शुक्रवार, 15 मार्च 2013

पता नहीं इस लड़की का क्या होगा?-2

इस बीच एस0एस0पी0 अमरेश  मिश्रा और डी0आई0जी0 कल्लूरी से लिंगा की बुआ सोनी और उसके पति अनिल मिले। दोनों से पुलिस अधिकारियों ने साफ-साफ कहा कि लिंगा ने कोर्ट में पुलिस की इज्जत खराब की है, उनके पास उसे मारने की ऊपर से छूट है, और उसे तो वे जिंदा नहीं छोड़ेंगे।
    लिंगा मेरे दंतेवाडा वाले आश्रम में छिपा हुआ था। उसने पूछा, सर, मुझे क्या करना चाहिए?वह बार-बार कहता था, मैं बन्दूक उठा लूँगा। अगर मरना ही है, तो लड़ते हुए मरूँगा। मैंने कुछ सामाजिक संस्थाओं से बातचीत की और लिंगा को गोपनीय तौर पर दिल्ली भिजवा दिया। मेरे कुछ पत्रकार मित्रों ने सलाह दी कि बस्तर में कोई आदिवासी पत्रकार नहीं है। इसलिए लिंगा को पत्रकार बनने में मदद की जानी चाहिए। लिंगा का प्रवेदिल्ली के एक प्रख्यात पत्रकारिता संस्थान में हो गया।
    उधर छत्तीसगढ़ पुलिस को जब लिंगा के पत्रकार बनने की संभावना का पता चला, तो वह घबरा गई, क्योंकि लिंगा छत्तीसगढ़ पुलिस के अत्याचारों का गवाह था और पत्रकार बनने के बाद वह दंतेवाडा में पुलिस की करतूतों का पोल खोल सकता था। आनन-फानन में विश्वरंजन और कल्लूरी ने एक वक्तव्य मीडिया के लिए जारी किया कि लिंगा कोड़ोपी एक बड़ा नक्सली नेता है और माओवादी पार्टी ने अपने प्रवक्ता आजाद के मरने के बाद लिंगा को उनकी जगह नियुक्त किया है, और लिंगा को नक्सलवाद की ट्रेनिंग के लिए अमरीका भेजा गया था (जबकि लिंगा के पास कोई पासपोर्ट नहीं है) और उसका सम्बन्ध अरुंधती रॉय, मेधा पाटकर, हिमांशु  कुमार  और नंदिनी सुन्दर से है।
    इस प्रेस वक्तव्य के बाद स्वामी अग्निवे ने दिल्ली में एक प्रेस वार्ता की तथा चुनौती दी की लिंगा यहाँ है और एक सीधा सादा आदिवासी युवक है जो पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा है और अगर पुलिस के पास कोई सबूत है तो सामने आए। इसके बाद पुलिस ने माफीनामा जारी किया और छत्तीसगढ़ के डी0जी0पी0 विश्वरंजन ने वक्तव्य दिया कि लिंगा के विषय में पिछला वक्तव्य गलती से जारी हो गया था। परन्तु पुलिस भीतर ही भीतर लिंगा को दबोचने का षड्यंत्र रचने में लगी रही, और उसने लिंगा की बुआ सोनी और उसके पति अनिल के विरुद्ध फर्जी रिपोर्ट लिखकर अनिल को तीन महीने से जेल में डाला हुआ है, और सोनी के विरुद्ध वारंट जारी कर दिया है। सोनी वारंट के बावजूद एस0एस0पी0 कल्लूरी से कई बार मिली। हर बार उसने सोनी से एक ही शर्त रखी-कि लिंगा को दिल्ली से वापस लाकर पुलिस को सौंप दिया जाए, तभी वे उसे और उसके पति को छोड़ देंगे, और लिंगा को गोली से उड़ा देंगे।
    सोनी सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल है। रोज स्कूल जाती है, हाजिरी दर्ज करती है और इसे फरार घोषित कर दिया गया है, ताकि इस आदिवासी महिला को कभी भी गोली मार दी जा सके।
    क्या कोई इस निर्दोष लड़की की जान बचाएगा? कहाँ हैं इस देश  के महान मीडिया के दिग्गज? कहाँ है देषभक्ति की ठेकेदार भाजपा? और कहाँ हैं आदिवासियों के सिपाही राहुल गाँधी? मैं रोज इस आशका से जागता हूँ कि सोनी सोरी के मौत की या उसके जेल में डाल देने की खबर आएगी। वह रोज मुझे फोन कर के उसे बचाने का निवेदन करती है। क्या कोई है जो इस महान लोकतंत्र में, इस महाशक्ति बनने जा रहे भारत में, जो इस असहाय, अकेली आदिवासी लड़की को सत्ता और व्यापार के क्रूर पंजों से बचा सके?
    अपने निर्माण के दस साल बाद छत्तीसगढ़ लोकतंत्र के नाम पर एक धब्बा बना हुआ है। लेकिन क्योंकि वहाँ से खनिज पदार्थ लूटना है, जिसमें मनमोहन सिंह, चिदंबरम, कांग्रेस और भाजपा सबकी हिस्सेदारी है, इसलिए छत्तीसगढ़ में इस आतंकवादी शासन पर सब खामोशहैं. लेकिन ये सब लोग फासीवादी खेल खेल रहे हैं जिसका फायदा नक्सलियों को हो रहा है।
    पिछले दिनों मैंने दंतेवाडा जिले की एक आदिवासी लड़की सोनी सोरी के मुष्किल हालात पर एक लेख लिखा था।
जिसमें उसके भांजे लिंगा कोडोपी को दिल्ली से वापिस बुला कर पुलिस के हाथों में सौंप देने के लिए वहाँ का एस0एस0पी0 कल्लूरी इस लडकी से सौदेबाजी कर रहा है। पहले तो उसने धमकी दी कि अगर इस लड़की सोनी सोरी ने अपने भांजे लिंगा कोडोपी को दिल्ली से लाकर पुलिस को नहीं सौंपा तो पुलिस इस लड़की की जिंदगी बर्बाद कर देगी। इसके बाद कल्लूरी नें अपनी धमकी पर अमल करते हुए इस लड़की के पति को जेल में डाल दिया तथा इनकी जीप को जप्त कर लिया और इस लड़की को भी नक्सलियों के साथ मिल कर थाने पर और एक कांग्रेसी नेता के घर पर हमला करने के दो मामलों में फंसा दिया और इसके खिलाफ वारंट जारी कर दिया। इसके बाद इस लड़की ने मुझसे मदद करने की गुहार की। लेकिन आखिर इस दे में दंतेवाडा के एस0एस0पी0 कल्लूरी से ऊपर तो कोई है नहीं। इसलिए मैं इस लड़की की कोई मदद नहीं नहीं कर पाया। हालाँकि मैं मीडिया, एक्टिविस्टों और नेताओं से इस लड़की की मदद के लिए मिला, मदद के नाम पर सबने हाथ खड़े कर दिए। इसलिए मैं इस लड़की की कोई मदद नहीं कर पाया। अंत में मैंने इस उम्मीद में एक लेख लिखा की शायद इस लड़की की जिंदगी को बर्बाद होने से कोई तो बचाएगा। मुझे उम्मीद थी कि आखिर इस विशाल और महान देश में कोई न कोई तो उसकी मदद करेगा।
    अभी बिनायक सेन को उम्रकैद की सजा मिलने के बाद टेलीवीजन पर ऐसे बहुत से बहादुर लोग बोलते हुए दिखते हैं जो अदालत, सरकार, और लोकतंत्र की तारीफ में बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। और सफलतापूर्वक ये सिद्ध कर रहे हैं कि हम जैसे लोगों को न्याय व्यवस्था पर कोई सवाल नहीं उठाना चाहिए क्योंकि उससे देश कमजोर होता है। तो देष की मजबूती की रक्षा की खातिर मैंने सब बातों को स्वीकार कर लिया और उनकी बातें सुन कर मुझे भी खुद के विचारों पर शक और इस देश की व्यवस्था पर विष्वास सा होने लगा था।
-हिमांशु  कुमार

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