सोमवार, 4 जून 2012
मोदी के मुंह पर तमाचा
प्रसिद्ध कहावत है “सूत न कपास, जुलाहों में लठा-लठी“। यह कहावत भारतीय जनता पार्टी पर पूरी तरह लागू हो रही है। देश की वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों के मद्देनजर अगले चुनाव में भाजपा द्वारा लोकसभा में बहुमत पाने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती। अपने बलबूते पर तो भाजपा बहुमत हासिल कर ही नहीं सकती अन्य पार्टियों के साथ मिलकर भी उसके सरकार बनाने की संभावना नजर नहीं आती। फिर भी जोर-शोर से यह प्रचार किया जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री होंगे।
वैसे भाजपा में भी औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री के पद के लिये मोदी का नाम प्रस्तावित नहीं किया गया है। अभी तक एक ही भाजपा नेता ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लायक माना है। वे हैं भ्रष्टाचार शिरोमणि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा।
अभी हाल में बम्बई में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक संपन्न हुई। बैठक के पहले यह अनिश्चित था कि नरेन्द्र मोदी कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेंगे या नहीं? मोदी, भाजपा के नेतृत्व से नाराज थे। नाराजगी का कारण था संजय जोशी का पुनर्वास।
मोदी संजय जोशी को अपना प्रतिद्वन्दी मानते हैं। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जोशी को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। उन्हें उत्तर प्रदेश के पार्टी प्रभारी का उत्तरदायित्व सौंपा। इससे मोदी इतने नाराज हुये कि उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में प्रचार करने से इंकार कर दिया। इसके साथ उन्होंने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों में भाग लेना भी बन्द कर दिया। मुंबई बैठक के ठीक पहले गडकरी ने संजय जोशी का त्यागपत्र ले लिया। इसके बाद ही मोदी ने बम्बई बैठक में भाग लिया। मोदी की यह शर्त कि वे कार्यकारिणी की बैठक में तभी भाग लेंगे जब जोशी को कार्यकारिणी से हटाया जाय-बचकानी तो है ही और इससे यह भी सिद्ध होता है कि मोदी कितने संकुचित विचारों वाले व्यक्ति हैं। क्या इतने संकुचित विचारों वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री के पद पर बैठने लायक है?
भले ही सतही तौर पर कुछ भी नजर आ रहा हो परंतु भाजपा में ऐसे कम ही लोग हैं जो मोदी को प्रधानमंत्री के पद सुशोभित देखना चाहेंगे। इसके ठीक विपरीत, केन्द्रीय नेतृत्व में बहुसंख्यक ऐसे है जो मोदी के रास्ते में हर संभव रोड़े खड़े करेंगे। बम्बई की बैठक के दौरान ही इसके स्पष्ट संकेत मिले।
इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकेत था लालकृष्ण आडवानी और सुषमा स्वराज का भाजपा की रैली में शामिल होने से इंकार। स्पष्ट है कि आडवानी और सुषमा स्वराज उस मंच से भाषण नहीं देना चाहते थे जिस पर मोदी बैठे हों। कार्यकारिणी की बैठक के फौरन बाद नितिन गडकरी ने एक ऐसा निर्णय लिया जिसे मोदी के मुंह पर तमाचा ही कहा जा सकता है। यह निर्णय था संजय जोशी को उत्तर प्रदेश का प्रभार पुनः सौंपना। घोषणा के अनुसार सन् 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी संजय जोशी ही उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहेंगे। चूँकि लोकसभा के चुनाव के दौरान भी संजय जोशी उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहेंगे इसलिए मोदी फिर चुनाव प्रचार के लिए उत्तरप्रदेश नहीं जायेंगे। क्या कोई ऐसा नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना देख सकता है जिसे उत्तर प्रदेश का समर्थन प्राप्त न हो? इस तरह गडकरी ने राजनैतिक चालबाजी से मोदी के रास्ते में एक बड़ा बैरियर खड़ा कर दिया है।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में सबसे प्रमुख रोड़ा उनका स्वभाव है। उनकी प्रवृत्ति तानाशाही है। वे अपने प्रतिद्वन्दी को जड़मूल से समाप्त करने में विशवास रखते हैं। गुजरात में उन्होंने अनेक प्रतिद्वंद्वियों को नेस्तोनाबूद कर दिया है। राजनीति के अलावा प्रषासन में भी मोदी ने उन अधिकारियों को ठिकाने लगा दिया है जिन्होंने उनके आदेशों का अक्षरशः पालन नहीं किया। संजय जोशी तो उनकी तानाशाही प्रवृत्ति के सबसे बड़े शिकार हैं। अभी हाल में गुजरात भाजपा के अनेक प्रमुख नेताओं, जिनमें केशुभाई पटेल और सुरेश मेहता शामिल हैं, ने मोदी को तानाशाह निरूपित किया है। जोशी का राजनैतिक कैरियर समाप्त करने के लिये मोदी ने हर प्रकार के हथकंड़े अपनाये। यौन संबंधों को लेकर जोशी की सीडी भी सार्वजनिक हुई। कुछ लोगों का आरोप है कि जोशी का चरित्र हनन करने वाली सीडी के पीछे भी मोदी का हाथ था। मोदी ने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशु भाई पटेल को हर तरह से सताने का प्रयास किया। नतीजे में केशुभाई ने राजनीति से लगभग सन्यास ले लिया है। मोदी ने अपनी ही पार्टी के अनेक नेताओं को सिर्फ इसलिए घर बैठा दिया क्योंकि वे उन्हें अपने रास्ते का कांटा मानते है।
मोदी के एक अन्य प्रतिद्वन्दी थे हरेन पंडया। हरेन पंडया की अत्यधिक रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में हत्या कर दी गई। हरेन पंडया के पिता ने मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनके पुत्र, जोकि गुजरात के पूर्व गृहमंत्री थे, की हत्या में मोदी का हाथ है।
हमारे देश के इतिहास में शायद ही किसी मंत्री या मुख्यमंत्री को अमरीका ने वीजा देने से इंकार किया हो। परंतु अमरीका ने मोदी को अभी तक वीजा नहीं दिया है। सन् 2002 के दंगों के बाद विश्व की निगाह में वे नायक नहीं खलनायक समझे जाने लगे।
प्रधानमंत्री बनने के लिए विश्व स्तर पर स्वीकार्यता के मुकाबले देश में स्वीकार्यता अधिक आवश्यक है। लालकृष्ण आडवानी, मोदी के संरक्षक माने जाते हैं। आडवानी ने हमेशा मोदी की प्रशंसा की है। सन् 2002 के दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, मोदी को मुख्यमंत्री के पद से हटाना चाहते थे परंतु आडवानी ने वाजपेयी का घोर विरोध किया और मोदी को बचा लिया। वही आडवानी अब मोदी से खफा हो गए हैं। अभी कुछ माह पहले आडवानी ने एक और रथयात्रा की थी। आडवानी चाहते थे कि उनकी यात्रा का शुभारंभ गुजरात से हो परंतु मोदी ने ऐसा नहीं होने दिया और अंततः आडवानी की यात्रा की शुरूआत बिहार से हुई। शायद तबसे ही मोदी, आडवानी को अपना प्रतिद्वन्दी मानने लगे थे। मोदी की सोच होगी कि भाजपा में आडवानी ही ऐसे नेता हैं जो प्रधानमंत्री पद की दौड़ में उनके प्रमुख प्रतिद्वन्दी हो सकते हंै। आडवानी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका वरदहस्त अब मोदी पर नहीं है। बम्बई में मोदी के साथ पार्टी की रैली में शामिल न होकर आडवानी ने मोदी के प्रति अपना रवैया साफ कर दिया।
देष के भीतर स्वीकार्यता का एक मापदंड यह भी होता है कि अल्पसंख्यक वर्ग संबंधित व्यक्ति का मूल्यांकन कैसे करते हैं। यदि हमारे देश में राय ली जाय कि वह नेता कौन है जिसे मुसलमान और कुछ हद तक ईसाई सर्वाधिक घृणा करते हैं तो सभी की जुबान पर नरेन्द्र मोदी का नाम ही आयेगा। मुसलमान मोदी से उतनी ही घृणा करते हैं जितनी यहूदी, हिटलर से करते थे। अभी तक हमारे देश में जितने भी प्रधानमंत्री हुये हैं उनकी देश के सभी वर्गों में कम-बढ़ स्वाकार्यता थी। यह बात अटल बिहारी वाजपेयी पर भी लागू होती है। यद्यपि वे जीवन भर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे इसके बावजूद मुसलमानों का एक हिस्सा उन्हें पसंद करता था। परंतु मोदी के मामले में ऐसा दावा नहीं किया जा सकता। यह एक प्रमुख आधार है जो मोदी के , में सबसे बड़ी बाधा सिद्ध होगा। मोदी स्वयं घृणा की राजनीति करते हैं और घृणा के आधार पर कोई भी राष्ट्र ज्यादा दिनों विश्व के नक़्शे पर नहीं रह सकता। जर्मनी इस बात का जीता जागता उदाहरण है।
-एल. एस. हरदेनिया,,
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2 टिप्पणियां:
arey kuch achcha nahi to bura bhi na karo NARENDRA BHAI MODI is Hindu's Pride. Lekin aap jaise "SICK-ULAR" log to mullo ke talwe chatne ko hi apna dharm samahte ho .
sirf ek shabd...ye lekhak bevkuf he.likhna band karke congress ki bhandgiri shuru kardo...
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