राजनाथ ने अपने बड़बोले मंत्रियों को नसीहतदी है. केंद्र सरकार
के मंत्री जनरल वीके सिंह और किरण रिजीजू को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ
सिंह ने हिदायत देते हुए कहा है कि गो हत्या, हरियाणा में दलितों की हत्या जैसे गंभीर
मुद्दों पर सोच समझ कर बयान दे.
राजनाथ सिंह भी संघ के प्रचारक रहे है और अब शायद भूल रहे है कि संघ की मूल विचारधारा यही है जिसका जाप मंत्री या भाजापा के नेतागण कर लिया करते है. छुपी हुई बाते या छुपा हुआ एजेंडा कब तक छुपाए रखोगे, चाहे बाबरी मस्जिद को तोड़ने का मामला हो या गुजरात का नरसंघार छुपे हुए एजेंडे को लागू किया गया था और यह नेतागण खुशिया मना रहे थे और अदालतों में इंकार कर रहे थे,
इनकी मुख्य समस्या संविधान की प्रस्तावना में "हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमाऔर राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होना है". संविधान के अनुसार बातें करनी हैं ताकि सत्ता का सुख मिलता रहे सत्तासुख के लिए केंद्र सरकार पर काबिज सत्तारूढ़ दल मुखौटे लगा कर दोहरे जीवन पद्यति को अपना रहा है.
संघ की मूल विचारधारा के अनुसार पिछड़ों दलितों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है और उसी समझ के अनुसार जब केंद्र में बैठे हुए नेतागण व अन्य नेता अपनी बात को जनता के सामने रखते हैं तो सही बात आ जाती है. मंडल कमीशन के आने के बाद पूरे देश में जो आरक्षण विरोधी आन्दोलन चला था उसको सुनियोजित तरीके से संघ के संगठन ने संचालित किया था. अल्पसंख्यकों के सवाल को लेकर 1984 के दंगे के पीछे जो कत्लेआम हुआ था वह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है.
ओडिशा के कंधमाल क्षेत्र में जो ईसाईयों का कत्लेआम हुआ था वह भी संघ की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था. आदिवासियों को, दलितों को, पिछड़ों को धर्म के आधार पर मंदिर में प्रवेश वर्जित था और आज भी संघ द्वारा चलाई जा रही हिंदुवत्व वाली विचारधारा का प्रभाव बढ़ रहा है तो जगह-जगह इन तबकों पर हमले हो रहे हैं और इन हमलों के बीच में संघ का कहीं न कहीं अदृश्य हाथ नजर आता है.
सत्ता सुख भोगने के लिए गृह मंत्री राजनाथ सिंह का मंत्रियों को समझाने या डांटने का कोई अर्थ नहीं है. बल्कि सत्तासुख के लिए कुछ देर के लिए इन घ्रणित एजेंडों को छुपाये रखने का ही मामला है. अगर पूरी ताकत के साथ देश के अन्दर इनको सत्ता प्राप्त होती है तो आने वाले दिनों में इनकी भाषा व चेहरा बड़ा भयानक होगा। इनकी कल्पना में स्वयं को शेर समझने की बाकी सभी शिकार हैं.
3 टिप्पणियां:
अचछी रचनाए है ।Seetamni. blogspot. in
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-10-2015) को "तलाश शून्य की" (चर्चा अंक-2140) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिल्कुल सही लिखा है आपने। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
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