बुधवार, 11 अक्तूबर 2023

फिलीस्तीन - 12 साल पहले के कारवाँ की दास्तानगोई-डाँ सूरेश खैरनार -

12 साल पहले के कारवाँ की दास्तानगोई ! भारत पॅलेस्टाईन सॉलीडॅरिटी फोरम ! के तरफसे आजसे बारह वर्ष पहले जमीन से जमीन तक के आयोजित ! पहला एशियाई कारवा ! जो फिलिस्तीन की मुक्ति के लिए निकाला गया था ! जिसमें पाकिस्तानी और इंडोनेशियाई तथा बहरीन, कतार, बंगला देश,नेपाली तथा मलेशिया,इरान, सऊदी अरब, फिलिपीन्स, लेबनान, इराक, आझरबैजान, जपान और इंग्लंड, अमेरिकन और कुछ युरोपीय देशों के भी प्रतिनिधी भी शामिल थे ! एक तरह से इसे आंतरराष्ट्रीय कारवां कहा जा सकता है ! उस घटना को आज गिनकर बारह साल पूरे हो रहे हैं ! और इस आने वाली एक जनवरी से तेरह साल हो जायेंगे ! साथियों यह फोटो मेरे पासपोर्ट, और उसमें लगे हुए विसा के है ! जो भारत पॅलेस्टाईन सॉलिडॅरिटी फोरम के तरफसे, पहली बार ! दिसंबर के पांच तारीख को 2010 मे पाकिस्तान से होते हुए ! किसी एशियाई देश की तरफसे, मध्य पूर्व एशिया में गाझा पट्टी से लेकर समस्त वेस्ट बैंक जो 1948 के पहले एक ही देश था ! जिसका नाम फिलस्तीन था ! था इसलिए कि जिस तरह से अंग्रेज भारत से जाते - जाते-जाते बटवारा करके गए ! और बटवारा भारतीय उपमहाद्वीप के लिए हमेशा के लिए अशांति का कारण बन गया ! बिल्कुल उसी तरह फिलिस्तीन में अंग्रेजों का 1880 से ही राज था ! और वहां से भी जाने के पहले ! वह फिलिस्तीन - इजराइल नामके दो देश 1948 में बनाकर गए ! उस के मुक्ति के बैनर तले ! एक कारवा जो दिल्ली से पाकिस्तान, इरान, सिरिया, तुर्कस्तान तथा इजिप्त के सिनाई रेगिस्तान से होते हुए ! रफा बॉर्डर क्रॉस करते हुए ! गाझा पट्टी में जनवरी 2011 की पहली तारीख को ! लेकिन रात के बारह बजे के बाद ! प्रवेश करने करने को मिला ! गाझा पट्टी में एक सप्ताह रहने के बाद ! वापस रफा बॉर्डर से कैरो एअरपोर्ट पर, शायद सात या आठ जनवरी 2011 के दिन ! भारत आने के लिए पहुंचे थे ! मतलब 2010-11 के दौरान ! यह यात्रा, दिल्ली के राजघाट से 5 दिसंबर 2010 के दिन शुरू होकर ! और साथ में गांधी जी की आत्मकथा उर्दू तथा पर्शियन में ! और महात्मा गांधी की कुछ फोटो भी ! हमारे बॉम्बे गांधी बुकस्टॉल के कर्ता-धर्ता तुलसी सोमैया जी के सहयोग से लेकर गए थे ! और उन्हें पाकिस्तान में उर्दू आत्मकथा बांटी गई ! और इरान में पर्शियन ! और सबसे महत्वपूर्ण बात ! जहाँ भी आत्मकथा दी तो पाकिस्तान हो या इराण मे ! लेने वाले व्यक्तियों ने लेने के बाद ! सबसे पहले उसे चुमकर अपने माथे को ! कुरान शरीफ के जैसे लगाकर ही लिया है ! और सबसे अहंम बात ! इराण के पार्लमेंटमे भी बुलाया गया था ! तो साथकी महात्मा गाँधी जी के बड़े फोटो को ! वहां देने के बाद भी ! उन्होंने उसे अपने माथे को लगाते हुए, चुमकर पार्लमेंटमे लगाया है ! वाघा बॉर्डर पार करते हुए ! पाकिस्तान में भी ! बहुत अच्छा प्रेम और स्नेह से ही स्वागत-सत्कार हुआ है ! पाकिस्तानी पंजाब, सिंध, बलुचिस्तान से होते हुए ! और इरान के पाकिस्तानी सिमावर्ति शहर झायेदान से ! सरकारी अतिथियों का दर्जा दिया गया ! और नज्द, बाम, इस्फहान किरमान, खौम से होते हुए तेहरान ! और खासतौर पर, इन सभी जगहों के विश्वविद्यालयों में हमारे कार्यक्रम हुए हैं ! और मुझे विशेष रूप से देखने पर लगा कि ! लड़कियों की संख्या काफी मात्रा में है ! तो मैंने मेरे बगल में बैठे हुए ! व्हाईस चांसलर शायद खौम के विश्वविद्यालय में ! "पुछा की लडके और लड़कियों का अनुपात क्या है ?" तो उन्होंने कहा "कि साठ और चालिस प्रतिशत !" तो मैंने कहा कि लड़कों का साठ है ना ?" तो उन्होंने कहा कि" नहीं लडकियां साठ प्रतिशत है ! और लडके चालिस !" इराणी इस्लामिक क्रांतिके बाद लगातार पढ़ने में ! और सुनने में आता था ! कि वहां की औरतों को घरों की चारदीवारी में बंद कर दिया है ! और उन्हें बाहर निकलने की सख्त मनाही है ! हां यह बात सही है ! "कि सर के बालों को ढकने के लिए एक रेशमी कपड़ा रुमाल के जैसा ! बांधने का जिसे हिजाब के नाम से जाना जाता है ! उसका चलन देखने में आया था ! लेकिन उसे छोड़कर निचले शरीर पर टी शर्ट ! और कमरपर जिन्स में ही ! ज्यादा तर लडकियां दिखाई दे रही थी ! (खौम आयातोल्लाह खोमैनी की जन्मस्थली है !) और लगभग कमअधिक प्रमाण में यही आलम समस्त इरान में देखने को मिला है ! और अब तो हिजाब (सरपर के बाल ढकने के लिए बांधने वाले वस्त्र का नाम !) के खिलाफ भी ! इरानी औरतों का आंदोलन चल रहा है ! जिसका मै समर्थन करता हूँ ! हमारे साथ पूरे इरान प्रवास के दौरान ! दो तरुण लड़कियों को मैंने अपने साथ ही ! ज्यादा तर समय वाल्वो बस में बैठा हुआ देख कर ! काफी विषयों पर बातचीत की है ! और मेरे हिसाब से उन्हें, दुनिया के हर विषय पर वह बहुत ही ! अधिकारीक तरीके से बोलते हुए देखा हूँ ! पस्चिम के मिडिया ने समस्त मुस्लिम विश्व का ही चित्र ! बहुत ही खराब बनाकर पेश किया है ! हा कुछ - कुछ पाबंदियां है ! जो भारत तथा अन्य देशों में भी औरतों को लेकर ! कमअधिक प्रमाण में समस्त विश्व में ही ! महीलाओ को लेकर कुछ न कुछ पाबंदियां सदियों से जारी है ! यह सिमोन द बोआर के 'सेकंड सेक्स' नाम की महिलाओं को लेकर विश्व की बेहतरीन किताबों में से एक को पढ़ने के बाद पता चलता है ! "कि महिलाओं के साथ समस्त विश्व में ही ! गैरबराबरी का व्यवहार किया जाता है ! अभि कुछ दिनों पहले तक महिलाओं को ! युरोपीय देशों में और अमेरिका में मतदान का अधिकार नहीं था ! और काम करने वाले महिलाओं और पुरुष के वेतन में फर्क था ! इरान की राजधानी में ! तेहरान के विश्वविद्यालय में ! इरान के राष्ट्रपति एहमदे निजाद ! खुद हमारे स्वागत कार्यक्रम में शामिल हूए ! और मुझे उनके साथ सभा में भाग लेने का मौका मिला ! और मैंने जब कहा "कि जबतक फिलिस्तीन के सवाल को मुस्लिम या इस्लामीक नजरिए से उठाया जाएगा ! तबतक एक हजार वर्ष हो जाएंगे तो भी हल नहीं होगा ! यह मसला धार्मिक नही है ! विएतनाम के जैसा इन्सानियत का है ! और इसके बारे में भी विएतनाम के जैसा ! हम सभी दुनिया के मानवतावादी और जनतंत्र को मानने वाले लोगों को ! एक साथ मिलकर काम करने से ही ! इस मसले का समाधान आपके हमारे सामने ही हो सकता है !" तो एहमदे निजाद अपनी जगह से उठकर ! मेरे दोनों गाल और माथे का चुंबन लेते हुए ! अपने हाथों में माईक लेते हुए बोले ! " कि मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है ! "कि डॉ. सुरेश खैरनार हमारे मरहूम आयातोल्लाह खोमैनी के जैसे ही फिलिस्तीन के बारे में सोचते हैं !" मै हैरानी से देख और सुन रहा था ! "कि आयातोल्लाह खोमैनी के जैसा ही !" क्योंकि मेरे दिमाग में 1979 में हुई इस्लामिक क्रांतिके जनक ! एक धार्मिक नेता और मेरे विचार में कोई फर्क नहीं है ?" तो एहमदे निजाद ने स्पष्ट किया कि ! "मरहूम आयातोल्लाह खोमैनी का भी कहना था ! कि फिलिस्तीन का मसला इस्लामीक नहीं है ! वह मानवीय मूल्यों का आजादी का और जनतंत्र का है ! " मै दंग होकर सुन रहा था ! और एहमदे निजाद जब पोडियम से मेरे पास आकर बैठे ! तो मैंने कहा " कि सॉरी मै इराण आने के पहले आयातोल्लाह के, और इरान की इस्लामिक क्रांति के बारे में ! वेस्ट के मिडिया के कारण काफी पूर्वग्रहदूषित था ! "कि आयातोल्लाह खोमैनी एक धार्मिक नेता थे ! और संपूर्ण दुनिया को वह उसी नजरिए से देखते थे !" तो उन्होंने कहा कि " आप समग्र आयातोल्लाह खोमैनी संग्रह लेकर जाईए ! और वापस इरान की सभी संस्थानों में उनपर आपको जो भी बोलना होगा ! मैं आपकों बोलने का निमंत्रण मै देता हूँ ! " लगभग इरान के सभी विश्वविद्यालयों में आखिरी हिस्से के ! झनझन, दियारबकिर तक बोलते हुए गए ! और हमारे इरान के दस दिनों की यात्रा में लगभग दस के उपर, शहिद स्मारकों पर भी गए थे ! यह शहिद स्मारक 1980-90 के दौरान ! इराक के साथ हुई लड़ाई में मारे गए लोगों के थे ! और लगभग हर स्मारक में एक लाख से अधिक लोगों को दफनाया हुआ था ! मतलब पंद्रह से बीस लाख से अधिक ! सात करोड़ आबादी के इरान के युवक शहिद हुए हैं ! आखिरी शहिद स्मारक को देखते हुए ! मैंने अपने प्रार्थना के उद्बोधन में कहा "कि मैं प्रार्थना करता हूँ ! " कि मेरे अगली इरानी यात्रा के समय, मुझे और शहीद स्मारक नही देखनो को मिलेगा ऐसी प्रार्थना करता हूँ ! क्योंकि इस तरह इरान की एक पीढ़ी समाप्त हो गई है ! और यही हाल शायद इराक में भी शहिद हो गए होंगे ! और पड़ोसी देश इराक जो तीन करोड़ के आबादी का है ! वहां भी शायद इतना ही शहिदो का आकडा हो सकता है ! दोनों मुस्लिम देश !" आपस में ही दस साल से भी अधिक युध्द में लिप्त थे ! और संघवाले, सौ साल से बोले जा रहे हैं ! "कि इस्लाम खतरे में है ! बोलने से दुनिया के सभी मुसलमान इकठ्ठे हो जाते हैं !" और इसी शताब्दी में सिर्फ बीस साल पहले की लड़ाई ! वह भी दस साल तक चली है ! हमारे आपके आंखों के सामने ! हुई इरान और इराक के बीच में ! और दोनों तरफ के मिलाकर ! चालिस से पचास लाख से अधिक लोग मारे गए ! संघ वाले लोग इतिहास से लेकर वर्तमान तक तथ्यों को बिगाडकर अपनी रूमर स्प्रेडिंग सोसायटी (आर एस एस) नाम के अनुसार सिर्फ यही काम बारहमहिना चौबीसों घण्टे करते रहते है ! और तथाकथित केमिकल वेपन के नाम पर ! 2003 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश और तथाकथित मित्र देशों ने मिलकर ! किये युद्ध में ! पंद्रह लाख इराक के सिविलियन मारे गए हैं ! और उसमे भी, पंद्रह साल के भीतर के उम्र के बच्चों की संख्या ! पांच लाख से अधिक है ! जो 1945 के दुसरे महायुद्ध के अंत में ! जापानी शहर नागासाकि और हिरोशिमा के अणूबाँब के हमले से तीन गुना अधिक हैं ! सिर्फ टिग्रिस और युफ्रेटिस इन दोनों नदियों को केमिकल जहरीले पदार्थो से दुषित करने के कारण ! और खुद आये थे ! सद्दाम हुसैन ने, छुपाएं हूए केमिकल वेपन्स को नष्ट करने के बहाने ! इस पाप में तथाकथित सभ्य अमेरिका और उसके मित्रों में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और युरोपीय देशों के साथ कनाडा के भी सेना इस लड़ाई में शामिल थी ! तीन करोड़ आबादी के इराक को खंडहरों में तब्दील कर दिया है ! यह अपनी आंखों से हप्ता भर रहकर देखने के बाद लिख रहा हूँ ! किसी जमाने की बाबीलोन और मेसोपोटेमिया की सभ्यता का इराक ! कभी बगदाद विश्व के शिक्षा का केंद्र भी रहा है ! ( मुझे 2015 में फिलिस्तीन के सवाल पर ! एक बैठक में शामिल होने के लिए इराक में भी जाने का मौका मिला है ! वह रिपोर्ट मै अलग से लिखने वाला हूँ ! ) और दस दिनों के बाद सिरिया में प्रवेश किया ! सिरिया में भी सरकारी मेहमानों के दर्जे के कारण ! सभी शहरों के मेयर या गवर्नर स्वागत-सत्कार के लिए हर जगह मौजूद रहते थे ! होम्स, अलेप्पो, राजधानी दमिश्क तथा अंतिम बंदरगाह वाले शहर लताकिया में ! दिसंबर के बीस तारीख से दिसंबर के अंत तक पडे रहे ! पडे रहे का मतलब "हमें पानी के जहाज से गाझा पट्टी जाना था ! और इस्राइल इजाजत नहीं दे रहा था ! उसी माथापच्ची में दस दिन बीत जाने के बाद ! आखिरकार सिरिया के सरकार ने दमिश्क में ले जाकर ! हमें एक विमान में सवार कराकर इजिप्त के सिनाई प्रांत के, अल अरिश एअरपोर्ट पर ! श्याम के पहले 2011 के पहले दिन ! उतार कर विमान वापस चला गया ! और लगने लगा कि "यह रोजमर्रे के यातायात व परिवहन का एअरपोर्ट नही है !" युद्ध या किसी अन्य कारण में इस्तेमाल होने वाला आपातकाल वाला एअरपोर्ट है ! क्योंकि हम लोग उतरने के बाद देखा कि वहां कुछ भी व्यवस्था नहीं थी ! खाने - पीने के लिए भी और अन्य कोई भी सुविधाओं का अभाव था ! अल अरिश से गाझा सिर्फ चालिस किलोमीटर दूर ! लेकिन कोई वाहन नही ! अंधेरा होने लगा ! तो हम लोगों ने धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया ! तब कहीं रात के नौ - दस बजे तीन चार खटारा मिनि बसों में ठुसकर लेकर गए ! और रफा बॉर्डर पर उतार कर चले गए ! रफा के इमिग्रेशन की प्रक्रिया करते हुए ! रात के बारह बज गए थे ! उधर सिमा पार देखा तो ! बहुत प्यार से गाझा के लोगों की भीड़ हमारे स्वागत-सत्कार के लिए ! इतने देर से खडी थी ! तो उन्हें देखकर इजिप्शियनो ने किया हुआ अपमान और दुत्कार का गुस्सा कम हो गया ! और भूमध्य समुद्र के किनारे स्थित होटल में ! गाझा शहर में ठहरने के लिए विशेष रूप से व्यवस्था की थी ! और इतनी देर होने के बावजूद हमें खाना नसिब हुआ ! लेकिन जीवन का सबसे अपमानित करने वाले ! अनुभवों से, इजिप्त के सरकार द्वारा जाने के कारण ! पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के ! वर्तमान इजिप्त के प्रशासन का व्यवहार ! जाते वक्त भी ! और वापस आने के समय भी ! बहुत ही हैरान-परेशान करने की वजह हमारे समझ में नहीं आ रही थी ! इसलिए मैंने तो असह्य होने के कारण ! तत्कालीन इजिप्त के राष्ट्राध्यक्ष होस्निमुबारक मुर्दाबाद के नारे देते हुए ! कैरो एअरपोर्ट पर, सामान की ट्रॉलीयोको इधर-उधर फैंक कर, प्रतिकार किया था ! लेकिन इजिप्शियन सरकार का यह व्यवहार ! उनके देश में अंदर ही अंदर चल रहे ! सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से की हमे भनक नहीं लगे ! इसलिए अतिरिक्त सावधानी का पार्ट था ! वह 25 जनवरी 2011, मतलब हमारे कैरो एअरपोर्ट और उसके एक हप्ताह पहले ! सिनाई के अल - अरिश एअरपोर्ट के ! और आठ जनवरी को राजधानी कैरो के एअरपोर्ट अनुभव के तीन हप्ते के बाद ! तहरीर चौक पर लाखों की संख्या में ! लोगों के प्रतिकार और तहरीर चौक के चारों तरफ सेना के टैंक ने घेर लिया था ! लेकिन लोगों ने इतना ठंडा मोसम रहते हुए ! अपने बाल-बच्चों के साथ तंबू खड़े कर के ! विश्व इतिहास का सबसे अभिनव सत्याग्रह का प्रयोग किया ! जो अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है ! और सबसे हैरानी की बात ! उस सत्याग्रह की प्रेरणा महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह के ! अरेबिक पर्चे बना - बना कर ! और व्हाट्सअप तथा फेसबुक जैसे सोशल साइट्स के उपर देकर ! एक दूसरे को फॉरवर्ड करने की कृती जारी थी ! और यह सत्याग्रह वाले गाँधी ! किसी भी गांधीवादी ने नही फैलाया ! लोगों ने खुद ही, गुगल तथा विकिपीडिया जैसे माध्यमों से खुद चुनकर ! अपनी - अपनी भाषा में पर्चे तथा सोशल नेटवर्किंग साइटों पर, लेकर फैलाने का काम किया है ! 2011-13 के दौरान जबकि, महात्मा गाँधी जी के 150 वी जयंती के छह-सात साल पहले की बात है ! महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह के प्रथम बार 1906 दक्षिण अफ्रीका के जमीन पर हुए प्रयोग के बाद ! भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ! और साठ के दशक में ! अमेरिका में मार्टिन ल्युथर किंग जूनिअर द्वारा रंगभेद के खिलाफ ! तथा दक्षिण आफ्रिका में भी तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका की सरकार की रंगभेद और स्वतंत्रता के लिए ( 1980- 90) के दौरान ! नेल्सन मंडेलाने खुद ही कहा है ! "कि हमारे आदर्श महात्मा गाँधी है !" उसी तरह दमास्कस के पडाव में यासर अराफात के बाद ! दुसरे नंबर के नेता खालेद मिशाल ! हम लोगों को मिलने के लिए आए थे ! और दो घंटों से ज्यादा समय ! अरेबिक में बोलते हुए, उन्होंने कम-से-कम दस बार ! गांधी जी का उल्लेख किया ! और दुभाषिए ने गांधी वाले मुद्दों को छोड़कर ! अंग्रेजी में अनुवाद किया था ! तो खुद खालेद मिशाल ने ! पहले तो दुभाषिए को आड़े हाथों लिया और खुद ही ! अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा ! "कि हमारे आदर्श महात्मा गाँधी है! और हमारे फिलिस्तीन की लड़ाई भी उनके रास्ते से चल रही है ! अभी हमारे दो हजार फिलिस्तीन के कैदियों का ! इस्राइल के जेलों में ! लंबे समय से भुक हड़ताल चल रही है ! और उनके मांगो के सामने इस्त्राइली सरकार को झुकना पड़ा है !" ऐसा ताजा उदाहरण उन्होंने बताया था ! और हमने भी गाझा के एक सप्ताह के दौरान ! (1-7 जनवरी 2011) गाझा की पार्लियामेंट से लेकर, युनिवर्सिटी, मुझीयम स्कूल, अस्पतालों से लेकर पुनर्वास केंद्र तथा कई तरह की संस्थाओं और आम लोगों के साथ के वार्तालाप में भी ! शांति और सिविल नाफरमानी की ही बात देखने में आई ! हालांकि गाझा पट्टी में एक भी बिल्डिंग सहीसलामत नही है ! हरेक के उपर इस्राइल के मोर्टार और बमबारी के कारण हरेक इमारतों में उसके अवशेष देखने को मिले हैं ! यहां तक की स्कूल, अस्पतालों की इमारतों को भी आधा भाग टुटे हिस्से में स्थित है ! वहीं हाल गाझा विश्वविद्यालय के परिसर में ! आधे से अधिक इमारतों के उपर बमबारी के कारण ! टुटे हुए हालात में खड़े है ! और रिहायशी मकानों का हाल तो बेडरुम झूल रहा है ! तो बैठक का कमरा गायब हो गया ! तो किचन बाहर से ही टुटे हुए स्थिति में खड़ा है ! और सबसे हैरानी की बात ! हमारे लिए गाझा से निकलने के पहले ! एक जगह सभी साथियों को दोपहर के खाने पर बुलाया था ! हम लोग खाना खाने के बाद ! तुरंत बसों में बैठकर रफा बॉर्डर पर पहुंचे थे ! तो फोन आया कि ! "जिस जगह हम लोगों ने दोपहर का भोजन किया था ! वह इमारत अभि - अभि इस्राइल के द्वारा ! गाझा और इस्राइल के दरम्यान सिर्फ 25 - 30 फिट उंची दिवार खडी है ! और उस तरफ इस्राइल है ! इस तरफ गाझा पट्टी ! मोर्टार से उडाई गई है !" यह है गाझा पट्टी की क्षण - क्षण में बदलने वाली स्थिति ! और उसके बावजूद गाझा के लोग आपस में हस खेल रहे हैं ! और डर या भय से उपर उठकर रहने के आदि हो गए हैं ! शायद सतत यही नजारा देखते - देखते इम्यून हो गए हैं ! अब वह जीवन - मरण के उपलक्ष्य में काफी हदतक अध्यात्मिक हो गए हैं ! अन्यथा वहां पर कोई सो नहीं सकेगा ! गाझा के लोगों के साथ ! सप्ताह भर के सहवास में हमनें क्या दिया ? पता नहीं ! लेकिन उनसे भयमुक्त होने का थोड़ा सा जज्बा जरुर लेकर आए हैं ! इतने निर्भय लोग पृथ्वी पर बहुत ही कम होने की संभावना है ! इसलिए मेरे मन में ! गाझा तथा समस्त फिलिस्तीनीयो के लिए विशेष सम्मान का स्थान है ! शायद इजिप्त की राजधानी कैरो के तहरीर चौक ! और अगल - बगल के अन्य देशों में ! जिसमें ट्यूनिशिया, यमेन, बहरिन, लिबिया तथा सिरिया, अल्जीरिया, जॉर्डन, मोरोक्को, ओमान से लेकर प्रत्यक्ष सऊदी अरब में तक फैला हुआ था ! जिसका नाम कहा, जस्मिन रिवोल्यूशन तो कहीं, अरबस्प्रिंग के नाम से जाना जाता है ! हालांकि इन तथाकथित क्रांतिकारी घटनाओं के बारे में बाद में जो तथ्य मालूम हो रहे हैं ! वह भी अमेरिकी तथा पस्चिम के देशों के षडयंत्र का काम है ! ऐसा देखने में आ रहा है ! कर्नल गद्दाफी का कत्ल करने की कृती में सीआईए का हाथ है ! सद्दाम हुसैन के बारे में भी यही है ! और अब सिरिया के असद के खिलाफ लड़ाई में भी अमेरिका और तथाकथित मित्र देशों की भुमिका ! मैंने अपने कथन में होम्स शहर अलेप्पो, लताकिया तथा दमास्कस का जिक्र किया है ! लेकिन वह 2010 के समय की बात है ! आज तथाकथित इसीस के नाम पर चल रहे युद्ध में ! यह किसी जमाने की बाबीलोन और मेसोपोटेमिया की संस्कृति की धरोहर, खंडहरों में तब्दील हो गई है ! और वही बात इरान के साथ तथाकथित आर्थिक पाबंदीयो के कारण लगातार बढ़ रही महंगाई तथा कई दिनों से लगातार आर्थिक संक्रमण काल से गुजर रहा इरान और उसमे शामिल देशों के बीच बढ़ती दुरीया ! भी इन दोनों देशों के फिलिस्तीन के साथ होने की सजा है ! लेबनान तथा सिरिया को तो बर्बाद कर के रख दिया है ! और गाझा तथा वेस्ट बैंक जेरूसलेम के भीतर लगातार फिलिस्तीनीयो से जमीन हड़पने की कोशिश करते हुए ! जेनीन के कैम्प को नष्ट करने के लिए एक कुर्दिश भालू के रूप में मशहूर बुलडोजर के ड्राइवर ने 72 घंटे तक ! पूरा जेनीन कैम्प जमीनदोस्त कर दिया था ! कुर्द ड्राइवर ने कहा "कि क्या करु मुझे नष्ट करने के लिए कुछ बचा नहीं था ! नहीं तो मैं और भी बुलडोजर चलाने के लिए तैयार था !" यह है आज के इस्राइल की फिलिस्तीनीयो के बस्तियों को नष्ट करते हुए यहुदीयो की, कॉलनी बनाने की कृती ! इस्राइल को तथाकथित सभ्य देश, और उसमे भी अमेरिका इस्राइल को साथ दे रहा है ! और सबसे हैरानी की बात ! हमारे अपने देश में ! इंदिरा गांधीजी के खिलाफ़ हम लोगों ने आंदोलन से लेकर, जेल जाने तक का सफर तय किया है ! लेकिन फिलिस्तीन के मसले पर इंदिरा गाँधी पूरी तरह से फिलिस्तीन के साथ थी ! यह ऐतिहासिक वास्तव ! मुझे स्विकार करने में कोई संकोच नहीं है ! उनके जाने के बाद !और मुख्य रूप से, भारतीय जनता पार्टी के समय में ही ! भारत सरकार की भूमिका बदलने लगी थी ! और आज के वर्तमान समय की सरकार, इस्राइल के साथ इतिहास के क्रम में सबसे ज्यादा नजदीक है ! और भारत की कृषि, आरोग्यसेवा तथा शिक्षा, सुरक्षा से लेकर टेक्नोलॉजी पेगासस उसके उदाहरण के लिए पर्याप्त है ! और हमारे जैसे लोगों को गत आठ साल से पाकिस्तान से लेकर इरान, सिरिया और गाझा पट्टी या वेस्ट बैंक के लिए इजाजत नहीं दे रही है ! और यह सब कुछ इस्राइल के इशारे पर जारी है ! डॉ सुरेश खैरनार

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