सोमवार, 14 नवंबर 2016

मोदी ! पूंजीपतियों का सुख - तुम्हारी देशभक्ति है

प्रधानमंत्री ने कहा, ’’मेरे बचपन में लोग कहते थे कि मोदी जी जरा चाय कड़क बनाना। मुझे तो बचपन से आदत है। मैंने निर्णय कड़क लिया। गरीब को कड़क चाय भाती है लेकिन अमीर का मुंह बिगड़ जाता है।’’ गाजीपुर की सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री की यह भाषा थी. वह भूल गए कि अभी 2014 के लोकसभा चुनाव में वह 15 हज़ार करोड़ रुपये कॉर्पोरेट सेक्टर से काले धन को प्राप्त कर सत्तारूढ़ हुए थे. प्रधानमंत्री बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए देशभक्ति और आतंकवाद से हर मुद्दे को जोड़ने का काम करते हैं. एक हजार व पांच सौ के नोट विमुद्रीकरण का मामला भी उन्होंने आतंकवाद और देशभक्ति से जोड़ दिया है. 85 % बड़े नोटों को वापस ले लेने के बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों में जनता इन रुपयों को अपने खातों में जमा कर रही है. यह रुपया सेविंग अकाउंट में जितना जमा होगा उसके ऊपर बैंकों को जमाकर्ताओं को ब्याज देना पड़ेगा. जो एक भारी भरकम राशि होगी. बैंक की व्यवस्था यह होती है की जनता उसमें पैसा जमा करे और कम ब्याज प्राप्त करे. दूसरी तरफ बैंक बढ़ी दरों पर लोगों को कर्जा दें और वह कर्जा मय ब्याज के वापस हो. बैंक स्वस्थ रहेंगे. मोदी साहब के इस कार्यक्रम से बैंक रुपये बदलने के साथ-साथ अपने वहां जमा कराने का जो कार्यक्रम चल रहा है. उससे बैंक की पूरी की पूरी व्यवस्था नष्ट हो जाएगी और वह दिवालियेपन की और बढ़ेंगे. उपलब्ध आकंड़ों के अनुसार चार लाख करोड़ रुपया सरकारी बैंकों का एनपीए है. वसूली के लिए  द इंर्फोसमेंट ऑफ सिक्यूरिटी इंटेरेस्ट एंड रिकवरी ऑफ डेट्स लॉज एंड मिसलेनियस प्रोविजन्स (संशोधन) विधेयक, 2016 भी पारित हुआ किन्तु  मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिजर्व बैंक से कहा है कि बैंक कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों की पूरी सूची उसे सीलबंद लिफाफे में उपलब्ध कराई जाए। इस मामले में दायर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही इस पीठ में मुख्य न्यायधीश के अलावा न्यायमूर्ति यूयू ललित और आर भानुमति भी शामिल हैं। पीठ ने जानना चाहा है कि बैंक और वित्तीय संस्थानों ने किस प्रकार से उचित दिशा-निर्देशों का पालन किए बिना इतनी बड़ी राशि कर्ज में दी और क्या इस राशि को वसूलने के लिए उपयुक्त प्रणाली बनी हुई है?

वहीँ, मोदी सरकार कंपनियों को दिया गया करीब 40,000 करोड़ रुपये का ऋण 2015 में बट्टे खाते में डाल कर अपनी स्वामी भक्ति का परिचय दिया है. मोदी साहब जिन कॉर्पोरेट सेक्टर के चंदे से या मदद से प्रधानमन्त्री बने हैं, वह हक़ अदा कर रहे हैं. जनता से उनका कोई लेना देना नहीं है. उनके इस निर्णयों से हज़ारों लोग मर चुके हैं और अगर बैंक डूब जायेंगे तो एक ही समय में रोयेंगे भी और हसेंगे भी.

देश को दिवालिया करने के बाद मोदी साहब जो उनसे सवाल पूछेगा उसे देश द्रोही घोषित कर देंगे क्यूंकि उनकी जिम्मेदारी संविधान के प्रति नहीं है. उनका विश्वास लोकतंत्र में नहीं है, वह हिटलर की समस्त नक़ल करते हैं. 
वहीँ, आज श्री वी एम प्रसाद ने श्री पंकज चतुर्वेदी की एक कविता भेजी है. जिसमें देशभक्ति देश को मोदी के अनुसार परिभाषित किया गया है. नयी परिभाषाएं देखिये यही सही है. 

तुम्हारी मेहरबानी: पंकज चतुर्वेदी

कॉर्पोरेट घरानों का
अरबों रुपये क़र्ज़
माफ़ करने से
जो बैंक औंधे मुँह गिरे
उन्हें नग़दी के
भारी संकट से
उबारने के लिए
तुमने दो सामान्य नोट
अचानक चलन से बाहर किये
और समूचे अवाम को
मुसीबत में डाल दिया
यों छोटे कारोबारियों, बिचौलियों
और जालसाज़ों से
जो हासिल होगा
काले धन का
कुछ हिस्सा
वह उस घाटे की
भरपाई के लिए
जो कॉर्पोरेट घरानों पर
तुम्हारी मेहरबानी का
नतीजा है
और जब कोई पूछता है :
यह अराजकता, तकलीफ़
और अपमान
हम किसके लिए सहते हैं
तो तुम कहते हो :
देश के लिए
जबकि सच यह है
कि पूँजीपतियों का सुख
और जनता का दुख
जिस कारख़ाने में
तुम बनाते हो
उसका नाम तुमने
देशभक्ति रखा है !

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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