राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि देश में हिंदुत्व की स्थापना के लिए महाभारत होगा। जिसके लिए आप लोग तैयार रहें।
धर्म स्थापना के लिए जो करना पड़े संघ करेगा। कार्यकर्ताओं से प्रतिक्रिया
में कोई भी काम करने से मना किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ हिन्दू
समाज को संगठित करने के अलावा कुछ नहीं करेगा। लेकिन संघ के स्वयंसेवक कुछ
नहीं छोड़ेंगे।
महाभारत का कृष्ण कौन है ?, पांचाली कौन है ?, कौरव सेना कौन है ?, पांडव सेना कौन है ? यह सब अँधेरे में रख कर इशारों-इशारों में नए नरसंहार की अग्रिम सूचना मोहन भागवत दे रहे हैं. कौन धर्मी है, कौन अधर्मी है, किसका नरसंहार होना है. संघ प्रमुख उसको छिपाए हुए हैं लेकिन हिन्दुवत्व के लिए नरसंहार होगा. गुजरात का नरसंहार या उड़ीसा के कंधमाल का नरसंहार राज्य स्तर पर हुआ है लेकिन देश स्तर पर संघ अरुणांचल से लेकर जम्मू और कश्मीर तक हिंदुवत्व का राज कायम करना चाहता है और उसके लिए महाभारत जैसा युद्ध अपने ही देश के नागरिकों के साथ करने घोषणा कर रहा है.
लेकिन मौन है संविधान, मौन है न्यायपालिका, मौन है कार्यपालिका और मौन है विधायिका, महाभारत में मौन का मतलब ध्रतराष्ट्र है.
हम आशावादी हैं, हमारे संविधान की प्रस्तावना मौन नहीं रह सकती है, न्यायपालिका मौन नहीं रह सकती है, कार्यपालिका भी संविधान की प्रस्तावना से प्रतिबद्ध है. हाँ विधायिका पर उनके प्रचारक का कब्ज़ा जरूर है लेकिन वहां भी धृतराष्ट्र की विजय नही होगी. मिथकों के माध्यम से खतरनाक सन्देश देकर अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, मेहनतकश आवाम को हिटलरी अंदाज में डराने की जो भागवत की मंशा है, वह अपनी मंशा में कामयाब नहीं होंगे. बगैर गांधारी के भागवत धृतराष्ट्र साबित होंगे. नए महाभारत में फिर धृतराष्ट्र का अंत होगा.
धर्म क्या है और अधर्म क्या है, इसको परिभाषित करने का काम नए सिरे से संविधान की प्रस्तावना में आया शब्द धर्मनिरपेक्षता करेगी.
शर्मनाक बात यह है कि इस तरह के नरसंहारी लोगों के इस तरह के बयानों पर संसद मौन है.
सुमन
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