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शुक्रवार, 11 मार्च 2016

चौकीदार ऊँघता ही रहा .

2010 में दूसरी बार राज्य सभा की सदस्यता के लिए दाखिल किए गए हलफनामा में शराब कारोबारी विजय माल्या ने कहा था कि उनके पास कोई भी प्रॉपर्टी नहीं है और न ही कोई कर्ज उन पर बकाया है। बैंकों व वित्तीय संस्थानों से लोन से संबंधित कॉलम में उन्होंने NIL लिखा था। लेकिन माल्या की कम्पनी  को बैंको ने बगैर पड़ताल  के लोन  दिया था  कंपनियों का लोन  इसी तरह देते ही है और फिर कर्ज डूब जाता है नेता और अफसर दोनों खुश रहते है

यह बात अब प्रकाश में आई  है तो वही  बैक किसानो  को लोन स्वीकारते  समय इतने दस्तावेज मांगती है  कि जिसको पूरा करने के किसान हजारो रुपएखर्ज करने के बाद भी जब कमीशन  देता है तब उसको लोन  मिलता है विजय माल्या   चौकीदार  को धता बताकर भाग गया चौकीदार ऊँघता ही रहा . चौकीदार ऊँघता ही रहेगा इससे  वोट नही बढना है नागपुरी आकाओ  का मुस्लिम विरोध     भी  शामिल    नही है 
 चौकीदार झूठ  का सौदागर है इसी सौदागरी  के कारण  वह आज  शासन में है इसके पुरखे हिटलर ने भी इसी तरह राज्य पर कब्जा किया था फिर नरसंघार   किया था

सुमन 


लो क सं घ र्ष !

सोमवार, 12 नवंबर 2012

नेहरू ही हैं आधुनिक भारत के निर्माता

1945 के शिमला सम्मेलन के लिए जाते हुए ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खां, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल
14 नवम्बर जयंती पर विशेष
हमारे देश के कुछ संगठन, विशेषकर संघ परिवार के सदस्यए जब भी सरदार वल्लभभाई पटेल की चर्चा करते हैं, वे उनके बारे में दो बातें अवश्य कहते हैं। पहली यह कि सरदार पटेल आज के भारत के निर्माता हैं और दूसरी यह कि यदि कश्मीर की समस्या सुलझाने का उत्तरदायित्व सरदार पटेल को दे दिया जाता तो पूरे कश्मीर पर भारत का कब्जा होता।
संघ परिवार का हमेशा यह प्रयास रहता है कि आजाद भारत के निर्माण में जवाहरलाल नेहरू की भूमिका को कम करके पेश किया जाये और यह भी कि आज यदि पूरा कश्मीर हमारे कब्जे में नहीं है, तो उसके लिये सिर्फ और सिर्फ नेहरू को जिम्मेदार ठहराया जाए। संघ परिवार इस बात को भूल जाता है कि आजाद भारत में पंड़ित नेहरू और सरदार पटेल की अपनी.अपनी भूमिकायें थीं। जहां सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से सभी राजे.रजवाड़ों का भारत में विलय करवाया और भारत को एक राष्ट्र का स्वरूप दिया वहीं नेहरू ने भारत को एक शक्तिशाली आर्थिक नींव देने के लिए आवश्यक योजनायें बनाईं और उनके क्रियान्वयन के लिये उपयुक्त वातावरण भी।
नेहरू जी के योगदान को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला,ऐसी शक्तिशाली संस्थाओं का निर्माणए जिनसे भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थायी हो सके। इन संस्थाओं में संसद एवं विधानसभायें व पूर्ण स्वतंत्र न्यायपालिका शामिल हैं।
दूसराए प्रजातंत्र को जिंदा रखने के लिये निश्चित अवधि के बाद चुनावों की व्यवस्था और ऐसे संवैधानिक प्रावधान, जिससे भारतीय प्रजातंत्र धर्मनिरपेक्ष बना रहे।
तीसरा, मिश्रित अर्थव्यवस्था और उच्च शिक्षण संस्थानों की बड़े पैमाने पर स्थापना। वैसे  नेहरू समाजवादी व्यवस्था के समर्थक नहीं थे परंतु वे भारत को पूंजीवादी देश भी नहीं बनाना चाहते थे। इसलिये उन्होंने भारत में एक मिश्रित अर्थव्यवस्था की नींव रखी। इस व्यवस्था में उन्होंने जहां उद्योगों में निजी पूँजी की भूमिका बनाये रखी वहीं उन्होंने अधोसंरचनात्मक उद्योगों की स्थापना के लिये सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण किया। उन्होंने कुछ ऐसे उद्योग चुने जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में ही रखा गया। ये ऐसे उद्योग थे जिनके बिना निजी उद्योग पनप ही नहीं सकते थे। बिजली का उत्पादन पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में रखा गया। इसी तरह इस्पातए बिजली के भारी उपकरणों के कारखानेए रक्षा उद्योग, एल्यूमिनियम एवं परमाणु ऊर्जा भी सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गए। देश में तेल की खोज की गई और पेट्रोलियम की रिफाईनिंग व एलपीजी की बाटलिंग का काम भी केवल सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गये। औद्योगिकरण की सफलता के लिये तकनीकी ज्ञान में माहिर लोगों की आवश्यकता होती है। उद्योगों के संचालन के लिये प्रशिक्षित प्रबंधक भी चाहिए होते हैं। 
उच्च तकनीकी शिक्षा के लिये आईआईटी स्थापित किये गये। इसी तरह, प्रबंधन के गुर सिखाने के लिए आईआईएम खोले गए। इन उच्चकोटि के संस्थानों के साथ.साथ संपूर्ण देश के पचासों छोटे.बड़े शहरों में इंजीनियरिंग कालेज व देशवासियों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिये मेडिकल कॉलेज स्थापित किये गये। 
चूँकि अंग्रेजों के शासन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी इसलिये उसे वापिस पटरी पर लाने के लिये अनेक बुनियादी कदम उठाये गये। उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण था देश का योजनाबद्ध विकास। इसके लिये योजना आयोग की स्थापना की गई। स्वयं नेहरू जी योजना आयोग के अध्यक्ष बने। योजना आयोग ने देश के चहुंमुखी विकास के लिये पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं। उस समय पंचवर्षीय योजनाएं सोवियत संघ सहित अन्य समाजवादी देशों में लागू थीं परंतु पंचवर्षीय योजना का ढांचा एक ऐसे देश में लागू करना नेहरूजी के ही बूते का था जो पूरी तरह से  समाजवादी नहीं था।
उस समय भारत के सामने एक और समस्या थी और वह थी बुनियादी उद्योगों के लिये वित्तीय साधन उपलब्ध करवाना। पूँजीवादी देश इस तरह के उद्योगों के लिये पूँजी निवेश करने को तैयार नहीं थे। इन देशों का इरादा था कि भारत और भारत जैसे अन्य नव.स्वाधीन देशों की अर्थव्यवस्था कृषि.आधारित बनी रहे। चूँकि पूँजीवादी देश भारत के औद्योगिकरण में हाथ बंटाने को तैयार नहीं थे इसलिये नेहरू जी को सोवियत रूस समेत अन्य समाजवादी देशों से सहायता मांगनी पड़ी और समाजवादी देशों ने दिल खोलकर सहायता दी। समाजवादी देशों ने सहायता देते हुये यह स्पष्ट किया कि वे यह सहायता बिना किसी शर्त के दे रहे हैं। समाजवादी देशों की इसी नीति के अन्तर्गत हमें सार्वजनिक क्षेत्र के पहले इस्पात संयत्र के लिये सहायता मिली और यह प्लांट भिलाई में स्थापित हुआ।
जब पूँजीवादी देशों को यह महसूस हुआ कि यदि वे अपनी नीति पर चलते रहे तो वे समस्त नव.स्वाधीन देशों का समर्थन खो देंगे व इससे उन्हें भारी नुकसान होगा तब उन्होंने भी भारी उद्योगों के लिये सहायता देना प्रारंभ कर दिया।
इस तरहए धीरे.धीरे हमारा देश भारी उद्योगों के मामले में काफी प्रगति कर गया। आजादी के बाद जब हमें समाजवादी देशों से उदार सहायता मिलने लगी तो हमारे देश के प्रतिक्रियावादी राजनैतिक दलों और अन्य संगठनों ने यह आरोप लगाना प्रारंभ कर दिया कि हम सोवियत कैम्प की गोद में बैठ गये हैं।
द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व दो गुटो में विभाजित हो गया था। एक गुट का नेतृत्व अमरीका कर रहा था और दूसरे गुट का सोवियत संघ। भारत ने यह फैसला किया कि वह दोनों में से किसी गुट में शामिल नहीं होगा।
इसी निर्णय के अन्तर्गत हमने अपनी विदेशी नीति का आधार गुटनिरपेक्षता को बनाया। भारत द्वारा की गई इस पहल को भारी समर्थन मिला और अनेक नव.स्वाधीन देशों ने गुटनिरपेक्षता को अपनाया। गुटनिरपेक्षता की नीति की अमेरिका द्वारा सख्त निंदा की गई। तत्कालीन अमरीकी विदेश मंत्री जॉन फास्टर डलेस ने कहा कि जो हमारे साथ नहीं है वह हमारे  विरूद्ध है।
हमारे देश के अंदर भी जनसंघ ने गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना की और कहा कि हम समाजवादी देशों के पिछलग्गू बन गये हैं। परंतु हमारी गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण सारी दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी और जवाहरलाल नेहरूए गुटनिरपेक्ष देशों के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता बन गये। नेहरूजी के बाद इंदिरा गांधी भी इस नीति पर चलीं परंतु अब भारत ने इस नीति को पूरी तरह से भुला दिया है।
आर्थिक और विदेश नीति के निर्धारण में मौलिक योगदान के साथ.साथ नेहरू ने हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत कीं और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि नेहरू ने भारत को पूरी ताकत लगाकर एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया।
चूँकि हमने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया इसलिए हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़ें गहरी होती गईं। जहां अनेक नव.स्वाधीन देशों में प्रजातंत्र समाप्त हो गया है और तानाशाही कायम हो गई है वहीं भारत में प्रजातंत्र का कोई बाल बांका तक नहीं कर सका है।
इस तरहए कहा जा सकता है कि जहां सरदार पटेल ने भारत को भौगोलिक दृष्टि से एक राष्ट्र बनाया वहीं नेहरू ने ऐसा राजनीतिक.आर्थिक एवं सामाजिक आधार निर्मित किया जिससे भारत की एकताए अखण्डता व प्रजातंत्र को कोई ताकत खत्म नहीं कर सकी। आधुनिक भारत के निर्माण में पटेल और नेहरू दोनों का महत्वपूर्ण योगदान है।
- एल. एस. हरदेनिया

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

डीजीपीऔर आठ महीने में ही 9 दंगे


रिहाई मंच ने फैजाबाद में हुये दंगे के हफ्ते भर बाद भी मुख्यमंत्री अखिलेश  यादव के वहां न पहंुचने की कड़ी आलोचना करते हुए इसे मुख्यमंत्री का गैर जिम्मेदार रवैया बताया है।
रिहाई मंच की तरफ से दंगा प्रभावित इलाकों से दूसरे चरण की छानबीन करने के बाद जारी विज्ञप्ति में राजीव यादव, लालचंद, आलोक, ऋि ष   कुमार सिंह ने कहा कि प्रभावित लोगों के बीच सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री या किसी वरिश्ठ मंत्री के न जाने से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति सरकार के प्रतिबद्धता पर सवालिया निषान लगता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री औरदूसरे वरिश्ठ मंत्री सिर्फ लखनउ में बैठ कर दोशियों को सजा देने की बात कर रहे हैं। जबकि स्थानीय स्तर पर डरे सहमे लोगों में विष्वास बहाली की
कोई कोषिष सरकार की तरफ से नहीं की जा रही है। उल्टे भदरसा में हिंसा के कार मुसलमानों पर ही फर्जी मुकदमे लाद कर उन्हें दंगाई साबित करने की कोषिष की जा रही है जबकि असली दोशियों को खुला छोड दिया गया है।
जांच दल ने दुर्गा पूजा समिति के नेता और सपा से जुडे मनोज जायसवाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुये कहा कि प्रदेष सरकार में दंगाईयों से निपटने की इच्छा षक्ति नहीं है। क्योंकि खुद समाजवादी पार्टी से जुडे
हिंदुत्ववादी तत्व ही इस दंगे के मुख्य शडयंत्रकारी हैं। इसीलिये मुख्यमंत्री लखनउ से तो दोशियों को सजा दिलवाने की बात कर रहे हैं लेकिन फैजाबाद जाने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं क्योंकि वहां दंगा पीडित
मुसलमान उनसे उन्हीं की पार्टी के नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाएंगे। मानवाधिकार नेताओं ने इन दंगों को सपा द्वारा कमजोर पड चुकी भाजपा को जिंदा करने की कवायद करार देते हुये कहा कि सपा लोकसभा चुनाव से पहले साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराने पर तुली है।

राजीव यादव और लालचंद ने कहा कि सपा सरकार को अमरीश चंद्र षर्मा से ज्यादा बेहतर पुलिस अधिकारी प्रदेष का डीजीपी बनाने के लिये नहीं मिला। इससे भी सरकार के मुस्लिम विरोधी रवैये को समझा जा सकता है। क्योंकि मौजूदा डीजीपी पर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद कानपुर में हिंदुत्ववादी तत्वों को प्रश्रय देने का आरोप है। तब वह वहां एसएसपी के पद पर तैनात थे। जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनउ बेंच के तत्कालीन न्यायमूर्ति आईएस माथुर के नेतृत्व में जांच आयोग गठित किया गया गया था
जिसने 1998 में ही अपनी रिर्पोट सरकार को सौंप दी थी। जांच दल के सदस्यों ने कहा कि यदि सपा सच मुच धर्मनिरपेक्ष होती तो माथूर आयोग की रिर्पोट को सार्वजनिक करते हुये ए सी शर्मा के खिलाफ दंडात्मक कार्यवायी करती। लेकिन उसने उल्टे उन्हें डीजीपी बना दिया और आठ महीने में ही 9 दंगे हो गये।
मानवाधिकार नेताओं ने अखिलेश  सरकार को गुजरात की मोदी सरकार से भी ज्यादा मुस्लिम विरोधी करार देते हुये कहा कि मोदी ने तो 2002 में चुनाव जीतने के लिये मुसलमानों के खिलाफ हिंसा करवायी थी लेकिन सपा ने तो मुसलमानों के सहयोग से ही चुनाव जीतने के बावजूद सत्ता में आते ही मुस्लिम विरोधी दंगे कराना शुरू कर दिया। नेताओं ने कहा कि घोशित तौर पर मुस्लिम विरोधी भाजपा सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी देर से ही सही लेकिन गुजरात के मुस्लिम पीडितों से मिलने गये थे। लेकिन मुसलमानों के हमदर्द होने का दावा करने वाले मुलायम सिंह या उनके मुख्यमंत्री बेटे ने फैजाबाद सहित उनकी सरकार में हुये किसी भी दंगे में अब तक पीडितों से मिलने का कश्ट नहीं उठाया है।
रिहाई मंच के नेताओं ने मुख्यमंत्री अखिलेश  यादव के इस बयान को भी गुमराह करने वाला करार दिया जिसमें उन्होंने दंगों को उनकी सरकार को बदनाम करने की विरोधियों की साजिश  बताया था। मानवाधिकार नेताओं ने कहा कि प्रतापगढ के अस्थान गांव में 45 मुसलमानों के घर जलाने की घटना के पीछे तो सपा
सरकार में मंत्री रघुराज प्रताप सिंह के समर्थकों और सपा सांसद शैलेंद्र कुमार की भूमिका सामने आयी है। अगर उनके मंत्री और सांसद ही सरकार को बदनाम करने के लिये दंगा करा रहे हैं तो यह उनके नेतृत्व क्षमता पर ही सवाल उठाता है।
जांच दल के सदस्यों ने कहा कि आने वाले दिनों में कई प्रतिश्ठित मानवाधिकार नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवियों का एक दल भी फैजाबाद दंगा प्रभावित लोगों से मिलने जाएगा और इस पूरे प्रकरण में सपा सरकार की भूमिका पर जनता के सामने रिपोर्ट लाएगा।
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