आज राहुल गाँधी ने सीधे सीधे नरेन्द्र दामोदर मोदी के सम्बन्ध में बताया कि, "सहारा कंपनी पर छापा पड़ा था। सहारा के रिकॉर्ड में
लिखा था- 30 अक्टूबर 2013 ढाई करोड़ रुपए मोदी जी को दिया। इसके बाद 12
नवंबर 2103 को पांच करोड़, 27 नवंबर को ढाई करोड़, 29 नवंबर को भी ढाई
करोड़। 6 दिसंबर को 5 करोड़, 19 दिसंबर पांच करोड़, 13 जनवरी दो करोड़,
इसके बाद कुल नौ बार पैसे दिए गए। 6 महीने में 9 बार सहारा ने मोदी को पैसे
दिए। और ये एक डायरी में लिखा है।"
दूसरा सवाल उन्होंने यह पूछ दिया कि, "मोदी जी बताइए, इन पेपर्स पर आईटी के दस्तखत है। इन पर ढाई साल के दौरान
जांच क्यों नहीं हुई ? 9 बार ये पैसा दिया गया है। आपने पूरे देश को लाइन
मेंं रखा, पूरे देश की ईमानदारी पर सवाल उठाया। अगर ये सच है तो इसकी जांच
कब होगी?"
देशभक्ति की परिभाषा सिखाते-सिखाते नवम्बर महीने से जनता को बैंक की लाइन में खड़ा कर रखा है. जनता लाइन में खड़ी हुई मर रही है. आप जनाब अलीबाबा से लेकर अम्बानी, अडानी होते हुए कमीशनखोरी का ही काम कर रहे हैं. जिस तरह से बिज्जो मुर्दा खाने का शौक़ीन होता है. उसी तरीके से नोट बंदी जैसी योजना बिज्जो की नई शकल के रूप में दिखाई दे रही है जो जिंदा आदिवासी, दलित, मजदूर, खेत मजदूर, किसान, मेहनतकश जनता को खाने के लिए तत्पर है. नोट बंदी के बाद से बेरोजगारी असंगठित क्षेत्र में अपनी चरम सीमा पर है. सरकार काला धन इन्ही लोगों के पास से बरामद कर सफ़ेद कर रही है और जिनके पास काला धन है उनसे चुनाव का चंदा लेकर चुनाव लड़ रही है. नोटबंदी से पहले सत्तारूढ़ दल ने पूरे देश के अन्दर प्रत्येक जिले में पार्टी कार्यालय बनाने के लिए जमीन खरीदी है और उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं को नि:शुल्क मोटर साइकिल देने के लिए खरीदी गयी हैं. अब यह सारा रुपया सफ़ेद धन है. जनता को मारकर राज चलाने की कला कोई इन बहुरूपिये बिज्जुओं से सीखे. "चाह में है और कोई, बांह में है और कोई" यही इनकी असलियत है.
समय बीतते ही जब जांच होगी तो हिन्दुस्तान के भ्रष्टतम सरकारों में यह सरकार होगी.
सुमन
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुकर्वार (23-12-2016) को "पर्दा धीरे-धीरे हट रहा है" (चर्चा अंक-2565) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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