शनिवार, 14 अक्टूबर 2023
इस्रायल झूठ की ग्लोबल फ़ैक्ट्री है - जगदीश्वर चतुर्वेदी
-इस्रायल झूठ की ग्लोबल फ़ैक्ट्री है -
इस्रायल सिर्फ़ एक राष्ट्र ही नहीं बल्कि झूठ की फ़ैक्ट्री है। दुनिया के जन-माध्यम इस फ़ैक्ट्री के ज़रख़रीद गुलाम हैं।इस्रायल-अमेरिका मिलकर सारी दुनिया को अहर्निश झूठे मसलों और झूठे प्रचार अभियान में व्यस्त रखते हैं।7 अक्टूबर को विश्व के प्रमुख मीडिया घरानों ने हल्ला किया कि हमास ने इस्रायल पर हमला किया। इसे मीडिया ने उसी तरह मुख्य ख़बर बनाया जैसा कि एक ज़माने में इराक़ और सद्दाम हुसैन के पास जन-संहारक अस्त्र हैं, इसे मुख्य ख़बर बनाकर सारी दुनिया को ठगा और लूटा गया।इराक पर हमला करके उसके तेल के कुओं पर क़ब्ज़ा कर लिया गया और एक सुंदर राष्ट्र को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। पचास लाख से अधिक इराक़ी शरणार्थी बना दिए गए।
सारे देश पर अमेरिका-नाटो की सेनाओं का कबाड़ है पर आजतक इराक़ के जन-संहारक अस्त्रों का प्रमाण अमेरिका पेश नहीं कर पाया, उलटे सुरक्षा परिषद के जाँच आयोग ने पाया कि इराक के पास कोई जनसंहारक अस्त्र नहीं हैं।
7 अक्टूबर को विश्व मीडिया में मुख्य ख़बर आई कि हमास ने इस्रायल पर मिसायलों से हमला किया है। इस प्रसंग में पहली बात यह कि गाजा पट्टी में शासन हमास का है लेकिन उसकी पूरी नाकेबंदी इस्रायल ने की हुई है। गाजा पट्टी में इस्रायली नाकेबंदी के कारण वहाँ कोई भी चीज दाखिल नहीं हो सकती।चप्पे -चप्पे पर इस्रायली सैनिक रहते हैं। ऐसी अवस्था में इस्रायल पर हमले के लिए हमास के अत्याधुनिक मिसायलें कहां से आईं? क्या वे गाजा पट्टी में इस्रायल को हथियारों -मिसायलों का कोई ज़ख़ीरा मिला? मिसायलों के लिए गोला-बारुद गाजा पट्टी में कहां से आया ? हमले किस ठिकाने से किए गए ? इन सब सवालों पर मीडिया ध्यान ही नहीं दे रहा।साथ ही इस्रायली पीएम से भी ये सवाल नहीं पूछे गए हैं।
इन दिनों युद्ध और राजनीति में झूठ सबसे बड़ा अस्त्र है। अमेरिका- इस्रायल झूठ के प्रचार अभियान को संगठित करने में माहिर हैं।याद करें वह क्षण जब अमेरिका के विदेशमंत्री कोलिन पावेल ने सुरक्षा परिषद में इराक के पास जन-संहारक अस्त्र हैं, यह सफ़ेद झूठ बोला था, सारी दुनिया को मीडिया के ज़रिए मनवा लिया गया कि इराक के पास जन-संहारक अस्त्र हैं।यह भी कहा गया कि अमेरिका के पास ठोस जासूसी सूचनाएँ और उनके आधार पर उसने यह राय बनायी है।इस झूठ के बिक्रेता के रुप में यहूदी और ईसाई फंडामेंटलिस्टों और उनके गिरोहों-बुद्धिजीवियों की मदद ली गई।लेकिन आज तक वे इराक़ में जन-संहारक अस्त्र खोजने में असफल रहे। लेकिन इस झूठ के अस्त्र से इराक तबाह कर दिया गया।
हमारे यहाँ भी झूठ के सौदागर हैं और उनकी विश्व के झूठ के सौदागरों के साथ गहरी मित्रता है। इस्रायल के द्वारा अभी तक कोई ऐसा प्रमाण पेश नहीं किया गया है हमास ने हमला कैसे ?कहां से ? और किस तरह युद्धास्त्र जुगाड़ करके किया ?
7 अक्टूबर से आज तक इस्रायल ने गाजा पट्टी पर अंधाधुंध बमबारी करके अकल्पनीय मानवीय तबाही मचायी है।लेकिन वे सामान्य सी बात नहीं बता पाए कि हमास के पास हथियार कैसे आए और हमला कहां से किया गया ?
इस्रायल लगातार ईरान, फ़िलिस्तीन और हमास के ख़िलाफ़ झूठ का प्रचार करता रहा है।इस प्रचार अभियान में ईसाई और यहूदी गैंग सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं, भारत में इन दोनों ही गैंग को अनुयायी के रुप में भगवा गैंग सक्रिय हैं।
तथ्य गवाह हैं कि विगत 75 साल में इस्रायल ने फिलीस्तीनियों के ख़िलाफ़ बर्बर और जनसंहारक कार्रवाईयां की हैं।इनमें हज़ारों फ़िलिस्तीनियों की हत्या की गई और लाखों को शरणार्थी जीवन जीने के लिए मजबूर किया है।
विगत 7 अक्टूबर 2023 से शुरु किया हमास का ‘ अल-अक्सा फ्लड ऑपरेशन’ विश्व मीडिया के प्रौपेगैंडा का सबसे बड़ा अस्त्र है।इसका लक्ष्य है इस्रायल की बर्बरता-नृशंसता को वैधता प्रदान करना। मीडिया ने इस ऑपरेशन के बारे में बड़े ही नाटकीय और हाहाकार मचाने वाली शैली में यह दर्शाने की कोशिश की है कि इस्रायल पीड़ित है ,निर्दोष है।सभ्य है।इस फ़्रेमवर्क में धड़ाधड़ मीडिया सामग्री परोसी जा रही है । यह प्रचार बुनियादी तौर पर ग़लत है।
असल में पीड़ित तो फिलीस्तीनी हैं। वे विगत 75सालों से इस्रायली बर्बरता और कई जनसंहार के शिकार हुए हैं।इस्रायल सभ्य राष्ट्र नहीं है।मीडिया के विभिन्न घरानों के फ़ुटेज जहां नरेटिव में इस्रायली कहानी बता रहे हैं वहीं साथ ही फिलीस्तीनियों का नष्ट संसार भी दर्शा रहे हैं।बार बार यह बात सामने आ रही है कि गाजा पट्टी में नागरिकों और रिहायशी बस्तियों पर बमबारी हो रही है।
इसके साथ ही मीडिया के ज़रिए राजनीतिक ध्रुवीकरण और डिस-इनफॉर्मेशन अभियान भी चल रहा है।भाकत का मीडिया और भगवा गैंग उसका इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन इस युद्ध की क़ीमत फिलीस्तीन की जनता को देनी पड़ रही है।
हमास उग्रवादी संगठन है। लेकिन भारत सरकार ने उसे आजतक आतंकी संगठन नहीं माना है। क्योंकि फिलीस्तीन को लेकर हमारी जो विदेश नीति रही है।उसमें द्वि-राष्ट्र का सिद्धांत केन्द्र में रहा है।इसके अनुसार इस्रायल और फिलीस्तीन दो राष्ट्र हैं। हमास इसे नहीं मानता।हमास तो फिलीस्तीन और इस्रायल को मिलाकर विशाल इस्लामिक राष्ट्र बनाने की वकालत करता रहा है।भारत ने कभी इस धारणा को समर्थन नहीं दिया ।लेकिन भारत ने हमास को कभी आतंकी संगठन नहीं माना।
दूसरी ओर अमेरिका-इस्रायल नियंत्रित मीडिया कवरेज की विशेषता यह है उसमें जितने फ़ुटेज पत्रकारों के डिस्पैच के साथ आए हैं उनमें इस्रायल के प्रति सहानुभूति पैदा करने की कोशिश की गई है।जबकि हक़ीक़त में इस्रायल सहानुभूति का हक़दार नहीं है।इस्रायल के प्रति मीडियाजनित सहानुभूति को इस्रायल के यहूदी कट्टरपंथी शासक अपने हितों की रक्षा के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस्रायलपंथी जेहादी लोग हमास के बारे में वही सवाल कर रहे हैं जो बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनियों ने रटा दिए हैं, या फिर शस्त्र उद्योग के मालिकों ने तय किए हैं।वे सवाल कर रहे हैं कि क्या हमास का समर्थन करते हो ? यह सवाल ही ग़लत है।सवाल यह होना चाहिए कि क्या फिलीस्तीन जनता का समर्थन करते हो ?
फिलीस्तीन जनता एक ओर इस्रायल के ज़ुल्म की शिकार है वहीं दूसरी ओर गाजा पट्टी में हमास के चरमपंथ की क़ैद में है। फिलीस्तीनी जनता लोकतंत्र-धर्मनिरपेक्ष फिलीस्तीन राष्ट्र चाहती है। हमास उसकी पसंद नहीं है बल्कि हमास तो इसरायल-अमेरिका की सृष्टि है।दुनिया के जितने भी आतंकी-चरमपंथी संगठन हैं वे सब अमेरिका ने बनाए हैं।
हमास को फिलीस्तीन संघर्ष ने पैदा नहीं किया बल्कि हमास का जन्म फिलीस्तीन मुक्ति संघर्ष को नष्ट करने के लिए हुआ था।आज फिलीस्तीन की जनता दोनों ओर से परेशान और उत्पीड़ित है एक ओर चरमपंथी हैं दूसरी ओर इस्रायल की फ़ासिस्ट सरकार है।
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