कुछ साल पहले की बात है। निजी बातचीत में मैंने देश के एक प्रमुख धर्मगुरू से पूछा कि वे अपने प्रवचनों के दौरान देश में व्याप्त बुराईयों की चर्चा क्यों नहीं करते? ‘
‘आप अपनी आभा और प्रभाव का उपयोग
मेरे प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि यदि हम भ्रष्टाचार आदि के विरूद्ध जिहाद छेड़ देंगे तो हमारी और हमारे चेलों की सुख-सुविधाओं का ध्यान कौन रखेगा!
हमारे देश में धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्वों का धन व वैभव से निकटता का संबंध है। मैंने कभी किसी धर्मगुरू को स्टेशन या हवाईअड्डे से आटो से आते नहीं देखा। एक दिन की बात है। एक जानेमाने धर्मगुरू भोपाल पधारे थे। जो कार उन्हें लेने गई थी वह ए.सी. नहीं थी। इस पर उन्होंने उस कार में बैठने से इंकार कर दिया। और जब तक ए.सी. कार नहीं आई, वे स्टेशन पर रूके रहे।
पिछले कुंभ में मुझे उज्जैन जाने का अवसर मिला था। उज्जैन प्रवास के दौरान मैं अनेक धर्मगुरूओं के शिविर में गया। उनके कैंपों में वे सब सुविधाएं थीं जो शायद एक धनी व्यक्ति भी नहीं जुटा पायेगा। उज्जैन के कुंभ के दौरान साधुओं के शिविरों में कुल मिलाकर 4000 एयरकंडीशनर लगे थे और इन एयरकंडीशनरों को विद्युत प्रदाय करने के लिये राज्य विद्युत मंडल को विशेष इंतजाम करने पड़े थे। ज्ञातव्य है कि एक एयरकंडीशनर में लगभग उतनी ही बिजली की खपत होती है जितनी कि 100 वाट के 15 बल्बों में।
धर्मगुरूओं की एक कमजोरी रहती है। उनकी तीव्र इच्छा होती है कि उनके प्रवचन सुनने मुख्यमंत्री, मंत्री, आला अफसर और नगर के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति अवश्य आएं। फिर, उनकी यह भी इच्छा रहती है कि मुख्यमंत्री या मंत्री मंच पर आकर उन्हें माला पहनायें और उनके चरण छुएं।
यह दुःख की बात है कि सत्ता में बैठे लोगों और धर्मगुरूओं के बीच क्या संबंध हों, इस बारे में अभी तक हमारे देश में कोई सर्वमान्य परंपराएं या नियम नहीं बन सके हैं।
हमारे देश के संविधान के अनुसार, जो भी व्यक्ति संवैधानिक पदों पर रहते हैं, उन्हें हर हालत में सर्वोच्च स्थान मिलना चाहिये। पर प्रायः यह देखा गया है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग इन धर्मगुरूओं के सामने नतमस्तक होते हैं और सार्वजनिक रूप से उनके चरणस्पर्श करते हैं।
कुछ माह पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी अपने मध्यप्रदेश प्रवास के दौरान जबलपुर के पास स्थित एक आश्रम में वहां के शंकराचार्य से मिलने गए थे। शंकराचार्य से मुलाकात का उनका फोटो अखबारों में छपा था। इस फोटो में शंकराचार्य अपने आसन पर बैठे हैं और राष्ट्रपति, झुककर, हाथ जोड़कर उनका अभिवादन कर रहे हैं। जब भी राष्ट्रपति किसी सभा या महफिल में प्रवेश करते हैं तो उपस्थित सभी लोग खड़े हो जाते हैं। क्या शंकराचार्य को खड़े होकर राष्ट्रपति जी का स्वागत नहीं करना था? ऐसा न करके, क्या शंकराचार्य ने प्रोटोकाल के नियमों का उल्लंघन नहीं किया? हमारे देश के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक माना जाता है। उनके ऊपर किसी का स्थान नहीं है।
नागरिक उड्डयन सुरक्षा नियमों के अनुसार, कुछ ऐसे लोगों को छोड़कर, जो संवैधानिक पदों पर पदस्थ हैं, कोई भी व्यक्ति बिना सुरक्षा जांच के हवाईजहाज पर सवार नहीं हो सकता। अभी हाल में ‘इंडियन एक्सप्रेस‘ में छपे एक समाचार के अनुसार, बापू आसाराम को यह सुविधा प्राप्त थी। वे अपनी कार से सीधे हवाईजहाज तक पहुंचते थेे। उन्हें यह सुविधा किन नियमों के अन्तर्गत दी गई थी? किस अधिकारी ने इस तरह की सुविधा देने के आदेश जारी किये थे? ऐसे आदेशों से ही इन धर्मगुरूओं को सिर पर चढ़ाया जाता है।
फिर, प्रश्न यह भी है कि क्या धर्मगुरूओं को संपत्ति रखना चाहिये? ये धर्मगुरू प्रायः अपने अनुयायियों को सादा जीवन बिताने और क्रोध, काम, लोभ व मद से ऊपर उठने का उपदेश देते हैं। परन्तु ठीक इसके विपरीत, ये धर्मगुरू अरबों की संपत्ति के मालिक बन जाते हैं। समाचारपत्रों में बताया गया है कि आसाराम की संपत्ति कम से कम पांच हजार करोड़ रूपये की है। ऐसा कोई भी बड़ा शहर नहीं है जहां आसाराम का आश्रम न हो। ये आश्रम सैंकड़ों एकड़ जमीन में फैले हुये हैं और कहा जाता है कि अधिकांश आश्रम सरकारी भूमि पर कब्जा कर बनाए गए हैं।
एक बात और। इन धर्मगुरूओं को सत्ता में बैठे लोगों से बड़ा प्रेम होता है। आसाराम के एक विशेष सहायक थे जो सिर्फ मंत्रियों, उच्च अधिकारियों और धनकुबेरों के फोन सुनते थे और उनकी आसाराम से बात करवाते थे। आसाराम बापू के उमा भारती, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धराराजे सिंधिया, गुजरात के मंत्री रहे अमित शाह और वर्तमान में सलाखों के पीछे डाल दिये गए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डी.जी. बंजारा से प्रगाढ संबंध हैं। सन् 2009 तक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी उनके प्रगाढ़ संबंध थे। आसाराम के अलावा, अन्य धर्मगुरू भी राजनीतिज्ञों से प्रगाढ़ संबंध रखते हैं।
इन धर्मगुरूओं पर आये दिन अनेक आरोप लगते रहते हैं। आसाराम पहले धर्मगुरू नहीं हैं जिन पर यौन शोषण का आरोप लगा है। इसके पूर्व भी अनेक धर्म गुरूओं पर इस तरह के आरोप लगे हैं।
इन धर्मगुरूओं की एक और विशेषता होती है। ये अपने आश्रमों में बाहुबलियों को भी पालकर रखते हैं। इन बाहुबलियों का उपयोग वे अपने विरोधियों का दमन करने के लिये करते हैं।
आसाराम के बारे में जो सच सामने आ रहे हैं, उनसे ऐसा लगता है कि इन धर्मगुरूओं के आश्रम असल में अपराधियों के केन्द्र हैं। इस बात के मद्देनजर आवश्यकता है कि इस तरह के आश्रमों और उनमें संचालित गतिविधियों पर सतत नजर रखी जाये। इस तरह के धर्मगुरू उतने ही खतरनाक हैं जितने कि आतंकवादी और अन्य ऐसे संगठनों के सदस्य, जो हिंसा का सहारा लेकर अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं। अतः इस बात की आवश्यकता है कि उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिये पुलिस की गुप्तचर शाखा में एक विशेष प्रकोष्ठ स्थापित किया जाये। इनके बारे में एक और प्रश्न पर विचार होना चाहिये। क्यों न इन धर्मगुरूओं द्वारा अर्जित धन पर टैक्स लगाया जाये? ये धर्मगुरू सस्ते दामों पर सरकारों से जमीन लेते हैं और फिर उस जमीन पर तरह तरह के व्यवसाय करते हैं। इनमें से कई दवाईयों के उत्पादन के कारखाने स्थापित कर लेते हैं और अपने तथाकथित श्रद्धालुओं को ये दवाएं बेचकर करोड़ों की कमाई करते हैं। आयुर्वेद के एक डाक्टर हैं, अमित शाह। वे एक समय आसाराम से जुड़े हुए थे। वे आसाराम के दवा उत्पादन व्यवसाय की देखभाल करते थे। उन्होंने बताया है कि जब आसाराम द्वारा उत्पादित दवाईयां लोकप्रिय हो गईं तो आसाराम ने उनसे कहा कि दवाईयों में काम आने वाले कच्चे माल की लागत में कमी करो। ऐसा करने से दवाईयों की गुणवत्ता पर असर होता। उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। ‘‘मैंने उनसे कहा कि मैं आश्रम से विदा होना चाहूंगा‘‘। इस पर आसाराम ने कहा कि वे उनकी डाक्टरी नहीं चलने देंगे। बाद में उन्होंने खुद ही मुझे हटा दिया। उसके बाद आसाराम के लोगों ने इस डाक्टर को एक झूठे मामले में फंसाकर राजस्थान पुलिस द्वारा परेशान करवाया। परन्तु दुःख की बात है कि अमित शाह की शिकायत के बावजूद, दवाईयों की गुणवत्ता को लेकर आसाराम के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस तरह की दवाईयां बेचना न सिर्फ अपराध है वरन् जघन्य पाप भी है।
यह स्पष्ट है कि ऐसा कोई पाप नहीं है जो साधुओं और धर्मगुरूओं का लबादा ओढ़े ये ढोंगी नहीं करते।
भ्रष्टाचार, हिंसा, जातिवाद, दहेजप्रथा, साम्प्रदायिकता आदि जैसी बुराईयों के विरूद्ध वातावरण बनाने में क्यों नहीं करते? आप किसी शहर में अपने प्रवास के दौरान धनी एवं प्रभुत्वशाली व्यक्तियों के स्थान पर किसी गरीब की झोपड़ी मंे क्यों नहीं ठहरते?‘‘
-एल. एस. हरदेनिया
‘आप अपनी आभा और प्रभाव का उपयोग
मेरे प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि यदि हम भ्रष्टाचार आदि के विरूद्ध जिहाद छेड़ देंगे तो हमारी और हमारे चेलों की सुख-सुविधाओं का ध्यान कौन रखेगा!
हमारे देश में धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्वों का धन व वैभव से निकटता का संबंध है। मैंने कभी किसी धर्मगुरू को स्टेशन या हवाईअड्डे से आटो से आते नहीं देखा। एक दिन की बात है। एक जानेमाने धर्मगुरू भोपाल पधारे थे। जो कार उन्हें लेने गई थी वह ए.सी. नहीं थी। इस पर उन्होंने उस कार में बैठने से इंकार कर दिया। और जब तक ए.सी. कार नहीं आई, वे स्टेशन पर रूके रहे।
पिछले कुंभ में मुझे उज्जैन जाने का अवसर मिला था। उज्जैन प्रवास के दौरान मैं अनेक धर्मगुरूओं के शिविर में गया। उनके कैंपों में वे सब सुविधाएं थीं जो शायद एक धनी व्यक्ति भी नहीं जुटा पायेगा। उज्जैन के कुंभ के दौरान साधुओं के शिविरों में कुल मिलाकर 4000 एयरकंडीशनर लगे थे और इन एयरकंडीशनरों को विद्युत प्रदाय करने के लिये राज्य विद्युत मंडल को विशेष इंतजाम करने पड़े थे। ज्ञातव्य है कि एक एयरकंडीशनर में लगभग उतनी ही बिजली की खपत होती है जितनी कि 100 वाट के 15 बल्बों में।
धर्मगुरूओं की एक कमजोरी रहती है। उनकी तीव्र इच्छा होती है कि उनके प्रवचन सुनने मुख्यमंत्री, मंत्री, आला अफसर और नगर के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति अवश्य आएं। फिर, उनकी यह भी इच्छा रहती है कि मुख्यमंत्री या मंत्री मंच पर आकर उन्हें माला पहनायें और उनके चरण छुएं।
यह दुःख की बात है कि सत्ता में बैठे लोगों और धर्मगुरूओं के बीच क्या संबंध हों, इस बारे में अभी तक हमारे देश में कोई सर्वमान्य परंपराएं या नियम नहीं बन सके हैं।
हमारे देश के संविधान के अनुसार, जो भी व्यक्ति संवैधानिक पदों पर रहते हैं, उन्हें हर हालत में सर्वोच्च स्थान मिलना चाहिये। पर प्रायः यह देखा गया है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग इन धर्मगुरूओं के सामने नतमस्तक होते हैं और सार्वजनिक रूप से उनके चरणस्पर्श करते हैं।
कुछ माह पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी अपने मध्यप्रदेश प्रवास के दौरान जबलपुर के पास स्थित एक आश्रम में वहां के शंकराचार्य से मिलने गए थे। शंकराचार्य से मुलाकात का उनका फोटो अखबारों में छपा था। इस फोटो में शंकराचार्य अपने आसन पर बैठे हैं और राष्ट्रपति, झुककर, हाथ जोड़कर उनका अभिवादन कर रहे हैं। जब भी राष्ट्रपति किसी सभा या महफिल में प्रवेश करते हैं तो उपस्थित सभी लोग खड़े हो जाते हैं। क्या शंकराचार्य को खड़े होकर राष्ट्रपति जी का स्वागत नहीं करना था? ऐसा न करके, क्या शंकराचार्य ने प्रोटोकाल के नियमों का उल्लंघन नहीं किया? हमारे देश के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक माना जाता है। उनके ऊपर किसी का स्थान नहीं है।
नागरिक उड्डयन सुरक्षा नियमों के अनुसार, कुछ ऐसे लोगों को छोड़कर, जो संवैधानिक पदों पर पदस्थ हैं, कोई भी व्यक्ति बिना सुरक्षा जांच के हवाईजहाज पर सवार नहीं हो सकता। अभी हाल में ‘इंडियन एक्सप्रेस‘ में छपे एक समाचार के अनुसार, बापू आसाराम को यह सुविधा प्राप्त थी। वे अपनी कार से सीधे हवाईजहाज तक पहुंचते थेे। उन्हें यह सुविधा किन नियमों के अन्तर्गत दी गई थी? किस अधिकारी ने इस तरह की सुविधा देने के आदेश जारी किये थे? ऐसे आदेशों से ही इन धर्मगुरूओं को सिर पर चढ़ाया जाता है।
फिर, प्रश्न यह भी है कि क्या धर्मगुरूओं को संपत्ति रखना चाहिये? ये धर्मगुरू प्रायः अपने अनुयायियों को सादा जीवन बिताने और क्रोध, काम, लोभ व मद से ऊपर उठने का उपदेश देते हैं। परन्तु ठीक इसके विपरीत, ये धर्मगुरू अरबों की संपत्ति के मालिक बन जाते हैं। समाचारपत्रों में बताया गया है कि आसाराम की संपत्ति कम से कम पांच हजार करोड़ रूपये की है। ऐसा कोई भी बड़ा शहर नहीं है जहां आसाराम का आश्रम न हो। ये आश्रम सैंकड़ों एकड़ जमीन में फैले हुये हैं और कहा जाता है कि अधिकांश आश्रम सरकारी भूमि पर कब्जा कर बनाए गए हैं।
एक बात और। इन धर्मगुरूओं को सत्ता में बैठे लोगों से बड़ा प्रेम होता है। आसाराम के एक विशेष सहायक थे जो सिर्फ मंत्रियों, उच्च अधिकारियों और धनकुबेरों के फोन सुनते थे और उनकी आसाराम से बात करवाते थे। आसाराम बापू के उमा भारती, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धराराजे सिंधिया, गुजरात के मंत्री रहे अमित शाह और वर्तमान में सलाखों के पीछे डाल दिये गए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डी.जी. बंजारा से प्रगाढ संबंध हैं। सन् 2009 तक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी उनके प्रगाढ़ संबंध थे। आसाराम के अलावा, अन्य धर्मगुरू भी राजनीतिज्ञों से प्रगाढ़ संबंध रखते हैं।
इन धर्मगुरूओं पर आये दिन अनेक आरोप लगते रहते हैं। आसाराम पहले धर्मगुरू नहीं हैं जिन पर यौन शोषण का आरोप लगा है। इसके पूर्व भी अनेक धर्म गुरूओं पर इस तरह के आरोप लगे हैं।
इन धर्मगुरूओं की एक और विशेषता होती है। ये अपने आश्रमों में बाहुबलियों को भी पालकर रखते हैं। इन बाहुबलियों का उपयोग वे अपने विरोधियों का दमन करने के लिये करते हैं।
आसाराम के बारे में जो सच सामने आ रहे हैं, उनसे ऐसा लगता है कि इन धर्मगुरूओं के आश्रम असल में अपराधियों के केन्द्र हैं। इस बात के मद्देनजर आवश्यकता है कि इस तरह के आश्रमों और उनमें संचालित गतिविधियों पर सतत नजर रखी जाये। इस तरह के धर्मगुरू उतने ही खतरनाक हैं जितने कि आतंकवादी और अन्य ऐसे संगठनों के सदस्य, जो हिंसा का सहारा लेकर अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं। अतः इस बात की आवश्यकता है कि उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिये पुलिस की गुप्तचर शाखा में एक विशेष प्रकोष्ठ स्थापित किया जाये। इनके बारे में एक और प्रश्न पर विचार होना चाहिये। क्यों न इन धर्मगुरूओं द्वारा अर्जित धन पर टैक्स लगाया जाये? ये धर्मगुरू सस्ते दामों पर सरकारों से जमीन लेते हैं और फिर उस जमीन पर तरह तरह के व्यवसाय करते हैं। इनमें से कई दवाईयों के उत्पादन के कारखाने स्थापित कर लेते हैं और अपने तथाकथित श्रद्धालुओं को ये दवाएं बेचकर करोड़ों की कमाई करते हैं। आयुर्वेद के एक डाक्टर हैं, अमित शाह। वे एक समय आसाराम से जुड़े हुए थे। वे आसाराम के दवा उत्पादन व्यवसाय की देखभाल करते थे। उन्होंने बताया है कि जब आसाराम द्वारा उत्पादित दवाईयां लोकप्रिय हो गईं तो आसाराम ने उनसे कहा कि दवाईयों में काम आने वाले कच्चे माल की लागत में कमी करो। ऐसा करने से दवाईयों की गुणवत्ता पर असर होता। उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। ‘‘मैंने उनसे कहा कि मैं आश्रम से विदा होना चाहूंगा‘‘। इस पर आसाराम ने कहा कि वे उनकी डाक्टरी नहीं चलने देंगे। बाद में उन्होंने खुद ही मुझे हटा दिया। उसके बाद आसाराम के लोगों ने इस डाक्टर को एक झूठे मामले में फंसाकर राजस्थान पुलिस द्वारा परेशान करवाया। परन्तु दुःख की बात है कि अमित शाह की शिकायत के बावजूद, दवाईयों की गुणवत्ता को लेकर आसाराम के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस तरह की दवाईयां बेचना न सिर्फ अपराध है वरन् जघन्य पाप भी है।
यह स्पष्ट है कि ऐसा कोई पाप नहीं है जो साधुओं और धर्मगुरूओं का लबादा ओढ़े ये ढोंगी नहीं करते।
भ्रष्टाचार, हिंसा, जातिवाद, दहेजप्रथा, साम्प्रदायिकता आदि जैसी बुराईयों के विरूद्ध वातावरण बनाने में क्यों नहीं करते? आप किसी शहर में अपने प्रवास के दौरान धनी एवं प्रभुत्वशाली व्यक्तियों के स्थान पर किसी गरीब की झोपड़ी मंे क्यों नहीं ठहरते?‘‘
-एल. एस. हरदेनिया
2 टिप्पणियां:
तुम तो कहते थे,सन्यासी,ऋषि,मुनि पावन होते हैं !
कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा, आज सरे बाज़ार हो गयी !
At the point when the establishing individuals from Dhongi Aap had left Arvind Kejriwal they reprimanded their old school for receiving the authoritarian state of mind. The ousted establishing individuals had uncovered that AAP implies Arvind Kejriwal and Kejriwal implies Dhongi Aap. They told that the gathering has been dealing with the bearings of Kejriwal and he doesn't ha anything to do with the other party pioneers and specialists. He has just a rationale of winning votes and that's it.
The suppressor man amid his five days visit in Punjab had gone to the better places in the state however he didn't try to discuss his gathering pioneers who are confronting criminal cases. The relatives of the pioneers have scrutinized the Dhongi Aap supremo for double-crossing the gathering specialists.
Baltej Pannu, the pioneer of Dhongi Aap was captured in an assault case and the relatives of another pioneer, Raghbir Singh Bhairowal were likewise captured by the police in a criminal case.
Dhongi Aap
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