अज़ीज़ दोस्तों,
संसार के दूसरे सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश भारत में मुसलमानों की स्थिति आजादी के 65 वर्ष बाद भी अति दयनीय है। बहुत अधिक बताने की जरूरत नहीं, केन्द्र सरकार द्वारा मुसलमानों के हालात का जायजा लेने के लिए गठित की गई राजेन्द्र सच्चर कमेटी के अनुसार वर्तमान समय में मुसलमानों की आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति दलितों से भी गयी गुजरी हो चुकी है।
मुसलमान ऐसी स्थिति में क्यों पहुँचे और इन्हें इस गर्त में डालने के पीछे किन शक्तियों का हाथ है?यदि इन प्रश्नों के उत्तर का आकलन किया जाए तो हम पाते है कि आज़ादी के बाद जब देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान की उत्पत्ति धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देकर की गई तो भारत के प्रति अपनी वफ़ादारी जता कर बाकी बचे मुसलमानों को संकीर्ण विचार धारा वाली शक्तियों ने सदैव इस मानसिक स्थित में डुबो कर रखा कि मुसलमानों के कारण ही देश का विभाजन हुआ और वह मुस्लिम कौम, जिसके पूर्वजों ने सबसे पहले देश की स्वाधीनता 1857 के संग्राम में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ा या और हजारों मुसलमानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजी शासकों की मजबूत हुकूमत की चूलें हिला दी थीं, हीन भावना का शिकार हो गई, वह यह सोचने पर मजबूर हो गई कि उनकी देश के प्रति आस्था व देश भक्ति को सशंकित नजरों से देखा जाता है।
कहा तो यह जाता रहा है कि मुसलमान कौम से अपने को अलग रखकर देश में रहता है परन्तु वास्तविकता यह है कि मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद कर तथा उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने वाले उनके हर कदम पर अनेक बाधाएँ उत्पन्न कर उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया गया कि वे अपने बच्चों को केवल धार्मिक शिक्षा देकर हाथ का हुनर सिखाएँ और दुनियाबी शिक्षा से अपने बच्चों को दूर रखें जहाँ उनके बच्चों को हिन्दुत्ववादी विचारधारा के अध्ययन करने पर मजबूर किया जाता है। हिन्दू कट्टर पंथी सोच के समर्थन में मुस्लिम कट्टर पंथियों की संकीर्ण विचारों से प्रभावित मुसलमानों के एक बड़े तबके के चलते मुसलमान नवीन शिक्षा से काफी पिछड़कर देश में मात्र कारीगर, दस्तकार या शिल्पकार बनकर रह गया। वहीं दूसरी ओर जमींदारी विनाश अधिनियम 1952 के पश्चात अधिकांश मुसलमानों के हाथ से खेती योग्य भूमि भी जाती रही। भूमिहीनों को सरकार की ओर से यहाँ भूमि वितरण में भी मुसलमानों को हिस्सा नहीं दिया गया। तो जिन मुसलमानों के पास हाथ का हुनर नहीं था उनका जीवन केवल मेहनत मजदूरी पर ही आकर निर्भर हो गया।
फिर सोने पर सुहागा यह रहा कि देश में लाखों की तादाद में साम्प्रदायिक दंगे कराकर मुसलमानों द्वारा मेहनत मजदूरी से अर्जित की जाने वाली धन सम्पदा को सरेआम लूटा गया और इस लूट में सैनिक बलों ने भी अपनी सहभागिता की। देश के विभाजन में जितनी जनहानि मुसलमानों की साम्प्रदायिक हिंसा से नहीं हुई थी उतनी आजादी के बाद देश में मुसलमानों का कत्ले आम करके की गई। साम्प्रदायिक दंगा कराने के लिए नए बहाने तलाशे गए। कभी भारत-पाक युद्ध को लेकर, तो कभी भारत-पाक हाकी व क्रिकेट मैच को लेकर कभी कब्रिस्तान को लेकर तो कभी गौकशी को लेकर तो कभी मन्दिर-मस्जिद विवाद को लेकर।
नब्बे के दशक के प्रारम्भ में जब देश में आर्थिक सुधारों की बयार बही और साथ ही विदेशी पूँजी निवेश के साथ कार्पोरेट सेक्टर की कम्पनियों के द्वारा प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों के दरवाजे देश के नौजवानों के लिए खुले तो अपनी काबलियत के बल पर मुस्लिम नवयुवकों ने भी नौकरियाँ प्रारम्भ कीं और जो मुस्लिम युवक अपना कैरियर खाड़ी के देशों में तलाशते थे वह अब देश के आईटी हब हैदराबाद, बैंगलोर, गुड़गांव, नोयडा और दिल्ली में नौकरियों से लग गए। उन्हें आर्थिक उन्नति के रास्तों पर आगे बढ़ते देख उ.प्र., बिहार आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा बंगाल आदि के मुस्लिम नवयुवक उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित हुए और बी. टेक, एम.टेक, एम.बी.ए. जैसे कोर्सों में मुसलमानों की भागीदारी बढ़ी।
मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में होते सुधार से दुर्भावना रखने वाली शक्तियों ने अपनी रणनीति में परिवर्तन कर 21वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षो से देश में आतंकवाद की घटनाओं में इजाफा करना प्रारम्भ कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप देश के कोने-कोने मे बम विस्फोटों से दर्जनों निर्दोषों की जानें गई। हर विस्फोेट के पश्चात् देश की गुप्तचर एजेंसियों, कथित राष्ट्रीय मीडिया एवं पुलिस की जाँच एजेंसियों के गठजोड़ ने नित्य नए आतंकी संगठनों का इस्लामी नामकरण करके सैकड़ों मुसलमानों को बगैर किसी साक्ष्य व दोषारोपण के जेलों में कभी टांडा तो कभी मकोका जैसे विशेष आतंकी विरोधी कानून लगा कर देश द्रोहिता का तमगा उनके गले में लटका कर ठूँस दिया। देश की राजधानी में बाटला हाउस एन्काउन्टर में तीन शिक्षित मुस्लिम युवकों को आतंकवादी करार देकर गोलियों से छलनी कर दिया गया। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसके बाद उन बच्चों के गृह जनपदों से कोई मुसलमान यह हिम्मत न कर सका कि उच्च शिक्षा के लिए अपने बच्चों को अपने से दूर भेजकर उनके सुन्दर भविष्य की कामना करें।
मुसलमानों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करने में कोई भी राजनैतिक दल किसी से भी पीछे नहीं रहा यदि केन्द्र में सत्ता के शिखर पर बैठी कांग्रेस के शासित राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा व आतंकवाद के नाम पर निर्दोषों को जेल भेजने का क्रम जारी रहा तो मुसलमानों के लिए हमदर्दी का दम भरने वाले मुलायम सिंह व मायावती की हुकूमतों में भी यह क्रम जारी रहा है। मायावती के कार्यकाल में तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद, सज्जादुर्रहमान, मो0 अख्तर, आफताब आलम अंसारी, शहाबुद्दीन, जंग बहादुर खान, मो0 शरीफ, गुलाब खान, कौसर फारूकी, फहीम अरशद अंसारी, मो0 याकूब, नासिर हुसैन, जलालुद्दीन, नौशाद, मो0 अली अकबर हुसैन, शेख मुख्तार, अजीजुर्रहमान और नूर इस्लाम को आतंकवादी घटनाओं या गतिविधियों में लिप्त करार देकर जेल भेजा गया तो वहीं मुलायम सिंह या अखिलेश यादव सरकार भी मुसलमानों को नुकसान पहुँचाने में किसी से पीछे नहीं रही और मौजूदा सपा सरकार में प्रायोजित तरीके से सरकारी मशीनरी के संरक्षण में साम्प्रदायिक दंगे कराए गए, जमकर मुसलमानों की सम्पत्तियों को लूटा गया। बाद में मुसलमानों पर ही साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोप मढ़कर उन्हें जेलों में भेजा गया। मायावती के शासनकाल में हुए कचेहरी बम विस्फोटों के आरोप में झूठे फंसाए गए आरोपी तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी के लिए गठित आर.डी. निमेष कमीशन की रिपोर्ट यदि मायावती ने नहीं जगजाहिर की तो मुलायम के पुत्र अखिलेश यादव की सरकार भी निमेष कमीशन की रिपोर्ट मीडिया में लीक हो जाने के पश्चात भी छुपाए बैठी हुई है। जिसमें तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद को दोषमुक्त करार दिया गया है।
देश की एकता एवं अखण्डता की रक्षा के लिए इस देश के बहुधर्मीय, बहुजातीय, बहुभाषीय स्वरूप को बरकरार रखा जाना आवश्यक है किन्तु साम्राज्यवादी ताकतों के इशारे पर सभी कट्टरपंथी तत्व साँझी संस्कृति-साँझी विरासत को नुकसान पहुँचाकर देश की एकता को कमजोर कर रहे हैं।
मुसलमानों की वर्तमान स्थिति पर विचार हेतु भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जनसंगठन इंसाफ़ द्वारा स्थानीय गांधी भवन, देवां रोड, बाराबंकी में 20 जनपदों के प्रतिनिधियों का एक विशाल सम्मेलन आगामी 27 जनवरी 2013 दिन रविवार समय 10 बजे प्रातः आयोजित होने जा रहा है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
संसार के दूसरे सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश भारत में मुसलमानों की स्थिति आजादी के 65 वर्ष बाद भी अति दयनीय है। बहुत अधिक बताने की जरूरत नहीं, केन्द्र सरकार द्वारा मुसलमानों के हालात का जायजा लेने के लिए गठित की गई राजेन्द्र सच्चर कमेटी के अनुसार वर्तमान समय में मुसलमानों की आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति दलितों से भी गयी गुजरी हो चुकी है।
मुसलमान ऐसी स्थिति में क्यों पहुँचे और इन्हें इस गर्त में डालने के पीछे किन शक्तियों का हाथ है?यदि इन प्रश्नों के उत्तर का आकलन किया जाए तो हम पाते है कि आज़ादी के बाद जब देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान की उत्पत्ति धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देकर की गई तो भारत के प्रति अपनी वफ़ादारी जता कर बाकी बचे मुसलमानों को संकीर्ण विचार धारा वाली शक्तियों ने सदैव इस मानसिक स्थित में डुबो कर रखा कि मुसलमानों के कारण ही देश का विभाजन हुआ और वह मुस्लिम कौम, जिसके पूर्वजों ने सबसे पहले देश की स्वाधीनता 1857 के संग्राम में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ा या और हजारों मुसलमानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजी शासकों की मजबूत हुकूमत की चूलें हिला दी थीं, हीन भावना का शिकार हो गई, वह यह सोचने पर मजबूर हो गई कि उनकी देश के प्रति आस्था व देश भक्ति को सशंकित नजरों से देखा जाता है।
कहा तो यह जाता रहा है कि मुसलमान कौम से अपने को अलग रखकर देश में रहता है परन्तु वास्तविकता यह है कि मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद कर तथा उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने वाले उनके हर कदम पर अनेक बाधाएँ उत्पन्न कर उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया गया कि वे अपने बच्चों को केवल धार्मिक शिक्षा देकर हाथ का हुनर सिखाएँ और दुनियाबी शिक्षा से अपने बच्चों को दूर रखें जहाँ उनके बच्चों को हिन्दुत्ववादी विचारधारा के अध्ययन करने पर मजबूर किया जाता है। हिन्दू कट्टर पंथी सोच के समर्थन में मुस्लिम कट्टर पंथियों की संकीर्ण विचारों से प्रभावित मुसलमानों के एक बड़े तबके के चलते मुसलमान नवीन शिक्षा से काफी पिछड़कर देश में मात्र कारीगर, दस्तकार या शिल्पकार बनकर रह गया। वहीं दूसरी ओर जमींदारी विनाश अधिनियम 1952 के पश्चात अधिकांश मुसलमानों के हाथ से खेती योग्य भूमि भी जाती रही। भूमिहीनों को सरकार की ओर से यहाँ भूमि वितरण में भी मुसलमानों को हिस्सा नहीं दिया गया। तो जिन मुसलमानों के पास हाथ का हुनर नहीं था उनका जीवन केवल मेहनत मजदूरी पर ही आकर निर्भर हो गया।
फिर सोने पर सुहागा यह रहा कि देश में लाखों की तादाद में साम्प्रदायिक दंगे कराकर मुसलमानों द्वारा मेहनत मजदूरी से अर्जित की जाने वाली धन सम्पदा को सरेआम लूटा गया और इस लूट में सैनिक बलों ने भी अपनी सहभागिता की। देश के विभाजन में जितनी जनहानि मुसलमानों की साम्प्रदायिक हिंसा से नहीं हुई थी उतनी आजादी के बाद देश में मुसलमानों का कत्ले आम करके की गई। साम्प्रदायिक दंगा कराने के लिए नए बहाने तलाशे गए। कभी भारत-पाक युद्ध को लेकर, तो कभी भारत-पाक हाकी व क्रिकेट मैच को लेकर कभी कब्रिस्तान को लेकर तो कभी गौकशी को लेकर तो कभी मन्दिर-मस्जिद विवाद को लेकर।
नब्बे के दशक के प्रारम्भ में जब देश में आर्थिक सुधारों की बयार बही और साथ ही विदेशी पूँजी निवेश के साथ कार्पोरेट सेक्टर की कम्पनियों के द्वारा प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों के दरवाजे देश के नौजवानों के लिए खुले तो अपनी काबलियत के बल पर मुस्लिम नवयुवकों ने भी नौकरियाँ प्रारम्भ कीं और जो मुस्लिम युवक अपना कैरियर खाड़ी के देशों में तलाशते थे वह अब देश के आईटी हब हैदराबाद, बैंगलोर, गुड़गांव, नोयडा और दिल्ली में नौकरियों से लग गए। उन्हें आर्थिक उन्नति के रास्तों पर आगे बढ़ते देख उ.प्र., बिहार आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा बंगाल आदि के मुस्लिम नवयुवक उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित हुए और बी. टेक, एम.टेक, एम.बी.ए. जैसे कोर्सों में मुसलमानों की भागीदारी बढ़ी।
मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में होते सुधार से दुर्भावना रखने वाली शक्तियों ने अपनी रणनीति में परिवर्तन कर 21वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षो से देश में आतंकवाद की घटनाओं में इजाफा करना प्रारम्भ कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप देश के कोने-कोने मे बम विस्फोटों से दर्जनों निर्दोषों की जानें गई। हर विस्फोेट के पश्चात् देश की गुप्तचर एजेंसियों, कथित राष्ट्रीय मीडिया एवं पुलिस की जाँच एजेंसियों के गठजोड़ ने नित्य नए आतंकी संगठनों का इस्लामी नामकरण करके सैकड़ों मुसलमानों को बगैर किसी साक्ष्य व दोषारोपण के जेलों में कभी टांडा तो कभी मकोका जैसे विशेष आतंकी विरोधी कानून लगा कर देश द्रोहिता का तमगा उनके गले में लटका कर ठूँस दिया। देश की राजधानी में बाटला हाउस एन्काउन्टर में तीन शिक्षित मुस्लिम युवकों को आतंकवादी करार देकर गोलियों से छलनी कर दिया गया। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसके बाद उन बच्चों के गृह जनपदों से कोई मुसलमान यह हिम्मत न कर सका कि उच्च शिक्षा के लिए अपने बच्चों को अपने से दूर भेजकर उनके सुन्दर भविष्य की कामना करें।
मुसलमानों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करने में कोई भी राजनैतिक दल किसी से भी पीछे नहीं रहा यदि केन्द्र में सत्ता के शिखर पर बैठी कांग्रेस के शासित राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा व आतंकवाद के नाम पर निर्दोषों को जेल भेजने का क्रम जारी रहा तो मुसलमानों के लिए हमदर्दी का दम भरने वाले मुलायम सिंह व मायावती की हुकूमतों में भी यह क्रम जारी रहा है। मायावती के कार्यकाल में तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद, सज्जादुर्रहमान, मो0 अख्तर, आफताब आलम अंसारी, शहाबुद्दीन, जंग बहादुर खान, मो0 शरीफ, गुलाब खान, कौसर फारूकी, फहीम अरशद अंसारी, मो0 याकूब, नासिर हुसैन, जलालुद्दीन, नौशाद, मो0 अली अकबर हुसैन, शेख मुख्तार, अजीजुर्रहमान और नूर इस्लाम को आतंकवादी घटनाओं या गतिविधियों में लिप्त करार देकर जेल भेजा गया तो वहीं मुलायम सिंह या अखिलेश यादव सरकार भी मुसलमानों को नुकसान पहुँचाने में किसी से पीछे नहीं रही और मौजूदा सपा सरकार में प्रायोजित तरीके से सरकारी मशीनरी के संरक्षण में साम्प्रदायिक दंगे कराए गए, जमकर मुसलमानों की सम्पत्तियों को लूटा गया। बाद में मुसलमानों पर ही साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोप मढ़कर उन्हें जेलों में भेजा गया। मायावती के शासनकाल में हुए कचेहरी बम विस्फोटों के आरोप में झूठे फंसाए गए आरोपी तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी के लिए गठित आर.डी. निमेष कमीशन की रिपोर्ट यदि मायावती ने नहीं जगजाहिर की तो मुलायम के पुत्र अखिलेश यादव की सरकार भी निमेष कमीशन की रिपोर्ट मीडिया में लीक हो जाने के पश्चात भी छुपाए बैठी हुई है। जिसमें तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद को दोषमुक्त करार दिया गया है।
देश की एकता एवं अखण्डता की रक्षा के लिए इस देश के बहुधर्मीय, बहुजातीय, बहुभाषीय स्वरूप को बरकरार रखा जाना आवश्यक है किन्तु साम्राज्यवादी ताकतों के इशारे पर सभी कट्टरपंथी तत्व साँझी संस्कृति-साँझी विरासत को नुकसान पहुँचाकर देश की एकता को कमजोर कर रहे हैं।
मुसलमानों की वर्तमान स्थिति पर विचार हेतु भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जनसंगठन इंसाफ़ द्वारा स्थानीय गांधी भवन, देवां रोड, बाराबंकी में 20 जनपदों के प्रतिनिधियों का एक विशाल सम्मेलन आगामी 27 जनवरी 2013 दिन रविवार समय 10 बजे प्रातः आयोजित होने जा रहा है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
अति उत्तम
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अग्नि मिसाइल: बढ़ती पोस्ट चोरियाँ और घटती संवेदनशीलता, आपकी राय?
KRIPA KAR K BATLA HOUSE K ENCOUNTER KO FARZI KAH KAR 1 DESH BHAKT POLICE OFFICER K BALIDAAN KA MAZAAK NA UDAYEN. BAKI AAP KO BHI AZADI HAI KUCH B BOLIYE SACH SABKO PATA HAI.
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