साम्राज्यी शक्तियों को करारा झटका उस समय लगा जब उनके पिट्ठू पाकिस्तान ने भी भुट्टो के नेतृत्व में आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरू किए। भारत की सोशलिस्ट आर्थिक नीतियों पर चलते हुए भुट्टो ने भी अपने देश में कुटीर उद्योगों व घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया और साम्राज्यवादी शक्तियों का पाकिस्तानी बाजार पर आधिपत्व समाप्त होता नजर आने लगा। इसी दौरान अरब इस्राईल युद्ध छिड़ गया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो जिनके रिश्ते अमरीका से काफी खराब हो चुके थे, ने सऊदी अरब के शाह फैसल को इस्राईल के समर्थक साम्राज्यी राष्ट्रों के विरुद्ध पेट्रोल बम्ब का प्रयोग किया। सारे अरब देशों में साम्राज्यी शक्तियों के द्वारा संचालित तेल शोधक कार्य बंद हो गया, पूरे विश्व में तेल के अभाव से हाहाकार मच गया। परिणाम स्वरूप इस्राईल के अरब राष्ट्रों की ओर बढ़ते हुए कदम ठिठक गए और साम्राज्यी शक्तियों के सरदार अमरीका ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इस्राईल को युद्धविराम के लिए विवश कर दिया।
अपनी इस शिकस्त का बदला साम्राजी शक्तियों ने शाह फैसल का कत्ल उनके सगे भतीजे से कराकर तुरन्त ले लिया। उसके पश्चात मिश्र के राष्ट्रपति अनवर सादात को उन्हीं के फौजी जनरल ने परेड की सलामी लेते समय गोलियों की बौछार कर कत्ल कर डाला। अब नम्बर आया जुल्फिकार अली भुट्टो व भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का। पहले दोनों की राजनैतिक हत्या का प्रोग्राम बनाया गया। दोनों देशों के अन्तरिक हालात बिगाड़े गए। पाकिस्तान में बलूचिस्तान व पख्तूनिस्तान की समस्या में तेजी पैदा की गई और भारत से पाकिस्तान जाकर बसे मुहाजरीन की तंजीम कौमी मुहाजिर मूवमेन्ट के अगवाकार अलताफ हुसैन के ऊपर साम्राज्यी शक्तियों ने हाथ रखकर भुट्टो की परेशानियाँ बढ़ाई गईं। दूसरी ओर इंदिरा गांधी की साम्राज्य विरोधी नीतियो से परेशान साम्राज्यवादी शक्तियों ने गांधी वादी विचारधारा के मानने वाले कहे जाने वाले लोक नायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान करा के देशव्यापी आन्दोलन पैदा कर देश में राजनैतिक अस्थिरता अराजकता उत्पन्न कर दी। इस आन्दोलन में जहाँ एक ओर साम्राज्यी शक्तियों की नीतियों के समर्थक जनसंघ के लोग थे तो वहीं डाॅ. राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा के समर्थकों का समर्थन प्राप्त रहा और सबसे अधिक अचम्भित करने वाली बात इस आन्दोलन की यह रही कि वामपंथी विचारधारा के लोगों का भी समर्थन इसे प्राप्त हो गया।
परिणाम स्वरूप देश के बिगड़ते हालात को दृष्टिगत रखते हुए इन्दिरा गांधी ने देश मे आपातकाल घोषित कर दिया और लोकतंत्र की हत्या कर डिक्टेटर की भूमिका में वह सामने आ गईं। इसका नतीजा यह निकला कि देश के गरीबों, अल्पसंख्यकों व अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों से उनकी पार्टी कांग्रेस के रिश्ते बिगड़ गए। इन्दिरा गांधी के इर्द-गिर्द मौजूद संघी विचारधारा के सलाहकारों ने उनसे जबरन नसबंदी व तुर्कमानगेट दिल्ली में मुस्लिम वर्ग के दुकानदारों के ऊपर बर्बर लाठी चार्ज जैसे काम करवा कर मुस्लिम वर्ग को उनसे जुदा कर दिया साथ ही पिछड़े व दलित तबके के लोग भी कांग्रेस से दूर होते चले गए।
इन्दिरा गांधी को सत्ता से हटाने के लिए प्रेस ने भी कमर कस ली, बदले में पत्रकारों को भी इन्दिरा गांधी ने जेलांे में ठूस दिया। लगभग ढाई वर्ष तक देश में इंदिरा गांधी की नादिर शाही हुकूमत कायम रही जिसका जवाब जनता ने 1977 में हुए आम चुनाव में जनता पार्टी को सफल व कांग्रेस को शिकस्त देकर दे दिया। पहली बार देश में गैर कांग्रेसी हुकूमत कायम हुई और
प्रधानमंत्री पद पर साम्राज्यी नीतियों के समर्थक मोरारजी देसाई विराजमान हुए। परन्तु जनता पार्टी के चूं-चूं का मुरब्बा हुकूमत के दिन अधिक नहीं रहे। मात्र सवा दो वर्ष में ही जनसंघ के सदस्यों की आरएसएस के साथ रिश्तों के चलते आए उबाल से सरकार का पतन हो गया और वर्ष 1980 में हुए आम लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को क्षमादान देकर देश की जनता ने कांग्रेस को पुनः सत्ता में वापस लाकर राष्ट्र का भविष्य उसके हाथों में सौंप दिया।
साम्राज्यी शक्तियों को इन्दिरा गांधी की सत्ता में वापसी से बहुत हताशा हुई। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में भी अमरीका जुल्फिकार अली भुट्टों के हाथों काफी उत्पीडि़त रहा। वर्ष 1977 में जब इन्दिरा गांधी को सत्ता से हटाने में अमरीका कामयाब हो गया था तो जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी राजनैतिक कुटनीतिक चालों से अमरीका को छलते हुए सत्ता दुबारा प्राप्त कर ली। अमरीका ने पाकिस्तान में सेना द्वारा एक बार फिर प्रजातंत्र का गला घोंट डाला और एक धार्मिक कट्टरपंथी जनरल जियाउल को सत्ता में बैठा दिया, जिसने अमरीका के इशारे पर जुल्फिकार अली भुट्टो पर फर्जी आरोपों का मुकदमा चलवा कर तमाम अन्तर्राष्ट्रीय जनमत की उपेक्षा कर जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी के तख्ते पर लटका दिया।
जुल्फिकार अली भुट्टो के बाद साम्राज्यी शक्तियों का अगला निशाना इन्दिरा गांधी को बनाया गया। इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की आईएसआई से पूरी मदद मिली। जिसने खालिस्तान आन्दोलन को हवा देकर सिक्खों को भारत के विरुद्ध बगावत के लिए उकसाया जिसका दुष्परिणाम आॅपरेशन ब्लूस्टार के रूप में सामने आया और पूरी सिक्ख कौम इन्दिरा गांधी के विरुद्ध उठ खड़ी हुई।
इसके पश्चात इन्दिरा गांधी को उन्हीं के सिक्ख सुरक्षा कर्मियों ने प्रधानमंत्री आवास में गोलियों से भूनकर आपरेशन ब्लू स्टार का बदला ले लिया। उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार महात्मा गांधी को मारने वाले हाथ नाथूराम गोड्से के थे परन्तु दिमाग किसी और का, उसी प्रकार इन्दिरा गांधी की हत्या भले ही उनके सुरक्षा कर्मियों ने की लेकिन साजिश रचने वाला दिमाग साम्राज्यवादी शक्तियों का था।
-तारिक खान
अपनी इस शिकस्त का बदला साम्राजी शक्तियों ने शाह फैसल का कत्ल उनके सगे भतीजे से कराकर तुरन्त ले लिया। उसके पश्चात मिश्र के राष्ट्रपति अनवर सादात को उन्हीं के फौजी जनरल ने परेड की सलामी लेते समय गोलियों की बौछार कर कत्ल कर डाला। अब नम्बर आया जुल्फिकार अली भुट्टो व भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का। पहले दोनों की राजनैतिक हत्या का प्रोग्राम बनाया गया। दोनों देशों के अन्तरिक हालात बिगाड़े गए। पाकिस्तान में बलूचिस्तान व पख्तूनिस्तान की समस्या में तेजी पैदा की गई और भारत से पाकिस्तान जाकर बसे मुहाजरीन की तंजीम कौमी मुहाजिर मूवमेन्ट के अगवाकार अलताफ हुसैन के ऊपर साम्राज्यी शक्तियों ने हाथ रखकर भुट्टो की परेशानियाँ बढ़ाई गईं। दूसरी ओर इंदिरा गांधी की साम्राज्य विरोधी नीतियो से परेशान साम्राज्यवादी शक्तियों ने गांधी वादी विचारधारा के मानने वाले कहे जाने वाले लोक नायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान करा के देशव्यापी आन्दोलन पैदा कर देश में राजनैतिक अस्थिरता अराजकता उत्पन्न कर दी। इस आन्दोलन में जहाँ एक ओर साम्राज्यी शक्तियों की नीतियों के समर्थक जनसंघ के लोग थे तो वहीं डाॅ. राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा के समर्थकों का समर्थन प्राप्त रहा और सबसे अधिक अचम्भित करने वाली बात इस आन्दोलन की यह रही कि वामपंथी विचारधारा के लोगों का भी समर्थन इसे प्राप्त हो गया।
परिणाम स्वरूप देश के बिगड़ते हालात को दृष्टिगत रखते हुए इन्दिरा गांधी ने देश मे आपातकाल घोषित कर दिया और लोकतंत्र की हत्या कर डिक्टेटर की भूमिका में वह सामने आ गईं। इसका नतीजा यह निकला कि देश के गरीबों, अल्पसंख्यकों व अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों से उनकी पार्टी कांग्रेस के रिश्ते बिगड़ गए। इन्दिरा गांधी के इर्द-गिर्द मौजूद संघी विचारधारा के सलाहकारों ने उनसे जबरन नसबंदी व तुर्कमानगेट दिल्ली में मुस्लिम वर्ग के दुकानदारों के ऊपर बर्बर लाठी चार्ज जैसे काम करवा कर मुस्लिम वर्ग को उनसे जुदा कर दिया साथ ही पिछड़े व दलित तबके के लोग भी कांग्रेस से दूर होते चले गए।
इन्दिरा गांधी को सत्ता से हटाने के लिए प्रेस ने भी कमर कस ली, बदले में पत्रकारों को भी इन्दिरा गांधी ने जेलांे में ठूस दिया। लगभग ढाई वर्ष तक देश में इंदिरा गांधी की नादिर शाही हुकूमत कायम रही जिसका जवाब जनता ने 1977 में हुए आम चुनाव में जनता पार्टी को सफल व कांग्रेस को शिकस्त देकर दे दिया। पहली बार देश में गैर कांग्रेसी हुकूमत कायम हुई और
प्रधानमंत्री पद पर साम्राज्यी नीतियों के समर्थक मोरारजी देसाई विराजमान हुए। परन्तु जनता पार्टी के चूं-चूं का मुरब्बा हुकूमत के दिन अधिक नहीं रहे। मात्र सवा दो वर्ष में ही जनसंघ के सदस्यों की आरएसएस के साथ रिश्तों के चलते आए उबाल से सरकार का पतन हो गया और वर्ष 1980 में हुए आम लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को क्षमादान देकर देश की जनता ने कांग्रेस को पुनः सत्ता में वापस लाकर राष्ट्र का भविष्य उसके हाथों में सौंप दिया।
साम्राज्यी शक्तियों को इन्दिरा गांधी की सत्ता में वापसी से बहुत हताशा हुई। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में भी अमरीका जुल्फिकार अली भुट्टों के हाथों काफी उत्पीडि़त रहा। वर्ष 1977 में जब इन्दिरा गांधी को सत्ता से हटाने में अमरीका कामयाब हो गया था तो जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी राजनैतिक कुटनीतिक चालों से अमरीका को छलते हुए सत्ता दुबारा प्राप्त कर ली। अमरीका ने पाकिस्तान में सेना द्वारा एक बार फिर प्रजातंत्र का गला घोंट डाला और एक धार्मिक कट्टरपंथी जनरल जियाउल को सत्ता में बैठा दिया, जिसने अमरीका के इशारे पर जुल्फिकार अली भुट्टो पर फर्जी आरोपों का मुकदमा चलवा कर तमाम अन्तर्राष्ट्रीय जनमत की उपेक्षा कर जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी के तख्ते पर लटका दिया।
जुल्फिकार अली भुट्टो के बाद साम्राज्यी शक्तियों का अगला निशाना इन्दिरा गांधी को बनाया गया। इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की आईएसआई से पूरी मदद मिली। जिसने खालिस्तान आन्दोलन को हवा देकर सिक्खों को भारत के विरुद्ध बगावत के लिए उकसाया जिसका दुष्परिणाम आॅपरेशन ब्लूस्टार के रूप में सामने आया और पूरी सिक्ख कौम इन्दिरा गांधी के विरुद्ध उठ खड़ी हुई।
इसके पश्चात इन्दिरा गांधी को उन्हीं के सिक्ख सुरक्षा कर्मियों ने प्रधानमंत्री आवास में गोलियों से भूनकर आपरेशन ब्लू स्टार का बदला ले लिया। उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार महात्मा गांधी को मारने वाले हाथ नाथूराम गोड्से के थे परन्तु दिमाग किसी और का, उसी प्रकार इन्दिरा गांधी की हत्या भले ही उनके सुरक्षा कर्मियों ने की लेकिन साजिश रचने वाला दिमाग साम्राज्यवादी शक्तियों का था।
क्रमस :
लोकसंघर्ष पत्रिका -सितम्बर अंक में प्रकाशित
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