापता युवकों का नाम उछाला गया था। गत सितम्बर में दिल्ली जामा मस्जिद गोलाबारी काण्ड को भी इण्डियन मुजाहिदीन से जोड़ते हुए आतिफ और साजिद की शहादत के बदले के तौर पर प्रस्तुत किया गया था। बनारस विस्फोट के बाद भी इण्डियन मुजाहिदीन के ईमेल के साथ ही मीडिया में संजरपुर के सम्बन्ध में खबरें छपने लगीं। यहाँ के वातावरण और ग्राम वासियों की प्रतिक्रिया को लेकर जो समाचार छपे वे कुछ इस प्रकार थे............... ग्रामीणों के चेहरे के भाव ऊपर से पूरी तरह सामान्य पर अन्दर से असहज। ग्रामीणों ने कहा कि विस्फोट कहीं भी हो मगर उसके तार आजमगढ़ के संजरपुर से जोड़ दिए जाएँ तो हमारे लिए कोई चैकाने वाली बात नहीं। अब तो हम लोग यह सब सुनने के आदी हो गए हैं। (दैनिक जागरण 9 दिसम्बर आज़मगढ़)............... सुबह-शाम गुलज़ार रहने वाले संजरपुर के चट्टी चैराहों पर सन्नाटा छा गया। दहशत का आलम यह है कि अभिभावक अपने बच्चों को घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे हैं (अमर उजाला 9 दिसम्बर पृष्ठ 2 अपना शहर आज़मगढ़)। हिन्दुस्तान में इस विषय पर उस दिन कोई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हुई थी। शायद यही कारण था कि प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अगले दिन हिन्दुस्तान टीम के हवाले से जो रिपोर्ट छपी उसका शीर्षक था पुलिसिया भय से संजरपुर वासी कर रहे पलायन। पत्र आगे लिखता है........ बनारस विस्फोट में नाम जुड़ने से लोगों के माथे पर चिन्ता की लकीरें खिंच गईं यहाँ के निवासी पलायन कर रहे हैं। गुलजार रहने वाली चट्टी चैराहों पर सन्नाटा पसरा जा रहा है। लोग घरों मंे इस तरह दुबके हैं जैसे कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो (हिन्दुस्तान 10 दिसम्बर पृष्ठ नं0 3 आजमगढ़)।

-मसीहुद्दीन संजरी
क्रमश:
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