गुरुवार, 24 नवंबर 2011

शरद पवार पर थप्पड़ या व्यवस्था पर थप्पड़


भारतीय राजनीतिक तंत्र देशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा संचालित हो रहा है। उसके प्रतिनिधि के रूप में चाहे डॉ मनमोहन सिंह हों या नितिन गडकरी या लाल कृष्ण अडवाणी क्षेत्रिय नेताओं में मुलायम सिंह यादव से लेकर मायावती तक जनता के बीच में जाने के लिये कठोर सुरक्षा कवच की आवश्यकता होती है और लगभग यही स्तिथि नौकरशाहों की है। अगर इनका सुरक्षा कवच हटा लिया जाए तो जनता के साथ इन लोगों ने जो-जो भ्रष्टाचार घोटाले और गबन कर रखे हैं। उसके एवज में जनता फूल लेकर नहीं थप्पड़ों से ही आगे आएगी। इस व्यवस्था ने अघोषित रूप से लोगों को गुलाम बना रखा है और लोग बेबस हैं, मुनाफा सिर्फ बड़ी बड़ी कंपनियों के हिस्से में आता है अगर विजय माल्या के किंगफिशर को घटा होता है तो भारतीय स्टेट बैंक से लेकर प्रधानमंत्री तक चिंतित नजर आते हैं वहीँ हमारे गाँव में भूख से मरने वाले लोगों को कफ़न भी आसानी से नसीब नहीं होता है। उसके लिये कोई राजनेता चिंतित नहीं होता है।
चुनाव में कांग्रेस से लेकर भाजपा, बसपा, सपा के नेतागण गला फाड़-फाड़ कर किसानो और मजदूरों की समस्याओं को हल करने के लिये दिन रात भाषण करते रहते हैं और संसद और विधानसभाएं आम जनता के लिये रोज कानून बनाती रहती हैं। आम आदमी की थाली से दाल नदारद हो गयी है। इतने बढ़िया-बढ़िया कानून जनता के हित में बनाये गए हैं। दूसरी तरफ बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुनाफा हजारो-हजार करोड़ रुपये बढ़ता जा रहा है उनके फायदे के लिये कोई राजनीतिक दल कानून बनाने की बात करता है न ही उनके हितों के लिये कानून बनाने के लिये वोट ही मांगता है। शरद पवार को थप्पड़ पड़ चुका है। सुरक्षा कवच के बगैर नेतागण जनता में आयें तो उनका हश्र इससे ख़राब ही होगा।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

1 टिप्पणी:

Prabodh Kumar Govil ने कहा…

is ghatna par jo bhi pratikriyayen aa rahi hain, unme se kitni dilse se nikli hain aur kitni soche-samjhe dimag se, iska aaklan rochak rahega.

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