शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

लीबिया में जनतंत्र की स्थापना या साम्राज्यी तेल कम्पनियों की तानाशाही की स्थापना


यह लीबियाई राष्ट्र में गद्दाफी की शासन सत्ता को हटाकर जनतंत्र की स्थापना करना नही है , बल्कि लीबिया की राष्ट्रवादी रुझानो वाली सरकार को हटाकर लीबियाई राष्ट्र पर साम्राज्यी ताकतों , कम्पनियों की तानाशाही स्थापित करना है | उन्हें लीबिया और उसके तेल पेट्रोल की लूट की मनमानी छुट देना तथा उनकी धुर हिमायती या कहिये पिठ्ठू सत्ता सरकार को स्थापित करना है।

अब तक लीबिया के शासक कर्नल गद्दाफी लीबिया के विद्रोहियों द्वारा साम्राज्य वादी ताकतों ने मरवा दिया | त्रिपोली और अन्य तमाम क्षेत्रो पर विद्रोहियों की ;राष्ट्रीय अस्थाई कौसिल ' की नयी अंतरिम सरकार का कब्जा हो चुका है | हालाकि ' राष्ट्रीय 'नाम की यह कौसिल और उसकी सरकार पूर्णतया अन्तराष्ट्रीय नाटो सेना के नियंत्रण में है और उस पर पूरी तरह से निर्भर भी है | वह फ्रांस , इंग्लैण्ड जैसे साम्राज्यी नाटो देशो के प्रभुत्व में है | नाटो देशो ने खासकर फ्रांस और ब्रिटेन ने विद्रोहियों की मदद क्यों की ? क्या कर्नल गद्दाफी के बहुप्रचारित 40 साल तक तानाशाही राज्य की जगह लीबिया के लोगो के जनतांत्रिक शासन की स्थापना के लिए ? क्या फरवरी 2011 से आज तक नाटो सेनाओं के हवाई हमलो से लेकर उनके हथियारों से लड़ रहे विद्रोही सैनिक दरअसल लीबियाई जनता के लोग है ? क्या कर्नल गद्दाफी के शासन को बचाने के लिए लड़ रहे लोग लीबियाई जनता नही है ? क्या वे मात्र कर्नल गद्दाफी के विश्वास पात्र सैनिक व उनके कबीले के लोग है ? जैसा की प्रचार होता रहा है | अगर उपरोक्त प्रचार सच होते तो 65 लाख की आबादी वाले देश लीबिया में यह युद्ध बहुत पहले ही खत्म हो जाना चाहिए था | कहा एक तरफ विद्रोही बताई जाने वाली लीबियाई जनता और फ्रांस , ब्रिटेन व अन्य नाटो देशो के आधुनिकतम हवाई व जमीनी हमले और कहा लीबिया के कबीले के लोग और गद्दाफी के विश्वस्त सैनिक ! दोनों में कही कोई समानता ही नही बैठती | फिर भी यह युद्ध महीनों खीचा और खीच रहा है | अभी भी कर्नल गद्दाफी के सेना लड़ रही है | युद्ध के दौरान नाटो सेना और उससे मदद लेते विद्रोहियों को कई जगह पीछे भी धकेलती और हराती भी रही है | यह स्थिति इस बात की सूचक है की नाटो सेनाओं के बूते लड़ने वाले लोग लीबिया की आम जनता नही है , बल्कि वे मुख्यत:फ्रांस व ब्रिटेन के तरफदार लीबियाई व गैर लीबियाई लोग है | हो सकता है की उनके प्रचारों , प्रभावों से बहकी हुयी लीबियाई जनता का भी एक हिस्सा हो , परन्तु व्यापक लीबियाई जनता उनके साथ नही है और न ही नाटो देश लीबियाई जनता के जनतंत्र के लिए वहा लड़ने ही पहुचे है |
वे वहा किसलिए पहुचे है ? जैसे - जैसे यह युद्ध आगे बढ रहा है और यह लग रहा है कि , फिलहाल वहा के तेल - पेट्रोल भण्डार पर गद्दाफी की सत्ता का नियंत्रण नही रह पायेगा , वैसे - वैसे इसका खुलासा भी होने लगा है | हमले के पीछे छिपे उद्देश्यों के तथ्यगत - यह गोपनीय समझौता अब सामने आ रहा है , की, फ्रांस ने विद्रोहियों से यह करार पहले से ही कर रखा है की लीबिया अपने तेल का 35 % हिस्सा फ्रांसीसी तेल कम्पनियों को दे देगा | इसी तरह से विद्रोहियों के दुसरे बड़े मददगार साम्राज्यवादी ब्रिटेन की तेल कम्पनियों के लिए ब्रिटेन सरकार द्वारा लीबिया में किये जा रहे प्रयासों की भी खबरे आ रही है | इस काम में ब्रिटिश पेट्रोलियम कम्पनियों ने ब्रिटिश सरकार के इन्टरनेशनल डेवलपमेंट मंत्री एलन डकन को ऐसे समझौतों के लिए आगे किया हुआ है श्री डकन के वहा की तेल कम्पनियों के साथ पहले से ही घनिष्ठ सम्बन्ध रहे है | ब्रिटिश तेल कम्पनियों के इसी उद्देश्य के मद्देनजर ब्रिटिश सरकार और उसकी नाटो सेना युद्ध के दौरान विद्रोहियों को पेट्रोल सप्लाई करने और कर्नल गद्दाफी की सेना को सप्लाई रोकने की जिम्मेदारी सभालती रही है | इनके अलावा अमेरिकी तेल कम्पनिया भी इसी प्रयास में जुटी है | अमेरिकी लीबिया पर नाटो सैन्य हमले की अगुवाई नही कर रहा था | संभवत: वह ईराक और अफगानिस्तान के बाद लीबिया में अगुवाई करके फसना और अपने मौजूदा दौर के कर्ज़ संकट को बढाना नही चाहता है | लेकिन लीबिया के तेल - पेट्रोल में अपनी हिस्सेदारी बनाने में अमेरिकी तेल कम्पनिया पीछे भी नही रहना चाहती | इसलिए अमेरिकी सरकार लीबिया की बर्बाद हो चुकी नागरिक सेवाओं को चुस्त - दुरुस्त करने के नाम पर लीबिया में घुसपैठ करके तेल डील करने में लगी हुई है | जहा तक कर्नल गद्दाफी के शासन के दौर में तेल कम्पनियों के अधिकारों का मामला है , तो गद्दाफी ने साम्राज्यी तेल कम्पनियों को पहले तो लगभग देश से बाहर कर दिया था , लेकिन' लाक हीड़ बमबारी 'के बाद लीबिया पर लगे संयुक्त राष्ट्र के सालो - साल के प्रतिबंधो को हटाये जाने के उपरान्त उन्होंने
साम्राज्यी तेल कम्पनियों को देश में दुबारा आने का निमंत्रण दे दिया था | लेकिन इस निमंत्रण में विदेशी कम्पनियों को पूरी स्वतंत्रता के साथ नही बल्कि खासे प्रतिबंधो व शर्तो के साथ ही बुलावा दिया गया था | कयोंकि गद्दाफी व उनकी बाथ सोशलिस्ट पार्टी अपनी तमाम कमजोरियों के वावजूद अपने राष्ट्रीय हितो को लेकर साम्राज्यी ताकतों व साम्राज्यी कम्पनियों की विरोधी रही है | सउदी अरब , कुवैत , जैसी शेखशाही सत्ता सरकारों की तरह की तरह अमेरिका व दूसरी हिमायती या पिठ्ठू सरकार नही रही है | वर्तमान दौर के वैश्वीकरण में अमेरिका , इंग्लैण्ड व फ्रांस जैसी साम्राज्यी ताकतों और साम्राज्यी कम्पनिया ख़ास कर उन देशो कि महाताकतवर पेट्रोल कम्पनिया अपने उपर किसी हद तक कोई भी प्रतिबन्ध लगाने वाली किसी राष्ट्रवादी ताकत को बर्दाश्त नही कर सकती है | इसीलिए सद्दाम हुसैन के बाद कर्नल गद्दाफी का नम्बर तो लगना ही था और वह लगा भी | ताकि साम्राज्यवादी ताकतों और उनकी पेट्रोल कम्पनियों को पूरा - पूरा अधिकार व छूट मिले | विश्व में लीबिया के अव्वल दर्जे के पेट्रोल पर उनका एकाधिकार स्थापित हो | विद्रोहियों का ' राष्ट्रीय कौसिल ' नाम का नया सत्ताधारी संगठन लीबियाई राष्ट्र के विरोध में यही काम कर रहा है | यह लीबियाई राष्ट्र में गद्दाफी की शासन सत्ता को हटाकर जनतंत्र कि स्थापना करना नही है ,बल्कि लीबिया कि राष्ट्रवादी रुझानो वाली सरकार को हटाकर लीबियाई राष्ट्र पर साम्राज्यी ताकतों , कम्पनियों की तानाशाही स्थापित करना है | उन्हें लीबिया और उसके तेल पेट्रोल के लूट की मनमानी छूट देना तथा उनकी धुर हिमायती या कहिये पिठ्ठू सत्ता सरकार को स्थापित करना है | ताकि साम्राज्यी ताकतों और उनकी तेल पेट्रोल कम्पनियों को लीबिया के तेल पेट्रोल के लूट की पूरी छूट मिले और उस पर उनका नियंत्रण स्थापित हो जाए | दुनिया के अन्य देशो में और हमारे देश में भी साम्राज्यी हितो के अनुसार ऐसे ही परिवर्तन एकदम शांतिपूर्ण तरीके से हो रहे है | साम्राज्यी पूंजी और साम्राज्यी कम्पनियों की बढती अधिकारपूर्ण घुसपैठ के साथ उनके सहयोगी व हिमायती बने इन देशो के धनाढ्य व उच्च हिस्सों की छूटे व अधिकार भी निरन्तर बढ़ते जा रहे है | जबकि जनसाधारण के अधिकार व छूटो में लगातार कटौतिया बढती जा रही है | यह परिवर्तन देश के बहुसख्यक जनता के जनतंत्र का द्योतक नही है , बल्कि लोकतंत्र के नाम पर जनसाधारण पर अमेरिका जैसी साम्राज्यी ताकतों के साथ देश की धनाढ्य कम्पनियों और उच्च हिस्सों की तानाशाही का द्योतक है | लीबिया में यही काम युद्ध के जरिये हो रहा है | कर्नल गद्दाफी के राष्ट्रवादी जनतांत्रिक सत्ता की जगह साम्राज्यी ताकतों , साम्राज्यी तेल पेट्रोल कम्पनियों की तानाशाही सत्ता पिठ्ठुओं , हिमायतियो कि तानाशाही सत्ता स्थापित की जा रही है और वह भी जनतंत्र की स्थापना के नाम पर |

सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

5 टिप्‍पणियां:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

बेहतरीन लेख…गद्दाफी की मौत पर सच का प्रकटीकरण …ये सारे मीडिया वाले हैं ही लतखोर जो किसी बात को कुछ भी कहकर प्रचारित कर डालते हैं…

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत सी जानकारियाँ मिलीं।

Arvind Pande Wardha ने कहा…

aabhar. nayee jankaari k liye dhanywad.

Nitya ने कहा…

ye sara tel ka khel hai

Rewa Tibrewal ने कहा…

mujhe sahi mai politics mai interest nahi....par yeh lekh bahut accha hai....bahut jankari mili isay padh kar

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