गुरुवार, 18 दिसंबर 2025
स्टालिन तानाशाह थे ? ➖➖➖➖➖➖ भाग..३
स्टालिन तानाशाह थे ?
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भाग..३
#वो_दस_साल_जब_सोवियत_जी_उठा
ऊपर का हैस (#) टैग से आप कंफूज हो रहे होंगे..कि हमने तो
अमेरिकी पत्रकार #जॉन_रीड की मशहूर किताब "दस दिन जब दुनिया हिला उठा" (Ten Days That Shook the World) के बारे में सुना ,पढ़ा हूं। यह "दस_साल" कहां से आया..!
सन 1917 जारशाही से मुक्त होकर समाजवादी व्यवस्था को अंगीकार करने के लक्ष्य के साथ सोवियत आगे तो चल पड़ा।
मगर यह राह इतना सरल नहीं था।
विश्वयुद्ध, अकाल,बाहरी दुश्मनों के हमले,गृह युद्ध आदि सब कुछ मिलाकर जो बर्बादी हुई थी,उससे उबरना एक नवजात समाजवादी व्यवस्था को 1917 से 1929 यानी की 10 वर्ष लग गये थे।
1926 तक समाजवादी रूस की आर्थिक स्थिति क्रांति से पहले की #जार वाली स्थिति से खस्ताहाल था। लेनिन की सानिध्य भी साथ नहीं था। ऐसी स्थिति स्तालिन को झेलना पड़ रहा था। इसके बाद सन 1927 में थोड़ी तरक्की हुई और 1917 के जार वाली स्थिति से करीब-करीब पहूंचने में सफलता प्राप्त हुई ।
यही वो समयाधी था जिससे सोवियत अवाम को यकिन हो गया कि हम महफूज है। स्टालिन ने इस मोके को हांथ से जाने नहीं देना चाहते थे। एक वर्ष और थोड़ा व्यवस्थित करने के बाद 1929 में #पंचवर्षिये परियोजना पर लागु किये।
यह वो जोखिम था जहां से सोवियत और साथ में समाजवादी व्यवस्था आवाद होता या फिर बर्बाद हो जाता।
लेकिन जब नियत और दिशा सही हो तो सफलता मिलकर रहेगी। और हुआ भी वही। रूस 1917 के (जार शासन) मुकाबले तीन गुना ज्यादा उत्पादन हासिल कर लिया।
यानी महज पांच वर्ष (कुल पंद्रह वर्ष) शुन्य से शिखर की ओर बढ़ चुका था। 1937 तक पून्जीवादी राष्ट्रों के कलेजा मुंह में आ गया समाजवादी सोवियत की बुलंदी देखकर। यह वो कर्मयज्ञ जिसकी विशालता दूनिंया ने पहले कभी नहीं देखा था।
ट्रॉटस्की,जिनोविएव,कामेनेव,बुखारिन जैसे गिद्ध नज़र #स्तालिन के नाकामियों पर नोच खाने के लिये बैठा हो उस माहौल में सोंचिये स्तालिन को कितना फूंक-फूक कर कदम रखना पड़ा होगा..? और समाजवादी सोवियत को बुलंदी पर पहूंचाया..!
स्तालिन के जीवनी के लेखक #आइजक_डयेत्सर जो स्तालिन के घोर आलोचक ट्रॉटस्की खेमे या ट्रॉटस्कीवादी से थे। और खुद डयेत्सर भी #स्तालिन के घोर विरोधी थे।
कभी कभी ऐसा भी होता है कि हम अपने विरोधीयों के बारे में सही बातें कह देते हैं, वही डयेत्सर से भी हो गया था।
डयेत्सर लिखते हैं कि..
"क्यों ट्रॉटस्की, जिनोविएव,कामेनेव,बुखारिन आदि नेतृत्व में नहीं आ सके..? क्यों स्तालिन ने हीं नेतृत्व की जिम्मेवारी संभाली..? जवाब में वो खुद हीं कहते हैं कि ये लोग सिर्फ सिद्धांत पर अनावश्यक बहस किया करते थे। कौन नेतृत्व में आयेगा इनका आपस में हीं द्वन्द था। वही स्तालिन एक मात्र व्यक्ति थे जो खामोशी के साथ समाजवाद और पार्टी के लिए काम करते थे।
नेतृत्व में कौन आया, कौन नहीं आया इसको लेकर उन्हें सर दर्द नहीं था। यहां बताना चाहिए कि लेनिन के प्रस्ताव पर वे 1912 में केन्द्रीय कमिटी के सदस्य तथा 1922 में पार्टी के महासचिव बने। इतिहास ने साबित कर दिया है कि लेनिन ने उपयुक्त व्यक्ति को ही जिम्मेवारी सौंपी थी। स्तालिन के संबंध में कहते हुए डयेत्सर आगे लिखते हैं, "स्तालिन के निजी जीवन का वर्णन करना असंभव है" ऐसा क्यों? इस पर डयेत्सर कहते हैं कि स्तालिन के निजी जीवन को लेकर लिखने को कुछ भी नहीं था। ऐसा कुछ भी नहीं मिलता। यहां तक कि उन्होंने किसी को निजी पत्र तक नहीं लिखा। दरअसल क्रांति, पार्टी और स्तालिन का निजी जीवन एकाकार हो गया था। इसमें कोई अंतर नहीं था। यहीं ट्रॉटस्की सहित अन्य लोगों के साथ उनका काफी फर्क था।
... प्रख्यात संगीतकार #पॉल_रॉबसन ने सोवियत संघ और स्तालिन के बारे में लिखा है, "...यहां आप देख पायेंगे आकार में राष्ट्रीय पर सारतत्व में अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृति का स्वरूप... इनका जीवन समाजवादी व्यवस्था के अधीन लेनिन-स्तालिन के सुदृढ़ संचालन में विकसित हो रहा है, ... इनके खिलाफ तथाकथित मुक्त पश्चिम की सम्मिलित ताकतें खड़ी हैं, जिनकी अगुवाई कर रहे हैं अमेरिका के लालची, मुनाफाखोर, जंगखोर उद्योगपति और धनकुबेरों की टोली।
तात्कालिक मुनाफे के लिए 'अमेरिकी शताब्दी' के मोह ने उन्हें अंधा बना रखा है। वे इस सच्चाई को नहीं देख पाये हैं कि यह सभ्यता उन्हें छोड़कर काफी आगे निकल चुकी है। हम जनता की शताब्दी में जी रहे हैं। यूरोप के पूर्वी आकाश में और पूरी दुनिया में प्रकाशमान सितारे चमक रहे हैं। गुलाम देशों की जनता सोवियत समाजवाद की ओर टकटकी लगायी हुई है। ... आधुनिक जीवन के हर क्षेत्र में स्तालिन का काफी गहरा और विस्तृत प्रभाव है।
.. दुनिया के समाजशास्त्र के संबंध में जो ज्ञान वे छोड़कर गये हैं, वह आज भी अमूल्य है। कोई भी व्यक्ति आदर के साथ कह सकता है कि मार्क्स-एंगेल्स-लेनिन स्तालिन वर्तमान और भविष्य की मानवता की श्रेष्ठ सम्पदा हैं। हां, गहरी मानवता और गहरी समझदारी के रूप में वे पर्वत-तुल्य बहुमूल्य परम्परा छोड़ गये हैं। ... निरंतरता में धैर्य के साथ दिली मुहब्बत और ज्ञान के जरिये शांति और लगातार बढ़ती समृद्धि के लिए उन्होंने संघर्ष किया। दुखों कष्टों से पीड़ित करोड़ों लोगों को इस धरती पर छोड़कर वे चल बसे।"
क्रमशः जारी...
तस्वीर..मैक्सिम गोर्की के अंतिम यात्रा के दौरान पार्थीव शरीर को कंधा देते कॉमरेड स्टालिन।
#Dharmedra Kumar
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