मंगलवार, 22 मार्च 2011

नाटो भारत पर भी हमला करेगा.............?

मानवता की रक्षा हेतु

विश्व में साम्राज्यवादी शक्तियां बड़ी बेशर्मी के साथ एशिया के मुल्कों को गुलाम बनाने का कार्य कर रही हैं। जब इनकी कठपुतली संयुक्त राष्ट्र संघ ने किसी देश के ऊपर हमला करने की बात होती है। तो भारत, चीन, रूस, ईरान सहित कई मुल्क संयुक्त राष्ट्र संघ में अनुपस्थित हो जाते हैं और जब नाटो की सेनायें कार्यवाई शुरू कर देती हैं तो यह घडियाली आंसू बहाने शुरू कर देते हैं। चीन लीबिया में जारी घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं और लीबिया में जो हो रहा है उसपर अफसोस जाहिर करता है। चीन ने अपने बयान में लीबिया में विद्रोहियों और गद्दाफी सेनाओं के बीच जारी संघर्ष के सीज फायर की मांग भी नहीं की है और कहा है कि चीन उत्तरी अफ्रीका के स्वतंत्र राष्ट्र लीबिया की स्वतंत्रता, स्वप्रभुता और एकता का सम्मान करता है। बयान में कहा गया है कि हम उम्मीद करते हैं कि जल्द ही लीबिया में जारी संघर्ष थम जाएगा और नागरिकों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। ईरान ने इन हमलों की निंदा करते हुए कहा है कि लीबिया के तेल पर कब्जा करने का पश्चिमी देशों का यह घिनौना अपराध है। हालांकि ईरान ने लीबिया में गद्दाफी के विरोध में हो रहे प्रदर्शन का समर्थन करते हुए कहा है कि यह गद्दाफी के खिलाफ इस्लामिक क्रांति है। ईरान ने यह भी कहा है कि लीबिया के लोगों को पश्चिमी देशों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। वो अपने खास मकसदों को हल करने के लिए उनके साथ होने का दिखावा कर रहे हैं।
रूस ने भी लीबिया पर हुए मिसाइल हमलों की निंदा करते हुए कहा दोनों ओर से तुरंत संघर्ष विराम होना चाहिए। रुस ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र के बल प्रयोग के संकल्प को जल्दबाजी में अपनाया गया है। रूस के विदेश मंत्रालय ने द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि हम लीबिया और लीबिया पर हमला कर रहीं गठबंधन सेनाओं से अपील करते हैं कि वो शांति बहाली के लिए प्रयास करें।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा,''लीबिया में जारी संघर्ष की स्थिति को लेकर भारत चिंतित है. जैसा कि हमने पहले कहा था इस तरह के प्रयास स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश करें न कि आम नागरिकों के लिए मुश्किलें और बढ़ाएं.''
पूर्व में ईराक में कल्पित रासायनिक हथियारों की आड़ लेकर ईराक पर हमला किया गया। मीडिया ने नाटो सेनाओं को मित्र सेना की संज्ञा देकर ईराक पर कब्ज़ा करा दिया। अफगानिस्तान पर भी कब्ज़ा कर लिया गया। हजारो लाखो लोग मारे गए। घर-बेघर हो गए उस समय भी साम्राज्यवाद विरोधी तथाकथित शक्तियां घडियाली आंसू बहाती रहीं। आज लीबिया में कई दिनों से नाटो सेनायें कल्पित मानवीय आध्जारों को लेकर बम वर्षा कर रही हैं। मानवता की सबसे ज्यादा चिंता फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका को है। जापान में दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी है उस त्रासदी में ये देश विशेष कुछ नागरिकों की मदद नहीं कर रहे हैं उसका मुख्य कारण है जापान उनका अघोषित गुलाम देश है। इन देशों को सबसे ज्यादा नागरिक अधिकारों की चिंता लीबिया में है क्योंकि लीबिया का तेल भंडार सबके लिये सुलभ है। उस पर कब्ज़ा करने के लिये नागरिक अधिकारों का बहाना लेकर हमला किया जा रहा है और फिर लीबिया पर कब्ज़ा कर लिया जाएगा। यमन, बहरीन, सौदी अरबिया जैसे मुल्कों में भी आन्दोलन चल रहे हैं उनमें दखालान्जादी इसलिए नहीं होती है क्योंकि वे साम्राज्यवादियों के पिट्ठू मुल्क हैं। फ्रांस से लेके यूरोप के बड़े-बड़े देशों में महंगाई, बेरोजगारी को लेकर बड़े-बड़े धरना प्रदर्शन हो रहे हैं और यदि आन्दोलन ही संप्रभुता दरकिनार कर हस्ताक्षेप का आधार है तो इन देशों में कौन हस्ताक्षेप करेगा।
भारत में कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक सेना कमान संभाले हुए है। बराबर कोई न कोई प्रथक्तावादी आन्दोलन जारी है। भारत के उपभोक्ता बाजार तथा प्राकृतिक सम्पदा पर कब्ज़ा करने के लिये नाटो सेनाओ को अच्छा आधार मिल सकता है और संयुक्त राष्ट्र संघ इन प्रदेशों में लोकतंत्र मानव अधिकार स्थापित करने के लिये सैनिक हस्ताक्षेप की अनुमति भी दे सकता है ? हमारे देश में अमेरिकन व ब्रिटिश साम्राज्यवादी एजेंटो की कमी नहीं है वह शक्तियां सिर्फ वाह वाही में सब कुछ करने के लिये तैयार बैठी रहती हैं जो साम्राज्यवादी शक्तियां चाहती हैं। तभी तो भारत इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल जैसे साम्राज्यवादी देशों का गुलाम रहा है विश्व आर्थिक संकट के कारण साम्राज्यवादी मुल्कों की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं रह गयी है। आर्थिक संकट से उभरने के लिये यह साम्राज्यवादी शक्तियां कुछ भी कर सकती हैं। शांति इनकी मौत है युद्ध इनकी जिंदगी है। हमारे देश को चाहिए कि अपनी अस्मिता के लिये दुनिया के छोटे छोटे देशों की अस्मिता के लिये अपनी गुटनिरपेक्ष निति को जारी रखे। साम्राज्यवादी शक्तियों से दूरी आवश्यक है।
चाइना में अमेरिका और उसके साम्राज्यवादी मित्र बहुदलीय व्यवस्था लागू करने के नाम पर नोबेल पुरस्कार चाइना विरोधियों को देते रहते हैं। ईरान में अमेरिका व उसके पिट्ठू देशों द्वारा कई बार अपनी पिट्ठू सरकार बनाने की कोशिश की जा चुकी है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

7 टिप्‍पणियां:

Satish Chandra Satyarthi ने कहा…

काफी अच्छा विश्लेषण किया है आपने... मानवता की रक्षा तो बहाना है... इरादे क्या हैं ये सबको पता है...

बेनामी ने कहा…

A good interpretation at least.

Dr Acharya LS

Dr. Acharya ने कहा…

"यह विश्व आसान किश्तों में अमेरिका का गुलाम बनता जा रहा है . यह अमरीकी नव उपनिवेश वाद है . भारत
को मनमोहन सरकार ने अमेरिका का गुलाम बना दिया है , पाकिस्तान शुरू से
ही अमेरिका का पालतू पिल्ला है , अफगानिस्तान भी अमेरिका का गुलाम है
,सोवियत संघ के छः टुकड़े हो ही चुके हैं , ईराक के सद्दाम का हश्र देख
चुके हैं अब लीबिया के गद्दाफी की बारी है . "

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

ji haan jnaab agr desh men jat aandoln ya fir gurjr andoln ke doraan ptri se unhen uthaaya to aesa ho skta he . akhtar khan akela kota rajsthan

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

चिंता की बात।

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्याख्या।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छा विश्लेषण है ...

कुन्नू सिंह ने कहा…

एकदम सही कहा आपने, और एसा भविष्य मे होने का खतरा बहुत ज्यादा है।

अभी तक वो हमला भी कर चुका होता लेकीन भारत के पास परमाणु शक्ती है ईसलिए हिम्मत नही जुटा पा रहा होगा क्यों की हर बार जापान जैसी गलती नही होती है :)

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