गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिन्हें उम्मीद है कि भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव मंे उन्हें प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित करेगी, शायद विवादों में घिरे रहने में ही आनंद महसूस करते हैं। नरेन्द्र मोदी अपने शब्द बहुत सोच-समझकर चुनते हैं। उनका प्रचारतंत्र काफी मेहनत से इन शब्दों को ढूंढता होगा। ‘कुत्ते का पिल्ला‘, ‘धर्मनिरपेक्षता के बुर्के के पीछे छुपी कांग्रेस‘, ‘मुझे हिन्दू राष्ट्रवादी होने पर गर्व है‘ आदि कुछ ऐसे वाक्य हैं, जिनका उद्धेश्य केवल विवाद पैदा करना, आमचुनाव के लिए अघोषित साम्प्रदायिक प्रचार करना और चर्चा के केन्द्र में बने रहना है। मोदी अक्सर मतदाताओं के दिमाग में साम्प्रदायिकता का जहर भरने के लिए अर्धसत्यों, असत्यों और कटु व असंसदीय भाषा का उपयोग करते हैं। अगर वे इन शब्दों का सोच-समझकर उपयोग नहीं कर रहे हैं तो इससे सिर्फ यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनके शब्दकोष में केवल साम्प्रदायिकता से लबरेज शब्द हैं। दोनों ही स्थितियों में, मतदाताओं को उन्हें सत्ता सौंपने के पहले दस बार सोचना चाहिए। मोदी कहते हैं कि वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं और उन्हें इसपर गर्व है। आईए, हम समझंे कि क्यों मोदी न तो राष्ट्रवादी हैं, न हिन्दू हैं और न इस पर गर्वित हैं।
राष्ट्रवादी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसके बल पर मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में कभी कोई हिस्सेदारी नहीं की। संघ ने स्वाधीनता आंदोलन से हमेशा गज भर की दूरी बनाए रखी और हमारे साम्राज्यवादी शासकों का हमेशा साथ दिया। ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ताधारियों की सलाह पर ही खाकी हाफपेन्ट को आरएसएस के गणवेश का हिस्सा बनाया गया। सन् 1942 मंे, जब सारा देश अंग्रेजों से भारत छोड़ने के लिए कह रहा था, तब आरएसएस और मुस्लिम लीग, द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए समर्थन जुटाने में लगे थे। असली राष्ट्रवादी उस समय साम्राज्यवादियों की लाठी-गोलियां खा रहे थे, जेल जा रहे थे और वहां घोर यंत्रणाएं भोग रहे थे। अपने ब्रिटिश आकाओं की सलाह पर, आरएसएस ने युद्ध के लिए काडर तैयार करने की दृष्टि से, युवाओं को सैनिक प्रशिक्षण देना शुरू किया। संघ के ब्रिटिश आकाओं ने उन्हें सलाह दी कि मैदानों में पीटी करते हुए संघ के कार्यकर्ताओं को कहीं सरकारी सैनिक न समझ लिया जाए इसलिए खाकी फुलपैंट की जगह उन्हें खाकी हाफपैंट पहनना चाहिए। संघ ने अंग्रेजों की बात मानने में तनिक भी देरी नहीं की। संघ के एक भी नेता ने स्वाधीनता संग्राम में भाग नहीं लिया और वे सभी अंग्रेजों ंकी जय-जयकार करते रहे।
आरएसएस के लिए राष्ट्रवाद का अर्थ था अंग्रेजों का समर्थन और दंगों में उत्साहपूर्वक भागीदारी, ताकि अंग्रेज अपनी फूट डालो और राज करो की नीति को बेहतर ढंग से लागू कर सकें। इसके विपरीत, राष्ट्रवादी, सारे देश को एक कर, अंग्रेजों के विरूद्ध लामबंद हो रहे थे। नाथूराम गोडसे के लिए हिन्दू राष्ट्रवाद या देशभक्ति का अर्थ था गांधीजी के सीने पर गोलियां दागना क्योंकि उनका उदारवादी और समावेशी हिन्दू धर्म, हिन्दुत्व की विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी बाधा थी। परंतु स्वाधीनता आंदोलन के समय, आरएसएस ने क्या किया या क्या नहीं, उसके लिए हम मोदी को दोषी क्यों ठहराएं? उनका जन्म तो स्वाधीनता के बाद, सन् 1950 में हुआ था।
स्वाधीनता के बाद राष्ट्रवाद का अर्थ होना चाहिए था देश की स्वाधीनता की रक्षा और ऐसी राष्ट्रीय संस्थाओं का निर्माण, जिनमें सभी नागरिकों की बराबरी की हिस्सेदारी और अधिकार हों। मोदी तो प्रजातंत्र की उस महान संस्था को ही नष्ट करने पर तुले हुए हैं जिसे हमने स्वाधीनता के बाद खड़ा किया है। उदाहरण के लिए, जितने शीर्ष पुलिस अधिकारी गुजरात की जेलों में बंद हैं, उतने किसी अन्य राज्य में नहीं हैं। पुलिस तंत्र का काम था गुजरात के लोगों की रक्षा करना और प्रजातंात्रिक संस्थाओं को सुरक्षा प्रदान करना। परंतु वहां के पुलिस अधिकारी तो मोदी को प्रसन्न करने में व्यस्त थे। मोदी ने एक लोकायुक्त कानून बनाया है, जिसके अन्तर्गत न तो न्यायपालिका, न राज्यपाल और ना ही किसी अन्य स्वतंत्र संस्था का गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति में कोई हस्तक्षेप होगा। इसका अर्थ यह है कि गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति वे ही लोग करेंगे, जिनके भ्रष्टाचार के मामले लोकायुक्त के सामने जाएंगे। जिस व्यक्ति का एकमात्र एजेन्डा देश को नहीं, बल्कि स्वयं को आगे बढ़ाना हो और जो राष्ट्र की सेवा करने की बजाए स्वयं का आभामंडल निर्मित करने में अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर रहा हो, उसे भला राष्ट्रवादी कैसे कहा जा सकता है।
मोदी ने खुलेआम यह घोषित किया है कि उनके लिए हिन्दू राष्ट्रवादी होने का अर्थ है उद्योग जगत का समर्थक होना। मोदी के लिए राष्ट्रवाद का अर्थ है गरीबों, विशेषकर किसानों और मछुआरों, की कीमत पर, पूंजीपतियों को मनमाना लाभ कमाने की छूट देना। उनके लिए देशभक्ति का मतलब है साणंद (जिला अहमदाबाद) के किसानों से 1100 एकड़ जमीन छीनकर, रातों-रात टाटा मोटर्स को हस्तांतरित कर देना और वह भी किसानों को दिए गए मुआवजे से भी कम दर पर। मोदी की देशभक्ति का एक और सबूत यह है कि उन्होंने टाटा मोटर्स को 9570 करोड़ रूपये (गुजरात के वार्षिक बजट का लगभग एक-चैथाई) का सुलभ ऋण दिया है, जिसे टाटा मोटर्स 0.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर पर, अगले बीस वर्षों में चुकाएगी। यद्यपि कंपनी को जमीन मिट्टी के मोल आवंटित की गई है परंतु फिर भी उसे इस राशि को 8 समान वार्षिक किस्तों में चुकाना है। सरकार ने टाटा नैनो की फेक्ट्री और पावर प्लांट तक चार लेन की सड़क बनाई है। कहते हैं कि राबिन हुड, अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करता था। मोदी, गुजरात के गरीब किसानों और मजदूरों को लूटकर, टाटाओं, अदानियों, अंबानियों और करसन भाई पटेलों की भरपूर मदद कर रहे हैं। आमजनों को लूटकर पूंजीपतियों की जेबें भरने की इसी नीति के कारण, गुजरात में गरीबी बढ़ी है। जब गुजरात में कुपोषण की भयावह स्थिति मोदी के सामने आई तो उन्होंने भूखे-नंगे लोगांे के घावों पर नमक छिड़कते हुए कहा कि कुपोषण का कारण, गुजरात की महिलाओं की सुंदर दिखने की चाहत है! गुजरात के लोगों-चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान-की बेहतरी शायद मोदी की देशभक्ति की परिभाषा में शामिल नहीं है और इसलिए सरकार, कुपोषण दूर करने के उपायों पर विचार तक नहीं करना चाहती है। गुजरात में राष्ट्रवाद/देशभक्ति का अर्थ है लोगों में झूठे गर्व का भाव भरना ताकि वे अपनी रोजाना की जिन्दगी की दुःख तकलीफें भूल जायें। यही प्रयास एक और हिन्दू राष्ट्रवादी-आडवाणी ने सन् 2004 के लोकसभा चुनाव के ‘इण्डिया शायनिंग’ अभियान के जरिए किया था।
क्या मोदी राष्ट्रवादी होने का दावा कर सकते हैं, जबकि उनके राज्य के बचाव दल ने, उत्तराखण्ड के बाढ़ पीडि़तों में से कथित रूप से केवल गुजरातियों को बचाया और अन्य भारतीयों को उनके हाल पर छोड़ दिया।
हिन्दू राष्ट्रवादियों के लिए राष्ट्रवाद का अर्थ है अल्पसंख्यकों के विरूद्ध घृणा फैलाना ताकि करदाताओं के पैसे से उद्योगपतियों और मुनाफाखोरों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियों के कारण बढ़ रही गरीबी पर से जनता का ध्यान हटाया जा सके। हिन्दू राष्ट्रवाद के विमर्श के केन्द्र में है अल्पसंख्यकों का दानवीकरण। अल्पसंख्यकों के दानवीकरण और उनके विरूद्ध हो रही हिंसा को नजरअंदाज करके, सरकार बहुसंख्यक वर्ग के मेहनतकश गरीबों को उनकी कुंठाओं से मुक्त करने की कोशिश कर रही है। बहुसंख्यक वर्ग के गरीबों में व्याप्त निराशा और कुंठा से जनित ऊर्जा का इस्तेमाल, परिवर्तन लाने के लिए किया जाना चाहिए-एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए, जिसमें सभी को आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध हों और समाज के हाशिए पर पटक दिए गए लोगों की बेहतरी के लिए सरकार विशेष प्रयास करे। इसकी जगह, इस ऊर्जा का उपयोग अल्पसंख्यकांे को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। अतः मोदी किसी भी तरह से राष्ट्रवादी नहीं हैं। वे तो पूंजीपतियों के मित्र हैं और उनके लिए राष्ट्रवाद का अर्थ है बहुसंख्यक समुदाय के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति काल्पनिक भय पैदा करना और उन्हें अल्पसंख्यकों पर हमले करने के लिए उकसाना।
हिन्दू?
गांधी जी के लिए हिन्दू धर्म का अर्थ था सत्य और अहिंसा। ‘‘धर्म का संबंध हृदय से है’’, गांधी जी ने कहा, ‘‘कोई भी दुख या परेशानी, किसी के लिए उसके धर्म को त्यागने का कारण नहीं बन सकती।’’ एक अन्य स्थान पर गांधी जी कहते हैं, ‘‘मैं ईश्वर की आराधना केवल सत्य के रूप में करता हूँ। मैंने अब तक उसे पाया नहीं है परन्तु मैं उसे खोज रहा हूँ। इस खोज की खातिर मैं उन सभी चीजों का त्याग करने को तत्पर हूँ जो मुझे प्रिय हैं। अगर इसके लिए मुझे अपना जीवन भी त्यागना पड़े तो मुझे आशा है कि मैं इसके लिए तैयार रहूंगा।’’ गांधी जी के लिए हिन्दू धर्म का अर्थ था सत्य, अहिंसा और त्याग। क्या कोई कल्पना भी कर सकता है कि मोदी केवल और केवल सत्य बोलते हैं? जब अखबारों में यह छपा कि मोदी ने दो दिनों में 80 इनोवा कारों से 15,000 गुजरातियों को उत्तराखंड से निकाल लिया तब मोदी ने इसका खंडन करने की आवश्यकता महसूस नहीं की। कुछ दिनों बाद, जब यह कहा जाने लगा कि इतने लोगों को केवल दो दिनों मंे बचाना संभव ही नहीं है तब मोदी के लोगों ने झट यह दावा कर दिया कि मोदी ने ऐसा वक्तव्य दिया ही नहीं था! वे इतनी बार झूठ बोलते हुए पकड़ाये जा चुके हैं कि उन्हें ‘फेंकू’ कहा जाने लगा है। गुजरात में पिछले कई दशकों में जो भी प्रगति हुई है, उस सब का श्रेय मोदी स्वयं लेते हैं। यहां तक कि उनके सत्ता में आने के पहले भी गुजरात में जो विकास हुआ, उसे वे अपनी उपलब्धि बताते हैं। उनका सरकारी तंत्र निर्दोष नागरिकों की फर्जी मुठभेड़ों में हत्या कर रहा है। सोहराबुद्दीन, कौसर बानो, तुलसीराम प्रजापति और इशरत जहां उन लोगों मंे से हैं जिन्हें ऐसी ही मुठभेड़ों में मारा गया परन्तु जिनका सच लोगों के सामने आ गया। निहत्थे नागरिकों को मारकर और यह दावा कर कि वे उनकी हत्या करने के इरादे से आए आतंकवादी थे, मोदी, ‘हिन्दू नायक’ बनना चाहते हैं। क्या जो व्यक्ति सच नहीं बोलता, वह सच्चा हिन्दू हो सकता है? गांधी जी कभी ऐसे व्यक्ति को हिन्दू नहीं मानते। जहां तक मोदी की अहिंसा में आस्था का प्रश्न है, उस पर कोई टिप्पणी करना ही बेकार है। गांधी जी के लिए हिन्दू धर्म के पालन का अर्थ था अपने हितों की कीमत पर दुःखी और जरूरतमंदों की मदद करना। मोदी अपने हितों के लिए हजारों लोगों की जानें कुर्बान करने से पीछे नहीं हटेंगे। यहां तक कि उन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिए अपने राजनैतिक गुरू को भी हाशिए पर पटक दिया, जिसने उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनवाया था और सन् 2002 के दंगों के बाद उनकी कुर्सी बचाई थी। गांधी जी ने हिन्दू कहलाने के लिए जो तीन शर्तें निर्धारित की थीं, मोदी उनमें से एक पर भी खरे नहीं उतरते। गुजरात के 2002 के दंगों को औचित्यपूर्ण सिद्ध करने के लिए मोदी ने जिस क्रिया-प्रतिक्रिया की बात कही थी वह न केवल बहुत बड़ा झूठ थी वरन् अल्पसंख्यकों का दानवीकरण करने का प्रयास भी थी। गांधी जी, जो सनातन धर्म के अनुयायी थे, ने 19 जनवरी 1928 को ‘‘यंग इंडिया’’ में लिखा, ‘‘मैं बहुत पहले इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका हूं कि... सभी धर्म सच्चे हैं और सभी में कुछ कमियां भी हैं। और यह, कि मैं अपने धर्म का पालन करते हुए भी दूसरे धर्मों से उतना ही प्रेम कर सकता हूँ, जितना कि हिन्दू धर्म से’’।
हिन्दू धर्म के एक और महान अध्येता राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘हिन्दू धर्म किसी पंथ या पुस्तक या पैगम्बर या संस्थापक से बंधा हुआ नहीं है। यह तो नित नवीनीकृत अनुभवों के आधार पर सत्य की खोज है।’’ ईश्वर की खोज वही कर सकता है जो सहिष्णु हो। ऋग्वेद के समय से लेकर आज तक, भारत कई धर्मों का देश रहा है और जियो और जीने दो उसकी स्थायी नीति रही है। भारतीय धार्मिक परपंरा ने धर्म के हर उस स्वरूप को स्वीकार किया जो सत्य की खोज में रत था।
विभिन्नता की स्वीकार्यता, ,हिन्दू धर्म का एक अन्य महत्वपूर्ण स्तंभ है। राधाकृष्णन ने लिखा था, ‘‘हिन्दू धर्म के मूल में है सहयोग का भाव। हिन्दू धर्म यह स्वीकार करता है कि परम सत्य की खोज के कई रास्ते हो सकते हैं। हिन्दू धर्म उस तत्व की खोज करता है, जो सभी प्राणियों में अन्तर्निहित और अविनाशी है।’’ उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय मंे हिन्दू धर्म के बारे में कहा, ‘‘दुनिया के दूसरे धर्मों के विपरीत, हिन्दू धर्म का कोई एक पैगम्बर नहीं है, कोई एक ईश्वर नहीं है, वह किसी एक सिद्धांत को नहीं मानता और ना ही किसी एक दर्शन को। इसके धार्मिक कर्मकाण्डों में एकरूपता नहीं है। सच यह है कि संकीर्ण, पारम्परिक अर्थ में यह धर्म नहीं है। मोटे तौर पर इसे जीवन जीने का एक तरीका कहा जा सकता है, इससे अधिक कुछ नहीं।’’ किसी भी हिन्दू के लिए हर धर्म सच्चा है, बशर्ते उसके मानने वाले अपने धर्म का निष्ठा और ईमानदारी से पालन करते हों।
दूसरी ओर, मोदी केवल अल्पसंख्यकों और उनके धर्म को निशाना बनाने और उनका दानवीकरण करने में विश्वास रखते हैं। अपनी गौरव यात्रा के दौरान अपने भाषणों में मोदी ने कई बार दोहराया कि ‘‘हम पांच हमारे पच्चीस (चार महिलाओं से विवाह करना और बड़ी संख्या में बच्चे पैदा करना) की नीति के कारण मुसलमानों की आबादी दिन दुगनी रात चैगुनी गति से बढ़ रही है‘‘। राधाकृष्णन लिखते हैं कि ‘‘मेरा धर्म मुझे इस बात की इजाजत नहीं देता कि मैं किसी भी ऐसी चीज के बारे में, जिसे कोई भी व्यक्ति पवित्र मानता है या मानता था, एक भी अपमानजनक या ठेस पहुंचाने वाला शब्द कहूं। हिन्दू परंपरा यह सिखाती है कि हमें सभी विचारों और पंथों का सम्मान करना चाहिए’’।
गर्व?
मोदी का कहना है कि जिसे वे ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ कहते हैं, उसके अनुयायी होने में वे गर्व महसूस करते हैं। मोदी ने अपने राजनैतिक हितों की खातिर अपना एजेण्डा इतनी बार बदला है कि उससे यह निष्कर्ष निकालना गलत नहीं होगा कि वे अपने ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ पर गर्व नहीं करते। अगर उन्हें अपने ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ पर इतना ही गर्व है तो वे उस समय क्या कर रहे थे जब भाजपा ने, 1998 से लेकर 2004 तक, सत्ता में बने रहने की खातिर, संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने, समान नागरिक संहिता लागू करने और अयोध्या में राममंदिर बनाने के अपने हिंदुत्ववादी एजेण्डे को ताक पर रख दिया था। कोई व्यक्ति यदि अपने विचारों पर गर्व महसूस करता है तो वह उनकी खातिर अपना सब कुछ त्यागने को तत्पर रहता है। मोदी ने ऐसा कुछ नहीं किया। सन् 2002 से लेकर अब तक वे सत्ता में बने हुए हैं परन्तु उन्होंने कभी उन मुद्दों को लेकर त्यागपत्र देने की पेशकश नहीं की, जिन पर वे अब गर्वित होने का दावा करते हैं। उनका हिंदू राष्ट्रवाद शायद सिर्फ इस बात पर गर्वित है कि वे उस सरकार के मुखिया थे, जिसके कार्यकाल मंे सन् 2002 का कत्लेआम हुआ था। क्या वे इस बात पर गर्वित हैं कि जहां वे इजारेदारों को हर तरह से फायदा पहुंचा रहे हैं वहीं देश का सबसे पिछड़ा जिला-डांग-न तो बिहार में है, न उत्तर प्रदेश में, न उड़ीसा में और न उत्तर पूर्व में। वह गुजरात में है! क्या वे इस बात पर गर्वित हैं कि पूरे डांग जिले में पीने का पानी पहुंचाने की योजना पर खर्च की जाने वाली राशि, केवल उस गांव पर खर्च कर दी गई, जहां मक्का मस्जिद धमाकों और अन्य आतंकी हमलों के आरोपी, कुख्यात स्वामी असीमानन्द, शबरी कुंभ मेले का आयोजन कर रहे थे। पूरा डांग आज भी प्यासा है और जिले के निवासियों को पानी उपलब्ध करवाने के लिए आवंटित धनराशि, उन बाहरी व्यक्तियों के लिए एक हफ्ते के पीने के पानी के इंतजाम पर खर्च कर दी गई, जो वहां राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिए, शबरी कुंभ नामक नए आयोजन में इकट्ठा हुए थे।
मोदी ‘मियां मुशर्रफ’, ‘कुत्ते के पिल्ले’, ‘धर्मनिरपेक्षता का बुर्का’ जैसी शब्दावलियों का प्रयोग इसलिए करते हैं ताकि वे इस तथ्य को छुपा सकें कि वे हिन्दुत्व के भी सच्चे और ईमानदार अनुयायी नहीं हैं। उनके लिए हिन्दुत्व भी सत्ता हासिल करने और उस पर काबिज रहने का एक हथियार भर है। ।
-इरफान इंजीनियर
3 टिप्पणियां:
इरफ़ान जी, मोदी सच्चे हिन्दू हैं और राष्ट्रवादी भी, आप इतनी ईर्ष्या न रखें। उनके ऊंचे कद को स्वीकार कीजिये।
Agree with Zeal
irfaanjee aap krupyaa apnaa gyaan badhaye..our etihaas ki padhai our gahraai se kare..kya modijee ka koi vikalp hai aao k paas? agar hai to krupyaa bataye...
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