इन्तिखाबी मुहिम के दौरान नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी को जो हिन्दुत्व नवाज तंजीम है अपनी माँ करार देते हुए आबदीदह हो गए तो मैंने समझा कि गहरे जजबात का इजहार है और जब हिन्दुस्तान का वजीर आजम होने के बाद इन्होंने कहा कि वह तरक्की की राह पर तमाम 125 करोड़ लोगों को अपने साथ लेकर चलेंगे तो मुझे इस पर यकीन आ गया था।
लेकिन ज्यों-ज्यों पार्टी अपने प्रोग्राम सामने ला रही है तो मुझे लगता है कि आर0एस0एस0 की वजह कर्दा तफरीकी हिकमते अमली की पर्दा पोशी है। मोदी खुद को गैर मुतास्सिब के तौर पर पेश करते हैं जबकि बी0जे0पी0 मय आर0एस0एस0 तक्शीरियत के तख्फ़ीक के इक्दामात करती है। आर0एस0एस0 पहले ही अपने मोतबर अफराद को मुख्तलिफ कमीशनों की रुक्नियत दे रही है और कलीदी ओहदों पर बैठा रही है। इस से ताल्लुक रखने वाले नवजवानों को कम दर्जे के कामों के लिए मुकर्रर किया जाता है। चूँकि ब्यूरो क्रेसी का झुकाव हवा की रुख की तरफ होता है, बी0जे0पी0 और आर0एस0एस0 को अपने एजेण्डे के नफाज में किसी मजाहिमत का सामना करना नहीं पड़ रहा है।
साविक वजीर जराअत शरद पवार ने जो महाराष्ट्र के वजीर आला भी थे बजातौर पर तबसरा किया है कि बी0जे0पी0 की फतेह के बाद फिरका वारियत हर जगह सर उभार रही है और मोदी हुकूमत के पहले दो हफ्तों में ही ये हो रहा है। जबकि इसे अभी अपनी पाँच साला मुद्दतकार पूरी करनी है। महाराष्ट्र के एतदाल पसन्द शहर पुणे में जो कुछ हुआ वह बेकाबू हो जाने वाली ताकतों की तरफ इशारा करता है। एक इन्तिहा पसन्द हिन्दू ग्रुप ने शिवाजी और इन्तेहा पसन्द शिवसेना के बानी बाल ठाकरे की अहानत आमेज तस्वीरें इरसाल किए जाने पर 28 साला आई0टी0 मैनेजर मोहसिन शेख को जान से मार डाला। मोहसिन महज मशकूक था और उसके खिलाफ न कोई शहादत थी न सबूत।
ये सच है कि बी0जे0पी0 ने इस कत्ल की मजम्मत की है लेकिन मोदी के लिए खुद को गैर महफूज समझने वाले मुसलमानों को यह यकीन दिलाने को बेहतरीन मौका था कि इनकी हुकूमत इसका ख़याल रखेगी कि मोहसिन के कातिलों के खिलाफ फौरन कानूनी चारहजोई की जाएगी। यहाँ तक कि जब उनसे खासतौर पर मजलूम के खानदान से हमदर्दी का एक लफ्ज कहने की दरख्वास्त की गई तो भी मोदी ने खामोशी अख्तियार की।
इस रवैये से हैरत नहीं होना चाहिए। 2002 में गुजरात के वजीर आला की हैसियत से जब बशमूल पुलिस इन्तजामिया की साजबाज से 2000 से ज्यादा मुसलमानों को हलाक किया गया तो मोदी ने इजहार अफसोस नहीं किया। दर हकीकत मोदी ने गुजरात की एक मजिस्ट्रेट अदालत से हासिल कर्दा क्लीन चिट तनकीद करने वालों के मुँह पर मार दी। आज तक इन्होंने अफसोस का इजहार नहीं किया। उनके तास्सुफ के अल्फाज मुसलमानों के अहसासात को तस्कीन देने और तक्सीरियत पर मबनी हिन्दुस्तान के तसव्वुर को तकवियत देने में मुअस्सर होंगे।
मुझ जैसे अफराद 15 से 16 करोड़ की आबादी पर मुस्तमिल मुस्लिम फिरके को ये यकीन दिलाना चाहते हैं कि इन्हें खायफ होने की जरूरत नहीं है क्योंकि हिन्दुस्तान दस्तूर पर कार बन्द है जो कानूनों की नजर में हर शहरी को मसावात की जमानत देता है। अगर इस फिरके को निशाना बनाया जाता है तो अदालतें, मीडिया और एतदाल पसन्द आवाजंे हैं जो मुसलमानों की हामी हैं। इसका मुजाहिरा उस वक्त देखने में आया जब बाबरी मस्जिद मुन्हदिम की गई और गुजरात में मुस्लिम कश फसादात हुए।
वह लोग जो रियासत जम्मू व कश्मीर को खुसूसी हैसियत देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म करने का मुतालबा कर रहे हैं वही मुस्लिम मुखालिफ अनासिर हैं। आर्टिकल 370 दस्तूरे-हिन्द की तरह 65 साल पुराना है क्योंकि जम्मू व कश्मीर मुस्लिम अक्सरीयत वाली रियासत है, इन अनासिर को मोदी के दौरे हुकूमत मंे इस रियासत की हैसियत पर एतराज उठाने का साजगार माहौल फिर अहम हो गया है। तारीख से वह वाकिफ नहीं हैं और न ही हकायक जानने में इन्हें कोई दिलचस्पी है।
अगस्त 1947 में बरतानवी तसल्लुत के खात्मे पर रियाया की अक्सरीयत के मजहब के पेशे नजर तकरीबन 560 रजवाड़ो को इस इन्तखाब की आजादी दी गई कि या तो वे हिन्दुस्तान में शामिल रहें या तो तश्कील शुदा पाकिस्तान के साथ हो जाएँ। कोई हुकमरान अगर चाहता तो आजाद भी रह सकता था। जम्मू व कश्मीर के हुक्मराँ महाराजा हरि सिंह ताखीर से हिन्दुस्तानी वफाक में शामिल हो गए, अगरचे इस रियासत की आबादी में मुसलमानों की गालिबअकसरियत थी। मेरा मुशाहिदा यह है कि अगर उसने सब्र से काम लिया होता तो कश्मीर पाकिस्तान में चला जाता लेकिन इसने रियासत के अलहाक के लिए पहले कबायली और फिर बाकायदा फौज को भेजा। अपनी फौज के हाथों कत्ल व खून रोकने की गरज से महाराज ने हिन्दुस्तान के हक में दस्तखत कर दिए। महाराज ने सिर्फ तीन मामलात हिन्दुस्तान को सौंपे। दिफा, खारजी उमूर और मवासिलात। रियासत ने दीगर मामलात अपने पास ही रखे। आर्टिकल 370 इसी मफाहिमत की दस्तावेजी शकल है। अगर हिन्दुस्तान वफाक मजीद मामलात को अपने हाथ में लेना चाहे तो इसका फैसला रियासत जम्मू व कश्मीर के अख्तियार में है। क्योंकि वह इसी शर्त पर वफाक में शामिल हुई थी। रियासत की रजामन्दी के बगैर वफाक मजीद मामलात अपने अख्तियार में नही ले सकता। इसलिए आर्टिकल 370 के खात्मे के मुतालबे को आगे बढ़ाने वाली आर0एस0एस0 का अमल गैर कानूनी है।
दर हकीकत मामलात इस कदर उलझ गए हैं कि किसी हल तक पहुँचने के लिए तीन फिरको की रजामन्दी जरूरी है। वह हैं हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और जम्मू व कश्मीर के अवाम।
अगर आज रायशुमारी कराई जाए तो वादीए कश्मीर एक आजाद रियासत की हिमायत में वोट देगी। हिन्दू अक्सरीयत वाले जम्मू के अवाम हिन्दुस्तान में रहना चाहेंगे और लद्दाख जहाँ गालिब अक्सरीयत बौद्धांे की है बराहे रास्त के तहत मरकज के जेरे निगरानी इलाके की हैसियत पाना चाहेगा। इन तमाम मुश्किलों ने मसले को नाकाबिल हल बना दिया है।
जब आर0एस0एस0 शकाफती तन्जीम होने का दावा करती है तो इसे किसी हालत में भी सियासत बाजी नहीं करनी चाहिए। मुझे याद है कि आर0एस0एस0 के आदमी नाथूराम गोड्से के हाथों महात्मा गांधी के कत्ल के बाद 30 जनवरी 1948 को इस पर पाबन्दी आयद की गई थी। फिर 1949 में आर0एस0एस0 की तरफ से पाबन्दी हटाने की दरख्वास्त के जवाब में उस वक्त के वजीर दाखिला सरदार वल्लभ भाई पटेल और आर0एस0एस0 के दरमियान एक मुअहिदा हुआ जिसमें यह जमानत दी गई कि आर0एस0एस0 किसी सियासी सरगर्मी में शरीक नहीं होगा और यह कि आर0एस0एस0 सिर्फ शकाफ्ती सरगर्मियों में शामिल होगा।
फिर पटेल ने जो आर0एस0एस0 के वादे से मुतमइन नहीं थे मतालबा किया कि इसमें यह वादा शामिल किया जाय कि वह संघ की तशकील में सियासी सरगर्मियों में हिस्सा नहीं लेगी, मुआहिदे को मुहरबन्द किया जाए और आर0एस0एस0 को हमेशा के लिए सियासी सगर्मियों से रोक दिया जाए। यह 1949 में हुआ था और इसके बाद हुकूमत ने पाबन्दी हटा दी। ताहम एक हैरतनाक बदअहदी यह हुई कि आर0एस0एस0 अपने सरसंघ चालक मोहन भागवत की कयादत में जून 2013 से साबिक आर0एस0एस0 प्रचारक मोदी को हिन्दुस्तान के वजीर आजम के मनसब पर बैठाने के लिए जारिहाना सियासी सरगर्मियो में मुलब्बिस हो गई। नतीजा आपके सामने है।
-कुलदीप नय्यर
लोकसंघर्ष पत्रिका -सितम्बर अंक में प्रकाशित
लेकिन ज्यों-ज्यों पार्टी अपने प्रोग्राम सामने ला रही है तो मुझे लगता है कि आर0एस0एस0 की वजह कर्दा तफरीकी हिकमते अमली की पर्दा पोशी है। मोदी खुद को गैर मुतास्सिब के तौर पर पेश करते हैं जबकि बी0जे0पी0 मय आर0एस0एस0 तक्शीरियत के तख्फ़ीक के इक्दामात करती है। आर0एस0एस0 पहले ही अपने मोतबर अफराद को मुख्तलिफ कमीशनों की रुक्नियत दे रही है और कलीदी ओहदों पर बैठा रही है। इस से ताल्लुक रखने वाले नवजवानों को कम दर्जे के कामों के लिए मुकर्रर किया जाता है। चूँकि ब्यूरो क्रेसी का झुकाव हवा की रुख की तरफ होता है, बी0जे0पी0 और आर0एस0एस0 को अपने एजेण्डे के नफाज में किसी मजाहिमत का सामना करना नहीं पड़ रहा है।
साविक वजीर जराअत शरद पवार ने जो महाराष्ट्र के वजीर आला भी थे बजातौर पर तबसरा किया है कि बी0जे0पी0 की फतेह के बाद फिरका वारियत हर जगह सर उभार रही है और मोदी हुकूमत के पहले दो हफ्तों में ही ये हो रहा है। जबकि इसे अभी अपनी पाँच साला मुद्दतकार पूरी करनी है। महाराष्ट्र के एतदाल पसन्द शहर पुणे में जो कुछ हुआ वह बेकाबू हो जाने वाली ताकतों की तरफ इशारा करता है। एक इन्तिहा पसन्द हिन्दू ग्रुप ने शिवाजी और इन्तेहा पसन्द शिवसेना के बानी बाल ठाकरे की अहानत आमेज तस्वीरें इरसाल किए जाने पर 28 साला आई0टी0 मैनेजर मोहसिन शेख को जान से मार डाला। मोहसिन महज मशकूक था और उसके खिलाफ न कोई शहादत थी न सबूत।
ये सच है कि बी0जे0पी0 ने इस कत्ल की मजम्मत की है लेकिन मोदी के लिए खुद को गैर महफूज समझने वाले मुसलमानों को यह यकीन दिलाने को बेहतरीन मौका था कि इनकी हुकूमत इसका ख़याल रखेगी कि मोहसिन के कातिलों के खिलाफ फौरन कानूनी चारहजोई की जाएगी। यहाँ तक कि जब उनसे खासतौर पर मजलूम के खानदान से हमदर्दी का एक लफ्ज कहने की दरख्वास्त की गई तो भी मोदी ने खामोशी अख्तियार की।
इस रवैये से हैरत नहीं होना चाहिए। 2002 में गुजरात के वजीर आला की हैसियत से जब बशमूल पुलिस इन्तजामिया की साजबाज से 2000 से ज्यादा मुसलमानों को हलाक किया गया तो मोदी ने इजहार अफसोस नहीं किया। दर हकीकत मोदी ने गुजरात की एक मजिस्ट्रेट अदालत से हासिल कर्दा क्लीन चिट तनकीद करने वालों के मुँह पर मार दी। आज तक इन्होंने अफसोस का इजहार नहीं किया। उनके तास्सुफ के अल्फाज मुसलमानों के अहसासात को तस्कीन देने और तक्सीरियत पर मबनी हिन्दुस्तान के तसव्वुर को तकवियत देने में मुअस्सर होंगे।
मुझ जैसे अफराद 15 से 16 करोड़ की आबादी पर मुस्तमिल मुस्लिम फिरके को ये यकीन दिलाना चाहते हैं कि इन्हें खायफ होने की जरूरत नहीं है क्योंकि हिन्दुस्तान दस्तूर पर कार बन्द है जो कानूनों की नजर में हर शहरी को मसावात की जमानत देता है। अगर इस फिरके को निशाना बनाया जाता है तो अदालतें, मीडिया और एतदाल पसन्द आवाजंे हैं जो मुसलमानों की हामी हैं। इसका मुजाहिरा उस वक्त देखने में आया जब बाबरी मस्जिद मुन्हदिम की गई और गुजरात में मुस्लिम कश फसादात हुए।
वह लोग जो रियासत जम्मू व कश्मीर को खुसूसी हैसियत देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म करने का मुतालबा कर रहे हैं वही मुस्लिम मुखालिफ अनासिर हैं। आर्टिकल 370 दस्तूरे-हिन्द की तरह 65 साल पुराना है क्योंकि जम्मू व कश्मीर मुस्लिम अक्सरीयत वाली रियासत है, इन अनासिर को मोदी के दौरे हुकूमत मंे इस रियासत की हैसियत पर एतराज उठाने का साजगार माहौल फिर अहम हो गया है। तारीख से वह वाकिफ नहीं हैं और न ही हकायक जानने में इन्हें कोई दिलचस्पी है।
अगस्त 1947 में बरतानवी तसल्लुत के खात्मे पर रियाया की अक्सरीयत के मजहब के पेशे नजर तकरीबन 560 रजवाड़ो को इस इन्तखाब की आजादी दी गई कि या तो वे हिन्दुस्तान में शामिल रहें या तो तश्कील शुदा पाकिस्तान के साथ हो जाएँ। कोई हुकमरान अगर चाहता तो आजाद भी रह सकता था। जम्मू व कश्मीर के हुक्मराँ महाराजा हरि सिंह ताखीर से हिन्दुस्तानी वफाक में शामिल हो गए, अगरचे इस रियासत की आबादी में मुसलमानों की गालिबअकसरियत थी। मेरा मुशाहिदा यह है कि अगर उसने सब्र से काम लिया होता तो कश्मीर पाकिस्तान में चला जाता लेकिन इसने रियासत के अलहाक के लिए पहले कबायली और फिर बाकायदा फौज को भेजा। अपनी फौज के हाथों कत्ल व खून रोकने की गरज से महाराज ने हिन्दुस्तान के हक में दस्तखत कर दिए। महाराज ने सिर्फ तीन मामलात हिन्दुस्तान को सौंपे। दिफा, खारजी उमूर और मवासिलात। रियासत ने दीगर मामलात अपने पास ही रखे। आर्टिकल 370 इसी मफाहिमत की दस्तावेजी शकल है। अगर हिन्दुस्तान वफाक मजीद मामलात को अपने हाथ में लेना चाहे तो इसका फैसला रियासत जम्मू व कश्मीर के अख्तियार में है। क्योंकि वह इसी शर्त पर वफाक में शामिल हुई थी। रियासत की रजामन्दी के बगैर वफाक मजीद मामलात अपने अख्तियार में नही ले सकता। इसलिए आर्टिकल 370 के खात्मे के मुतालबे को आगे बढ़ाने वाली आर0एस0एस0 का अमल गैर कानूनी है।
दर हकीकत मामलात इस कदर उलझ गए हैं कि किसी हल तक पहुँचने के लिए तीन फिरको की रजामन्दी जरूरी है। वह हैं हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और जम्मू व कश्मीर के अवाम।
अगर आज रायशुमारी कराई जाए तो वादीए कश्मीर एक आजाद रियासत की हिमायत में वोट देगी। हिन्दू अक्सरीयत वाले जम्मू के अवाम हिन्दुस्तान में रहना चाहेंगे और लद्दाख जहाँ गालिब अक्सरीयत बौद्धांे की है बराहे रास्त के तहत मरकज के जेरे निगरानी इलाके की हैसियत पाना चाहेगा। इन तमाम मुश्किलों ने मसले को नाकाबिल हल बना दिया है।
जब आर0एस0एस0 शकाफती तन्जीम होने का दावा करती है तो इसे किसी हालत में भी सियासत बाजी नहीं करनी चाहिए। मुझे याद है कि आर0एस0एस0 के आदमी नाथूराम गोड्से के हाथों महात्मा गांधी के कत्ल के बाद 30 जनवरी 1948 को इस पर पाबन्दी आयद की गई थी। फिर 1949 में आर0एस0एस0 की तरफ से पाबन्दी हटाने की दरख्वास्त के जवाब में उस वक्त के वजीर दाखिला सरदार वल्लभ भाई पटेल और आर0एस0एस0 के दरमियान एक मुअहिदा हुआ जिसमें यह जमानत दी गई कि आर0एस0एस0 किसी सियासी सरगर्मी में शरीक नहीं होगा और यह कि आर0एस0एस0 सिर्फ शकाफ्ती सरगर्मियों में शामिल होगा।
फिर पटेल ने जो आर0एस0एस0 के वादे से मुतमइन नहीं थे मतालबा किया कि इसमें यह वादा शामिल किया जाय कि वह संघ की तशकील में सियासी सरगर्मियों में हिस्सा नहीं लेगी, मुआहिदे को मुहरबन्द किया जाए और आर0एस0एस0 को हमेशा के लिए सियासी सगर्मियों से रोक दिया जाए। यह 1949 में हुआ था और इसके बाद हुकूमत ने पाबन्दी हटा दी। ताहम एक हैरतनाक बदअहदी यह हुई कि आर0एस0एस0 अपने सरसंघ चालक मोहन भागवत की कयादत में जून 2013 से साबिक आर0एस0एस0 प्रचारक मोदी को हिन्दुस्तान के वजीर आजम के मनसब पर बैठाने के लिए जारिहाना सियासी सरगर्मियो में मुलब्बिस हो गई। नतीजा आपके सामने है।
-कुलदीप नय्यर
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