बुधवार, 17 अगस्त 2011

टोपियाँ बदलने का खेल है अन्ना

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आधीन भारत में जो लोग अंग्रेजों के साथ थे आजादी मिलने के पूर्व ही उन्होंने अपनी टोपी बदल दी थी और चालाक लोग गाँधी की टोपी में गए थेसर शोभा सिंह जैसे लोग भगत सिंह को फांसी कराने का इनाम भी लिया और आजाद भारत में कुछ टुकड़े फेंक कर सबसे बड़े परोपकारी के रूप में आये
भ्रष्टाचार आजादी के बाद एक भयानक महामारी के रूप में उभरा किन्तु लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राजा से लेकर कनिमोझी तक जेल में हैंभ्रष्टाचार पूंजीवादी व्यवस्था का गुण है और इसी व्यवस्था में अमेरिका, इंग्लैंड समर्थित गाँधी टोपी के सहारे अन्ना पूँजीवाद को बचाने का सबसे बड़ा आन्दोलन चला रहे हैंगाँधी टोपी लगा लेने से कोई गाँधीवादी नहीं हो जाता और सर्वसाधन समपन्न लोकपाल के जाने से भ्रष्टाचार दूर नहीं होता हैगाँधी की हत्या करने वाले और उसके बाद गाँधी वध को जायज ठहराने वाले विचारधारा का साथ अन्ना का आन्दोलन चल रहा है इसका सीधा अर्थ है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जन आक्रोश है उसको गलत दिशा देना है कैंडल मार्च से लेकर तरह-तरह के मार्च हो रहे हैंइस आन्दोलन में ज्यादातर हिन्दुवत्व वाली विचारधारा के लोग हैं जिनको इस देश ने कभी स्वीकार नहीं किया है और भ्रष्टाचार के नाम पर बहुत बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी भी गाँधी टोपी लगा कर आन्दोलन के मैदान में हैं

सुमन
लो क सं घ र्ष !

4 टिप्‍पणियां:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

शब्दशः समर्थन है इन विचारों का।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नाइस!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप से सहमत नहीं हूँ। आप ने अपनी अवधारणाओं को आधार भी सही तरह से नहीं रखे हैं। जो उचित पद्धति नहीं है। अन्ना का आंदोलन एक राष्ट्रीय स्वरूप ग्रहण कर चुका है।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

दिनेश राय द्विवेदी जी से कड़ी असहमति। राष्ट्रीय स्वरूप धारण करे इस आंदोलन से पता चल जाता है कि जनता अब तक राजनैतिक तौर पर कितनी अपरिपक्व है जिसे कोई भी मोमबत्ती जलवा कर अपने पीछे भेड़ की तरह चलवा लेता है चाहे रामदेव हों या हजारे। ये जनता सिर्फ़ अपनी बोरिंग जिन्दगी में थोड़े से बदलाव के लिये एक दो दिन जिन्दाबाद मुर्दाबाद करने आ जाती है और कॉलेज के छात्र छात्रा एक दूसरे के साथ टाइम पास करने बस्स्स्स...
इन समर्थकों में से कितने ने विधेयक की ड्राफ्टिंग देखी होगी??
क्या मौजूदा कानून भ्रष्टाचार उन्मूलन में अक्षम है?दिनेशराय जी आपको जस्टिस आनंद सिंह याद हैं या भुला दिया जिन पर आप सब चुप्पी साध जाते हैं या आप ये भी कहेंगे कि भाई रणधीर सिंह सुमन जी की तरह उन्हें भी अपनी अवधारणा रखना नहीं आता है।

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