रविवार, 2 अक्तूबर 2016

गोडसेवाद जीता - गांधीवाद से

दक्षिण अफ्रीका से लेकर अपने देश में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ मोहनदास करमचंद गाँधी ने जो आन्दोलन चलाया उससे ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सूरज डूबने लगा लेकिन इस बात से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सबसे चहेते संगठन संघ को यह बातें नहीं पसंद आयीं और उन्होंने गाँधी की काया को 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर नष्ट कर दिया था. विचारों में देश के अन्दर गाँधीवाद का बोलबाला रहा किन्तु 26 मई 2014 नरेन्द्र दामोदर मोदी की शपथ ग्रहण के बाद गोडसेवाद ने अपने को विजयी घोषित कर दिया और संविधान की प्रस्तावना में लिखा शब्द धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा को बदलते हुए गाली का स्वरूप दे दिया जाता है और राष्ट्र को अघोषित रूप से हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाने लगा. गोडसे मंदिर से लेकर गाँधी की हत्या को वध कहकर नाथूराम गोडसे को सम्मानित करने का काम शुरू हो गया. सोशल मीडिया के माध्यम से गाँधी की  सबसे ज्यादा चरित्र हत्या सुनियोजित तरीके से, संघी अर्थात गोडसे वादियों ने की.  नयी पीढ़ी को बहुत सारा इतिहास की जानकारी न होने के कारण वह गोडसे को सहज तरीके से स्वीकार कर रही है, जो चिंता का विषय है.
                                देश की एकता और अखंडता की हिफाजत के लिए आज जरूरी है कि गांधीवाद फिर गोडसेवाद को पराजित करे अन्यथा इस देश की एकता और अखंडता को बनाये और बचाए रखना एक मुश्किल काम होगा. संघियों के मन में गोडसे है लेकिन मजबूरी में माला पहनाना गाँधी प्रतिमा को भी आवश्यक है.
                   आज जब अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ देश को जोड़ा जा रहा है तो जनता को यह महसूस होने लगा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजादी कितनी मुश्किलों के बाद मिली थी लेकिन यह गोडसेवादी अब फिर देश को अमेरिकी साम्राज्यवाद का गुलाम बनाने पर तुले हैं फिर हमें नए गाँधी को लाने की जरूरत है. साम्राज्यवाद के खिलाफ दुनिया में गाँधी महान हैं. विचारों की भिन्नता हो सकती है. कोई जरूरी नहीं गाँधी दर्शन की सभी चीजों से सहमत हों लेकिन सहमत औरे असहमत चलता रहता है लेकिन फ़ासिस्टवादियों से असहमत का मतलब है उनकी गोली का शिकार होना है. 

सुमन 

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