''
दिल्ली दिलवालों की '' भले ही कही जाति हो , पर यह सदियों से '' जी
हुजूरी '' से लेकर '' सरकार '' तक , संत्री से ले कर '' मंत्री '' तक और
'' नेता '' से ले कर अभिनेता '' तक -- सभी के आकर्षण का केंद्र रही है ,
देशी ही नही विदेशी भी दिल्ली के दिल में समाने के लिए लालायित रहे है .
इस
दिल्ली की अपनी कोई संस्कृति हो या न हो , किन्तु इसका अपना एक इतिहास
अवश्य है , जिस में सम्पूर्ण भारत की झलक सहज ही देखी जा सकती है .
पौराणिक
पृष्ठभूमि में दिल्ली का सम्बन्ध महाभारत कालीन पांड्वो की राजधानी
इन्द्रप्रस्थ से जोड़ा जाता है , वर्तमान दिल्ली में यमुना नदी के
पश्चिमी किनारे पर दिल्ली गेट के आसपास के इलाके की पहचान '' इन्द्रप्रस्थ
'' के रूप में की गई है .
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है की यह स्थल धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर आदि पांड्वो को अपना आवास बनाने के लिए दिया था , तब इस का नाम '' खांडव वन '' था युधिष्ठिर ने अपने भाइयो की सहायता से वन को साफ़ कर के , मय दानव से शानदार महल का निर्माण कराया था , स्वभावत: यहाँ धीरे -- धीरे बस्तिया बस्ती गई , जिन पर युधिष्ठिर का शासन चलता रहा , बाद में युधिष्ठिर हस्तिनापुर चले गये और वही से शासन सूत्र का संचालन करते रहे |
परवर्तीकाल में इन्द्रप्रस्थ मौर्यों ,यौधेयो , कुषाणों आदि के शासन में भी रहा , किन्तु तब तक यह ' इंदरपत गाँव '' में बदल चुका था ,
ऐतिहासिक तथ्यों , ज्ञात अभिलेखों और पुरातात्विक खुदाइयो से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर दिल्ली को ' सात बस्तियों का नगर '' माना जाता है , जो विभिन्न कालो में बनी .. इन में सबसे पुरानी बस्ती दसवी सदी के अंतिम चरण (993 ) में बसी थी , जिसे तोमर राजपूत अनगपाल ने बसाया था और नाम रखा था '' ढिल्ली '' आधुनिक युग में इस की पहचान '' लालकोट '' के रूप में की गई है .
अनगपाल के बाद कन्नौज के गहडवाल शासको ने '' ढिल्ली '' पर अधिकार जमाया फिर क्रमश: अजमेर के चौहान राजा अर्णोराज तथा विग्रहराज बीसल देव चतुर्थ ( 115 -- 64 ) ने इसे कन्नौज के राजा से छीन लिया |
बीसल देव के बाद पृथ्वीराज चौहान ( 1177 -- 92 ) ने यहाँ शासन किया , पृथ्वीराज ने यहाँ '' रायपिथौरा '' के नाम से एक किला भी बनवाया था , पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज नरेश जयचंद के बीच लम्बे समय तक मन मुटाव चलता रहा , इस बीच पृथ्वीराज ने जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता -- संयुक्ता से प्रेम विवाह भी कर लिया , जिस से और अधिक चिढ कर जयचंद ने विदेशी हमलावर मुहम्मद गोरी को पृथ्वीराज के विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए आमंत्रित किया |
पृथ्वीराज ने तरावली के मैदान में मुहम्मद गोरी को युद्ध में हराया , परन्तु गोरी ने 1192 में पृथ्वीराज पर विजय पाई और अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सूबेदार बनाया , उस ने 1210 तक दिल्ली पर राज्य किया , यद्यपि उस ने 1206 में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद दिल्ली की जगह लाहौर को राजधानी बनाया था |
11211 में ऐबक के दामाद शमशुद्दीन ने पुन: लाहौर छोड़ कर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया 1236 में दिल्ली की गद्दी पर रजिया बेगम बैठी , दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाली वह पहली महिला थी उन्होंने 1240 तक शासन किया ......
रजिया बेगम के बाद बहराम शाह (1240 -- 42 ) मसूद (1242 --46 ) नसुरुद्दीन ( 1246 -- 66 ) बलबम ( 1266-- 86 ) केकुबाद ( 1286-- 90 ) आदि ने दिल्ली पर राज्य किया था , केकुबाद के समय ही दिल्ली पर गुलाम वंश के शासन का अंत हो गया |
1290 में दिल्ली की बागडोर जलालुद्दीन खिलजी ने संभाली , खिलजी वंश के तीसरे शासक के रूप में अलाउद्दीन खिलजी 1296 में सत्तारूढ़ हुआ . अलाउद्दीन ने ही दिल्ली की दूसरी बस्ती की नीव डाली उस ने यहाँ सीरी फोर्ट का निर्माण कराया हौजखास भी उसी की देन है उस ने1296 से1316 तक शासन किया|
अलाउद्दीन के बाद 1320 तक दिल्ली की बागडोर शाह्बुद्धीन खिलजी , मुबारक और खुसरो ने संभाली , 1320 में खुसरो के एक सरदार गाजी मलिक ने बगावत कर दी , जिसमे खुसरो मारा गया और उस के साथ ही खिलजी वंश का शासकीय अंत हो गया
1320 में गाजी मलिक गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली का सुलतान बना और उस ने यहाँ तुगलक वंशीय शासन की नीव डाली , 1414 तक यहाँ 11 तुग्लको ने राज्य किया जिन में से केवल तीन ने ही राज्य के विस्तार में योगदान दिया , ग्यासुद्धीन तुगलक ( 1320-- 25 ) ने तुगलकाबाद बसाया जो दिल्ली की तीसरी बस्ती मानी जाती है |
1325 में मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का शासक बना , उसने 1327 से 1330 तक अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरी और 130 से 1351 तक देवगिरी से दिल्ली बदल ली , इस दौरान 1328 में तरमाशीरी खा के नेतृत्व में मंगोल लूटपाट करते हुए दिल्ली तक आ पहुंचे , मुहम्मद तुगलक ने उन्हें ढेर सारा धन दे कर वापस भेज दिया मुहम्मद तुगलक ने यहाँ पर '' जहापनाह '' नामक चौथी बस्ती बसाई , जो आज खंडहर के रूप में नाम शेष है |
मुहम्मद तुगलक के उतराधिकारी फिरोजशाह तुगलक (1351-- 88 ) ) दिल्ली की पांचवी बस्ती '' फिरोजाबाद '' बसाई जो फिरोजशाह कोटला के नाम से प्रसिद्ध है फिरोजशाह की मृत्यु के बाद उस के पोते ग्यासुद्धीन ( 1388 -- 92 ) दूसरे पोते अबू बकर तथा नासिरुद्धीन के नाम से मुहम्मद , हुमायु और महमूद ( 1392 -- 1398 ) ने दिल्ली पर शासन किया
महमूद शाह के शासनकाल में तैमुर लंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया 17 दिसम्बर 1398 को महमूद और तैमुर में जम कर युद्ध हुआ जिस में तैमुर की जीत हुई और महमूद को भागना पडा , उस ने गुजरात में जा कर शरण ली , इधर तैमुर लंग ने दिल्ली में जमकर लूटपाट की , लगभग तीन लाख लोगो को बंदी बनाया और चलता बना , वह दिल्ली में मात्र 15 दिन रहा
फरवरी 1492 में महमूद शाह की मृत्यु के बाद दौलत खा लोदी दिल्ली का शासक बना , किन्तु1414 में खिज्र खा ने उसे हटा कर कैद कर लिया और स्वंय शासक बन बैठा , खिज्र खा के बाद उसका बेटा मुबारक शाह तथा पोता मुहम्मद दिल्ली के शासक बने , मुहम्मद के बाद अलाउद्धीन आजम शाह ( 1445 ) सिंक्र लोदी ( 1489 ) और इब्राहिम लोदी (1517 ) ने दिल्ली का शासन संभाला
लाहौर के सूबेदार दौलत खा से इब्राहिम की कुछ अनबन हो गई , जिस से दौलत खा ने बाबर को दिल्ली पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया 21 अप्रैल 1526 को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया और भारत में मुग़ल साम्राज्य की नीव रखी यद्दपि बाबर का शासन केवल चार साल ( 1526 -- 1530 ) रहा , पर इस बीच उस ने देश में अनेक भवनों का निर्माण कराया
बाबर की मृत्यु के बाद उस का पुत्र हुमायु गद्दी पर बैठा , हुमायु ने पुराने किले और फिरोजशाह कोटला के मध्य दीनपनाह नामक एक बस्ती बसाई , जिसे ध्वस्त कर शेरशाह सूरी ने पुराना किला नामक दिल्ली की छठवी बस्ती बसाई , हुमायु का उतराधिकारी अकबर (1566-- 1605 ) और अकबर का जहागीर ( 1605 -- 1627 ) यद्यपि इन दोनों ने बाबर और हुमायु की तरह आगरा को ही अपने शासन संचालन का केंद्र बनाया किन्तु दिल्ली और उस के आसपास के इलाको के विकास में भी योगदान दिया , बाद में अकबर ने आगरा और फतहपुर सिकरी को छोड़ कर दिल्ली में ही डेरा डाल लिया |
यही प्रवृति शाहजहा की भी रही , उसने 1639 में दिल्ली में शाहजहानाबाद बसा कर उसे राजधानी बनाया आजकल यह '' पुरानी दिल्ली '' के नाम से प्रसिद्ध है , यह दिल्ली की सातवी बस्ती है , जो कश्मीरी गेट , लाहौरी गेट और लालकिले के मध्य का क्षेत्र है |
1658 में औरंगजेब दिल्ली का शासक बना , उस ने 1707 तक दिल्ली पर राज्य किया औरंगजेब के बाद बहादुरशाह (1707 -- 12) जहादार्शाह ( 1712 -- 13 ) फरुखशियार ( 1713 -- 19 ), रफ़ी -- उद- दाराजात ( 1719 ) रफ़ी - उद- दौला ( 1719 ) और मुहम्मद शाह बगश 1719 --48 ने दिल्ली की गद्दी संभाली
इसी दौरान 1739 में नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला कर दिया , उस ने मुहम्मद बगश को बंदी बना कर दिल्ली में 57 दिनों तक भारी लूटपाट की , वह अपने साथ लगभग 70 करोड़ का माल लुटा , जिस में कोहिनूर हीरा तथा शाहजहा द्वारा लगभग एक करोड़ रुपयों की लागत से बनवाये गये तख्ते ताउस '' भी शामिल थे
1748 में मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद अहमदशाह सम्राट बना , वह एक अयोग्य शासक था इसीलिए1754 में उसे गद्दी से उतार कर उस की आँखे फोड़ दी गयी तब जहादर शाह का पुत्र अजिजुद्दौला आलमगीर दितीय के नाम से बादशाह बना 1757 में अहमदशाह अब्दाली ने दिल्ली पर आक्रमण किया तथा यहाँ अपना प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को नियुक्त किया |
1757 से 1857 तक दिल्ली में शासको का प्राय: स्थायित्व नही रहा जो भी राजा बना , वह आपसी संघर्ष का शिकार हुआ जिस का दुष्परिणाम यह हुआ की 1803 में लार्ड लेक के नेतृत्व में दिल्ली पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया और मुगल सम्राट शाह आलम की रक्षा का भार भी अंग्रेजो ने ले लिया
1806 में शाह आलम की मृत्यु के बाद उस के बेटे अकबर द्दितीय (1806 -- 37 ) और उसके बाद बहादुरशाह द्दितीय ( 1837 -- 57) को गद्दी पर बैठाया गया , ये दोनों शासक ब्रिटिश सरकार के पेंशनधारी होने के कारण नाममात्र के ही सम्राट थे , एक तरह से उन के साम्राज्य की सीमा लाल किले तक ही सीमित थी |
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है की यह स्थल धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर आदि पांड्वो को अपना आवास बनाने के लिए दिया था , तब इस का नाम '' खांडव वन '' था युधिष्ठिर ने अपने भाइयो की सहायता से वन को साफ़ कर के , मय दानव से शानदार महल का निर्माण कराया था , स्वभावत: यहाँ धीरे -- धीरे बस्तिया बस्ती गई , जिन पर युधिष्ठिर का शासन चलता रहा , बाद में युधिष्ठिर हस्तिनापुर चले गये और वही से शासन सूत्र का संचालन करते रहे |
परवर्तीकाल में इन्द्रप्रस्थ मौर्यों ,यौधेयो , कुषाणों आदि के शासन में भी रहा , किन्तु तब तक यह ' इंदरपत गाँव '' में बदल चुका था ,
ऐतिहासिक तथ्यों , ज्ञात अभिलेखों और पुरातात्विक खुदाइयो से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर दिल्ली को ' सात बस्तियों का नगर '' माना जाता है , जो विभिन्न कालो में बनी .. इन में सबसे पुरानी बस्ती दसवी सदी के अंतिम चरण (993 ) में बसी थी , जिसे तोमर राजपूत अनगपाल ने बसाया था और नाम रखा था '' ढिल्ली '' आधुनिक युग में इस की पहचान '' लालकोट '' के रूप में की गई है .
अनगपाल के बाद कन्नौज के गहडवाल शासको ने '' ढिल्ली '' पर अधिकार जमाया फिर क्रमश: अजमेर के चौहान राजा अर्णोराज तथा विग्रहराज बीसल देव चतुर्थ ( 115 -- 64 ) ने इसे कन्नौज के राजा से छीन लिया |
बीसल देव के बाद पृथ्वीराज चौहान ( 1177 -- 92 ) ने यहाँ शासन किया , पृथ्वीराज ने यहाँ '' रायपिथौरा '' के नाम से एक किला भी बनवाया था , पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज नरेश जयचंद के बीच लम्बे समय तक मन मुटाव चलता रहा , इस बीच पृथ्वीराज ने जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता -- संयुक्ता से प्रेम विवाह भी कर लिया , जिस से और अधिक चिढ कर जयचंद ने विदेशी हमलावर मुहम्मद गोरी को पृथ्वीराज के विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए आमंत्रित किया |
पृथ्वीराज ने तरावली के मैदान में मुहम्मद गोरी को युद्ध में हराया , परन्तु गोरी ने 1192 में पृथ्वीराज पर विजय पाई और अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सूबेदार बनाया , उस ने 1210 तक दिल्ली पर राज्य किया , यद्यपि उस ने 1206 में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद दिल्ली की जगह लाहौर को राजधानी बनाया था |
11211 में ऐबक के दामाद शमशुद्दीन ने पुन: लाहौर छोड़ कर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया 1236 में दिल्ली की गद्दी पर रजिया बेगम बैठी , दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाली वह पहली महिला थी उन्होंने 1240 तक शासन किया ......
रजिया बेगम के बाद बहराम शाह (1240 -- 42 ) मसूद (1242 --46 ) नसुरुद्दीन ( 1246 -- 66 ) बलबम ( 1266-- 86 ) केकुबाद ( 1286-- 90 ) आदि ने दिल्ली पर राज्य किया था , केकुबाद के समय ही दिल्ली पर गुलाम वंश के शासन का अंत हो गया |
1290 में दिल्ली की बागडोर जलालुद्दीन खिलजी ने संभाली , खिलजी वंश के तीसरे शासक के रूप में अलाउद्दीन खिलजी 1296 में सत्तारूढ़ हुआ . अलाउद्दीन ने ही दिल्ली की दूसरी बस्ती की नीव डाली उस ने यहाँ सीरी फोर्ट का निर्माण कराया हौजखास भी उसी की देन है उस ने1296 से1316 तक शासन किया|
अलाउद्दीन के बाद 1320 तक दिल्ली की बागडोर शाह्बुद्धीन खिलजी , मुबारक और खुसरो ने संभाली , 1320 में खुसरो के एक सरदार गाजी मलिक ने बगावत कर दी , जिसमे खुसरो मारा गया और उस के साथ ही खिलजी वंश का शासकीय अंत हो गया
1320 में गाजी मलिक गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली का सुलतान बना और उस ने यहाँ तुगलक वंशीय शासन की नीव डाली , 1414 तक यहाँ 11 तुग्लको ने राज्य किया जिन में से केवल तीन ने ही राज्य के विस्तार में योगदान दिया , ग्यासुद्धीन तुगलक ( 1320-- 25 ) ने तुगलकाबाद बसाया जो दिल्ली की तीसरी बस्ती मानी जाती है |
1325 में मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का शासक बना , उसने 1327 से 1330 तक अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरी और 130 से 1351 तक देवगिरी से दिल्ली बदल ली , इस दौरान 1328 में तरमाशीरी खा के नेतृत्व में मंगोल लूटपाट करते हुए दिल्ली तक आ पहुंचे , मुहम्मद तुगलक ने उन्हें ढेर सारा धन दे कर वापस भेज दिया मुहम्मद तुगलक ने यहाँ पर '' जहापनाह '' नामक चौथी बस्ती बसाई , जो आज खंडहर के रूप में नाम शेष है |
मुहम्मद तुगलक के उतराधिकारी फिरोजशाह तुगलक (1351-- 88 ) ) दिल्ली की पांचवी बस्ती '' फिरोजाबाद '' बसाई जो फिरोजशाह कोटला के नाम से प्रसिद्ध है फिरोजशाह की मृत्यु के बाद उस के पोते ग्यासुद्धीन ( 1388 -- 92 ) दूसरे पोते अबू बकर तथा नासिरुद्धीन के नाम से मुहम्मद , हुमायु और महमूद ( 1392 -- 1398 ) ने दिल्ली पर शासन किया
महमूद शाह के शासनकाल में तैमुर लंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया 17 दिसम्बर 1398 को महमूद और तैमुर में जम कर युद्ध हुआ जिस में तैमुर की जीत हुई और महमूद को भागना पडा , उस ने गुजरात में जा कर शरण ली , इधर तैमुर लंग ने दिल्ली में जमकर लूटपाट की , लगभग तीन लाख लोगो को बंदी बनाया और चलता बना , वह दिल्ली में मात्र 15 दिन रहा
फरवरी 1492 में महमूद शाह की मृत्यु के बाद दौलत खा लोदी दिल्ली का शासक बना , किन्तु1414 में खिज्र खा ने उसे हटा कर कैद कर लिया और स्वंय शासक बन बैठा , खिज्र खा के बाद उसका बेटा मुबारक शाह तथा पोता मुहम्मद दिल्ली के शासक बने , मुहम्मद के बाद अलाउद्धीन आजम शाह ( 1445 ) सिंक्र लोदी ( 1489 ) और इब्राहिम लोदी (1517 ) ने दिल्ली का शासन संभाला
लाहौर के सूबेदार दौलत खा से इब्राहिम की कुछ अनबन हो गई , जिस से दौलत खा ने बाबर को दिल्ली पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया 21 अप्रैल 1526 को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया और भारत में मुग़ल साम्राज्य की नीव रखी यद्दपि बाबर का शासन केवल चार साल ( 1526 -- 1530 ) रहा , पर इस बीच उस ने देश में अनेक भवनों का निर्माण कराया
बाबर की मृत्यु के बाद उस का पुत्र हुमायु गद्दी पर बैठा , हुमायु ने पुराने किले और फिरोजशाह कोटला के मध्य दीनपनाह नामक एक बस्ती बसाई , जिसे ध्वस्त कर शेरशाह सूरी ने पुराना किला नामक दिल्ली की छठवी बस्ती बसाई , हुमायु का उतराधिकारी अकबर (1566-- 1605 ) और अकबर का जहागीर ( 1605 -- 1627 ) यद्यपि इन दोनों ने बाबर और हुमायु की तरह आगरा को ही अपने शासन संचालन का केंद्र बनाया किन्तु दिल्ली और उस के आसपास के इलाको के विकास में भी योगदान दिया , बाद में अकबर ने आगरा और फतहपुर सिकरी को छोड़ कर दिल्ली में ही डेरा डाल लिया |
यही प्रवृति शाहजहा की भी रही , उसने 1639 में दिल्ली में शाहजहानाबाद बसा कर उसे राजधानी बनाया आजकल यह '' पुरानी दिल्ली '' के नाम से प्रसिद्ध है , यह दिल्ली की सातवी बस्ती है , जो कश्मीरी गेट , लाहौरी गेट और लालकिले के मध्य का क्षेत्र है |
1658 में औरंगजेब दिल्ली का शासक बना , उस ने 1707 तक दिल्ली पर राज्य किया औरंगजेब के बाद बहादुरशाह (1707 -- 12) जहादार्शाह ( 1712 -- 13 ) फरुखशियार ( 1713 -- 19 ), रफ़ी -- उद- दाराजात ( 1719 ) रफ़ी - उद- दौला ( 1719 ) और मुहम्मद शाह बगश 1719 --48 ने दिल्ली की गद्दी संभाली
इसी दौरान 1739 में नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला कर दिया , उस ने मुहम्मद बगश को बंदी बना कर दिल्ली में 57 दिनों तक भारी लूटपाट की , वह अपने साथ लगभग 70 करोड़ का माल लुटा , जिस में कोहिनूर हीरा तथा शाहजहा द्वारा लगभग एक करोड़ रुपयों की लागत से बनवाये गये तख्ते ताउस '' भी शामिल थे
1748 में मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद अहमदशाह सम्राट बना , वह एक अयोग्य शासक था इसीलिए1754 में उसे गद्दी से उतार कर उस की आँखे फोड़ दी गयी तब जहादर शाह का पुत्र अजिजुद्दौला आलमगीर दितीय के नाम से बादशाह बना 1757 में अहमदशाह अब्दाली ने दिल्ली पर आक्रमण किया तथा यहाँ अपना प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को नियुक्त किया |
1757 से 1857 तक दिल्ली में शासको का प्राय: स्थायित्व नही रहा जो भी राजा बना , वह आपसी संघर्ष का शिकार हुआ जिस का दुष्परिणाम यह हुआ की 1803 में लार्ड लेक के नेतृत्व में दिल्ली पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया और मुगल सम्राट शाह आलम की रक्षा का भार भी अंग्रेजो ने ले लिया
1806 में शाह आलम की मृत्यु के बाद उस के बेटे अकबर द्दितीय (1806 -- 37 ) और उसके बाद बहादुरशाह द्दितीय ( 1837 -- 57) को गद्दी पर बैठाया गया , ये दोनों शासक ब्रिटिश सरकार के पेंशनधारी होने के कारण नाममात्र के ही सम्राट थे , एक तरह से उन के साम्राज्य की सीमा लाल किले तक ही सीमित थी |
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान भारतीय
सैनिको की तीन टुकडियो ने 11मई 1857 को दिल्ली से मेरठ पहुंच कर अंग्रेजो
को खदेड़ दिया और बहादुरशाह को भारत का सम्राट घोषित कर दिया , किन्तु 21
सितम्बर 1857 को अंग्रेजो ने दिल्ली पर पुन: कब्जा कर लिया | और बहादुरशाह
के पुत्र को मार दिया, बहादुरशाह जीनत महल और जवानबख्त को नजरबंद क्र के
रंगून भेज दिया जहा 1862 में बहादुरशाह का देहांत हो गया , अन्य विद्रोहीयो
को चांदनी चौक पर फाँसी दे दी गयी | 1876 में रानी विक्टोरिया ने केसर - ए
- हिंद ( भारत की साम्राज्ञी ) की उपाधि धारण की , इस अवसर पर लार्ड लिटन
ने दिल्ली में एक बड़ा दरबार आयोजित किया , तब सभी भारतीय रियासतों के शासको
को महारानी के प्रति सत्यनिष्ठा की शपथ दिलाई गयी |
1911 में अंग्रेजो ने कलकत्ता के बदले दिल्ली के दक्षिण में बसी नई दिल्ली को राजधानी बनाया 1911 में ही यहाँ इंग्लैण्ड के राजा की ताज पोशी हुई 1911 से 1947 तक दिल्ली अंग्रेजो के शासन में रही 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के समय सत्ता हस्तांतरण दिल्ली स्थित संसद भवन में ही हुआ था | स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व उत्तर प्रदेश के शासन में था , स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह चीफ कमिश्नर द्वारा शासित प्रदेश बना , शीघ्र ही संविधान के अनुसार दिल्ली को '' सी '' श्रेणी का राज्य बनाने का आन्दोलन शुरू हुआ फलत: 1952 में यह '' सी '' श्रेणी का राज्य बन गया |
1911 में अंग्रेजो ने कलकत्ता के बदले दिल्ली के दक्षिण में बसी नई दिल्ली को राजधानी बनाया 1911 में ही यहाँ इंग्लैण्ड के राजा की ताज पोशी हुई 1911 से 1947 तक दिल्ली अंग्रेजो के शासन में रही 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के समय सत्ता हस्तांतरण दिल्ली स्थित संसद भवन में ही हुआ था | स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व उत्तर प्रदेश के शासन में था , स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह चीफ कमिश्नर द्वारा शासित प्रदेश बना , शीघ्र ही संविधान के अनुसार दिल्ली को '' सी '' श्रेणी का राज्य बनाने का आन्दोलन शुरू हुआ फलत: 1952 में यह '' सी '' श्रेणी का राज्य बन गया |
कुल मिलाकर दिल्ली प्राचीनकाल से
लेकर अब तक राजनितिक उथलपुथल का केंद्र तो रही है , दिल दहलाने वाली घटनाए
भी होती रही है | हम वीर और साहसी होते हुए भी क्यों दुश्मनों से मात खाते
रहे , क्या प्राचीनकाल से अब तक हम अपने पराजयों का कभी विश्लेषण किया है
और क्या आगे करेंगे |
-सुनील दत्ता
-सुनील दत्ता
आभार ....स , विश्वनाथ
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