शनिवार, 6 सितंबर 2014

अमरीकी दहशतगर्दी का शिकार एशिया----------------3

इन्दिरा गांधी के बाद भारत में अपने पैर जमाने का रास्ता साम्राज्यी शक्तियों के लिए साफ था। राजीव गांधी से उन्हें अपने विरोध की अधिक उम्मीद नहीं थी। साम्राज्यी शक्तियों ने राजीव को अपने जाल में फंसाने का ताना बाना बुनना प्रारम्भ कर दिया। अमरीकी पार्लियामेन्ट में उन्हें बोलने का अवसर दिया गया, उनकी योग्यता व दर्शन की अमरीका व अन्य यूरोपीय राष्ट्रों की मीडिया ने जमकर तारीफ की। प्रारम्भ में राजीव गांधी, अरुण नेहरू, वीर बहादुर और आरिफ मो0 खान जैसे लीडरों के राय मशवरे पर चलते हुए गल्तियाँ पर गल्तियाँ करते गए और कांग्रेस कमजोर होती चली गई। सिक्खों के बाद हिन्दू आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू किया। इससे पूर्व राजा नहीं फकीर का नारा देकर वी0पी0 सिंह ने लोक नायक जय प्रकाश नारायण की टीम के योद्धा लालू यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार वो उ0प्र0 से मुलायम सिंह को साथ लिया और कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना हाथ वी0पी0 सिंह से मिला लिया। फिर शुरू हुआ मंडल कमीशन अन्तर्गत पिछड़ों के आरक्षण का खेल और इसके जवाब में लाल कृष्ण अडवाणी के कमंडल का खेल। मंडल व कमंडल ने पूरे देश में रक्तरंजित राजनीति का खेल प्रारम्भ कर दिया और गुजरात के सोमनाथ मंदिर से रथ पर सवार लालकृष्ण अडवाणी के सफर का अंत अयोध्या में राम भक्तों के प्राणों की आहुति पर हुआ। नतीजे में वी.पी. सिंह की हुकूमत गिर गई और भाजपा एन.डी.ए. का गठन कर गैर कांग्रेसी हुकूमत पहली बार अपने नेतृत्व में बनाने में सफल रही। पहले 13 दिन, फिर 13 माह और उसके बाद पूरे पांच साल तक भाजपा ने देश पर हुकूमत की। इस दौरान अपने परिवार के दो राजनेताओं को गँवा कर सहमी हुई सोनिया गांधी ने अपनी हिम्मत बटोर कर कांग्रेस का तिनका जोड़ना प्रारम्भ किया और एन.डी.ए. के विरुद्ध धर्म निरपेक्ष ताकतों के जिसमें वामपंथी भी शामिल थे, मिलाकर यू0पी0ए0 का गठन संयुक्त न्यूनतम साझा कार्यक्रम का एजेन्डा सामने रख कर किया। जनता ने वर्ष 2004 के आम लोक सभा चुनाव में इस नए राजनैतिक गठबंधन को समर्थन दिया तो उसमें मुख्य योगदान, उस समय तक काफी शक्तिशाली हो चुकी इलेक्ट्रानिक मीडिया का रहा। जिसने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के उसी प्रकार कसीदे पढ़े जैसे आज कल नरेन्द्र मोदी के वह पढ़ रही है। मनमोहन सिंह ने साम्राज्यी शक्तियों की इच्छा के अनुरूप पूरे देश में आर्थिक उदारीकरण की ऐसी बयार चलाई और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को उन्होंने इतनी छूट दी कि देसी उद्योगों का जनाजा निकल गया। घरेलू उत्पाद विदेशी उद्योगपतियों के कब्जे में चला गया। किसान मजदूर बेरोजगार होकर आत्महत्या पर मजबूर हो गए। देश के करोड़ों लोगों के हाथों मंे मोबाइल तो आ गया परन्तु करोड़ों लोग भुखमरी का शिकार भी हो गए। परमाणु समझौता एफ0डी0आई0 इत्यादि नीतियों को लेकर कांग्रेस की यू0पी0ए0 सरकार से वामपंथी दल नाराज होकर साथ छोड़ गए। कांग्रेस ने 2009 में दोबारा सत्ता प्राप्त तो कर ली, परन्तु  वामपंथियों का साथ छोड़कर चले जाने से वह काफी कमजोर हो गई। भाजपा का मुकाबला करने के लिए उसके पास राजनैतिक निपुण नेताआंे का अभाव सदन में नजर आने लगा। नतीजा यह हुआ कि वह भाजपा के आक्रामक रुख के आगे रक्षात्मक होती चली गई और अन्ततः 2014 के लोकसभा चुनाव में यू0पी0ए0 चारो खाने चित हो गई। केन्द्र में पहली बार पूर्ण बहुमत से भाजपा को उस व्यक्ति के नेतृत्व में सत्ता की प्राप्ति हो गई जो साम्प्रदायिक एवं साम्राज्यी शक्तियों का समर्थक माना जाता है।
    पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान में पहले निजामें मुस्तफा के नारे पर जिस प्रकार
धर्मराज की स्थापना कर मुस्लिम आतंकवाद का उदय साम्राज्यी शक्तियों ने कराया था और जिसके नतीजे में पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था की ईंट से ईंट बज चुकी है उसी राह पर भारत को भी लेकर साम्राज्यी शक्तियाँ चल पड़ी हैं। हिन्दू राष्ट्र का सपना देशवासियों को इस्लामी राष्ट्र के नाम पर दिखाया जा रहा है। आकाश से तारे तोड़ लाने के सलोने सपने दिखाए जा रहे हैं। साथ ही हिन्दू आतंकवाद का दानव भी तेजी से सिर उठा रहा है। विगत दो ढाई माह के भाजपा शासन काल में अब तक 500 से अधिक साम्प्रदायिक दंगे हो चुके है जिसमें अधिकांश उस उत्तर प्रदेश में हुए हंै जो देश विभाजन की तहरीक व उसके पश्चात राम मंदिर तहरीक मंे भी कमाबेश शान्त रहा था। कमजोर समाजवादी सरकार की नीतियाँ हिन्दू दहशतगर्दी को पूरा सहभोग दे रही हैं। उसके नेताओं की बयान बाजियाँ आग में घी का काम कर रही हैं। देश का माहौल तेजी से गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है लेकिन केन्द्र सरकार नीरों की तरह बंसी बजा रही है। देशवासियों को उस सुन्दर भविष्य के सपने दिखा रही है जो बगैर साम्प्रदायिक सद्भावना व अहिंसा के सम्भव ही नहीं है। अभी भी समय है देशवासियों को सोचना चाहिए कि जब 99 प्रतिशत एक धर्म के लोगों द्वारा इस्लामी राष्ट्र का प्रयोग पाकिस्तान में सफल न हो सका तो 20 प्रतिशत गैर हिन्दू आबादी वाले भारत में हिन्द राष्ट्र की स्थापना क्या गुल खिलाएगी?
   साम्राज्यी शक्तियों ने जिस प्रकार धार्मिक आतंकवाद के द्वारा मध्य एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया व उपमहाद्वीप को रक्त रंजित किया है और इंसानियत के नाम पर इंसानी जाने लेने का जो क्रम अमरीका व इसके सहयोगी राष्ट्र ईराक, लीबिया में खेल चुके हंै और अपने नए कामयाब हथियार सोशल मीडिया के द्वारा जिस प्रकार इस क्षेत्र में वह अराजकता का माहौल बना कर अपने उद्देश्यों को
साधने में लगे हुए हैं यह विश्व शान्ति एवं जनसुरक्षा के लिए कतई ठीक नहीं है। पहले दो विश्वयुद्धों में यूरोप ही प्रभावित हुआ था एशिया का कुछ अंश ही प्रभावित हुआ। परन्तु अब लगता है तृतीय विश्वयुद्ध का रणक्षेत्र एशिया व अफ्रीका के मध्य रहेगा और उसका तमाशा यूरोप में अपने ड्राइंग रूम में बैठकर उसी प्रकार देखेंगे जैसे जार्ज बुश ईराक पर हवाई हमलों की बमबारी व मिजाइल हमलों का नजारा देखकर ठहाके लगा रहे थे।
-तारिक खान
लोकसंघर्ष पत्रिका -सितम्बर अंक में प्रकाशित
 मो0-09455804309

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |